किसी हिन्दू की करना
ना मुसलमान की करना ,
बात जब भी करना-
बस हिदुस्तान की करना !!
न है वो किसी मस्जिद में -
ना बसता पत्थर की मूरत में ,
इसी जमीं पे रहता है वो -
बस इंसानों की सूरत में ;
अल्लाह , ईश्वर से जो मिलना -
तो कद्र हर इन्सान की करना !!
सरहद पे जो जवान -
हर जाति- धर्म से दूर था ,
सीने पे गोली खा गया-
अपने फ़र्ज से मजबूर था ;
किसी मजहब से जोड़ नाम -
तौहीन ना उसके बलिदान की करना!
बस हिदुस्तान की करना !!
खलल मत डालना इनमे -
ये भाईचारे वतन के हैं ;
है सबका गिरिराज हिमालय -
सांझे धारे गंग -जमन के हैं ;
जो बाँटोगे इस सरजमीं को -
तो फ़िक्र अपने अंजाम की करना !!
बात जब भी करना
बस हिदुस्तान की करना !!!!!!!!!!!!!