कहानी
खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-1
विजय कुमार तिवारी
सालों बाद कल रात उसने ह्वाट्सअप किया,"हाय अंकल ! कहाँ हैं आजकल?"उसने अंग्रेजी अक्षरों में "प्रणाम" लिखा और प्रणाम की मुद्रा वाली हाथ जोड़ेे तस्वीर भी भेज दी।प्रमोद को सुखद आश्चर्य हुआ और हंसी भी आयी।
"कैसे याद आयी अंकल की इतने सालों बाद?"प्रमोद ने यूँ ही पूछ लिया।
"बस आ गयी,"उसने छोटा सा उत्तर लिखा।
तत्क्षण उसकी पूरी भाव-भंगिमा,किंचित व्यंग,किंंचित मुस्कान लिए उसका चेहरा और किंचित उलाहनाओं से भरी मृदुलता सबकुछ मानो मूर्त हो उठा।प्रमोद ने घड़ी पर निगाह डाली।रात के ग्यारह बज चुके थे और वे सोने ही वाले थे।
उन्होंने ऐसे ही अनायास पूछ लिया," नींद नहीं आ रही क्या?"
"नी," उसने बिना देर किये लिखा।
वह ऐसी ही है,हाजिरजवाब और बिना लागलपेट के सबकुछ बोल जाने वाली।वैसी ही उसकी आँखें हैं,खूबसूरत और बोलती सी।दुबली-पतली,छरहरी,लम्बी सी लड़की की आँखें मानो सारा रहस्य खोलने को तैयार और उपर से स्मित मुस्कान।
"क्यों?"प्रमोद ने पूछा।अब उनकी भी नींद गायब हो गयी है।उन्होंने उसकी प्रोफाईल फोटो को ध्यान से देखा।बिल्कुल वैसी ही है जैसा सालों पहले देखा था।
प्रमोद की पोस्टिंग उस अर्धशहरी कस्बे में हुई तो वे बहुत परेशान हो उठे।नौकरी की बाध्यता और मजबूरी में हर बार मनोनुकूल जगह नहीं मिलती,यह भुक्तभोगी लोग ही समझ सकते हैं।
पोस्ट आफिस के बगल में पुलिस चौकी और गोलाम्बर के उस पार छोटा सा बाजार है।बहुत भीड़ तो नहीं रहती फिर भी जरुरत के सभी सामान मिल जाते हैं।वहीं बगल से पतली सी सड़क पीछे की कालोनी तक जाती है जिसमें उनको घर मिला है।किसी समय बहुत रौनक रही होगी यहाँ परन्तु अब वह स्थिति नहीं है।थोड़ा घुमावदार रास्ता पार करते हुए उन्हें अपने कैम्पस में जाना होता है जहाँ बहुतायत फलदार पेड़ स्वागत करते हैं।छोटा सा बरामदा और उससे सटा हुआ बैैठका है।भीतर हाल के एक तरफ दो कमरे हैं,सामने छोटी सी रसोई और दूसरी तरफ स्नानघर है।पीछे का दरवाजा आंगन की ओर खुलता है जो आम और पीपल के पेड़ों की छाया तले ढका रहता है।सूरज की रोशनी आंगन तक पहुँच नहीं पाती।शीतकाल में आंगन में निकलना मुश्किल होता है,जबकि गर्मी में स्थिति खूब मनोरम होती है।प्रायः यहाँ के सभी बंगले ऐसे ही हैं।बहुत पुराने और गंदगी से भरे हुए।कम्पनी के बन्द होने से इनकी देख-रेख हो नहीं पाती और चारो ओर जंगल सा फैला हुआ है।बरसात में बहुत दुर्दशा हो जाती है।सबके छत से पानी टपकता रहता है,आंगन में पानी भर जाता है और पूरे कैम्पस में एक तरह की सड़ांध व्याप्त हो जाती है।बहुत सारे लोग अपना पैसा खर्च करके हालात को कुछ हद तक सम्हालते हैं और फूल-पत्तियाँ लगाकर मनोरम स्थिति बनाते हैं।
प्रमोद बाबू को विरासत में बूढ़ा माली,काले रंग की कुतिया और सफेद बालों वाली बिल्ली मिली है जिनका आश्रय यही बंगला है।कुछ ही दिनों में समझ में आ गया कि यह पूरा क्षेत्र सांपों से भरा है।घास में रेंगते हुए,पेड़ पर लटके हुए,सड़क पार करते हुए,मेड़ पर चूहों के बिलों में घुसते-निकलते हुए अक्सर उनके दर्शन ने भयभीत कर दिया है।भय तब और बढ़ जाता जब कोई लम्बा सा सांप पेड़ पर चिड़ियों के घोंसले में चढ़ता हुआ दिखता और सारे पक्षी चीं चीं करते शोर मचाते।
आश्चर्य यह भी था कि कभी कोई सर्प उनके घर के भीतर नहीं घुसा।घर की जो जर्जर अवस्था थी,कहीं से भी उनका घुसना सम्भव था।इसका रहस्य तब खुला जब उन्होंने एक दिन बिल्ली को उसका रास्ता रोके पाया।बिल्ली बरामदे में थी और सर्प कहीं बाहर से घर की ओर आने के प्रयास में था।उसने फन उठाया,फुंफकार किया,बिल्ली डटी रही और अपने पंजे से उसे डराती रही।अन्ततः वह मुड़कर दूसरी ओर चला गया।माली ने बताया कि बिल्ली के रहने से चूहे नहीं आते और सांप अक्सर चूहों की तलाश में ही घरों में घुसते हैं।बिल्ली के प्रति उनका लगाव बढ़ गया।
पता चला कि सरकार केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल की एक पूरी कम्पनी भेज रही है।यह नयी समस्या थी।खाली घरों,बंगलों में उनका निवास होने वाला था।कम्पनी के सारे कार्यालय,अस्पताल,क्लब पर उनका आधिपत्य हो गया।जन-मानस में प्रचलित भावनाओं के अनुसार उनके साथ रहना थोड़ा अलग भाव जगाने लगा। इसके लिए उन लोगों ने थाना सहित स्थानीय सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर बैठकें कीं और विश्वास दिलाने की कोशिशें कीं कि किसी को भयभीत होने की जरुरत नहीं है।हम परिवार और बाल-बच्चों के साथ रहेंगे और आप सभी की सुरक्षा करेंगे।
लगा,अधमरा कस्बा जाग उठा।चारो ओर चहल-पहल और भीड़ बढ़ने लगी।वर्दी में रंगरूटों ने जवानी का जोश भर दिया।अधिकारियों की गाड़ियाँ निकलती तो अद्भूत रोबदार माहौल होता।बिजली के खम्भों पर बल्ब जल उठे।सड़क किनारे की जंगली झाड़ियाँ काट डाली गयीं।उन्होंने सांपों को पकड़ना और मारना शुरु कर दिया।कस्बे की दुकाने सजने लगीं।चाय,चाट-पकौड़ी,मिठाई और नाश्ते की व्यवस्था हर मोड़-चौराहे पर दिखने लगी। फोन के सार्वजनिक केन्द्रों की भीड़ बढ़ने लगी।सिलाई की मशीनों को काम मिलने लगे।कम्प्यूटर के अनेक केन्द्र खुल गये।ब्यूटीपार्लर में महिलायें,लड़कियों का तांता लगने लगा।कस्बे की वेश-भूषा मे जबर्दस्त बदलाव आया और आधुनिक नये परिधानों ने अद्भूत छटा बिखेर दी।युवा घर में पड़े रहने के बजाय गली,मोड़ों,चौराहों पर मटरगश्ती करने लगे।कुछ की आँखें चार होने लगीं तो कुछ आह भरने पर मजबूर होने लगे।सबको कुछ न कुछ काम मिलने लगा।देखते-देखते मन्दिरों,चर्च,गुरुद्वारों और मस्जिदों में रौनक लौटआयी।
उन्होंने तालमेल बढ़ाने के लिए अपनी कैण्टीन को सबके लिए खोल दिया और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आम लोगों को भी शामिल किया।सबसे महत्वपूर्ण बदलाव यह हुआ कि लोग एक-दूसरे से आपस में घुलने-मिलने लगे और एक-दूसरे के यहाँ आने-जाने लगे।शादी-विवाह के कार्यक्रमों में लोगों को उनकी सुविधाओं का लाभ मिलने लगा।उनके लड़के-लड़कियों को नौकरी की तैयारी के लिए सड़कों,पार्कों और खुले मैदानों में व्यायाम करते,दौड़ लगाते देख,अन्य युवा-युवतियाँ प्रोत्साहित होने लगे।