कविता
देश बचाना
विजय कुमार तिवारी
स्वीकार करुँ वह आमन्त्रण
और बसा लूँ किसी की मधुर छबि,
डोलता फिरुँ, गिरि-कानन,जन-जंगल,
रात-रातभर जागूँ,छेडूँ विरह-तान
रचूँ कुछ प्रेम-गीत,बसन्त के राग।
या अपनी तरुणाई करुँ समर्पित,
लगा दूँ देश-हित अपना सर्वस्व,
उठा लूँ लड़ने के औजार
चल पड़ूँ बचाने देश,बढ़ाने तिरंगें की शान।
कुछ लूट रहे हैं देश,कर रहे गद्दारी,
जनता के दुश्मन हैं,महा महा व्यभिचारी,
उठो साथियों,पहचानो इनकी माया,
अभी समय है, पहले इनका नाश करो
देश बचेगा तभी बचेगी आन हमारी
जाति-धर्म के कुचक्रों का बिनाश करो।