परम पूज्य सचिन बाबा का जाना
विजय कुमार तिवारी
लगता नहीं कि परम पूज्य सचिन बाबा अब नहीं रहे।19 सितम्बर 2018 की प्रातः वेला में लगभग 4.30 बजे उनकी पवित्र और दिव्य आत्मा ने परमधाम के लिए प्रस्थान किया। विगत कई महीनों से उनका ईलाज आसनसोल में चल रहा था और वे गोपालपुर में रह रहे थे।वहीं गुरुदेव ने अंतिम सांस ली।उनके पार्थिव शरीर को गोकुलानन्द मठ दलदली धाम में,भक्तों के अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। लाखों भक्तों की रोती-बिलखती भीड़ उमड़ पड़ी। आश्रम परिसर में ही नाम-स्थान और हरि-मन्दिर के बीच समाधि दी गयी।
उनके जीवन और भक्ति-साधना पर आधारित पुस्तक का लेखन मैंने किया है परन्तु उसका प्रकाशन नहीं हुआ है। पूज्य ठाकुर और दलदली धाम से मुझे पूज्य रमेश चन्द खेरा,नाम-कीर्तन करने वाले जीतन एवम परम भक्त गुरुदेव सिंह जी ने जोड़ा। वह शनिवार का दिन था और साँझ वेला थी। पूज्य सचिन बाबा जी हरि-मन्दिर के सामने चारपाई पर विराजमान थे।उनका रुख नाम-स्थान की ओर था जहाँ चौबिसों घंटे नाम-कीर्तन होता रहता है।
हरे राम,हरे राम,राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण,हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।
आश्रम परिसर में प्रवेश करते ही लगा मानो मेरा बोझ उतर गया है और शान्ति अनुभव हुई।उनकी मधुर वाणी कहीं भीतर बहुत गहरे उतर गयी। उन्होंने मुझे अपना बना लिया। 24 सितम्बर 2003 को आश्रम में रहनेवाले मास्टर साहब ने कहा,"उनकी कृपा सभी भक्तों पर होती है और उन्हें सभी की जानकारी रहती है। वे किसी को दण्ड नहीं देते। कठिन साधना के बिना भी अत्यन्त आग्रह पर परमात्मा की कृपा मिलती है। त्याग-तिरस्कार के बावजूद पूज्य ठाकुर की कृपा बनी रहती है। 24 अक्तूबर 2003 को पूज्य बाबा ने प्रवचन में कहा," 1-संसार में कर्म करते चलना चाहिए। उसमें किसी भी तरह की ढ़ील नहीं देनी चाहिए क्योंकि वह प्रभु का ही काम है।2-प्रभु सदैव साथ रहते हैं। 3-संसार की चिन्ता करने की जरुरत नहीं है। हमारे संसार की चिन्ता प्रभु को रहती है।"
मेरे जीवन में जो भी सुख,शान्ति,संतोष और भक्ति की ओर झुकाव है, सब उनकी ही कृपा है। उनकी कृपा कैसे होती है,यह तुरन्त समझ में नहीं आता। सुदामा प्रसंग में श्री कृष्ण की कृपा की कथा हम सबने सुनी है। मेरा अनुभव है कि समस्या आने के पूर्व ही उसके उचित समाधान की व्यवस्था ठाकुर कर देते हैं।जीवन में घटित होने वाले सुख और दुख के पहले ही बाबा खींच लेते हैं और समाधान कर देते हैं।यह रहस्य आगामी कुछ दिनो में स्पष्ट हो जाता है।
स्वामी रामसुख दास जी ने सन्तों के संग सम्बन्धी प्रश्न के उत्तर में कहा है कि सन्त प्रारब्ध से भी मिलते हैं,भगवत्कृपा से भी मिलते हैं और अपनी लगन से भी मिलते हैं। हमारी सच्ची लगन,उत्कट अभिलाषा से ही उनके संग का लाभ मिलता है। सत्संग के सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि सत तत्व परमात्मा में निष्काम प्रेम होना सत्संग है और जीवन-मुक्त सन्त के साथ निष्काम प्रेम भी सत्संग है। उनके साथ बैठना भी सत्संग है,संसार से बिमुख होना भी सत्संग है। तात्पर्य यह है कि हम किसी भी प्रकार से परमात्मा के सम्मुख हो जाय,वही सत्संग है। हमें परमात्मा की कृपा से ही पूज्य सचिन बाबा का सत्संग मिला है।
गीता में भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है कि जब-जब धर्म की हानि और अधर्म में वृद्धि होती है तब-तब मैं साकार रुप में प्रकट होता हूँ,अवतार लेता हूँ। अवतारी सत्ता अपने आदर्श आचरण द्वारा समाज में व्याप्त बुराईयों और समस्याओं को दूर करता है। पूज्य ठाकुर का आगमन उसी महत उद्देश्य के लिए हुआ है। झारखण्ड और बंगाल का यह कोयलांचल-क्षेत्र सदैव ही ईश्वर की आविर्भाव-युक्त कृपा से वंचित रहा है।पूज्य सचिन बाबा जी का प्रादुर्भाव उसी की प्रतिपूर्ति है। सचिन बाबा चैतन्य महाप्रभु की परम्परा के हैं। चैतन्य स्वयं कृष्ण हैं और उनका वर्ण गौर है। चैतन्य का बहिर्रंग राधा का है और अन्तर्रंग कृष्ण का है। उनमें राधा तत्व की प्रधानता है। परम राधा रानी के परम तत्व प्रेम को समझने की चाह ने श्री कृष्ण को चैतन्य के रुप में अवतरित होने के लिए बाध्य किया। नाम-संकीर्तन और कृष्ण-चर्चा के द्वारा उन्होंने जन-जन में कृष्ण-प्रेम की धारा बहा दी। दलदली धाम के सचिन बाबा में प्रेम है,प्रेम जनित भक्ति है,करुणा-कृपा है। पूज्य ठाकुर में राधा तत्व कृष्ण-स्वरुप में मिला हुआ है और भक्ति का विशुद्ध रुप दिखाई देता है। श्री ठाकुर ने मेरे प्रश्न पर कि आपके वर्तमान अवतार का मूल तत्व क्या है, प्रसंग बदलते हुए कहा कि भगवान जीव-जगत को प्रेम-भक्ति का वरदान देते हैं तथा जीवों के उद्धार के लिए सदैव सजग रहते हैं।
पूज्य श्री ठाकुर ने आश्रम के बोर्ड पर लिखवा दिया है,"देह-दर्शन से ही जीव की मनोबांछा पूरी होगी,मौखिक वार्तालाप की कोई आवश्यकता नहीं है।"बंगला,हिन्दी और अंग्रेजी में पूज्य ठाकुर का यह आश्वासन दुर्लभ एवम अद्भूत है। ऐसी स्पष्ट घोषणा परमात्मा के अलावा और कौन कर सक्ता है?मेरा मत है कि पूज्य ठाकुर की घोषणा गीता के कृष्ण की घोषणा से बड़ी है।
पूज्य ठाकुर अपने भक्तों के साथ बहुत मधुर व्यवहार करते हैं। अत्यन्त माधूर्य श्री कृष्ण में है,चैतन्य में है और वही माधूर्य पूज्य ठाकुर में है। एक दिन विनत भाव से मैने निवेदन किया,"यदि बातचीत में,व्यवहार में कुछ अपराध हो जाये तो मुझे अज्ञानी,अव्यवहारिक समझ कर क्षमा कीजियेगा।" उन्होंने कहा कि परमात्मा,सन्त-महात्मा और साधु सदैव क्षमा करते हैं। जीव नाना प्रपंचों में पड़ा हुआ चाहे-अनचाहे अपराध करता रहता है। प्रभु को क्षमा करना ही पड़ता है। पूज्य ठाकुर प्रचार-प्रसार नहीं चाहते। उनके आश्रम में नियम बहुत कड़े हैं। परिसर में पुरुषों को धोती पहनना है और महिलायें साड़ी।लहसून-प्याज के बिना सात्विक शाकाहारी भोजन करना है। किसी भी तरह का नशा वर्जित है। हमें उम्मीद है कि पूज्य ठाकुर अपने सूक्ष्म रुप में सभी भक्तों पर कृपा बनाये रखेंगें और हमारा मार्गदर्शन करेंगें। जय श्री गौर हरिः।