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ये ठहराव जरूरी था - कोरोना काल पर चिंतन

29 मई 2020

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कितने सालों से देख रहे थे , अलसुबह भारी - भरकम बस्ते लादे- टाई- बेल्ट से लैस , चमड़े के भारी जूतों के साथ आकर्षक नीट -क्लीन ड्रेस में सजा -- विद्यालयों की तरफ भागता रुआंसा बचपन --- तो नम्बरों की दौड़ और प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिले की धुन में- आधे सोये- आधे जागते किशोर और नौकरी के लिए हर तरह का दांवपेंच लड़ाते अवसादग्रस्त युवा ---! इसके साथ सार्वजनिक और निजी वाहनों से अपने आजीविका स्थल की ओर भागते लोग , जिन्हें सालों से ना पूरी नींद मयस्सर हुई ना चैन | यूँ लगता था हर कोई भाग रहा है---- गाँव से छोटे शहर की ओर -- छोटे शहर से बड़े शहर की ओर और महानगरों से विदेश की ओर ---! लोगों की ये दौड़ थमने का नाम नहीं ले रही थी ----------! कोई वज़ह से तो --कोई बिन वज़ह भागा जा रहा था -- अपनी ही धुन में --- ! पर ,अचानक ये क्या हुआ कि जिन्दगी का पहिया एकदम थम गया --! गली - कूचे वीरान , सड़कें खाली और हर कोई अपने घर में कैद ! कुछ समय के लिए तो लोगबाग़ -इस तरह जिन्दगी की रफ़्तार पर लगे इस विराम पर स्तब्ध रह गये !पर बाद में लगा - ये खालीपन अपने साथ एक ऐसा सुकून भी जीवन में ले आया है , जहाँ ना मजबूरीवश कहीं भागने की अफ़रातफ़री है , ना किसी दौड़ में आगे आने की जद्दोजहद | यहाँ चिंता और चिंतन बस एक बिंदू पर ठहरे हैं -- अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा ! जो परिवार सालों से एक दूसरे के साथ मिल बैठ नहीं पाए थे-- उन्होंने साथ मिलजुल कर यादों की अनमोल पूंजी आपस में बाँटी | जो बातें परिवार भूल चुका था --वो भी दुहराई गई | यानि इस कथित लोकबंदी के दौरान भावनाओं को नया जीवन मिला है -- अगाध आत्मीयता का सुधारस रिक्त -मनों को सिक्त कर रहा है | सयुंक्त परिवार की एकजुटता का आनन्द युवा पीढ़ी ने इतनी बेफिक्री के साथ -- पहली बार लिया |सभी को जीवन का ये आन्न्द्काल अविस्मरनीय रहेगा |


दायित्व बोध की जगी भावना -- लॉकडॉउन ने विशेषकर शहरी जीवन में पारिवारिक स्तर पर एक ऐसी क्रांति का सूत्रपात किया है , जो अप्रत्याशित है । घर में सहायिकाओं की छुट्टी हो जाने से परिवार का युवावर्ग, विशेष रूप से घरेलू दायित्व के प्रति सजग हुआ है। जिनमें कॉलेज जाने वाली बेटियां और ऑफिस जाने वाली बहुएं - रसोई की तरफ बड़े उन्मुक्त भाव से नये - नये पकवान बनाने को उद्दत् हुई हैं, तो बुजुर्गों की खुशी का ठिकाना नहीं , पूरा परिवार जो उनकी आँखों के सामने है। ना किसी को दफ्तर जाने की जल्दी , ना बच्चों के स्कूल की चिंता । शायद आपाधापी में खोई सदी के लिए ये लघुविराम जरूरी था । दुनिया का कारोबार इस दौरान भले भले चौपट हो गया , परिवार में आपसी स्नेह का कारोबार भली भाँति फलफूल रहा है । इस घरबंदी से आज परिवार फिर से जी उठा -- --- नये दायित्वबोध के साथ |सूचना- क्रांति ने इस घरबंदी को, बोझिलता से बचाया है और रचनात्मकता को बढ़ाया है | लोग अपने शौक और हुनर इस लोकबंदी में खूब संवारा | पढने के शौक़ीन उन किताबों को बड़े चाव से पढ़ रहे हैं , जिनको इस जन्म में छूने तक की भी उम्मीद नहीं थी | संगीत , कला , साहित्य के लिए ये दौर बहुत सुखद है | खूब लिखा जा रहा है -- पढ़ा जा रहा और सीखा जा रहा है | बड़े शौक से घर में एक दूजे से सीखने - सिखाने की कवायद जारी है | इस सदी ने ऐसा स्नेहिल दौर शायद पहले कभी नहीं देखा | लोकबंदी में सभी की चिंतन शक्ति को विस्तार मिल रहा है | स्वहित और जनहित में ये एकांतवास एक समाधि सरीखा सिद्ध हुआ | |


आया कोरोना --- कोरोना क्या आया एक अघोषित युद्ध की -सी स्थिति सामने आ खड़ी हुई |समाज में आपस में मिलने -जुलने से एक खौफ सा व्याप्त है , हर एक इन्सान के भीतर | जनता-कर्फ़्यू से लेकर लोकबंदी से गुजर कर समाज एक नये ढर्रे में ढलने को तैयार है इस दौरान लोगों को चिंतन करने का सुनहरा अवसर मिला -- भले ही इसकी कीमत बहुत बड़ी चुकानी पड़ी !यूँ लगा मानों समस्त भौतिक प्रपंच बेमानी हैं | कीमत है तो बस इंसान की | कोरोना से भयाक्रांत मानव और समाज नये नियम और कायदे गढ़ने को मजबूर हुआ | कल जो चीजें जीवन में बहुत जरूरी थी . इस दौरान हाशिये पर आ गयी | मॉल संस्कृति कुछ समय के लिए सिकुड़ कर लुप्तप्राय हो गयी तो पीज़ा -बर्गर और सैर - सपाटे सेहत की चिंता के आगे गौण हो गए | घर सबसे सुरक्षित स्थान हो गया तो अपने लोग सबसे ज्यादा नजदीक | देखा जाये तो मानव की पलायनवादी प्रवृति अक्सर उसे कोरोना जैसे संकट में डाल देती है , पर साथ ही उसे एक सबक देकर भविष्य के लिए तैयार करती है | कोरोना ने भी मानव -समाजको बहुत कुछ सिखाया है | मानव सभ्यता पर आये आकस्मिक संकट कोरोना के बहाने - एक विराट विमर्श की शुरुआत हो चुकी है | आने वाले समय में इस पर किये गये शोध -इस स्थिति का सही -सही मूल्याङ्कन करेंगे कि समाज ने इस महामारी के दौरान क्या खोया और क्या नया सीखा !


नये रूप में धर्म --- धर्म की स्थापना शायद जीवन में कल्याणकारी नैतिक मापदंडों की सीमायें तय करने के लिए हुई थी , जिसमें जीवनपर्यंत बहुजनहिताय सुकर्म की प्रेरणा और जीवनोपरांत मोक्ष पाने के प्रयासों का प्रावधान किया था , पर बौद्धिकता के अनावश्यक हस्तक्षेप से आज धर्म कुत्सित रूप में परिवर्तित हो गया है | धर्मान्धता से मानवता को जो हानि हुई -उसके सही आंकड़े कहाँ उपलब्ध हैं ? पर ये संतोषप्रद है , कि इस संकटकाल में धर्म अपने परिष्कृत रूप में सामने आया है , जहाँ पाखंड और कर्मकांड नहीं , अपितु मानव सेवा से ही धर्म को सार्थकता मिल रही है | गोस्वामी तुलसीदास जी की मानव धर्म की महिमा बढ़ाती उक्ति गली- गली . कूचे -कूचे चरितार्थ हो रही है , ''परहित सरस धर्म नहीं भाई ,'' इसी को चरितार्थ करते और मानव धर्म निभाते चिकित्सक , और अन्य कोरोना योद्धा , मानवता और सद्भावना के शांतिदूत बनकर आमजन की आँखों के तारे बने हुए हैं और दुनिया को समझा रहे हैं कि यही है सच्चा धर्म - ----! निस्वार्थ कर्म जो केवल और केवल मानवता को समर्पित है, जिसमें त्याग भी है , सद्भावना भी है- सच्चे मानव धर्म के रूप में उभरा है | हो सकता है कोरोना की महामारी लोगों को साथी तौर पर ये जरुर समझा दे कि सच्चे धर्म की परिभाषा क्या है और साथ में ये भी , कि आज देश को देवालयों से कहीं ज्यादा , चिकित्सालयों और शिक्षालयों की आवश्यकता है |


चकित कर रहे ये बदलाव ---- लोकबंदी के दौरान दुर्घटनाओं और . आत्महत्याओं में कमी के साथ प्रदूषण का घटता स्तर बहुत सुखद लगा । भागती-दौड़ती जिन्दगी ने खुलकर साँस ली | साथ में रोचक है -- सुबह -सुबह शोर प्रदूषण में अपना अतुलनीय योगदान देने वाले -- धर्म स्थानों पर मौज कूट रहे कथित धर्मावलम्बियों की जमात , ना जाने किसे मांद में जाकर छिप गयी है !! --- होई हैं वहीँ जो राम रचि राखा पर -- उन्हें आज कतई विश्वास नहीं हो रहा | वे कोरोना से इतना भयाक्रांत हो गये हैं, कि उनके दर्शन दुर्लभ हो गये हैं | जिन्हें ना किसी बीमार की चिंता , ना परीक्षाकाल में छात्रों के भविष्य की चिंता थी -- जो बस लाउड स्पीकर में भजनों के द्वारा- भीषण हाहाकार को ही धर्म की शक्ति मानते थे - आज मौन हैं | !कथित उपदेशक बाबा लोग तो अदृश्य से होगये हैं | उन्हें जाने कैसा सदमा लगा - समझ नहीं आता | पर उस अनचाहे शोर से मुक्ति ने आमजन की नींद को बहुत मधुर बना दिया है तो एकाग्रता को बढ़ा दिया है |

निखरी नये रूप में प्रकृति -- प्रकृति के लिए आमजन ने जो किया --उससे उसकी कितनी हानि हुई --- इसके सही -सही आंकड़े उपलब्ध नहीं, पर इतना तो तय है , कि हमने उसे कुरूप करने में कोई कसर नहीं छोडी | धर्मयात्रायें मौजमस्ती का माध्यम बन गयी | बड़े बुजुर्गों से सुना करते थे -- कि कभी जटिल तीर्थ स्थानों की यात्राओं के लिए सिर्फ बुजुर्ग लोग ही जाते थे , वो भी सर पर कफन बाँध कर , ताकि उनके जीवन का अंत यदि इन यात्राओं के दौरान हो जाए तो उन्हें मोक्ष मिल जाए | पर कालान्तर में लोगों ने इसे पारिवारिक आनन्द का माध्यम मानकर सपरिवार जाना शुरू कर दिया | पहाड़ों - पर्वतों पर तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए निर्माण हुए -- सड़कें बनी , होटल निर्मित किये गये और इन प्रक्रियाओं में प्रकृति अपना सौंदर्य गंवा बैठी | पर लोकबंदी के दौरान सोशल मीडिया पर आने वाली सुखद तस्वीरें बता रही हैं , कि करोड़ों रूपये की परियोजनाएं जो ना सकी वह लोकबंदी ने कर दिया | निखरे पहाड़ - पर्वत और घाटियाँ , उन्मुक्त उड़ान भरते पक्षी दल ना जाने कितने दिनों बाद नजर आये | नदियाँ निर्मल हो मन मोह रही हैं |प्रदूषण का स्तर घट रहा है | शासनादेश को जनहित में पहली बार लोगों ने बहुधा ईमानदारी से अपनी स्वीकार्यता दी , जो नितांत संतोष का विषय है |


करुणा के नाम रहा संकटकाल - कोरोना काल में लोगों ने सदी की सबसे करुणा भरी तस्वीरें देखी| दूरदराज गाँव से आजीविका के लिये आये श्रमिक वर्ग की विकलता ने जनमानस को भावविहल कर दिया |हफ़्तों पैदल गाँव- गली की और भागते साधनविहीन लोग और उनके साथ हुई अमानवीयता -- पहले कभी नहीं देखी गयी | मजदूर वर्ग ने पग- पग पर अनगिन विपदाओं का सामना किया | बहुत बड़ी संख्या में उनकी मौतों ने सम्पूर्ण मानवता को शर्मसार और स्तब्ध कर किया ! अपने गाँव - गली लौटकर अपनी जड़ों में समाने को आतुर- कम शिक्षित श्रमिकों के रूप में सामने आई सामूहिक भावना अपठित और अबूझ है | शायद आत्मीयता के इस अद्भुत रसायन का कोई विकल्प संसार में नहीं | और कोई प्रयोगशाला इसका विश्लेषण कर पाने में सक्षम हो--- ऐसा नहीं लगता | माटी के लाल श्रमवीर ने जो संस्कार संजो कर रखा है --वह है जननी , जन्म भूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है | शहर में बहुत साल बिता देने पर भी उसे छोड़ते समय उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता , पर गाँव में बहुत कुछ है जिसे वह गाँव से पलायन के समय छोड़ आया था-- जो उसे लौटकर फिर मिल जाएगा | अपनी माटी की गंध उसे हमेशा अपने भावापाश में बांधे रखती है | उनके असुरक्षित मन का एक मात्र सुरक्षा कवच , मानो उनकी जन्म भूमि ही है। उनकी छटपटाहट कोई राजनैतिक स्वांग नहीं ---उनकी अपनी माटी और अपनों के प्रति अगाध आत्मीयता है, जिसे वे सबको बताना चाहते हैं!उनकी प्रगाढ़ आत्मीयता को शहर की चकाचौँध अभी तक आच्छादित नहीं कर पाई है , क्योंकि वह प्रगति के उस शिखर को कभी छू नहीं पाया -जहाँ संवेदनाएं शून्य हो जाती हैं ।यूँ भी जीवन ऐसे वर्ग के प्रति बहुत अधिक कठोर रहा है , जैसे उसके गाँव प्रयाण में भी उसने बहुत परीक्षाएं दी हैं , जिनमें वह बहुधा अपनी जीवटता से विजयी माना गया है | उसकी जीवटता को कोरोना संकट ने और प्रबल कर दिया | अंतस में सीम करुणा जागते . मानवसंघर्ष के ये पल जनमानस के लिए अविस्मरणीय रहेंगे और इनकी स्मृतियाँ मन को विचलित करती रहेंगी |


जीना होगा कोरोना के साथ -- सदियों से ही दुनिया महामारियों से बहुत त्रस्त रहा है |नाम बदल-बदल कर , नए नए रूपों में बीमारियाँ मानव को सताती रही हैं और अनगिन जिंदगियां लीलती रही हैं क्योंकि किसी भी अप्रत्याशित बीमारी का उपचार उसके आने से पहले पता हो ये शायद मुमकिन नहीं | इसी तरह कोरोना के उपचार के साधन ढूंढें जा रहे हैं | दुसरे शब्दों में कहें , कोरोना जैसी महामारी के एकदम मिटने की कोई गुंजाईश फिलहाल नजर नहीं आती , पर फिर भी अपनी सजगता और समर्पण से हम इसे काबू जरुर कर सकते हैं | स्वच्छता के साथ सामाजिक दूरी का पालन करते हुए हमें उन दुर्व्यसनों को छोड़ना होगा , जो बढ़ती सम्पन्नता से पैदा हुए थे | माल और बार संस्कृति से दूरी बनानी होगी , तो अनावश्यक भीड़ का मोह त्यागना होगा | साथ में लोकबंदी के दौरान मिले आत्मीयता के संस्कार को दीर्घजीवी बनाना होगा , तभी हम इस विपति से पार आ पाएंगे | तेजी से भाग रहे जीवन का ये ठहराव - काल --यही कहता है कि हमें वैभव विलास से इतर अपने बारे में -- अपने अपनों के बारे में या फिर देश - समाज के कल्याण के बारे में जरुर गंभीरता से सोचना होगा | बहुत ज्यादा बड़े नहीं , बल्कि छोटे से छोटे प्रयास जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं | दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं , कि जीवन में ये ठहराव आवश्यक था -- जो हमें सब कुछ गंवाने के स्थान पर - बचे हुए को सहेजने की अनमोल सीख देकर जा रहा है |


ईश्वर से प्रार्थना है महामारी कोरोना का ये भीषण संकट काल मानवता का नवप्रभात हो |



चित्र --- गूगल से साभार |

रेणु

रेणु

आभार शशि भैया

10 अगस्त 2020

Shashi Gupta

Shashi Gupta

समसामयिक लेख, प्रणाम रेणु दीदी।

1 अगस्त 2020

विश्वमोहन

विश्वमोहन

अत्यंत सारगर्भित लेख। आगे भी लिखते रहें।

10 जून 2020

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत अच्छा और उपयोगी लेख है |

31 मई 2020

हर्ष वर्धन जोग

हर्ष वर्धन जोग

बढ़िया लेख. धर्म की नई परिभाषा बहुत अच्छी बताई आपने.

31 मई 2020

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लोहड़ी --------- उल्लास का पर्व

12 जनवरी 2017
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पंजाब का लोकपर्व मकर सक्रांति से ठीक एक या कभी - कभी दो दिन पहले आता है | ये पर्व पंजाब की जिन्दादिली से भरे जनजीवन को दर्शाता है .| इस दिन लोगों का उत्साह देखते ही बनता है | . घरो और गलियों में रेवड़ी और मूंगफली की

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सूर्य उपासना - का पर्व ---- मकर संक्राति

13 जनवरी 2017
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ब्रह्मांड में सूर्य के बिना जीवन की कल्पना करना नितांत निरर्थक है | सूर्य का उदय सृष्टि में जीवन का सन्देश लेकर आता है | इसके विपरीत संध्या में सूर्यास्त ग्रहो - उपग्रहों के अस्तित्व का प्रतीक है क्योकि सूर्य के असीम प्र

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बासंती लड़की

30 जनवरी 2017
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जाड़े की उस कंपकंपाती शाम को अपने गाँव की सड़क पर टहलते हुए ऐसा लगा मानो सडक की जरिये खेत सांस ले रहे हों | दूर –दूर तक खेतों में गेहूं व गन्ने की फसलें लहलहा रहीं थी | मेढ़े भी हरी – भरी घास से भरी थी और उन पर झुकी थी मधुर बास

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करनाल में पतंगबाजी का बसंत

30 जनवरी 2017
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करनाल की गिनती हरियाणा के अग्रणी शहरो में होती है | आजकल तो इसे हरियाणा के मुख्यमंत्री का शहर भी होने का गौरव भी प्राप्त है | करनाल में कई चीजें ऐसी हैं जो इसे विशेष दर्जादिलाती हैं -- जैसे भारतीय डेरी अनुसन्धान केंद्र , शेरशाह सूरी की कोस मीनार ,

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जी , टी . रोड पर अँधेरी रात का सफ़र ---

10 फरवरी 2017
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दिन के प्रत्येक पहर का अपना सौन्दर्य होता है | जहाँ भोर प्रकृतिवादी कवियों के लिए सदैव ही नवजीवन की प्रेरणा का प्रतीक रही है वहीँ प्रेमातुर व्यक्तियों और प्रेमवादी विचारधारा के कवियों व साहित्यकारों के लिए रात्रि के प्रत्येक पल का अपना महत्व माना है | रचनाकारों ने अपनी रचनाओं -- चाहे वह कविता हो

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तुम्हारी चाहत --- कविता

12 फरवरी 2017
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अनमोल है तुम्हारी चाहत - जो नहीं चाहती मुझसे , कि मैं सजूँ सवरू और रिझाऊं तुम्हे ; जो नहीं पछताती मेरे - विवादास्पद अतीत पर ,और मिथ्या आशा नहीं रखती

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फागुन में उस साल

13 फरवरी 2017
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फागुन मास में उस साल -मेरे आँगन की क्यारी में ,हरे - भरे चमेली के पौधे पर - जब नज़र आई थी शंकुनुमा कलियाँ पहली बार !तो मैंने कहा था कलियों से चुपके से -"कि चटकना उसी दिन और खोल देना गंध के द्वार ,जब तुम आओ

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तुम्हारा मौन

16 फरवरी 2017
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असह्य हो चुका है तुम्हारा - ये विचित्र मौन ; विरक्त हो जाना तुम्हारा - रंग , गंध और स्पर्श के प्रति ; अनासक्त हो जाना - अप्रतिम सौन्दर्य के प्रति | भावहीन हो बैठ उपेक्षा करना - संगीत की मध

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अलमस्त बचपन -- कविता

25 फरवरी 2017
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भरपूर हरियाली खेतों की --- और बचपन की ये मस्त अदा ! तन धरा पे मन अम्बर में - हटी है जग की हर बाधा !! खुशियों का जब चला काफिला - झुक - सा गया गगन नीला . धरती की गोद में अनायास - कोई फूल

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तुम्हारी आँखों से --

26 फरवरी 2017
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तुम्हारी आँखों से छलक रही है किसी की चाहत अनायास -- जो भरी हैं पूनम जैसे उजास से और हर पल चमकती हैं --- अँधेरे में जलते दो दीपों की मानिंद ; जो

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कल सपने में ---- नव गीत

4 मार्च 2017
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कल सपने में हम जैसे - इक सागर तट पर निकल पड़े! लेकर हाथ में हाथ चले और निर्जन पथ पर निकल पड़े जहाँ फैली थी मधुर चांदनी - शीतल जल के धारों पे , कुंदन जैसी रात थमी थी -- मौन स्तब्ध आधारों पे फेर आँखे जग - भर से वहां- दो प्रेमी नटखट निकल पड़े फिर से हमने चुनी

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होली गीतों की भूली बिसरी परम्परा

9 मार्च 2017
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होली का पर्व अपने साथ ऐसा उल्लास और उमंग ले कर आता है जिसमे हर इन्सान आकंठ डूब जाता है | ये फाल्गुन मास में आता है | फाल्गुन मास में बसंत ऋतुअपने चरम पर होतीहै | कहना अतिशयोक्ति ना होगा कि फागुन मास में प्रकृति का उत्सव मनता है | धरती सरसों

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चाँद फागुन का -- नवगीत

12 मार्च 2017
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बादल संग आंखमिचौली खेले -- पूरा चाँद सखी फागुन का-- ! संग जगमग तारे - लगें बहुत ही प्यारे ; सजा है आँगन आज गगन का ! सखी ! दूध सा चन्दा -- दे मन आनंदा ; हरमन भाये ये समां पूनम का ! कोई फगुवा गाये -

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कहीं मत जाना तुम -- कविता

19 मार्च 2017
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बिनसुने - मन की व्यथा -- दूर कहीं मत जाना तुम ! किसने - कब- कितना सताया - सब कथा सुन जाना तुम ! ! जाने कब से जमा है भीतर -- दर्द की अनगिन तहें , जख्म बन चले नासूर - अब तो लाइलाज से हो गए ; मुस्कुरा दूँ मैं जरा सा -- वो वजह बन जाना तुम ! ! रो

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गंगा -- यमुना कब ना थी ज़िंदा इकाई ?

23 मार्च 2017
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20 मार्च को उत्तराखण्ड उच्च न्यायलय ने अपने ऐतहासिक निर्णय में गंगा - यमुना नदियों को भारत वर्ष की जीवित इकाई मानते हुए उन्हें लीगल स्टेटस प्रदान किया है और दोनों नदियों को किसी जीवित व्यक्ति की तरह अधिकार दिया है | केंद्र सरकार को भी नियत आठ सप्ताह की अवधि में गंगा प्रबंधन बोर्ड बनाने का आदेश दिया

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आई तुम्हारी याद -- कविता

28 मार्च 2017
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दूभर तो बहुत थी - ये उदासियाँ मगर , आई तुम्हारी याद - तो हम मुस्कुरा दिए ! आई पलट के खुशियां - महकी हैं मन की गलियां ; बहुत दिनों के बाद - हम मुस्कुरा दिए ! ! बड़े विकल कर रहे थे -- कुछ जो संशय मनचले थे ; धीरज ना कुछ बचा था - और नैन भर चले थे ; बस यूँ ही उड़

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हिमालय - वंदन ----------- - कविता

1 अप्रैल 2017
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सुना है हिमालय हो तुम ! सुदृढ़ , अटल और अविचल - जीवन का विद्यालय हो तुम ! ! शिव के तुम्ही कैलाश हो - माँ जगदम्बा का वास हो , निर्वाण हो महावीर का -- ऋषियों का चिर - प्रवास हो ; ज्ञान - भक्ति से भरा - बुद्ध का करुणालय हो तुम ! ! युगों से अजेय हो -- वीरों

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तुलसी के राम

6 अप्रैल 2017
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श्री राम कृष्ण भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग और परिचायक हैं |कहते हैं यदि भारतीय संस्कृतिऔर समाज में से राम और कृष्ण को निकाल दिया जाये तो वह शून्य नहीं तो शून्य प्राय अवश्य हो जायेगी | दोनों ही भारतीय समाजके जननायक नहीं बल्कि युग नायक हैं | जहाँ श्री कृष्ण के बालपन , किशोरावस्थ

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अमरुद चुराने आ गई बच्चों की टोली --- कविता --

11 अप्रैल 2017
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अमरुद चुराने आ गई बच्चों की टोली , पेड़ को रह रह ताक रही हैं उनकी नजरे भोली ! ! हरे भरे पेड़ पर लदे हैं -फल आधे कच्चे आधे पक्के बड़ी ललचाई नजरों से ताके जाते हैं बच्चे ; कई तिडकम भिड़ा रहे भीतर ही भीतर होगे सफल बड़े हैं धुन के पक्के ; देख -समझ ना कोई

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सांस्कृतिक चेतना का पर्व -- बैशाखी

14 अप्रैल 2017
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जीवन में इन्सान हर रोज़ अनेक प्रकार के संघर्ष , पीड़ा , कुंठा , बेबसी और अभाव आदि से रु - ब- रु होता है | भले ही वह बाहर से कितना भी प्रसन्न और सुखी क्यों ना दिखाई देता हो , एक उदासी क

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श्रमिक दिवस ------ श्रम का उपासना पर्व ---

30 अप्रैल 2017
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किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का आधार श्रमिक है | प्रत्येक युग और काल में अपने श्रम के बूते पर श्रमिक ने दुनिया की प्रगति और उत्थान में अभूतपूर्व योगदान दिया है | सड़क हो या घर , सुई हो या हवाई जहाज सबके निर्माण में

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मैं श्रमिक --- कविता --

30 अप्रैल 2017
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इंसान हूँ मेहनतकश मैं - नहीं लाचार या बेबस मैं ! बड़े गर्व से खींचता अपने जीवन का ठेला -- संतोषी मन देख रहा अजब दुनिया का खेला ा ! गाँधी सा सरल चिंतन - मैले कपडे उजला मन , श्रम ही स्वाभिमान

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सुनो गिलहरी ------------ कविता

7 मई 2017
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पेड़ की फुनगी के मचान से - क्या खूब झांकती हो शान से , देह इकहरी काँपती ना हांफती -- निर्भय हो घूमती बड़े स्वाभिमान से ! पूंछ उठाये - चौकन्नी निगाह

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प्रेम और करुणा के बुद्ध

9 मई 2017
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ढाई हजार साल पूर्व - ईशा पूर्व की छठी सदी धरा पर महात्मा बुद्ध का अवतरण मानव सभ्यता की सबसे कौतुहलपूर्ण घटना है | बुद्ध की जीवन गाथा कदम - कदम पर नए आयाम रचती है | बुद्ध के जीवन में कहाँ रहस्य नहीं है -- कहाँ कौत

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माँ अब समझी हूँ प्यार तुम्हारा ------ कविता

13 मई 2017
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माँ अब समझी हूँ प्यार तुम्हारा बिटिया की माँ बनकर मैंने तेरी ममता को पहचाना है ,माँ बेटी का दर्द का रिश्ता - क्या होता है ये जाना है ; बिटिया की माँ बनी हूँ जबसे - - पर्वत ये तन बना है मेरा ,उसका हंसना , रोना और खान

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सुनो -- मनमीत ---------नवगीत -

17 मई 2017
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पीड़ - पगे मन से आ मिल कर - इक अमर - गीत लिखें हम तुम ! हार के भी सदा जीती है - जग में प्रीत लिखें हम - तुम ! ! तन पर अनगिन जख्म सहे - तब जाकर साकार हुई - मंदिर में रखी मूर्त यूँ हुई

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आई आँगन के पेड़ पे चिड़िया ------- कविता

20 मई 2017
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आई आँगन के पेड़ पे चिड़िया ,फुर्र - फुर्र उड़ती - चले चाल लहरिया !शायद भूली राह - तब इधर आई - देख हरे नीम ने भी बाहें फैलाई ; फुदके पात पात - हर डाल

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पेड़ ने पूछा चिड़िया से --- कविता

23 मई 2017
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पेड़ ने पूछा चिड़िया से --------- तेरी ‘ चहक’ का फल कहाँ लगता है ? जिसको चख सृष्टि के कण - कण में – आनंद चंहु ओर विचरता है ! ! जो फूल में गंध बन कर बसता, करुणा से तार मन के कसता ; जो अनहद - नाद सा गुंजित

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गीतिका --

28 मई 2017
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जगी आँखों से सपने-- ए मन तू ना देख यहाँ , कहाँ लिखे थे उनके संग - तेरी किस्मत के लेख यहाँ ? चकोर को कब मिला चंदा - हर सीप को कब मिला मोती ? प

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ये रुदन है हिमालय का ------------- कविता --

16 जून 2017
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ये रुदन है हिमालय का जो हर बंध तोड़ बह रहा है मिट जाऊंगा तब मानोगे - आक्रांत हो कह रहा है ! ''कर दिया नंगा मुझे - नोच ली हरी चादर मेरी , जंगल सखा भी मिट चले - जिनसे थी ग़ुरबत मेरी , ''चीत्कारता पर्वतराज - खोल दर्द की गिरह रहा है

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स्मृति शेष -- पिता जी

17 जून 2017
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कल थे पिता - पर आज नहीं है - माँ का अब वो राज नहीं है ! दुनिया के लिए इंसान थे वो , पर माँ के भगवान् थे वो ; बिन कहे उसके दिल तक जाती थी खो गई अब वो आवाज नहीं है ! ! माँ के सोलह सिंगार थे वो ,माँ का

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सुनो बादल ! --- कविता - --

30 जून 2017
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नील गगन में उड़ने वाले - ओ ! नटखट आवारा बादल , मुक्त हवा संग मस्त हो तुम किसकी धुन में पड़े निकल ! उजले दिन काली रातों में - अनवरत घूमते रहते हो ,उमड़ - घुमड़ कहते क्या - और किसको ढूंढते रहते हो ? बरस पड़ते किसकी याद में जाने - तुम सहसा करके नयन तरल !! तुम्

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श्री गुरुवै नमः -------- गुरु पूर्णिमा पर विशेष-

9 जुलाई 2017
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भारत अनंत काल से ऋषियों और मनीषियों की पावन भूमि रहा है जिन्होंने समूचे विश्व और भटकी मानवता का सदैव मार्ग प्रशस्त कर उन्हें सदाचार और सच्चाई की राह दिखाई है | इसकी अध्यात्मिक पृष्ठभूमि ने हर काल में गुरुओं के सम्मान की परम्परा को अक्षुण रखा है | अनादिकाल से ही आमजन से लेकर अवतारों तक के जीवन में ग

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गाँव में कोई फिर लौटा है -- नवगीत --

13 जुलाई 2017
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मुद्दत बाद सजी गलियां रे -गाँव में कोई फिर लौटा है !जीवन बना है इक उत्सव रे - गाँव में कोई फिर लौटा है ! !रोती थी घर की दीवारें छत भी यूँ ही चुपचाप पड़ी थी

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बिटिया ---- कविता --

20 जुलाई 2017
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घर संभालती बिटिया -घर संवारती बिटिया , स्वर्ग को धरती पे उतारती बिटिया ! सुधड़ है सयानी है बिटिया तो घर की रानी है ;उम्र भले छोटी है -पर बातों में पूरी नानी है ;सफल दुआ जीवन की

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मेरे गाँव ------------ कविता --

24 जुलाई 2017
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तेरी मिटटी से बना जीवन मेरा -तेरे साथ अटूट है बंधन मेरा , तुझसे अलग कहाँ कोई परिचय मेरा ? तेरे संस्कारों में पगा तन मन मेरा !!नमन तेरी सुबह और शाम कोतेरी धरती, तेरे खेत - खलिहान कोतेरी गलियों ,मुंडेरों का कहाँ सानी कोई ? वंदन मेरा तेरे खुले आसमान को ;तेरे उदार परिवेश

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तुम्हारे दूर जाने से साथी --- कविता --

27 जुलाई 2017
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तुम्हारे दूर जाने से साथी - मन को ये एहसास हुआ दिन का हर पहर था खोया सा -मन का जैसे वनवास हुआ !! अनुबंध नहीं कोई तुमसे -जीवन भर साथ निभाने

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गा रे जोगी ! -------- कबिता |

31 जुलाई 2017
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गा रे! कोई ऐसा गीत जोगी –बढे हर मन में प्रीत जोगी ! ना रहा अब वैसा गाँव जोगी जहाँ थी प्यार ठांव जोगी . भूले पनघट के गीत प्यारे - खो गई पीपल की छांव जोगी ; बढ़ी दूरी मनों में ऐसी - कि बिछड़े मन के मीत जोगी !! बैठ बाहर फुर्सत में गाँव टीले - तू

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शुक्र है गाँव में ----- कविता --

3 अगस्त 2017
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शुक्र है गाँव में इक बरगद तो बचा है जिसके नीचे बैठते - रहीम चचा हैं !! हर आने -जाने वाले को सदायें देते हैं - चाचा सबकी बलाएँ लेते हैं , धन कुछ पास नहीं उनके - बस खूब दुआएं देते हैं ; नफरत से कोसों दूर है - चाचा का दिल सच्चा है !! सिख - हिन्दू य

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अपराजिता ---------------------- कहानी --

10 अगस्त 2017
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संघर्ष की धूप ने गौरवर्णी तारो को ताम्र वर्णी बना दिया था | लगता था नियति ने ऐसा कोई वार नहीं छोड़ा -जिससे तारो को घायल न किया हो - पर तारो थी कि नियति के हर वार को सहती - निडरता से जीवन की राह पर चलती ही जा रही थी | लोग कहते थे बड़ी अभागी है तारो –

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सूर के श्याम ------- जन्माष्टमी पर विशेष ---

14 अगस्त 2017
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भारतवर्ष के सांस्कृतिक सामाजिक और धार्मिक के साथ हर रोज के जीवन का एक अक्षुण अंग हैं राम और कृष्ण | राम जहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम है तो वही कृष्ण के ना जाने कितने रूप है | श्री कृष्ण को सम्पूर्णता का दूसरा नाम कहा गया है| वे चौसठ क

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बीते दिन लौट रहे हैं --------- नवगीत --

27 अगस्त 2017
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ये सुनकर उमंग जागी है ,कि बीते दिन लौट रहे हैं ;उन राहों में फूल खिल गए - जिनमे कांटे बहुत रहे है ! चिर प्रतीक्षा सफल हुई - यत्नों के फल अब मीठे हैं , उतरे हैं रंग जो जी

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लम्पट बाबा ----- कविता --

30 अगस्त 2017
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कहाँ से आये ये लम्पट बाबा ? धर सर कथित ' ज्ञान ' का झाबा !!गुरु ज्ञान की डुगडुगी बजायी -विवेक हरण कर जनता लुभाई ,श्रद्धा , अन्धविश्वास में सारे डूबे - हुई गुम आडम्बर में सच्चाई ; बन बैठे भगवान समय के खुद बन गये काशी काबा !! धन बटोरें

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मेरी वे अंग्रेजी शिक्षिका-- संस्मरण -----

4 सितम्बर 2017
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छात्र जीवन में शिक्षकों का महत्व किसी से छुपा नहीं | इस जीवन में अनेक शिक्षक हमारे जीवन में ज्ञान का आलोक फैलाकर आगे बढ़ जाते है पर वे हमारे लिए प्रेरणा पुंज बने हमारी यादों से कभी ओझल नहीं होते | एक शिक्षक के जीवन में अनगिन छात्र - छात्राएं आते हैं तो विद्यार्थी भी

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राह तुम्हारी तकते - तकते ---------- कविता --

16 सितम्बर 2017
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राह तुम्हारी तकते - तकते-यूँ ही बीते अनगिन पल साथी,आस हुई धूमिल संग में -ये नैना हुए सजल साथी ! !दुनिया को बिसरा कर दिल ने-सिर्फ तुम्हे ही याद किया ,हो चली दूभर जब तन्हाईतुमसे मन ने संवाद किया - पल भर को भी मन की नम आँखों से- ना हो

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माँ ज्यों ही गाँव के करीब आने लगी है --------- कविता |

2 अक्टूबर 2017
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माँ ज्यों ही गाँव के करीब आने लगी है - माँ की आँख डबडबाने लगी है ! चिर परिचित खेत खलिहान यहाँ हैं ,माँ के बचपन के निशान यहाँ हैं ; कोई उपनाम -

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ओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल-- कविता ------

5 अक्टूबर 2017
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तुम्हारी आभा का क्या कहना !ओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल !!कौतुहल हो तुम सदियों से श्वेत ,, शीतल , नूतन धवल !!! रजत रश्मियाँ झर झर झरती अवनि अम्बर में अमृत भरतीकौन न भरले झोली इससे ? तप्त प्राण को शीतल करती थकते ना नैन निहार तुम्हे तुम निष्कलुष , ,पावन और निर्मल | ओ शरद पूर्णि

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एक दीप तुम्हारे नाम का ------- नवगीत --

17 अक्टूबर 2017
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अनगिन दीपों संग आज जलाऊँ - एक दीप तुम्हारे नाम का साथी ,तुम्हारी प्रीत से हुई है जगमग क्या कहना इस शाम का साथी !! जब से तुम्हे साजन पाया है -मन हर्षित हो बौराया है ,तुमसे कहाँ अब अलग रही मैं ?खुद को खो तुमको पाया है ; भीतर तुम हो -बाहर तुम हो - तू आराध्य मेरे मन धाम का साथी

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आँगन में खेल रहे बच्चे ---------- बाल कविता ---

8 नवम्बर 2017
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आँगन में खेल रहे बच्चे ,भोले भाले मन के सच्चे !एक दूजे के कानों में -गुप चुप से बतियाते हैं , तनिक जो हो अनबन आपस में -खुद मनके गले मिल जाते है ;भले -बुरे तर्क ना जानेबस हैं थोड़े अक्ल के कच्चे !आँगन में खेल रहे बच्चे !!निश्छल राहों के ये राही -भोली मुस्कान से जिया चुरालें ,नजर भर

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सुनो जोगी !------- कविता -

17 नवम्बर 2017
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ये तुमने कैसा गीत सुनाया जोगी - जिसे सुनकर जी भर आया जोगी , ये दर्द था कोई दुनिया का – या दुःख अपना गाया जोगी ! अनायास उमड़ा आखों में पानी - कह रहा कुछ अलग कहानी , तन की

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मेहंदीपुर बालाजी के बहाने से ---लेख --

27 नवम्बर 2017
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इस साल अक्टूबर की २३ तारीख को राजस्थान में मेहंदीपुर बाला जी जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | दिल्ली से मेहंदीपुर के लिए बेहतरीन सडक मार्ग है -- बीच मार्ग में इस सड़क के - जिसके साथ - साथ खूबसूरत अरावली पर्वत श्रृखंला है | क्योकि इससे पूर्व कभी मैंने

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जीवा----- कहानी --

30 नवम्बर 2017
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नीम के पेड़ से छनकर आती धूप , जैसे ही जीवा के तन को जलाने लगी, हडबडा कर उसकी आँख खुल गई | ना जाने कब से लेटा था -वह नीम की छाँह तले | जब सोया था -तब सूरज घर के पिछवाड़े की तरफ था -अब ठीक नीम के ऊपर चमक रहा है | भादो की चिलचिलाती धूप और उस पर हवा

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फिर चोट खाई दिल ने --कविता

7 दिसम्बर 2017
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फिर चोट खाई दिल ने --और बरबस लिया पुकार तुम्हे , हो विकल यादों की गलियों में - मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हे ! मुंह मोड़ के चल दिए साथी - तुम तो नयी मंजिल - नयी राहों पे ; ये तरल नैन रह गए तकते - तुम रहे अनजान जिगर की आहों से ; उस दिल को बिसरा कर बैठ

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समय साक्षी रहना तुम -- कविता --

27 दिसम्बर 2017
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अपने अनंत प्रवाह में बहना तुम , पर समय साक्षी रहना तुम !! उस पल के- जो हो सत्य सा अटल - ठहर गया है भीतर कहीं गहरे ,रूठे सपनों से मिलवा जो - भर गया पलकों में रंग सुनहरे ; यदा -कदा बैठ साथ मेरे -उन यादों के हार पिरोना तुम !! जिसमे आया जाने कहाँ से - जन्मों की ले पहचान कोई , विस्मय

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अलविदा -- 2017--

31 दिसम्बर 2017
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शब्द नगरी संगठन और सभी साहित्य मित्रों और पाठको को मेरी और से नूतन वर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएं | जाते साल को हजारों सलाम जिसने शब्द नगरी के माध्यम से एक सार्थक मंच प्रदान कर अनेक दिव्य अनुभ

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शब्द नगरी पर एक साल -- लेख |

12 जनवरी 2018
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समय निरंतर प्रवाहमान होते अपने अनेक पड़ावों से गुजरता - जीवन में अनेक खट्टी - मीठी यादों का साक्षी बनता है | इनमे से कई पल यादगार बन जाते हैं | पिछले साल मेरे जीवन में भी शब्दनगरी से जुड़ना एक यादगार लम्हा बन कर रह गया | जनवरी --2017 में गूगल पर पढने क

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बसंत बहार से तुम------ कविता --

20 जनवरी 2018
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था पतझड़ सा नीरस जीवन -आये बसंत बहार से तुम ,सावन भले भर -भर बरसे - पहली सौंधी बौछार से तुम | ये मन कितना अकेला था एकाकीपन में खोया था , खुशियों का था इन्तजार कहाँ बुझा - बुझा हर रोयाँ था ;तपते मन पे सहसा बरस गए बन शीतल मस्त फुहार से तुम ! मधु सपना बन ठहर गए - इन थकी मांदी सी

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ऋतुराज आया है -- निबंध --

22 जनवरी 2018
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माघ की कडकडाती ठंड के बीच शरद ऋतु में सिकुड़े दिन विस्तार पाने लगते है तो धूप में हलकी गरमी ठण्ड से त्रस्त तन और मन को अपनी गर्माहट से सेककर अनुपम आनंद प्रदान करती है |धीरे धीरे गरमाती ऋतु में आहट देता है -- बसंत | जिसे ऋतुराज कह सृष्टि ने सिर- माथे पर धारण किया है और इसे मधुम

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जिन्होंने वारे लाल वतन पे - कविता

24 जनवरी 2018
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जिन्होंने वारे लाल वतन पे -नमन करो उन माँओं को ;जिनके मिटे सुहाग देश - हित--शीश झुकाओं उन ललनाओं को !!दे सर्वोच्च बलिदान जीवन का -मातृभूमि की लाज बचाई .जिनकी बदौलत आज आजादी -हो सत्तर की इतरायी ;यशो गान रचो उन वीरो

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चाँद साक्षी आज की रात

30 जनवरी 2018
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तेरे मेरे अनुपम प्रणय का- चाँद साक्षी आज की रात ; मेरे मन में तेरे विलय का - चाँद साक्षी आज की रात ! झांके गगन की खिड़की से -चंदा घिरा तारों के झुरमुट से, मुस्काए नटखट आनन्द भरा -छलकाए रस अम्बर घट से ; सजा है आँगन नील न

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इन्द्रधनुष कविता --

8 फरवरी 2018
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जाने ये कौन चितेरा है -जो सजा लाया नया सवेरा है , नभ की कोरी चादर पर जिसने - हर रंग भरपूर बिखेरा है ?ये कौन तूलिका है ऐसी -जो ज़रा नजर नहीं आई है ?पर पल भर में ही देखो -अम्बर को सतरंगी कर लाई है ?जो धरा को कर हरित वसना - पथ में बिछा गया रंग

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नदिया तुम नारी सी --- कविता -

10 फरवरी 2018
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नदिया तुम नारी सी -निर्मल, अविकारी सी , कहीं जन्मती कहीं मिल जाती -नियति की मारी सी !!निकली बेखबर अल्हड , शुभ्रा ,स्नेह्वत्सला ,धवल धार , पर्वत प्रांगण में इठलाती - प्रकृति का अनुपम उपहार ; सुकुमारी अल्हड बाला -तुम बाबुल की दुलारी सी -नदिया तुम नारी सी !! हुलसती,

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शिव -वंदना -----------

13 फरवरी 2018
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ओंकार तू ! निर्विकार तू !! सृष्टि का पालन हार तू !सदाशिव !स्वीकार करो नमन मेरा !आत्म वैरागी -हे नीलकंठ !तू आदि अनंत -- तू दिग्दिगंत !!अव्यक्त ,अनीश्वर ,शशिशेखर ! शिवा,सोमनाथ ,संतों का संत !विष्णुवल्लभ ,आत्मानुरागी-हे सदाशिव !स्वीकार करों अर्चन मेरा !!तू त्रिकालसृष्टा ! तू अनंत दृष्टा!यूँ ही

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खलल मत डालना इनमे------ कविता --

18 फरवरी 2018
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किसी हिन्दू की करना ना मुसलमान की करना ,बात जब भी करना- बस हिदुस्तान की करना !!न है वो किसी मस्जिद में -ना बसता पत्थर की मूरत में ,इसी जमीं पे रहता है वो -बस इंसानों की सूरत में ; अल्लाह , ईश्वर से जो मिलना -तो कद्र हर इन्सान की करना !!सरहद पे जो जवान -हर जाति- धर्म से दूर था ,सीने पे गोली

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मन प्रश्न कर रहे ------- कविता

25 फरवरी 2018
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हुआ शुरू दो प्राणों का -- मौन -संवाद- सत्र !मन प्रश्न कर रहे - स्वयम ही दे रहे उत्तर !!हैं दूर बहुत पर दूरी का एहसास कहाँ है ?कोई और एक दूजे के इतना पास कहाँ है ? न कोई पाया जान सृष्टि का राज ये गहरा-राग- प्रीत गूंज रहा हर दिशा में रह- रह कर !!समझ रहे एक दूजे के मन की भाषा - जग पड़

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बसंत गान ------

27 फरवरी 2018
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हंसो फूलो -- खिलो फूलो -डाल-डाल पर झूलो फूलो !उतरा फागुन मास धरा पर -हर रंग रंग झूमो फूलो !!गलियों में सुगंध फैलाओ,भवरों पर मकरंद लुटाओ ;भेजो आमन्त्रण तितली को -''कि बूंद - बूंद रस पी लो'' फूलो ! !हंसों के नीम -आम बौराएँ -खिलो के कोकिल तान चढ़ाए , महको - महके रात संग तुम्हारे - घुल पवन में अम्ब

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जीवन में तुम्हारा होना---- कविता --

9 मार्च 2018
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जब सबने रुला दिया -तब तुमने हंसा दिया ,ये कौन प्रीत का जादू भीतर -तुमने जगा दिया ? जीवन में तुम्हारा होना - शायद अरमान हमारा था ;इसी लिए अनजाने में दिल ने तुम्हे पुकारा था ; सहलाया ये घायल अंतर्मन --मरहम सा लगा दिया !!खुद को भूले बैठे थे -जीवन की तप्त दुपहरी थी - जो साथ तुम्हे लेकर

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पुस्तक समीक्षा --------- मन कितना वीतरागी --लेखक -- पंकज त्रिवेदी जी --

12 मार्च 2018
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शब्दनगरी पर पिछले साल जनवरी से लेख न के दौरान कलम के धनी अनेक विद्वानों से परिचय हुआ उन्ही मे से एक हैं आदरणीय 'पंकज त्रिवेदी 'ज

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दो परियां ये आसमान की ---- कविता --

22 मार्च 2018
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दो परियां ये आसमान की मेरी दुनिया में आई हैं ,सफल दुआ जीवन की कोई -स्नेह की शीतल पुरवाई है ;तुम दोनों संग लौट आया है -वो भुला सा बचपन मेरा ; तुम्हारी निश्छल हंसी से चहका -ये सूना सा आँगन मेरा ; एक शारदा - एक लक्ष्मी सी -पा तुम्हे

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जिस पहर से----- कविता --

31 मार्च 2018
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जिस पहर से पढने- शहर गये हो ; तन्हाईयों से ये - घर आँगन भर गये हैं |उदासियाँ हर गयी है - घर भर का ताना - बाना ,हर आहट पे तुम हो -अब ये भ्रम पुराना ; जाने कहाँ वो किताबे तुम्हारी - बन प्रश्न तुम्हारे-मेरे उत्तर गये है !!झांकती हूँ गली में-लौटे बच्चों की टोली,याद आ जाती तुम्हारी - सूरत सलोनी

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पुस्तक समीक्षा - प्रिज़्म से निकले रंग (ई-बुक) ---------कवि - रवीन्द्र सिंह यादव -

10 अप्रैल 2018
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पुस्तक- प्रिज़्म से निकले रंग (ई-बुक) विधा - काव्य संग्रह कवि - रवीन्द्र सिंह यादव ISBN : 978-93-86352-79-8प्रकाशक - ऑनलाइन गाथा, लखनऊ मूल्य - 50 रुपये तकनीकी युग में सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का एक बेहतरीन माध्यम बन कर उभरा है | यहाँ अनेक मंच हैं जिन

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बुद्ध की यशोधरा -- कविता |

21 अप्रैल 2018
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बुद्ध की प्रथम और अंतिम नारी- जिसने उसके मन में झाँका,जागी थी जैसे तू कपलायिनी -- ऐसे कोई नहीं जागा !!पति प्रिया से बनी पति त्राज्या-- सहा अकल्पनीय दुःख पगली,नभ से आ गिरी धरा पे- नियति तेरी ऐसी बदली ; वैभव से बुद्ध ने किया पलायनत

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साहित्य के गुरुदेव -- रवीन्द्रनाथटैगोर --- लेख

7 मई 2018
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भारतीय साहित्य जगत में पूजनीय रविन्द्रनाथ टैगोर ऐसी शख्सियत रहे जिन्होंने अपनी असीम प्रतिभा से बहुत बड़े काल खंड को अपनी मौलिक विचारधारा और साहित्य कर्म से ,सांस्कृतिक चेतना के मध्यम पड़ रहे स्वर को प्रखर किया | उनका जन्म साहित्य और संस्कृति के उत्थान के शुभ संकेत लेकर आया | जैसा

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गंगा रे तू बहती रहना -लेख --

23 मई 2018
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भारत के परिचय में सबसे पहले शामिल होने वाले प्रतीकों में गंगा का नाम सर्वोपरि आता है | यूँ तो हर नदी की तरह गंगा भी एक विशाल जलधारा का नाम है पर भारत वासियों के लिए ये एक मात्र नदी बिलकुल नही है बल्कि प्रातः स्मरणीय प्रार्थना है | कौन

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जिद -- लधु कथा --

31 मई 2018
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फोन में व्हाट्स अप्प पर धडा - धड आते तुम्हारे अनगिन फोटो देख मैं स्तब्ध हूँ ! इन में तुम्हारी रक्तरंजित निर्जीव देह गोलियों से बिंधी हुई एक हरे मैदान के बीचो बीच लावारिस सी पडी है | छः फुट का सुंदर सुडौल शरीर मिटटी बन गया है अब |तुम्हारी पीली कमीज और जींस खून से भरी है | |जख्

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रूहानी प्यार ----- कविता -------------

3 जून 2018
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हुए रूहानी प्यार केकर्ज़दार हम - -- रखेगें इसे दिल मेंसजा संवार हम !! बदल जायेंगे जब - सुहाने ये मन के मौसम , तनहाइयों में साँझ की घुटने लगेगा दम - खुद को बहलायेंगें-इसको निहार हम !! इस प्यार की क्षितिज पे रहेंगी टंकी कहानियां , लेना ढूंढ तुम वहीँ

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उतराखंड त्रासदी ---- हिमालय का आक्रांत स्वर -----लेख --

16 जून 2018
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हिमालय पर्वत सदियों से भारत का रक्षक और पोषक रहा है |इसकी प्राकृतिक सम्पदा ,चाहे वह वन संपदा हो या खनिज संपदा - ने जनजीवन को धन - धान्य से भरपूर किया है , तो इसके हिमनद सदानीरा नदियों के एकमात्र जल स्त

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संत कबीर लेख ---------- कबीर जयंती पर विशेष

27 जून 2018
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हिंदी साहित्य में कबीर भक्ति काल के प्रतिनिधि कवि के रूप में जाने जाते हैं | इसके अलावा वे भारत वर्ष के सांस्कृतिक और अध्यात्मिक जीवन को ऊर्जा देने वाले प्रखर प्रणेता हैं | उनकी ओजमयी फक्कड वाणी आज भी प्रासंगिक है | कौन है ज

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पुण्यस्मरण बाबा नागार्जुन -- जन्म दिन विशेष --

30 जून 2018
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परिचय--- बाबा नागार्जुन हिंदी और मैथिलि साहित्य के वो विलक्षण व्यक्तित्व हैं जिनकी-- काव्यात्मक प्रतिभा के आगे पूरा साहित्य जगत नत है | इन का जन्म 30 जून 1911 को बिहार के दरभंगा जिले के ''तौरानी''नामक गाँव में मैथिलि ब्राह्मण परिवार में हुआ |संयोग ही रहा क

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जो ये श्वेत,आवारा , बादल -कविता

5 जुलाई 2018
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जो ये श्वेत,आवारा , बादल - रंग -श्याम रंग ना आता –कौन सृष्टि के पीत वसन को- रंग के हरा कर पाता ? ना सौंपती इसे जल संपदा – कहाँ सुख से नदिया सोती ? इसी जल को अमृत घट सा भर- नभ से कौन छलकाता ?किसके रंग- रंगते कृष्ण सलोने घनश्याम कहाने खातिर ?इस सुधा रस बिन क

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विरह का सुलतान -- पुण्य स्मरण शिव कुमार बटालवी

24 जुलाई 2018
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पंजाब का शाब्दिक अर्थ पांच नदियों की धरती है | नदियों के किनारे अनेक सभ्यताएं पनपतीहैं और संस्कृतियाँ पोषित होती हैं | मानव सभ्यता अपने सबसे वैभवशाली रूप में इन तटों पर ही नजर आती है क्योकि ये जल धाराएँ अनेक तरह से मानव को उपकृत कर मानव जीवन को धन - धान्

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सावन की सुहानी यादें -- लेख -

12 अगस्त 2018
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सावन के महीने का हम महिलाओं के लिए विशेष महत्व होता है | फागुन के बाद ये दूसरा महीना है जिसमे हर शादीशुदा नारी को मायका याद ना आये .ये हो नहीं सकता | मायके से बेटियों का जुड़ाव सनातन है | मायके के आंगन की यादें कभी मन से ओझल नहीं होती | भारत में प्रायः हर जगह

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अमर शहीद के नाम --

15 अगस्त 2018
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जब तक हैं सूरज चाँद --अटल नाम तुम्हारा है , ओ ! माँ भारत के लाल ! अमर बलिदान तुम्हारा है !!-आनी ही थी मौत तो इक दिन -- जाने किस मोड़ पे आ जाती.- कैसे पर गर्व से फूलती , - मातृभूमि की छाती ;-दिग -दिंगत में गूंज रहा आज--यशोगान तुम्हारा है !!ओ ! माँ भार

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भैया तुम हो अनमोल !

25 अगस्त 2018
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जग में हर वस्तु का मोल - पर भैया तुम हो अनमोल !दर-दर पर शीश झुका करके - मांगा था तुझे विधाता से -तुम सा कहाँ कोई स्नेही- सखा मेरा -मेरा गाँव तो है तेरे दम से ; सुख- दुःख साझा कर लूं अपना रख दूं तेरे आगे मन खोल !!बचपन में जब तुमने गिर -गिर - ये ऊँगली पकड चलना सीखा , नीलगगन का चंदा भी -था

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अन्तरिक्ष परी - कल्पना चावला

30 अगस्त 2018
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चित्र--- अपनी चिरपरिचित गर्वित मुस्कान के साथ कल्पना चावला --परिचय भारत की अत्यंत साहसी और कर्मठ बेटियों का जिक्र बिना कल्पना चावला के कभी पूरा नही होता | उन्हें भा

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तुम्हे समर्पित सब गीत मेरे -- कविता

9 सितम्बर 2018
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मीत कहूं ,मितवा कहूं ,क्या कहूं तुम्हे मनमीत मेरे ? नाम तुम्हारे हर शब्द मेरे तुम्हे समर्पित सब गीत मेरे !! हर बात कहूं तुमसे मन की - कह अनंत सुख पाऊँ मैं , निहारूं नित मन- दर्पण में - तुम्हे स्वसम्मुख पाऊँ मैं;सजाऊँ ख्वाब नये तुम संग - भूल, ये गीत -अतीत मेरे !!सृष्टि में जो ये प्रणय

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तृष्णा मन की -

23 सितम्बर 2018
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मिले जब तुम अनायास - मन मुग्ध हुआ तुम्हे पाकर ; जाने थी कौन तृष्णा मन की - जो छलक गयी अश्रु बनकर ? हरेक से मुंह मोड़ चला - मन तुम्हारी ही ओर चला अनगिन छवियों में उलझा - तकता हो भावविभोर चला- जगी भीतर अभिलाष नई- चली ले उमंगों की नयी डगर ! !प्राण

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नेह तुलिका --

6 अक्टूबर 2018
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रंग दो मन की कोरी चादर हरे ,गुलाबी , लाल , सुनहरी रंग इठलायें जिस पर खिलकर !! सजे सपने इन्द्रधनुष के - नीड- नयन से मैं निहारूं सतरंगी आभा पर इसकी -तन -मन मैं अपना वारूँबहें नैन -जल कोष सहेजे-- मुस्काऊँ नेह -अनंत पलक भर !! स्नेहिल सन्देश तुम्

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भूली बिसरी पाती स्नेह भरी --[ विश्व डाक दिवस ]

9 अक्टूबर 2018
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विश्व डाक दिवस -- आज विश्व डाक दिवस है | इस दिन के बहाने से चिट्ठियों के उस भूले बिसरे संसार में झाँकने का मन हो आया है ,जो अब गौरवशाली अतीत बन गया है | भारत में राजा रजवाड़ों के समय में संदेशों का आदान - प्रदान विश्वसनीय सन्देशवाहकों के माध्यम से होता था जो पैदल या घोड़ों आदि के माध्यम से

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उलझन -- लघु कविता

14 अक्टूबर 2018
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इक मधुर एहसास है तुम संग - ये अल्हड लडकपन जीना , कभी सुलझाना ना चाहूं - वो मासूम सी उलझन जीना ! बीत ना मन का मौसम जाए - चाहूं समय यहीं थम जाए ; हों अटल ये पल -प्रणय के साथी - भय है, टूट ना ये भ्रम जाए संबल बन गया जीवन का - तुम संग ये नाता पावन जीना ! बांधूं अमर प्रीत- बंध मन के तुम सं

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समाज के अनसुने मर्मान्तक स्वर ----------------पुस्तक समीक्षा- चीख़ती आवाजें - कवि ध्रुव सिंह ' एकलव्य '---

29 नवम्बर 2018
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साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है | वो इसलिए समय के निरंतर प्रवाह के दौरान साहित्य के माध्यम से हम तत्कालीन परिस्थितियों और उनके प्रभाव से आसानी से रूबरू हो पाते हैं | सब लोग हर दिन असंख्य लोगों की समस्याओं और उनके जीवन के सभी रंगों को देखते रहते हैं शायद वे उन

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सुन ! ओ वेदना-- कविता --

13 दिसम्बर 2018
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सुन ! ओ वेदना जीवन में -लौट कभी ना आना तुम !घनीभूत पीड़ा -घन बन -ना पलकों पर छा जाना तुम !!हूँ आलिंगनबद्ध - सुखद पलों से -कर ना देना दूर तुम , दिव्य आभा से घिरी मैं -ना हर लेना ये नूर तुम ,सोई हूँ ले सपने सुहाने - ना मीठी नी

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चाँद हंसिया रे !

2 फरवरी 2019
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चाँद हंसिया रे ! सुन जरा !ये कैसी लगन जगाई तूने ? कब के जिसे भूले बैठे थे -फिर उसकी याद दिलाई तूने !!गगन में अकेला बेबस सा - तारों से बतियाता तू नीरवता के सागर में - पल - पल गोते खाता तू ;कौन खोट करनी में आया ? \ये बात न

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लौटा माटी का लाल

16 फरवरी 2019
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गूंजी मातमी धुन लुटा यौवन तन सजा तिरंगा लौटा माटी का लाल माटी में मिल जाने को ! इतराया था एक दिन तन पहन के खाकी चला वतन की राह ना कोई चाह थी बाकी चुकाने दूध का कर्ज़ पिताका मान बढाने को ! लौटा माटी का लाल माटी में मिल जाने को !!रचा चक्रव्यूह शिखंडी शत्रु ने छुपके घात लगाई कु

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हार्दिक अभिनन्दन !

1 मार्च 2019
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वीर अभिनन्दन ! हार्दिक अभिनन्दन ! तुम्हारे शौर्य को कोटि वन्दन ! पुलकित , गर्वित माँ भारती - तुम्हारे निर्भीक पराक्रम से , मृत्यु - भय से हुए ना विचलित - ना चूके संयम से ;सिंह पुत्र तुम जननी के सहमा शत्रु नराधम !! श

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उस फागुन की होली में

9 मार्च 2019
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जीना चाहूं वो लम्हे बार बार जब तुमसे जुड़े थे मन के तारजाने उसमें क्या जादू था ? ना रहा जो खुद पे काबू था कभी गीत बन कर हुआ मुखर हंसी में घुल कभी गया बिखर प्राणों में मकरंद घोल गया बिन कहे ही सब कुछ बोल गया इस धूल को बना गय

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फूल ! तुम खिलते रहना !

26 मार्च 2019
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--- जीवन में बसंत चारों ओर बसंत का शोर है | हो भी क्यों ना !जीवन में बसंत का आना असीम खुशियों का परिचायक है | प्रश्न उठता है बसंत क्या है ? क्या है इसकी परिभाषा ?यूँ तो बसंत को हर किसी ने अपनी परिभाषा दी है पर सरल शब्दों में कहें तो फूलों की खिलना ही सृष्टि में बसंत का परिचायक है

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कौन दिखे ये अल्हड किशोरी सी

6 अप्रैल 2019
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चंचल नैना . फूल सी कोमल , कौन दिखे ये अल्हड किशोरी सी ? रूप - माधुरी का महकता उपवन - लगे निश्छल गाँव की छोरी सी ! मिटाती मलिनता अंतस की मन प्रान्तर में आ बस जाए रूप धरे अलग -अलग से - मुग्ध, अचम्भित कर जाए किसी पिया की है प्रतीक्षित -- लिए मन की चादर कोर

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तुम मिले कोहिनूर से

5 मई 2019
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भीगे एकांत में बरबस -पुकार लेती हूँ तुम्हे सौंप अपनी वेदना - सब भार दे देती हूँ तुम्हे ! जब -तब हो जाती हूँ विचलित कहीं खो ना दूँ तुम्हेक्या रहेगा जिन्दगी मेंजो हार देती हूँ तुम्हे ! सब से छुपा कर मन में बसाया है तुम्हे जब भी जी चाहे तब निहार लेती हूँ तुम्हे बिखर ना जाए कहीं रखना इस

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याद तुम्हारी -- नवगीत

1 जून 2019
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मन कंटक वन में-याद तुम्हारी -खिली फूल सीजब -जब महकीहर दुविधा -उड़ चली धूल सी!!रूह से लिपटी जाय-तनिक विलग ना होती,रखूं इसे संभाल -जैसे सीप में मोती ;सिमटी इसके बीच -दर्द हर चली भूल सी !!होऊँ जरा उदासमुझे हँस बहलाएहो जो इसका साथतो कोई साथ न भाये -जाए पल भर ये दूर -हिया में चुभे शूल सी !!तुम नहीं हो जो

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कभी अलविदा ना कहना तुम

22 जून 2019
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कभी अलविदा ना कहना तुम मेरे साथ यूँ ही रहना तुम !तुम बिन थम जाएगा साथी ,मधुर गीतों का ये सफर ;रुंध कंठ में दम तोड़ देगें -आत्मा के स्वर प्रखर ;बसना मेरी मुस्कान में नित ना संग आंसुओं के बहना तुमतुम ना होंगे हो जायेगी गहरीभीतर की तन्हाईयां-टीसती विकल करेंगीयादों की ये परछाईयां-गहरे भंवर में संताप के -

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सुनो चाँद !

22 जुलाई 2019
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अब नहीं हो! दुनिया के लिए, तुम तनिक भी अंजाने, चाँद! सब जान गए राज तुम्हारा तुम इतने भी नहीं सुहाने, चाँद! बहुत भरमाया सदियों तुमने , गढ़ी एक झूठी कहानी थी; वो थी तस्वीर एक धुंधली ,नहीं सूत कातती नानी थी; युग - युग से बच्चों के मामा - क्या कभी आये लाड़ जताने?चाँद ! खोज - खबर लेने तु

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कारगिल युद्ध -- शौर्य की अमर गाथा

25 जुलाई 2019
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कोई भी राष्ट्र कितना भी शांति प्रिय क्यों ना हो , अपनी सीमाओं की हर तरह से सुरक्षा करना उसका परम कर्तव्य है | यदि कोई देश अपनी सुरक्षा में जरा सी भी लापरवाही करता है उसे पराधीन होते देर नहीं लगती | , क्योंकि राष्ट्र की सीमाओं के पार बसे दूसरे राष्ट्र भी

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लिख दो कुछ शब्द --

29 अगस्त 2019
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लिख दो ! कुछ शब्दनाम मेरे , अपने होकर ना यूँ - बन बेगाने रहो तुम ! हो दूर भले - पास मेरे .इनके ही बहाने रहो तुम ! कोरे कागज पर उतर कर . ये अमर हो जायेंगे ; जब भी छन्दो में ढलेंगे , गीत मधुर

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बूढ़े बाबा ---- वृद्ध दिवस पर

1 अक्टूबर 2019
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वरिष्ठजन दिवस पर मेरी एक रचना उन बुजुर्गो के नाम जो अपने घर आँगन में सघन छांह भरे बरगद के समान है | जो उनकी कद्र जानते हैं उन्ही के मन के भाव ----बाबा की आँखों से झांक

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नमन न्यायपालिका

11 नवम्बर 2019
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नमन न्यायपालिका के -सम्पूर्ण अधिकार की शक्ति को,न्याय मिला , भले देर हुई , वन्दन इस द्वार शक्ति को !समय बढ़ गया आगे,लिख सौहार्द की नई परिभाषा; प्यार जीता नफरत हारी , बो हर दिल में नयी आशा ;हर कोई अपलक देख रहा -इस प्यार की शक्ति को !समभाव भरी ये पुण्यधरा .गीता भी

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मेरे गाँव के गुमनाम शायर

28 दिसम्बर 2019
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अपने गाँव के कविनुमा व्यक्ति को जब मैंने पहली बार अपने घर की बैठक में देखा , तो मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना ना रहा | मैं उन्हें आज अपने घर की बैठक में पहली बार देख रही थी |इससे पहले मैंने उन्हें अपने गाँव की अलग -अलग गलियों में निरर्थक घूमते देखा था या फिर जहाँ - तहां मज़मा जोड़कर सुरीले स

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आभार शब्दनगरी

13 जनवरी 2020
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आज का दिन एक बार फिर बीती यादों की ओर लिए जा रहा है ।आज ही के तीन साल पहले शब्दनगरी पर टििप्पणी के लिए बनाये गए अकाउंट ने मेरी जिंदगी बदल दी थी। उन सभी पाठकों और सहयोगियों की ऋणी रहूँगी, जिन्होंने मेरी इस शानदार रचना यात्रा में मुझे अतुलनीय सहयोग दिया। आभार...आभार

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प्रेम ना बाडी उपजे

14 फरवरी 2020
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प्रेम सदियों से मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है | हर इंसान अपने जीवन में प्रेम के अनुभव से गुजरता है | इसे प्रेम, प्यार , इश्क , स्नेह , नेह इत्यादि ना जाने कितने नामों से पुकारा गया और उतनी ही नई परिभाषाएं गढ़ी गयी |ये जब भगवान से हुआ - भक्ति कहलाया , प्रियतम से हुआ नेह कहलाया , अप्राप्य स

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ये ठहराव जरूरी था - कोरोना काल पर चिंतन

29 मई 2020
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कितने सालों से देख रहे थे , अलसुबह भारी - भरकम बस्ते लादे- टाई- बेल्ट से लैस , चमड़े के भारी जूतों के साथ आकर्षक नीट -क्लीन ड्रेस में सजा -- विद्यालयों की तरफ भागता रुआंसा बचपन --- तो नम्बरों की दौड़ और प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिले की धुन में- आधे सोये- आधे जागते किशोर

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गुरु वन्दना

5 जुलाई 2020
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मेरे समस्त स्नेही पाठकवृन्द को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं --- तुम कृपासिन्धु विशाल , गुरुवर ! मैं अज्ञानी , मूढ़ , वाचाल गुरूवर ! पाकर आत्मज्ञान बिसराया .छल गयी मुझको जग की माया ;मिथ्यासक्ति में डूब -डूब हुआ अंतर्मन बेहाल , गुरुवर ! तुम्हारी कृपा का अवलंबन , पाया अ

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चलो नहायें बारिश में -- बाल कविता

2 सितम्बर 2020
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चलो नहायें बारिश में लौट कहाँ फिर आ पायेगा ?ये बालापन अनमोल बड़ा ,जी भर आ भीगें पानी में झुलसाती तन धूप बड़ा ; गली - गली उतरी नदिया कागज की नाव बहायें बारिश में !चलो नहायें बारिश में !झूमें डाल- डाल गलबहियाँ, गुपचुप करलें कानाबाती करेंगे मस्ती और मनमानी सीख आज हमें ना भाती , लोट - लोट लि

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लाडली नाज़ों पली

30 नवम्बर 2020
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🌹🌹आदरणीय भाई रवींद्र सिंह यादव जी को लाडली बिटिया   के शुभ विवाह की  हार्दिक बधाई और शुभकामनाएंनव युगल को भावी जीवन की हार्दिक मंगल कामनाएं। लाडली नाज़ों पली चली ससुराल गली! निभाना फेरों की रीतयही जग का चलनना रख पाए पिताकरे लाखों जतनथी अमानत पराईमेरे अँगना पलीलाडली नाज़ों पली चली ससुराल गली!  क्यू

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मन पाखी की उड़ान - प्रेम कविता

11 मार्च 2021
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मन पाखी की उड़ान तुम्हीं संग मन मीता जीवन का सम्बल तुम एक भरते प्रेम घट रीता !नित निहारें नैन चकोर ना नज़र में कोई दूजा हो तरल बह जाऊं आज सुन मीठे बैन प्रीता ! बाहर पतझड़ लाख चिर बसंत तुम मनके सदा गाऊँ तुम्हारे गीत भर - भर भाव पुनीता ! बिन देखे रूह बेचैन हर दिन राह निहारे लगे बरस पल एक

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आज कविता सोई रहने दो

30 अक्टूबर 2021
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<h1><em><strong>आज कविता सोई रहने दो,</strong></em></h1> <h1><em><strong>मन के मीत मेरे

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पुस्तक प्रकाशन -' समय साक्षी रहना तुम '

19 जनवरी 2022
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🙏🙏 पुटक मंगवाने के  लिए लिंक   माँ सरस्वती को नमन करते हुए  शब्दंनगरी  के ,मेरे सभी स्नेही पाठवृंद को मेरा सादर और सप्रेम अभिवादन। आप सभी के साथ, अपनी पहली पुस्तक ' समय साक्षी रहना त

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आओ देवता आओ!श्राद्ध कथा

24 सितम्बर 2022
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रसोई से आती विभिन्न स्वादिष्ट  व्यंजनों  की मनभावन गंध और माँ  की स्नेह भरी आवाज  ने घर से बाहर जाते  नीरज  के कदमों को सहसा रोक लिया |'' आज तुम्हारे दादा जी पहला श्राद्ध है बेटा ! इसलिए उन्हें  समर्प

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माँ हिन्दी तू ही परिचय मेरा!

10 जनवरी 2023
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मेरी रचनात्मकता की उर्वर भूमि शब्दनगरी को मेरा सादर नमन!11 जनवरी 2017 को अपनी रचना यात्रा जहाँ से शुरु की थी उसी जगह खड़े होकर पीछे  देखना  बहुत भावुक कर देता है।कितने लोग मिले इस मंच पर जिन्हें पाकर ज

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