छात्र जीवन में शिक्षकों का महत्व किसी से छुपा नहीं | इस जीवन में अनेक शिक्षक हमारे जीवन में ज्ञान का आलोक फैलाकर आगे बढ़ जाते है पर वे हमारे लिए प्रेरणा पुंज बने हमारी यादों से कभी ओझल नहीं होते | एक शिक्षक के जीवन में अनगिन छात्र - छात्राएं आते हैं तो विद्यार्थी भी कई शिक्षकों से ज्ञान का उपहार प्राप्त कर अपने भविष्य को संवारता है | इनमे से कई समर्पित शिक्षक हमारे जीवन का आदर्श बन हमारी यादों में हमेशा के लिए बस जाते हैं |
शिक्षक दिवस के अवसर पर मुझे भी अपने छात्र जीवन के एक अविस्मरनीय प्रसंग को सांझा करने का मन हो आया है | बात तब की है - जब मै अपने गाँव के कन्या हाई स्कूल में दसवी में पढ़ती थी |यह स्कूल लडकियों का होने के कारण यहाँ पढ़ाने वाला सारा स्टाफ भी महिलाओं का ही था | बहुधा सभी अध्यापिकाएं पास के शहर चंडीगढ़ व पंचकूला इत्यादि से आती थीं | यूँ तो सारी अध्यापिकाएं अपने -अपने विषयों के प्रति समर्पित थी, पर हमारी अंग्रेजी विषय की अध्यापिका श्रीमती निर्मल महाजन का हमारी तीस लड़कियों वाली कक्षा के प्रति विशेष स्नेह था , क्योंकि वे जानती थी कि ग्रामीण परिवेश होने की वजह से हम सभी लड़कियों का अंग्रेजी ज्ञान अपेक्षाकृत बहुत कम था , उस पर पढ़ाने वाले स्टाफ की भी बहुधा कमी रहती थी | उस वर्ष वैसे भी आने वाले मार्च में हमारी दसवीं की बोर्ड की परीक्षाएं होनी थी | उन दिनों हरियाणा में अंग्रेजी भाषा स्कूलों में छठी कक्षा से पढाई जाती थी --एक ये भी कारण था कि बच्चे बोर्ड की क्लास में पहुँच कर भी अंग्रेजी में प्रायः बहुत अच्छे नहीं होते थे |श्री मति महाजन को बखूबी पता था कि हमारी अंग्रेजी भाषा की नींव अच्छी नहीं है अतः उन्होंने भाषा के समस्त नियम समझाकर हमें भाषा में पारंगत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी | वे अक्सर रविवार या किसी अन्य छुट्टी के दिन भी हमें अंग्रेजी पढ़ाने हमारे स्कूल पहुँच जाया करती !यहाँ तक कि दिसंबर महीने में जब सर्दकालीन अवकाश घोषित हुए तो उन्होंने हमारी कक्षा में आकर कहा कि वे अवकाश के दौरान भी हमें पढ़ने आया करेंगी , क्योंकि वे हमारे सलेबस की दुहराई करवाना चाहती हैं | उनकी यह बात सुनकर उनके पास खड़ी एक अन्य अध्यापिका बोल पड़ी-- ' कि इस कक्षा के साथ -साथ आपको अपनी बिटिया की पढाई का भी ध्यान रखना चाहिए ' तो वे बड़ी ही निश्छलता व स्नेह के साथ बोलीं -'' कि यहाँ मेरी तीस बेटियों को मेरी जरूरत है तो मैं अपनी एक बेटी की परवाह क्यों करूं ?'' उनके ये भाव भीने शब्द सुनकर मानों पूरी क्लास अवाक् रह गई !! क्योंकि हमें भी तभी पता चला कि उनकी अपनी बिटिया भी उसी साल मैट्रिक की परीक्षा देने वाली थी !उनके स्नेह से अभिभूत हम सब लड़कियां जी -जान से परीक्षा की तैयारी में जुट गईं ,वे भी दिसम्बर की कंपकंपा देने वाली सर्दी में हमें पढ़ाने चंडीगढ़ से हर-रोज लगभग तीस किलोमीटर का सफ़र करके आती रही | इसी बीच उनकी पदोन्नति हो गई और उनका तबादला जनवरी में ही किसी दूर के स्कूल में हो गया |जाने के दिन तक वे हमारी परीक्षा की तैयारी करवाने में जुटी रही |हम सब लड़कियों ने अश्रुपूरित आँखों से उन्हें भावभीनी विदाई दी | उसके बाद वे हमें कभी नहीं मिली | परीक्षा के बाद जब हमारे परिणाम घोषित हुए तो पूरी कक्षा बहुत ही अच्छे अंक लेकर पास हुई | उस समय हमें अपनी उन माँ तुल्य अध्यापिका की बहुत याद आई और हम सब लड़कियां उनको याद कर रो पड़ीं ! हमें ये मलाल रहा कि अपनी करवाई मेहनत का परिणाम देखने और हमारी ख़ुशी बाँटने के समय वे हमारे साथ नहीं थी | इतने साल बीत गए पर उनका दिया अंग्रेजी भाषा का वो ज्ञान जीवन में मेरे बड़ा काम आया , उसी ढंग से मैंने भी अपने बच्चों को अंग्रेजी पढाई |आज भी उन के उस निश्छल स्नेह को यादकर मेरा मन भर आता है और मन से यही दुआ निकलती है कि वे जहाँ भी हों स्वस्थ व सुखी हों |उन्हें मेरा विनम्र सादर नमन |