गीत
कौन सा पतझड़ मिले?
विजय कुमार तिवारी
और गा लूँ जिन्दगी की धून पर,
कल न जाने प्रीति को मंजिल मिले?
दर्द में उत्साह लेकर बढ़ रहा था रात-दिन,
आह में संगीत संचय कर रहा था रात-दिन।
आज सावन कह रहा है बार-बार,
क्यों लिया बंधन स्व-मन से रात-दिन?
सोचता हूँ चुम लूँ वह पंखुड़ी,
कल न जाने कौन सी बेकल खिले?
आपदाओं में पला तनहाईयों का शबाब है,
बीच कांटों में खिला कोई नया गुलाब है।
ईश्क में डुबी हुई यह जिन्दगी,
प्रेम-परिणत की व्यथा की खुली हुई किताब है।
देख लूँ मैं पल्ल्वों की लालिमा
कल न जाने कौन सा पतझड़ मिले?