आत्मा से आत्मा का मिलन
विजय कुमार तिवारी
भोर में जागने के बाद घर का दरवाजा खोल देना चाहिए। ऐसी धारणा परम्परा से चली आ रही है और हम सभी ऐसा करते हैं। मान्यता है कि भोर-भोर में देव-शक्तियाँ भ्रमण करती हैं और सभी के घरों में सुख-ऐश्वर्य दे जाती हैं। कभी-कभी देवात्मायें नाना रुप धारण करके हमारे घरों मे आती हैं और वातावरण को पवित्र कर देती हैं।
थोड़ी दूरी पर पड़ोस में अपने बच्चों के साथ एक बहू रहती है।मेरे घर आना-जाना है। शहर में मायका है। उसके पिताजी आते रहते हैं और अधिकांश मेरे साथ समय गुजारते हैं। मुझे भी अच्छा लगता है उनकी बाते और जीवनानुभव सुनने में।अपने जमाने के बड़े प्रेमी रहे हैं गीत-संगीत के। पैसा भी खूब कमाये हैं।शरीर साथ नहीं दे रहा है। बहुत कमजोरी रहने लगी है। फिर भी उनको मुझसे मिलने की ललक खींच लाती है। मेरे साथ ज्यादे रहते हैं अपनी बेटी के घर के बजाय।कभी -कभी भोर में ही आ जाना चाहते हैं। ।लड़के मजाक में बोल देते हैं कि मैं खोज रहा हूँ,तुरन्त चले आते हैं।लोग कहते हैं कि बूढ़ा और बच्चा को सम्भालना आसान नहीं होता।.
आज फिर आये। मैं अध्ययन कक्ष में आ चुका था और श्रीमती जी पूजा कर रही थीं। उनके आने की जानकारी नहीं हो पायी। कोई आवाज भी नहीं किये और लौटने लगे। सहसा मेरा ध्यान खिड़की से बाहर की ओर गया।देखा, तो आवाज दी। वे वापस लौटे। मैं भी बाहर वाले कमरे में पहुँचा। बोले," दोनो बूढ़ा आदमी लोग कहाँ गये? यहीं सोफे पर बैठे थे। यहाँ तो कोई नहीं है,मैने कहा। हँसे, मानो मैं झूठ बोल रहा हूँ।
भीतर झाँकना चाहे,शायद उधर गये हों। नही, कोई नहीं आया है,मैंने जोर देकर कहा। उनका मन नहीं मान रहा था बोले,अभी यहीं तो थे दोनो। मुझे भी थोड़ी चिन्ता हुई।
आभास हुआ शायद देव-शक्तियाँ होंगी,अच्छा हुआ कि उनके चरण पड़े। मन में अलौकिक आनन्द अनुभव हुआ। ऐसी आत्मायें शुभ के लिए ही आती हैं और बिना कुछ संकेत किये आशीश दे जाती हैं। कई लोगो को यहाँ पहले भी ऐसा अनुभव हुआ है। ज्यों-ज्यों मन पवित्र होता जायेगा,जीवन में ईर्ष्या,अहंकार,वैर खत्म होते जायेंगें, आप और आपका परिवेश सुन्दर बनता जायेगा कि देवता,खुद आयेंगें।
मेरी ध्यान-साधना यही है कि अपने मन और विचारों को साफ रखो,बहुत कुछ स्वतः सुधर जायेगा।" देह धरे को दण्ड" शायद कबीर दास जी ने कहा है। देह मिलती ही है दुख भोग के लिए। इसे हम बदल सकते हैं और सुखी हो सकते हैं या अपने दुखों को कम कर सकते हैं। जीवन मिला है तो दुख आयेंगें ही। हमे उनसे बचने के उपाय करना है। दुखों से व्यवहार करना हमे नहीं आता। यह बहुत सरल है। असली और नकली दुख को पहचानना चाहिए। दुख की ताकत और क्षमता को समझना चाहिए। उससे लड़ने के लिए अपनी सामर्थ्य का भी आकलन करना चाहिए.। हमेशा यह मान कर चलना चाहिए कि हमारा दुख मुझसे बड़ा नहीं है और हमारी ही विजय होगी। साथ ही परमात्मा पर विश्वास रखना चाहिए।
आत्मायें आपके पास आना चाहती हैं और आपको सुखी देखना चाहती हैं। दुख के समय अक्सर लोगो को अनुभव होता है जैसे कोई आया और मुझे बचा दिया या सहायता मिल गयी। अवश्य किसी देवात्मा ने अनुग्रह किया होगा ।
जब हम सुखानुभूति करते हैं तब बहुत सी पवित्र आत्मायें हमारे आसपास होती हैं। पिछली फरवरी की कोई सुबह कैम्पस में दूब घास पर कुर्सी लगाकर पुस्तक पढ़ने लगा। शीघ्र ही डूब गया पुस्तक की विषय-वस्तु में। ऐसा लगा-अचानक कुछ लोग आ खड़े हुए हैं। मुख्य गेट पर आवाज हुई नहीं,कौन हैं ये लोग? ध्यान पुस्तक से हटाकर सिर उठाया,वहाँ कोई नहीं था। आश्चर्य हुआ।इधर-उधर,चारो तरफ देखा।किसी के आने-जाने का कोई संकेत नहीं था। फिर ध्यान पुस्तक में लगाया और पढ़ने लगा। पुनः वैसा ही अनुभव हुआ। इस बार उन सभी ने छिपाया नहीं। हास्य जैसा महसूस हुआ जैसे वे कह रहे थे,हम इन पेड़ो की आत्मायें हैं। विचित्र अध्यात्मिक अनुभूति हुई और मैं सिहर उठा,रोंगटे खड़े हो गये और बहुत देर तक उन सब की उपस्थिति महसूस करता रहा। अच्छा लगा कि उन्हें मेरा सान्निध्य पसन्द है।
मार्च में किसी दिन वैसे ही बाहर बैठा था। आम में मंजरी के साथ छोटे-छोटे फल भी दिखने लगे थे।
मेरी दृष्टि आम के एक छोटे से दाने पर टिक गयी। ध्यान में आया कि यही दाना कुछ दिनों में बड़ा फल बन जायेगा। अचानक भीतर प्रश्न उभरा कि जीवन-रस इस दाने तक कैसे पहुँचता होगा? तरल चीजें उपर से नीचे गिरती हैं,इसे पेड़ के जड़ से ही ग्रहण करना होता है अर्थात नीचे जड़ से रस उपर पत्तों और फलों तक पहुँचता है। थोड़ी हँसी आई कि भगवान ने हर पेड़ मे पम्प लगाया हुआ है। अचानक चमत्कार जैसा घटित हुआ। लगा,सामने वाले पेड़ के सभी पत्ते जैसे ओझल हो गये । केवल तना,डालियाँ और छोटे-छोटे दाने दिख रहे थे। तना और डालियाँ मटमैले काले रंग की थी। फिर उन तनो और डालियों के भीतर हरे रंग की रेखायें उभरीं और उनमें हरा रंग का तरल पदार्थ नीचे से उपर की ओर तीव्रता से प्रवाहित हो रहा था और हर दाने तक पहुँच रहा था। अपूर्व सुख की अनुभूति हुई और मैं परमात्मा के प्रति नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सका।
हमारे आसपास कुछ जीव-जन्तु,कुत्ते,बिल्लियाँ,गिलहरियाँ,सांप,नेवले और अनेक तरह की चिड़िया पलने लगते हैं। हम किसी को पोसने के लिए नहीं लाते,वे स्वतः आ जाते हैं और हमारे साथ रहते हैं। ये वही होते हैं जिनसे हम पिछले जन्मों से जुडे हैं। हमारी योनि भले ही अलग-अलग है,सभी का सम्बन्ध आत्मा के रुप में है। इनका लेन-देन का सम्बन्ध है हमारे साथ।हर आत्मा जीवधारी के रुप मे साथ रहकर अपना ऋण चुकाती है.। लेन-देन पूर्ण होते ही जीवधारी आत्मा अलग हो जाती है।
करना क्या चाहिए? अपने साथ रहनेवाली सभी आत्माओं के साथ मधुर और प्रिय सम्बन्ध रखना चाहिए और जहाँ तक हो सके स्नेह-प्रेम का व्यवहार करना चाहिए। यदि कोई हमारे साथ गलत कर रहा है तो सहन करना चाहिए क्योंकि पहले कभी किसी पूर्व जन्म में मैने भी उसके साथ ऐसा ही किया था। भोगकर ही ऐसी देनदारी खत्म की जा सकती है।