विपत्ति में ही
विजय कुमार तिवारी
प्राचीन मुहावरा है,"विपत्ति में ही अच्छे-बुरे की पहचान होती है।"मानवता के सामने सबसे भयावह और संहारक परिस्थिति खड़ी हुई है।पूरी दुनिया बेबस और लाचार है।हमारे विकास के सारे तन्त्र धरे के धरे रह गये हैं।कुछ भी काम नहीं आ रहा है।स्थिति तो यह हो गयी है कि जो जितना विकसित है,वह उतना ही परेशान है।दुनिया पर राज करने का मनसुबा पाले अनेक देशों ने तबाही के बहुत से हथियार बनाये हैं।आज उनके हथियार काम नहीं आ रहे हैं।आज पूरी दुनिया ठहर सी गयी है।
विपत्ति के इस दौर में बहुत चीजें स्पष्ट हो रही हैं और आज का आदमी सोचने पर मजबूर हुआ है।अपने-पराये की पहचान तो हो ही रही है,उससे भी अधिक स्पष्ट पहचान अच्छे-बुरे की हो रही है।
हमारे यहाँ समुद्र-मन्थन की अवधारणा है।उसी में से विष भी निकलता है और अमृत भी।यह प्रकृति द्वारा थोड़ा हटकर आलोड़न है।इस मन्थन की जरुरत क्यों आ पड़ी?शायद हम सही उत्तर न दे पायें।सरल भाषा में कह सकते हैं कि धरती का बोझ बढ़ गया है,बेतरतीब दोहन से उसका सन्तुलन बिगड़ गया है।इससे भी बड़ा हमारा वैचारिक पतन है जिससे हवा,पानी, वनस्पति,जीव-जन्तु और हमारा आपसी सम्बन्ध सबकुछ गहरे तौर पर प्रभावित हुआ है।हमारे सारे वैज्ञानिक शोध धरती,समुद्र और आकाश को आन्दोलित करते हैं।सम्पूर्ण सृष्टि में उथल-पुथल मच जाती है।कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है।सबको आगे निकल जाने की होड़ है।
कोई यह क्यों नहीं मानता कि इस सम्पूर्ण सृष्टि का सृजन अकस्मात नहीं हुआ है।विधाता ने बहुत सोच-समझकर इसकी रचना की है।मनुष्य को उसका सिरमौर बनाया।उसमें बुद्धि-विवेक भर दिया ताकि वह इसका संचालन करे,खुद भी सुख-भोग करे और सबको सुखी रखे।
दुर्भाग्य से मनुष्य ने दुर्गुणों को प्रश्रय देते हुए विनाश का मार्ग अपना लिया।हमारी आवश्यकता बहुत कम है और हमें मिल-जुलकर रहना चाहिए।ऐसा नहीं हुआ।हमने अपनी विभाजनकारी नीतियों से सबको बांट दिया और लड़ने लगे।हमने हर किसी का शोषण किया और जाति-धर्म के नाम पर मनुष्यता को कलंकित करते हुए आपस में ही एक-दूसरे के प्रति जघन्य अपराध करने लगे।षडयन्त्र के तहत विनाश के खेल खेले जा रहे हैं और ऐसे बहुत लोग हैं जो केवल विरोध करना जानते हैं।उनके चेहरे पहचाने जा रहे हैं,फिर भी उन्हें लज्जा नहीं आती।आश्चर्य और दुखद है कि उनका बड़ा वर्ग इसे हथियार के रुप में उपयोग कर रहा है।अवश्य ही इससे बड़ी क्षति होनेवाली है।ऐसे लोग विनाशक बम के रुप में समाज में घुसकर बड़ी तबाही का मंजर खड़ा कर रहे हैं।
पूरी दुनिया जहाँ इस विपदा से जुझ रही है,भारत को वहीं विपदा और ऐसे मानवता-विरोधी,राष्ट्र-विरोधी ताकतों से भी लड़ना पड़ रहा है।बहुत सालों से इनका छिपा खेल चल रहा था,अब रहस्य उजागर हो गया है।इनको लोग पहचान रहे हैं।समस्या की पहचान ही असके सफाये की शुरुआत होती है।निश्चित मानिये कि इस संसार-मन्थन से ही ये बाहर निकल आये हैं।समाज के भीतर जड़ जमाये ऐसे तत्व बिलबिला उठे हैं और इनका घिनौना खेल सतह पर उभर आया है।इनका विभत्स खेल इसलिए चल पा रहा है कि आम आदमी जागरुक नहीं है,इनके आवरण की छद्मता को पहचान नहीं पाया है।इतना तो करना ही चाहिए कि हम सावधान रहें,अपने आसपास की गतिविधियों पर नजर रखें और वैसे लोगों के बहकावे में न आवें।
विश्वास करें,जो हो रहा है,उसमें से ही मानवता कुछ अधिक समझदार,मजबूत,सशक्त और जागरुक होकर निकलेगी।लोग बता रहे हैं कि दिल्ली में यमुना का जल बहुत साफ हुआ है।गंगा नदी का जल भी निर्मल और स्वच्छ हुआ है।दिल्ली सहित अनेक शहरों में प्रदूषण का स्तर कम हुआ है।विपत्ति से हम भी बाहर निकल ही आयेंगे।सम्पूर्ण विश्व और मानवता की जीत होगी।बस,धैर्य से,पूरी तरह जागरुक रहना है।अपना भी मनोबल बढ़ाना है और आसपास सबके उत्साह को जगाये रखना है।हमेशा याद रखना चाहिए कि हर विपत्ति हमें कुछ सिखाकर जाती है और हमें संघर्ष के लिए प्रेरित करती है।