गीत(09/05/1978)
विम्ब का ये प्यार
विजय कुमार तिवारी
कौन दूर से रहा निहार?
दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,
विम्ब का ये प्यार।
पोखरी से फिसल चले हैं पाँव ये,
जिन्दगी की कैसी है ढलाँव ये।
आज हाथ केवल है हार,
दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,
विम्ब का ये प्यार।
धड़कने सिसकाव का सहारा ले,
मिट रही बढ़त यहाँ किनारा ले।
अदायें आज कर रहीं चित्कार,
दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,
विम्ब का ये प्यार।
गूँज नहीं, मात्र यहाँ क्रन्दन है,
दीप्ति नहीं, मरघट का नर्तन है।
बैठ यहाँ कर रहा गुहार,
दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,
विम्ब का ये प्यार।
उदास राग-रागिनी यहाँ,
निराश रश्मि-यामिनी यहाँ।
सिर्फ सर्प-दंश बेशुमार,
दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,
विम्ब का ये प्यार।
नियति-नटी के प्रेम का आह्वान,
सबने किया ईश्क की रुझान।
कौन सुने विजय की पुकार?
दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,
विम्ब का ये प्यार।