हुआ शुरू दो प्राणों का -- मौन -संवाद- सत्र !
मन प्रश्न कर रहे - स्वयम ही दे रहे उत्तर !!
हैं दूर बहुत पर दूरी का एहसास कहाँ है ?
कोई और एक दूजे के इतना पास कहाँ है ?
न कोई पाया जान सृष्टि का राज ये गहरा-
राग- प्रीत गूंज रहा हर दिशा में रह- रह कर !!
समझ रहे एक दूजे के मन की भाषा -
जग पड़ी भीतर सोयी अनंत अभिलाषा -
सुध - बुध बिसरी - बुन रहे नये सपन सुहाने
विदा हुई हर पीड़ा-- जीवन से हंसकर !!
नयी सोच , उमंग नयी .शुरू हुई नई कहानी
आज कहाँ चल पाई - जग की मनमानी ;
दोहरा रहे हैं फिर से --वही वचन पुराने -
जागी है भोर सुहानी -सो गयी रात थककर !!
अनगिन भाव अनायास प्राणों से पिघले -
सजे अधर पे हास -कभी नम हो गयीं पलकें -
दो तनिक तो साथ -थमो !ऐ समय की लहरों !
आई ख़ुशी अनंत -दुःख तुम चलो सिमटकर!!
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