मेरी रचनात्मकता की उर्वर भूमि शब्दनगरी को मेरा सादर नमन!11 जनवरी 2017 को अपनी रचना यात्रा जहाँ से शुरु की थी उसी जगह खड़े होकर पीछे देखना बहुत भावुक कर देता है।कितने लोग मिले इस मंच पर जिन्हें पाकर जीवन धन्य हुआ।आभार! शुक्रिया शब्दनगरी! तुम ना मिलती तो जीवन अधूरा तो जरुर रह जाता।अपने स्नेही पाठक वृन्द को सप्रेम वन्दे और शुभकामनाएं जिन्होने पढ़ा, सराहा और यहाँ पहुँचाया।🙏🙏
सभी को अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏🌹🌹
तुझ बिन रह जाती अधूरी-सी
माँ हिन्दी तू ही परिचय मेरा
तूने ही मिलाया खुद से
तू है स्नेहिल प्रश्रय मेरा!
प्रीत राग गाऊँ तुझ संग
सृजन का आधार तुम ही!
समर्पित अरूप-अनाम को जो
हो पावन मंगलाचार तुम ही!
तुम सागर और सरिता सी मैं
आ तुझमें हुआ विलय मेरा!
माधुर्य कण्ठ का है तुझसे ,
तेरा शब्द-शब्द है यश मेरा !
ढल कविता में जो बह निकला
तू अलंकार, नवरस मेरा!
अतुलकोश सहेज भावों का
है कृतज्ञ बड़ा हृदय मेरा!
तुलसी के हिय बसी तू ही
सूर का तू ही भ्रमर गीत!
अनकही पीर मीरा की तू
रचती जो प्रेम की नवल रीत!
मुझसे भी अटूट बंधन तेरा
तुझ पर गौरव अक्षय मेरा!
माँ हिन्दी तू ही परिचय मेरा!
🙏🙏