प्रकृति का ये बड़ा नियम है,
जो बोओगे वही उगेगा।
चाहे सींचो कितना उसको,
काँटों से न फूल खिलेगा।।
बोके पेड़ बबूल का प्यारे,
आम का फल तो नहीं लगेगा।
किये जो कर्म खराब हैं तूने,
काँटा बनकर वही चुभेगा।।
जो बाँटोगे वही मिलेगा,
आज नहीं तो कल मिलेगा।
दुगुना होकर आएगा वापिस,
फल का प्रतिफल अवश्य मिलेगा।।
विष भरा है घट में जब पूरा,
तो अमृत कहाँ से मिलेगा।
कुविचार जो पड़े हैं मन में,
तो सद् व्यक्तित्व कहाँ उभरेगा।।
दुःख बाँटोगे दुखी रहोगे,
सुख बाँटोगे सुखी रहोगे।
देकर दुनियाँ को ग़म तुम प्यारे,
तुम भी तो ग़मगीन रहोगे।।
गहरे पैठ के पानी से तुम,
मोती ख़ोज के लाओगे।
गर बाँटोगे दुनियाँ में खुशियाँ,
खुशियाँ अपार तुम पाओगे।।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर