भीगे एकांत में बरबस -
पुकार लेती हूँ तुम्हे
सौंप अपनी वेदना -
सब भार दे देती हूँ तुम्हे !
जब -तब हो जाती हूँ विचलित
कहीं खो ना दूँ तुम्हे
क्या रहेगा जिन्दगी में
जो हार देती हूँ तुम्हे !
सब से छुपा कर
मन में बसाया है तुम्हे
जब भी जी चाहे तब
निहार लेती हूँ तुम्हे
बिखर ना जाए कहीं
रखना इसे संभाल के
सुहानी हसरतों का
हसीं संसार देती हूँ तुम्हे !
तुम डुबो दो या
ले चलो साहिल पर इसे
प्यार की कश्ती की
पतवार देती हूँ तुम्हे !
कांच सी दुनिया ये
तुम मिले कोहिनूर से
क्या दूं बदले में ?
बस प्यार देती हूँ तुम्हे !!!
स्वरचित -- रेणु
चित्र -- गूगल से साभार -
इस रचना को मेरे ब्लॉग पर भी पढिये --
https://renuskshitij.blogspot.com/2019/04/blog-post_9.html