कहाँ से आये ये लम्पट बाबा ?
धर सर कथित ' ज्ञान ' का झाबा !!
गुरु ज्ञान की डुगडुगी बजायी -
विवेक हरण कर जनता लुभाई ,
श्रद्धा , अन्धविश्वास में सारे डूबे -
हुई गुम आडम्बर में सच्चाई ;
बन बैठे भगवान समय के
खुद बन गये काशी काबा !!
धन बटोरें दोनों हाथों से -
कलयुग के ये कुशल लुटेरे ,
खुद तृष्णा के पंक में डूबे
पर दे देते उपदेश बहुतेरे ;
खूब चलायें दूकान धर्म की
सुरा - सुंदरी में मन लागा!!
खुद को बताये आत्मज्ञानी -
तत्वदर्शी और गुरु महाज्ञानी ,
मन के काले और कपटी -
लोभी क्रोधी , कुटिल और कामी ;
'गुरु ' शब्द की घटाई महिमा -
बने संत समाज पे धब्बा !!
बुद्ध , राम, कृष्ण की पावन धरा पर
नानक , कबीर ,रहीम के देश में ,
बन हमदर्द , मसीहा लोगों के -
बैठे बगुले हंस वेश में
छद्म हरी -नाम बांसुरी तान चढ़ाई
करी मलिन हरि- भूमि की आभा !!
कहाँ से आये ये लम्पट बाबा ?
धर सर कथित 'ज्ञान ' का झाबा !!