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छमा करना

1 अक्टूबर 2019

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क्षमा करना

विजय कुमार तिवारी

"चल माँ ! बेटा नहीं है तो क्या, बेटी तो है,मै तो हूँ।चल उठ,अब चल यहाँ से।"

बेटी की बात सुनकर देवकी का मन हुलसित हो उठा।पपनियों में थोड़ी सी हरकत हुई,टप टप आँसू टपक पड़े।हुलास एवं पीड़ा के बीच वह विह्वल हो उठी।ऐसी बात नहीं कि पहले कभी माया ने आग्रह नहीं किया है।भगवान की दया से वह अच्छे विचार-संस्कार की है।अच्छा घर-वर मिला है।देवकी की चिन्ता दूसरी है।उसने कभी सोचा ही नहीं कि ऐसे भी दिन देखने पड़ेंगे।आज बेटा होता तो क्या उसे जाने देता,क्या देवकी को ही जाना पड़ता,तब तो स्थिति ही दूसरी होती।

सामान कुछ विशेष था नहीं।हाथों-हाथ माँ-बेटी ने उठा लिया।देहरी से बाहर पाँव रखते हुए देवकी का मन भारी हो उठा।उसने पीछे मुड़कर देखा।छूट रहा था अपना घर-दुआर।शरीर में कम्पन होने लगा।शिथिलता बढ़ आयी जैसे एक पग भी चलना दुभर हो,वह धम्म से जमीन पर बैठ गयी।माथा चकराने लगा।लगा-सामने माया के बाबू खड़े हुए हैं।"क्या करूँ मैं?" उसने मन ही मन हाथ जोड़ा,'मेरी समझ में कुछ भी नहीं रहा,"फफक कर रोने लगी देवकी।

"त्रिया चरित्तर है," भीड़ में से किसी ने जुमला उछाला।बिजली के करेंट की तरह लगा,तिलमिला उठी वह।माया ने सहारा दिया।देवकी उठ खड़ी हुई और चल पड़ी।एक हूक सी उठी उसके मन में।यही जीवन है,एक दिन इसी घर में गाजे-बाजे,धूम-धड़ाके के साथ व्याह कर लायी गयी थी और आज यह बेइज्जती...इतनी गलाजत कि सहा नहीं जा रहा है।छोड़नी पड़ रही है अपनी दुनिया,अपनी जमीन,अपना घर-दुआर।

"नहीं," सहसा रूक गयी देवकी,"अपने हक के लिए लड़ना है मुझे।लड़ाई तो अब शुरु होगी।नहीं,छोड़ नहीं सकती,"भीतर ही भीतर उसने अपने संकल्प को और पुख्ता किया।

बहोरपुर गाँव में दीना पाड़े का परिवार ना अधिक सम्पन्न रहा है और ना अधिक विपन्न।वे दो भाई थे।छोटे भाई का नाम गेना पाड़े था।दोनो भाईयों के दो-दो पुत्र हुए।भोला और जीतन,दीना पाड़े के तथा लखन और श्रीधर गेना पाड़े के।गेना पाड़े को रामपुर गाँव में नवर्षा मिला था।वे अपने परिवार के साथ वहीं रहते थे।

भोला पाड़े अपने पिता की तरह ही पढ़े-लिखे थे।अंग्रेजी का पूरा ज्ञान था और संस्कृत तो पारिवारिक परम्परा में ही थी।उस जमाने में मैट्रिक की परीक्षा उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी और शीघ्र ही नौकरी लग गयी।पहली पत्नी के मर जाने पर पैंतीस साल की उम्र में उन्होंने अठारह-उन्नीस साल की देवकी से शादी कर ली।पहली पत्नी से कोई सन्तान नहीं थी और देवकी से एक पुत्री माया हुई।

सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति देवकी जब व्याह कर आयी तो पूरे गाँव में उसके रुप की खूब चर्चा हुई।उसे सबने सराहा।पहले जीतन की पत्नी की ही चर्चा होती थी,उसके रुप का बखान होता था।जीतन की पत्नी गाँव में छोटी-बहू के रुप में जानी जाती थी।घूँघट की ओट किये देवकी छम-छम करती एक कोठरी से दूसरी में जाती तो घर की रौनक दुगुनी हो जाती थी।देवकी अच्छे घर से आयी थी।उसके तन पर सोने-चाँदी के गहने थे।गोरी काया पर सुनहली आभा से देवकी का मुखड़ा दमकता रहता था।स्वतन्त्र मन और ऊँचे विचार की देवकी ने घर का सारा काम सम्हाल लिया।

भोला पाड़े अपनी नौकरी पर अक्सर बाहर ही रहते थे।उनका तबादला एक स्थान से दूसरे स्थान पर होता रहता था।विभागीय प्रोन्नति भी होती रहती थी।जो कमाते उसका अधिकांश भाई जीतन के नाम भेज देते।

यहा चाँदी थी।खेती होती ही थी।फसल हो रही है,नहीं हो रही है,जीतन को इससे विशेष मतलब नहीं था।जो पैसा आता था उसमें से अक्सर वह कुछ बचा लेता था।धीरे-धीरे अच्छी सम्पत्ति होती गयी उसके नाम।पैसा आदमी को अंधा बना देता है।यहाँ तो भाई का पैसा और प्यार दोनो था।भाई ने आँख मूँदकर जीतन पर विश्वास किया।देवकी का भी स्नेह कम नहीं था।देवर पानी माँगे तो देवकी गिलास को मल मलकर साफ करती,धोती और पानी लाकर देती।भोजन के समय एक-एक करके रोटियाँ तवे से उतारती और उनकी थाली में डालती।छोटी बहू को आराम ही आराम था।अपने मन से कभी कुछ करती नहीं थी और जीतन कभी कहता नहीं था।जीतन के मन में कुछ और ही चलता रहता था।आये दिन घर में कलह का माहौल बनने लगा। देवकी के प्रति उसका अनादर का भाव जागने लगा और उसकी बोली भी बदलने लगी।

सूरज निकल आया था।देवकी जब कोठरी से बाहर निकली तो तेज धूप से आँखें चौंधिया गयी।

"महारानी जी अब उठ रही हैं?"

"आँख लगी रह गयी थी,"सकुचाते हुए उसने जीतन की ओर देखा।

"काम कौन करेगा?बाप ने नौकर-चाकर तो भेजा नहीं है।"

जीतन की बात सुनकर उसका तन-मन जल उठा,फिर भी मुँह से आवाज नहीं निकली।उसने घूँघट किया और डोल ले कुएँ की ओर चल पड़ी।छोटी बहू को मुस्कराता देख जीतन हँस पड़ा।हँसी का यह कतरा देवकी को भीतर तक साल गया। रोज-रोज की कच-कच से उसका मन दुखी रहने लगा।उपर से वज्रपात हुआ कि भोला पाड़े बीमार पड़े और बहोरपुर गये।बहुत कमजोरी थी।गाँव के वैद्य जी का ईलाज शुरु हुआ।बीमारी बहुत बिगड़ गयी तो शहर ले जाया गया।बीमारी थी कि कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही थी।कुछ दिनों तक लोंगो ने हाथो-हाथ लिया।धीरे-धीरे उदासीनता बढ़ती गयी।बीमारी ने घर-परिवार के अन्तर्सम्बन्धों की जड़ हिलाकर रख दी।

ओसारे के भीतर एक बड़ा सा आंगन है।उसके चारो ओर चार कोठरियाँ हैं।सबसे अच्छी कोठरी छोटी बहू के कब्जे में है।दूसरी कोठरी में बैल बाँधे जाते हैं।तीसरी में चारा रखा जाता है।बगल वाली चौथी कोठरी में भोला पाड़े की खाट बिछी है।दरवाजे के बाहर बर्तन माँजने की जगह है और वहीं मोरी बहती है।रात में प्रायः औरतें,बच्चे वहीं बैठ जाते हैं।सड़ा हुआ पानी महकता रहता है और एक अन्तहीन सी बदबू फैलती रहती है।

भोला पाड़े के पास रुपया-पैसा जो भी था,धीरे-धीरे सब खत्म हो गया।तंगी की हालत में कोई पूछने वाला नहीं था।जीतन और छोटी बहू ने मुँह ही नहीं मोड़े वल्कि लड़ाई-झगड़ा भी शुरु कर दिया।देवकी की स्थिति पहले से ही कोई विशेष नहीं थी,अब और बदतर हो गयी।कभी भी उसे जेठानी का दर्जा और हक नहीं मिला।वह तो घर भर की दायी रही,एक ऐसी नौकरानी जिसे घर का पूरा काम करना था,वह भी मुँह बंद करके।

सुकवा उगने के साथ ही वह बिस्तर छोड़ देती थी।घर से बाहर ईनार है।मुँह अंधेरे नहा-धो लेती।मटका-मटकी,गगरा-कुड़ा सब भर लेती।बैलों के लिए कुट्टी काटती और उनका सानी-पानी करती।सबके लिए भोजन बनाती,खिलाती-पिलाती।बीच-बीच में भोला को देख लेती।उनके उठने पर मुँह धुलवाती,कुल्ला-कल्लाली करवाती,दवा पिलाती।अंत में बचा-खुचा जो भी होता,पेट में डाल लोटा भर पानी पी लेती।

जबकि यह सब इस क्षेत्र की परम्परा के विरूद्ध था।ब्राह्मण और क्षत्रिय घर की बहुएँ बाहरी काम नहीं करती।परिवार की बदनामी होती है।पानी भरना,कुट्टी काटना,गाय-बैलों को सानी-पानी देना औरतों का काम नहीं होता।देवकी को भी भला यह काम क्यों करना पड़ता?उसके पति के कमाये पैसे पर ही पूरा परिवार ऐश करता है।पर नहीं,यह तो ठसक थी,एक लड़ाई,एक योजनाबद्ध साजिश।देवकी को शिकार होना था। जीतन और छोटी बहू के दाँव-पेंच उसे पहले समझ में नहीं आते थे।जब समझ में आये तो काफी देर हो चुकी थी।

लम्बी बीमारी के चलते भोला पाड़े की नौकरी छूट गयी।उनके शरीर की हालत ऐसी हो गयी कि उनसे अपना काम भी नहीं हो पा रहा था।देवकी को आगे-पीछे अंधेरा ही अंधेरा दिखता था।कोई पतली,हल्की सी भी प्रकाश की रेखा नहीं दिख रही थी।विश्वास के सारे गढ़ ढह गये।मन में पीड़ा और सन्ताप भरता गया।

उधर जीतन पाड़े का अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था।दुख यह था कि इतना होने के बावजूद भोला पाड़े को कुछ भी दिख नहीं रहा था।

"अब मुझसे सहा नहीं जा रहा है,"लाचार होकर एक दिन देवकी ने कहा।

भोला पाड़े अवाक् हो गये।"बात क्या है?" उन्होंने पूछा।

"एक हो तब बताऊँ,यहाँ तो सैकड़ो,हजारों हैं।यहाँ जिन्दा आदमी मर जाय।जाने कैसी दवा हो रही है कि आपकी हालत बिगड़ती ही जा रही है।मैं तो कहती हूँ कि मेरे मायके चल चलिये,जल्दी स्वस्थ हो जायेंगे।"

भोला ने गौर से देवकी के चेहरे को देखा,"क्या तुम्हें जीतन पर विश्वास नहीं है?"

"विश्वास करने लायक बचा ही क्या है?" देवकी ने गहरी सांस ली।

" भौजी निकलोगी भी रंगमहल से?"बाहर से जीतन ने पुकारा।

"सुन लो ध्यान से।तुम्हारा छोटा भाई है।मेरे लिए कोई नयी बात नहीं है,रोज ही सुनती हूँ।अब तुम भी सुनो।"

"बुलाओ जीतन को," भोला पाड़े कराह उठे।

"भौजी की रसभरी बातों से मन नहीं भरा कि मुझको बुला रहे हो।कौन सी राज की बात बतानी है?दवा-दारु में पैसा फुँकते-फुँकते हाथ खाली हो गया है।समझ में नहीं आता कि क्या करुँ?अब का हाड़-गोड़ बेचूँ?"

भोला कुछ कहते,इससे पहले ही जीतन पाड़े बाहर निकल गये।

"जीतन-जीतन..!"भोला ने अपनी बेजान सी आवाज में रोकना चाहा।

"हिया जुड़ा गया ?मेरी बातों का विश्वास ही नहीं होता,"देवकी ने दुख और व्यंग्य से कहा।

बाहर जाकर जीतन ने देवकी का भरा हुआ सारा पानी उड़ेल कर बहा दिया और चिल्लाने लगे।शोर सुनकर देवकी बाहर निकली।

"मैं पूछता हूँ आज पानी क्यों नहीं भरा गया?"

देवकी के मन में आया कि कहे-का तुम्हारे जांगर में कीड़े पड़े हैं,सड़ गये हैं हाथ-पाँव?का मैं ही नौकरानी बनी हूँ सबकी? लेकिन जहर का घूँट वह पी गयी और बोली,"गगरा में पानी तो है।"

"कहाँ है?"जीतन ने घड़ा उठाया और देवकी के सामने ही जमीन पर पटक दिया।घड़ा फूट गया और सारा पानी पूरे आंगन में फैल गया।

देवकी कोठरी में लौट आयी और रोने लगी।

"मत रो देवकी,"असहाय और कातर स्वर में भोला ने कहा।

"कैसे नहीं रोऊँ?अब बचा ही क्या है?समय रहते जब तुमने ही नहीं चेता।"

दवा लेकर जीतन पाड़े कोठरी में पहुँचे।बोले,"डाक्टर ने दूध,फल आदि खाने को कहा है।मेरा हाथ खाली हो चुका है।भौजी अब तुम्हीं कुछ सोचो।"

जीतन की मुखमुद्रा देख उसे बड़ी निराशा हुई।उसने कातरता के साथ कहा,"मैं क्या करुँ बबुआ जी?मेरे पास क्या है?"

छोटी बहू पीछे खड़ी थी।उसने कहा,"सारा बनाव-श्रृंगार पति पर ही तो है दीदी।जब उन्हीं की जान आफत में है तो कपड़ा-लत्ता,गहना किस काम का?"

"मुझे तो इसका ध्यान ही नहीं था।सच,किस काम आयेंगे ये जेवर-जेवरात,"देवकी की पुतलियों में खुशी की एक परत उभरी।उसने अपने सारे गहने उतार डाले।

"नहीं नहीं," भोला ने मना करना चाहा।जीतन ने उनकी बात अनसुनी की और बोला,"गिरवी रख देता हूँ भौजी,बाद में छुड़ा लिया जायेगा।"

भोला अशक्त हो गये थे।उनसे उठा नहीं जा रहा था।पहले हल्के सहारे से काम चल रहा था।अब स्थिति बदल चुकी है।तन के साथ-साथ मन भी कमजोर हो गया है।उनसे उठा नहीं गया तो उन्होंने जीतन को पुकारा।देवकी दूसरी कोठरी में काम कर रही थी,आवाज सुनकर हड़बड़ाकर आयी।भोला गिरे पड़े थे। उसका कलेजा धड़क उठा,"हे भगवान अब क्या हुआ?"उसने जल्दी-जल्दी उठाने की कोशिश की।

"अजी सुनते हो," किवाड़ की ओट से छोटी बहू ने जीतन को पुकारा।

"क्या है?"

"लगता है भाई साहब....दीदी हल्ला कर रही है।जल्दी आओ।"

"हड़बड़ाओ मत,"जीतन ने छोटी बहू को मीठी घुड़की दी।

छोटी बहू ने स्मित मुस्कान के साथ कहा,"धीरे बोलो,कोई सुन लेगा।"

"अच्छा-अच्छा,"जीतन पाड़े ने चिलम की राख झाड़ी।साफी धोये।इत्मिनान से टहलते हुए भीतर पहुँचे,"का हुआ भौजी...काहे हल्ला कर रही हो?"

देवकी जल-भुन गयी इस उपरी आछो-आछो को सुनकर।गाँव के भी कुछ लोग गये।नाना मुँह,नाना बातें।किसी ने रोग को कोसा,"ना जाने कैसी व्याधि है कि ठीक ही नहीं हो रही।?किसी का ध्यान भोला के शरीर पर गया,"सूखकर कांटा हो गये हैं।"किसी ने जीतन की बदनियति का पर्दाफाश करते हुए कहा,"दवा-दारू ठीक से करावे तब ...यह तो चाहता ही है कि भाई मर-बिला जाय।लखरांव का राज मिलेगा और जीवन भर खटने के लिए नौकरानी भी।"

"सब यही करवा रही है।नाच नचाकर छोड़ दिया है इसने,"जीतन पाड़े ने अपना गुस्सा देवकी पर निकाला।

"उसने क्या किया है तेरा?"गाँव की किसी बुढ़िया ने झिड़का।

"उसी से पूछो ना काकी।इस बुढ़ारी में भैया दौड़ेंगे कि खेलेंगे?दिनभर किवाड़ लगाये रहती है।लोग देखने आते हैं और लौट जाते हैं।ना लाज,ना शरम।भला ऐसी हालत में यह शोभा देता है?"

इस तरह लांछित होकर देवकी आग-बबूला हो उठी,फिर भी उसने कुछ नहीं कहा।

प्रतिक्रिया स्वरूप उसने पानी भरना,कुट्टी काटना और बैलों को सानी-पानी करना छोड़ दिया।जीतन पाड़े की आँखें क्रोध से लाल हो उठी।खूब हो-हल्ला,कुहराम मचा। बदजबान बोली में उसने देवकी को खूब बुरा-भला कहा।देवकी ने जवाब देना चाहा तो भोला पाड़े ने रोक दिया।एक ओर पति की बीमारी,गरीबी,उपर से दुर्व्यवहार,देवकी का मन आर्त हो फुंफकार उठा।

नदिया भर चुकी थी।बदबू फैले इससे पहले ही उसने सोचा कि मलमूत्र बाहर फेंक आये।ज्योंही वह बाहर निकली,जीतन ने उसका झोंटा पकड़कर खींच लिया।एक "आह" की पुकार उभरी और नदिया लिये-दिये देवकी गिर पड़ी।नदिया फूट गयी।सारा मल-मूत्र फैल गया।

भोला पाड़े को लगा कि बाहर कुछ हुआ है।उन्हें चिन्ता हुई,"अरे क्या हुआ?क्या हो रहा है?कोई बताता क्यों नहीं?"हर जोरदार आवाज पर वे सिहर उठते थे।जीतन ने लसार-लसार कर देवकी को खूब पीटा और गालियाँ दीं।अंत में देवकी बेदम,बेहोश होकर गिर पड़ी।

"बड़े बेरहम हो जी! भला ऐसा किया जाता है कहीं,"छोटी बहू ने जीतन को दूसरी ओर धसोरा।दौड़कर पानी लायी और लगी देवकी का मुँह धोने।धीरे-धीरे जब उसकी चेतना वापस आयी और अपने आप को ऐसी दशा में देखा तो फफक फफक कर रो पड़ी।

"मत रो दीदी,"छोटी बहू ने पुचकारा।

भोला से रहा नहीं गया।किसी तरह उठ खड़े हुए और पाँव घिसटते हुए दरवाजा तक पहुँचे।बाहर का दृश्य देखकर उनकी आँखें खुली कि खुली रह गयी।पसीना चुह-चुहा आया पूरे शरीर पर।भयंकर पीड़ा की अनुभूति हुई और वे वहीं भहरा कर गिर पड़े।देवकी ने देखा तो दौड़ पड़ी।ना जाने कैसे ताकत गयी उसके बेदम शरीर में।उसने भोला को खाट पर सुलाया।मार खाने से तन-बदन में बेशूमार दर्द होने लगा।जगह-जगह से शरीर फूट गया था और खून बहने लगा।छोटी बहू ने फूटे स्थानों पर हल्दी का लेप लगा दिया।उस रात देवकी से खाया नहीं गया।तन और मन दोनो पीड़ित था।वह रात भर रोती-सिसकती रही।

आकाश के पूर्वी छोर पर लालिमा उभरी।उसने डोल उठाया।जीतन पाड़े ने डोल उसके हाथ से छिन लिया,"अब तुम्हें कुछ भी करने की जरुरत नहीं है।तुम्हारा छुआ पानी तक नही पीना हमे।तुम अपनी खिचड़ी अलग पकाओ।"

देवकी फक्क रह गयी।हाथ में एक ढेला तक नहीं और बीमार मरणासन्न पति।अब क्या होगा?संयोग से रामपुर वाले चचेरे भाई लखन पाड़े गये।उनकी उपस्थिति में ही घर का बँटवारा हुआ।सांझ तक देवकी के कंठ में एक बूंद पानी तक नहीं गया।घर की दशा देख भोला पाड़े का मन कराह उठा।उस पल देवकी और भोला को बहुत पीड़ा हुई जब लखन ने जीतन का पक्ष लिया और कहा,"कौन दो दो रोगियों की देखभाल करे..यह तो जीतन भैया हैं कि......."बीच में ही भोला पाड़े ने रोक दिया,"बस करो लखन,बस करो।अब कुछ भी मत कहो।"शरीर ऐसा नहीं था कि इस तरह के आवेश को झेल पाता।क्षण भर के लिए वे चेतना-शून्य हो गये।चेतना लौटी तो उन्होंने देवकी से कहा,"जीतन और लखन से मेरे मुँह में आग मत दिलवाना।"

"ऐसा मत कहिये,"देवकी ने उनके मुँह पर हाथ रखा।मन में सन्ताप था ही,भोला की इन बातों से वह काँप उठी।भीतर दहशत समा गयी-एक ओर भयंकर बीमारी और दूसरी ओर अपना ही पहाड़ सा जीवन।वैधव्य की कल्पना करके वह सिहर उठी,"कहाँ जाऊँगी..कौन पूछेगा मुझे?लड़की का दिया खाने पर नरक मिलेगा।"

वह तो माया बहुत अच्छी है,सुखी घर में है।चाहती भी है कि हम लोग उसके साथ रहें।जीते-जी उसके बाबू ऐसा नहीं चाहते।मन में डर समाया हुआ है।पूछने पर कहते हैं,"ना देवकी! एक तो ना जाने किस जन्म का पाप है कि दुख भोगना पड़ रहा है।अब बेटी का अन्न....ना देवकी ना।"

देवकी लाचार है।यद्यपि ऐसी ही भावना कुछ-कुछ उसकी भी है परन्तु यहाँ की नारकीय जिन्दगी से ऊब गयी है।भोला को मनाना चाहती है।दूसरा कोई उपाय सुझता नहीं।

"ना देवकी!जन्म-भूमि में मरने की अपनी मर्यादा है,इसका अलग सुख है।मुझे यहाँ की हवा-पानी से प्यार है।मेरा प्राण यहीं निकले तो ठीक है।"

देवकी मन ही मन सोचती है,"यह हठ किस काम का?मील दो मील इधर-उधर हो जाने से यदि स्वास्थ्य सुधर जाये तो वही अच्छा है! कि इस दशा में पड़े रहना जहाँ सहयोग है, शान्ति है और ना कोई सहानुभूति।"

देवकी को अपने उपर भी गुस्सा आया।उसने भी तो कभी मुँह नहीं खोला।लोगों की सेवा में जुटी रही।कभी अपने अधिकारो की चिन्ता नहीं की।भले ही बाद में आयी,हूँ तो बड़े भाई ही की पत्नी न।आखिर क्या कारण है कि बड़ी होकर भी बड़ी नहीं बन सकी। कभी ऐसी चाह भी तो नही रही मेरी।इन लोगो ने भी कभी मौका नहीं दिया और ना ही वह मान-सम्मान ही।छोटी बहू ने हमेशा राज किया है।सास-ससुर का प्यार और विश्वास उसे ही मिला।गाँव में आना-जाना,पंइचा-नेग लेना-देना सब उसने किया।वह तो घूँघट में ही रह गयी,सबकी जूठन खाने और मरते रहने को मजबूर होकर।

दाँय-मिसकर फसल जब घर में आयी तो देवकी सन्न रह गयी।मुश्किलन दस-बारह मन अनाज था।पहले तो पचास-साठ मन अनाज होता था।इस साल तो फसल भी अच्छी हुई थी।पूछने पर जीतन ने जवाब दे दिया,"अगली बुआई से अपना हिस्सा आप सम्हालो।"

भोला की दशा दिन-प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही थी।देवकी उन्हें बांहों का सहारा देकर बाहर ले जाती तो जीतन और उसके गँजेड़ी साथी ठहाका लगाकर हँसते।खून का घूँट पीकर रह जाती।उसने सोचा कि गहने बेचकर एक गाय खरीद ले।उसने जीतन से पूछा तो वह हँस पड़ा,'बड़ी नादान हो भौजी! अभी तक क्या बचे हैं गहने,बीमारी में सब स्वाहा हो गया।"

देवकी खूब रोई-घोर अत्याचार और बेईमानी है।उसे अपना पूरा अस्तित्व घूमता-सा लगा।पग-पग पर हारना और हर पल रोना-यही बच गया है उसके जीवन में।मन ही मन उसने कहा,'रसेगी नहीं यह बेईमानी।"

माया चुकी थी और लाख मना करने पर भी घर का सारा खर्च वही सम्हाल रही थी।भोला का मन दुखी था।उन्हें इस बात की पीड़ा थी कि अपने पीछे देवकी को अनाथ छोड़े जा रहे हैं।

आखिर अंत घड़ी ही गयी।जूझता,लड़ता भोला पाड़े का जर्जर शरीर हार गया।मृत्यु जीत गयी।बिलख उठी देवकी।माँ-बेटी के अलावा रोने वाला भी कोई नहीं था।

रामपुर से दोनो चचेरे भाई गये थे।समस्या थी-कफन की,मूँज की और बांस की।समस्या उस समय तत्काल होने वाले अन्य खर्चो की भी थी।देवकी लाचार थी। इसमें बेटी का पैसा लग नहीं सकता था।

"रोती ही रहोगी कि कुछ करोगी,"गाँव वालों ने देवकी को समझाना चाहा,"अब रोने से क्या लाभ?जो होना था,हो गया।देर होगी तो लाश गंध करने लगेगी।"

लोगों ने जीतन से पूछा,लखन की ओर देखा।जीतन पाड़े उठकर चल दिये और लखन ने कोई जवाब नहीं दिया। देवकी ने गाँव वालों के आगे हाथ पसारा,"खेत का कुछ हिस्सा रेहन रख दूँगी,मुझे श्राद्ध भर पैसा दे दीजिये।"लोगों में खुसुर-पुसुर होने लगी।दबी जबान जीतन और लखन की शिकायतें भी।जीतन ने कहा,"रेहन के पैसे का इंतजाम मैं करता हूँ।"घंटा भर बाद जब वे लौटे तो उनके हाथ में दो हजार रुपये थे।हलवाहा के नाम उन्होंने दो बीघा खेत के रेहन का कागज बनवा दिया।बाद में लोगोंने कहा कि पैसा खुद जीतन ने ही दिया था।लोग काम में जुट गये।

देवकी को पिछली सारी बातें याद आने लगीं और याद आई भोला की कही हुई बातें भी। उसके आँसू सुख गये। उसने स्पष्ट रुप से हिदायत दी कि उनको मुखाग्नि जीतन और लखन पाड़े नहीं देंगे।श्रीधर बबुआ जी से प्रार्थना है कि वे अपने भाई की मनोकामना पूरी करें।अर्थी उठी तो देवकी बिलख पड़ी।

मुखाग्नि श्रीधर पाड़े ने ही दिया। लखन और जीतन श्मशान तक भी नहीं गये। काम-क्रिया सम्पन्न हुई।

खेत-बारी का बँटवारा हुआ तो उसमें भी जीतन ने बेईमानी की। देवकी ने मुकदमा दायर कर दिया। पेंशन का कागज भी गया।देवकी ने भगवान को बार-बार प्रणाम किया और बोली,"अब गुजारा हो जायेगा।"

"चल माँ! बैठे-बैठे सोच क्या रही है?" माया ने जोर देकर कहा।

"नहीं, कुछ नहीं बेटी," देवकी झटके से उठ खड़ी हुई।बेटी के साथ जाते हुए देवकी ने मन ही मन भोला को याद किया और हाथ जोड़ते हुए बोली,"क्षमा करना।"

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परम पूज्य सचिन बाबा का जाना

21 सितम्बर 2018
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जन्म जन्मांतर के बैर के लिए प्रार्थना

23 सितम्बर 2018
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जन्म-जन्मान्तर के वैर के लिए क्षमा और प्रार्थना विजय कुमार तिवारी अजीब सी उहापोह है जिन्दगी में। सुख भी है,शान्ति भी है और सभी का सहयोग भी। फिर भी लगता है जैसे कटघरे में खड़ा हूँ।घर पुराना और जर्जर है। कितना भी मरम्मत करवाइये,कुछ उघरा ही दिखता है। इधर जोड़िये तो उधर टूटता है। मुझे इससे कोई फर्क नहीं

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आत्मा और पुनर्जन्म

23 सितम्बर 2018
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आत्मा और पुनर्जन्मविजय कुमार तिवारी यह संसार मरणधर्मा है। जिसने जन्म लिया है,उसे एक न एक दिन मरना होगा। मृत्यु से कोई भी बच नहीं सकता। इसीलिए हर प्राणी मृत्यु से भयभीत रहता है। हमारे धर्मग्रन्थों में सौ वर्षो तक जीने की कामना की गयी है-जीवेम शरदः शतम। ईशोपनिषद में कहा गया है कि अपना कर्म करते हुए मन

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आत्मा से आत्मा का मिलान

23 सितम्बर 2018
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आत्मा से आत्मा का मिलनविजय कुमार तिवारीभोर में जागने के बाद घर का दरवाजा खोल देना चाहिए। ऐसी धारणा परम्परा से चली आ रही है और हम सभी ऐसा करते हैं। मान्यता है कि भोर-भोर में देव-शक्तियाँ भ्रमण करती हैं और सभी के घरों में सुख-ऐश्वर्य दे जाती हैं। कभी-कभी देवात्मायें नाना र

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आँखों के मोती

26 सितम्बर 2018
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कविता-20/07/1985आँखों के मोतीविजय कुमार तिवारीजब भी घुम-घाम कर लौटता हूँ,थक-थक कर चूर होता हूँ,निढ़ाल सा गिर पड़ता हूँ विस्तर में।तब वह दया भरी दृष्टि से निहारती है मुझेगतिशील हो उठता है उसका अस्तित्वऔर जागने लगता है उसका प्रेम।पढ़ता हूँ उसका चेहरा, जैसे वात्सल्य से पूर्ण,स्नेहिल होती,फेरने लगती है

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उसने कभी निराश नही किया

26 सितम्बर 2018
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कहानीउसने कभी निराश नहीं किया-4विजय कुमार तिवारीप्रेम में जादू होता है और कोई खींचा चला जाता है। सौम्या को महसूस हो रहा है,यदि आज प्रवर इतनी मेहनत नहीं करता तो शायद कुछ भी नहीं होता। सब किये धरे पर पानी फिर जाता। भीतर से प्रेम उमड़ने लगा। उसने खूब मन से खाना बनाया। प्रवर की थकान कम नहीं हुई थी परन्

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उसने कभी निराश नही किया -3

26 सितम्बर 2018
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कहानीउसने कभी निराश नही किया-3विजय कुमार तिवारीजिस प्रोफेसर के पथ-प्रदर्शन में शोधकार्य चल रहा था,वे बहुत ही अच्छे इंसान के साथ-साथ देश के मूर्धन्य विद्वानों में से एक थे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की निर्धारित तिथि के पूर्व शोध का प्रारुप विश्वविद्यालय मे जमा करना था। मात्र तीन दिन बचे थे।विभागाध्य

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उसने कभी निराश नही किया -2

26 सितम्बर 2018
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कहानीउसने कभी निराश नहीं किया-2विजय कुमार तिवारीसौम्या शरीर से कमजोर थी परन्तु मन से बहुत मजबूत और उत्साहित। प्रवर जानता था कि ऐसे में बहुत सावधानी की जरुरत है। जरा सी भी लापरवाही परेशानी में डाल सकती है। पहले सौम्या ने अपनी अधूरी पढ़ायी पूरी की और मेहनत से आगे की तैयारी

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उसने कभी निराश नही किया -1

26 सितम्बर 2018
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कहानी उसने कभी निराश नहीं किया-1विजय कुमार तिवारी"अब मैं कभी भी ईश्वर को परखना नहीं चाहता और ना ही कुछ माँगना चाहता हूँ। ऐसा नहीं है कि मैंने पहले कभी याचना नहीं की है और परखने की हिम्मत भी। हर बार मैं बौना साबित हुआ हूँ और हर बार उसने मुझे निहाल किया है।दावे से कहता हूँ-गिरते हम हैं,हम पतित होते है

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तुम खुश हो

28 सितम्बर 2018
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कवितातुम खुश होविजय कुमार तिवारीआदिम काल में तुम्हीं शिकार करती थी,भालुओं का,हिंस्र जानवरों का और कबीले के पुरुषों का,बच्चों से वात्सल्य और जवान होती लड़कियों से हास-परिहासतुम्हारी इंसानियत के पहलू थे। तुम्हारी सत्ता के अधीन, पुरुष ललचाई निगाहों से देखता था,तुम्हारे फेंके गये टुकड़ों पर जिन्दा थाऔर

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सच्चा प्रेमी

9 नवम्बर 2018
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कवितासच्चा प्रेमीविजय कुमार तिवारीतुमने तोड़ डाले सारे रिश्तेऔर फेंक दिया लावारिश राहों में। तुमने मुझे दोषी कहा,धोखेबाज और ना जाने क्या-क्या?तुम्हारे मधुर शब्द कितने खोखले निकले,दूर तक चलने की कसमें कितनी बेमतलबऔर तुम्हारी कोशिशें किसी मायाजाल सी। मुझे कुछ भी नहीं कहना,कोई शिकवा नहीं,कोई शिकायत नही

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जीवन एक दर्शन है

15 नवम्बर 2018
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जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव आते हैं जिसमें इंसान अपने आप को निखारता है और फिर एक पक्का खिलाड़ी बनाता है। हर इंसान हर फील्ड में चैम्पियन नहीं बन सकता है और हर किसी की अपनी-अनपी स्किल्स होती है जिसके हिसाब से व्यक्ति उसमें आगे बढ़ता है। य

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उसने भी प्यार किया है

27 नवम्बर 2018
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देवरहा बाबा के बहाने

1 दिसम्बर 2018
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देवरहा बाबा के बहानेविजय कुमार तिवारीजब हम एकान्त में होते हैं तो हमारे सहयात्री होते हैं-आसपास के पेड़-पौधे। वे लोग बहुत भाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसी अनुभूति होती है। मेरा दुर्भाग्य रहा कि मुझे पूज्य देवरहा बाबा जी का दर्शन करने का सुअवसर नहीं मिला। साथ ही सौभाग्य है कि आज मैं उन्हें श्रद्धा भाव से या

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कौन सा पतझड़ मिले

2 दिसम्बर 2018
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गीत कौन सा पतझड़ मिले? विजय कुमार तिवारी और गा लूँ जिन्दगी की धून पर, कल न जाने प्रीति को मंजिल मिले? दर्द में उत्साह लेकर बढ़ रहा था रात-दिन, आह में संगीत संचय कर रहा था रात-दिन। आज सावन कह रहा है बार-बार, क्यों लिया बंधन स्व-मन से रात-दिन? सोचता हूँ चुम लूँ वह पंखुड़ी, कल न जाने कौन सी बेकल खिल

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एक प्यार ऐसा भी

11 दिसम्बर 2018
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उसका चाँद

12 दिसम्बर 2018
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कहानीउसका चाँदविजय कुमार तिवारीबचपन में चाँद देखकर खुश होता था और अपलक निहारा करता था। चाँद को भी पता था कि धरती का कोई प्राणी उसे प्यार करता है। दादी ने जगा दिया था प्रेम उसके दिल में, चाँद के लिए। बड़ी बेबसी से रातें गुजरतीं जब आसमान में चाँद नहीं होता। वैसे तो दादी नित्य ही चाँद को दूध-भात के कटो

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अन्तर्मन की व्यथा

15 दिसम्बर 2018
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कहानीअन्तर्मन की व्यथाविजय कुमार तिवारी"है ना विचित्र बात?"आनन्द मन ही मन मुस्कराया," अब भला क्या तुक है इस तरह जीवन के बिगत गुजरे सालों में झाँकने का और सोयी पड़ी भावनाओं को कुरेदने का?अब तो जो होना था, हो चुका,जैसे जीना था,जी चुका। ऐसा भी तो नही हैं कि उसका बिगत जीवन बह

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माँ-बेटी

16 दिसम्बर 2018
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कहानीमाँ-बेटीविजय कुमार तिवारीउम्र ढल रही है और अभी तक मेरी शादी नहीं हुई है।शादी नहीं होने का दुख मुझे नहीं है।अम्मा की उदासी मेरा दुख बढ़ा देती है।कभी-कभी लगता है कि उसके सारे दुखों का कारण मैं ही हूँ।भीतर बहुत दर्द उभरता है।तब दर्द और बढ़ जाता है जब अम्मा कहीं दूर से म

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प्यार के बहुतेरे रंग

17 दिसम्बर 2018
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कविताप्यार के बहुतेरे रंगविजय कुमार तिवारीयाद करो मैंने पूछा था-तुम्हारी कुड़माई हो गयी?यह एक स्वाभाविक प्रश्न था,तुमने बुरा मान लिया, मिटा डाली जुड़ने की सारी सम्भावनायेंऔर तोड़ डाले सारे सम्बन्ध। प्यार की पनपती भावनायें वासना की ओर ही नहीं जाती,वे जाती हैं-भाईयों की सुरक्षा में,पिता के दुलार में,व

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ट्रेन यात्रा

18 दिसम्बर 2018
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कहानीट्रेन यात्राविजय कुमार तिवारी(यह कहानी उन चार लड़कियों को समर्पित है जो ट्रेन में छपरा से चली थीं और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जा रही थीं।वे वहीं की छात्रायें थीं।)"खड़े क्यों हैं,बैठ जाईये,"एक लड़की ने जगह बनाते हुए कहा।थोड़े संकोच के साथ भरत बैठ गया।"आराम से बैठिय

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स्नेह निर्झर

3 जनवरी 2019
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कवितास्नेह निर्झरविजय कुमार तिवारीऔर ठहरें,चाहता हूँ, चाँदनी रात में,नदी की रेत पर।कसमसाकर उमड़ पड़ती है नदी,उमड़ता है गगन मेरे साथ-साथ। पूर्णिमा की रात का है शुभारम्भ,हवा शीतल,सुगन्धित।निकल आया चाँद नभ में,पसर रही है चाँदनी मेरे आसपास,सिमट रही है पहलू में।धूमिल छवि ले रही आकर,सहमी,संकुचित लिये वयभा

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बूढ़ा आदमी

6 जनवरी 2019
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कविता(मौलिक)बूढ़ा आदमीविजय कुमार तिवारीथक कर हार जाता है,बेबस हो जाता है,लाचारजबकि जबान चलती रहती है,मन भागता रहता है,कटु हो उठता है वह,और जब हर पकड़ ढ़ीली पड़ जाती है,कुछ न कर पाने पर तड़पता है बूढ़ा आदमी। कितना भयानक है बूढ़ा हो जाना,बूढ़ा होने के पहले,क्या तुमने देखा है कभी-तीस साल की उम्र को बूढ

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देश बचाना

13 जनवरी 2019
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कवितादेश बचानाविजय कुमार तिवारीस्वीकार करुँ वह आमन्त्रणऔर बसा लूँ किसी की मधुर छबि,डोलता फिरुँ, गिरि-कानन,जन-जंगल, रात-रातभर जागूँ,छेडूँ विरह-तानरचूँ कुछ प्रेम-गीत,बसन्त के राग। या अपनी तरुणाई करुँ समर्पित,लगा दूँ देश-हित अपना सर्वस्व,उठा लूँ लड़ने के औजारचल पड़ूँ बचाने देश,बढ़ाने तिरंगें की शान। कु

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विम्ब का ये प्यार

15 जनवरी 2019
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गीत(09/05/1978)विम्ब का ये प्यारविजय कुमार तिवारीकौन दूर से रहा निहार?दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार, विम्ब का ये प्यार। पोखरी से फिसल चले हैं पाँव ये,जिन्दगी की कैसी है ढलाँव ये। आज हाथ केवल है हार,दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,विम्ब का ये प्यार। धड़कने सिसकाव का सहारा ले,मिट रही बढ़त यहाँ किनारा ले। अदाय

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बचपन की यादें

18 जनवरी 2019
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कहानीबचपन की यादेंविजय कुमार तिवारीये बात तब की है जब हमारे लिए चाँद-सितारों का इतना ही मतलब था कि उन्हें देखकर हम खुश होते थे।अब धरती से जुड़ने का समय आ गया था और हम खेत-खलिहान जाने लगे थे।धीरे-धीरे समझने लगे थे कि हमारी दुनिया बँटी हुई है और खेत-बगीचे सब के बहुत से मालिक हैं।यह मेरा बगीचा है,मेरी

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अन्तर्यात्रा का रहस्य

22 जनवरी 2019
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अन्तर्यात्रा का रहस्यविजय कुमार तिवारीकर सको तो प्रेम करो।यही एक मार्ग है जिससे हमारा संसार भी सुव्यवस्थित होता है और परमार्थ भी।संसार के सारे झमेले रहेंगे।हमें स्वयं उससे निकलने का तरीका खोजना होगा।किसी का दिल हम भी दुखाये होंगे और कोई हमारा।हम तब उतना सावधान नहीं होते जब हम किसी के दुखी होने का का

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गुरु और चेला

28 जनवरी 2019
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व्यंग्यगुरु और चेलाविजय कुमार तिवारीबाबा गुरुचरन दास की झोपड़ी में सदा की तरह उजाला है जबकि सारा गाँव अंधकार में डूबा रहता है।पोखरी के बगल में पे़ड के पास उनकी झोपड़ी सदा राम-नाम की गूँज से गुंजित रहती है।बाबा ने कभी इच्छा नहीं की,नहीं तो वहाँ अब तक विशाल मन्दिर बन चुका ह

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स्त्री-पुरुष

29 जनवरी 2019
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कहानीस्त्री-पुरुषविजय कुमार तिवारीइसके पीछे कुछ कहानियाँ हैं जिन्हें महिलाओं ने लिखा है और खूब प्रसिद्धी बटोर रही हैं।कहानियाँ तो अपनी जगह हैं,परन्तु उनपर आयीं टिप्पणियाँ रोचक कम, दिल जलाने लगती हैं।लगता है-यह पुरुषों के प्रति अन्याय और विद्रोह है।रहना,पलना और जीना दोनो को साथ-साथ ही है।दोनो के भीतर

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आतंक

4 फरवरी 2019
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कविता(मौलिक)आतंकविजय कुमार तिवारीचलो, मुझे उस मोड़ तक छोड़ दो,सांझ होने को है,अंधियारे जाया नहीं जायेगा। न हो तो बीच वाले मन्दिर से लौट आना,या उस मस्जिद से,जहाँ सड़क पार चर्च है।अस्पताल तक तो पहुँचा ही देनाचला जाऊँगा उससे आगे। ऐसा नहीं कि हिन्दुओं से डरता हूँ,मुसलमानों से भी नहीं डरता,सिखों या किसी

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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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पुरानी यादे

7 फरवरी 2019
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पुरानी यादेंविजय कुमार तिवारी1983 में 4 सितम्बर को लिखा-डायरी मेरे हाथ में है और कुछ लिखने का मन हो रहा है। आज का दिन लगभग अच्छा ही गुजरा है।ऐसी बहुत सी बातें हैं जो मुझे खुश भी करना चाहती हैं और कुछ त्रस्त भी।जब भी हमारी सक्रियता कम होगी,हम चौकन्ना नहीं होंगे तो निश्चित मानिये-हमारी हानि होगी।जब हम

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प्रेम का मौसम

9 फरवरी 2019
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प्रेम का मौसमविजय कुमार तिवारीप्रेम का मौसम चल रहा है और बहुत से युवा,वयस्क और स्वयं को जवान मानने वाले वृद्ध खूब मस्ती में हैं।इनकी व्यस्तता देखते बनती है और इनकी दुनिया में खूब भाग-दौड़ है।प्रयास यही है कि कुछ छूट न जाय और दिल के भीतर की बातें सही ढंग से उस दिल तक पहुँच

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चुनाव 2019

10 फरवरी 2019
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चुनाव-2019विजय कुमार तिवारीहम वोट देने वाले हैं।वोट देना हमारा अधिकार है और कर्तव्य भी।यह बहुत संयम, धैर्य और विचार का विषय है।आज से पहले शायद कभी भी हमने इस तरह नहीं सोचा।चुनाव आयोग और हमारे संविधान ने इस विषय में बहुत से दिशा-निर्देश जारी किये हैं।हम सभी सामान्य वोटर को बहुत कुछ पता भी नहीं है।कई

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आत्म-बोध

15 फरवरी 2019
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पहली मुलाक़ात

21 फरवरी 2019
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कवितापहली मुलाकातविजय कुमार तिवारीयह हठ था या जीवन का कोई विराट दर्शन,या मुकुलित मन की चंचल हलचल?रवि की सुनहरी किरणें जागी,बहा मलय का मधुर मस्त सा झोंका,हुई सुवासित डाली डाली, जागी कोई मधुर कल्पना।शशि लौट चुका थानिज चन्द्रिका-पंख समेटे। उमग रहे थे भौरे फूलों कलियों में,मधुर सुनहले आलिंगन की चाह संजो

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शादी की पीड़ा

23 फरवरी 2019
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प्यार ही डसने लगा

28 फरवरी 2019
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प्यार ही डंसने लगाविजय कुमार तिवारीतुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हो गये अपने पराये,आईना छलने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हर हवा तूफान सी,झकझोर देती जिन्दगी,धुंध में खोया रहा,पतवार भी डुबने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?चाँद तारे छुप गये हैं,दर्द के शैलाब में,ढल गया दिल का उजाला,

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बदलते हुए लोग

1 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिये

5 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिएविजय कुमार तिवारीबच्चा जैसे ही अपने आसपास को देखना शुरु करता है उसके मन में प्रश्न कुलबुलाने लगते हैं।वह जानना चाहता है,समझना चाहता है और पूछना चाहता है।जब तक बोलने नहीं सीख जाता,व्यक्त करने नहीं सीख जाता,उसके प्रश्न संकेतों में उभरते हैं।उसे यह धरती,यह आकाश,य

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विज्ञापन

22 मार्च 2019
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कविताविज्ञापनविजय कुमार तिवारीजागते ही खोजती है अखबार,झुँझलाती है-कि जल्दी क्यों नहीं दे जाता अखबार। अखबार में खोजती है-नौकरियों के विज्ञापन। पतली-पतली अंगुलियों से,एक -एक शब्द को छूती हुई,हर पंक्ति पर दृष्टि जमाये,पहुँच जाती है अंतिम शब्द तक। गहरा निःश्वांस छोड़ती है

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महत् चिंतन

4 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपाय

5 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपायविजय कुमार तिवारीसंसार में सभी सुख चाहते हैं,दुख कोई नहीं चाहता,जबकि कोई सुखी नहीं है, सभी दुखी हैं।कबीर दास जी ने कहा है कि सारा संसार दुख से भरा है।मेरा मानना है कि हमें सत्य दिखता नहीं।हम असत्य देखने के आदी हो गये हैं।हम झूठ देखते हैं और अपनी सुविधा से

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मि. ख़ का शहर

9 अप्रैल 2019
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प्रेम के भूख

5 सितम्बर 2019
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प्रेम की भूखविजय कुमार तिवारीसभी प्रेम के भूखे हैं।सभी को प्रेम चाहिए।दुखद यह है कि कोई प्रेम देना नहीं चाहता।सभी को प्रेम बिना शर्त चाहिए परन्तु प्रेम देते समय लोग नाना शर्ते लगाते हैं।प्रेम में स्वार्थ हो तो वह प्रेम नहीं है।हम सभी स्वार्थ के साथ प्रेम करते हैं।प्रेम कर

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नदी के दावेदार

28 सितम्बर 2019
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छमा करना

1 अक्टूबर 2019
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मशाल

4 अक्टूबर 2019
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करूँ-ह्रदय

11 अक्टूबर 2019
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दुःख

12 अक्टूबर 2019
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दुनिया युद्ध के महाविनाश की ओर जा रही है।यदि ऐसा हुआ तो किसी न किसी रुप में हम सभी प्रभावित होंगे।वैसे ही दुनिया में लोग अनेकानेक कारणों से दुखी हैं।हम में से बहुत लोग ऐसे हैं जिन्हे कोई न कोई दुख है।हम मिलकर उनका समाधान खोज सकते हैं और दुखों से बचाव कर सकते हैं।कम से कम हम चर्चा तो करें।कोई न कोई स

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उद्बोधन

22 नवम्बर 2019
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उद्बोधनविजय कुमार तिवारीलम्बे अन्तराल के बाद आज कुछ उद्बोधित होने की प्रेरणा जाग रही है।खिड़की से बाहर की दुनिया बड़ी मनोरम दिख रही है।आसमान नीला और शान्त है।मन भी नीरव-शान्ति की अनुभूति से ओत-प्रोत है।कौन कहता है कि हमारा जन्म दुख-भोग के लिए ही है?हमें स्वयं में डुबकी लगाने नहीं आता।हमारी सारी समस्

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ईशावास्योपनिषद के आलोक में

11 जनवरी 2020
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ईशावास्योपनिषद के आलोक मेंविजय कुमार तिवारीवेदान्त कहे जाने वाले उपनिषदों ने भारतीय जनमानस को बहुत प्रभावित किया है और हमारी चेतना जागृत की है।आज हमारे युवा पथ-भ्रमित और विध्वंसक हो रहे हैं,उन्हें अपने धर्म-ग्रन्थों विशेष रुप से वेदान्त के रुप में जाना जाने वाले उपनिषदों को पढ़ना और उनका अनुशीलन करन

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विवेकानंद के बहाने

12 जनवरी 2020
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विवेकानन्द के बहानेविजय कुमार तिवारीस्वामी विवेकानन्द जी ने उद्घोष किया था,"उठो,जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।"भारत के उन्हीं महान सपूत की आज जन्म-जयन्ती है।बहुत श्रद्धा पूर्वक याद करते हुए मैं उन्हें नमन करता हूँ।आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है और उनके चरणो में श्रद्धा-सुमन

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निर्भया के बहाने

20 मार्च 2020
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निर्भया के बहानेविजय कुमार तिवारीअन्ततः आज २० मार्च २०२० को निर्भया के दोषियों को फांसी हो ही गयी।१६ दिसम्बर २०१२ को निर्भया के साथ दरिन्दों ने जघन्य अपराध किया था।पूरा देश उबल पड़ा था और हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था पर नाना तरह के प्रश्न खड़े किये जा रहे थे।हमारा प्रशासन,हमारी न्याय व्यवस्था,हमारा राजनै

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जनता कर्फ्यू और हमारा देश

22 मार्च 2020
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जनता कर्फ्यू और हमारा देशविजय कुमार तिवारीप्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी के आह्वान पर आज २२ मार्च २०२० को पूरे देश ने अपनी एकता,अपना जोश और अपना मनोबल पूरी दुनिया को दिखा दिया।इस जज्बे को मैं हृदय से सादर नमन करता हूँ।राष्ट्रपति से लेकर आम नागरिकों तक ने ताली,थाली, घंटी,शंख और नगाड़े बजाकर अपना आभार

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कोरोना और स्त्री

25 मार्च 2020
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करोना और स्त्रीविजय कुमार तिवारीकल प्रधानमन्त्री ने देश मेंं कोरोना के चलते ईक्कीस दिनों के"लाॅकडाउन"की घोषणा की है।सभी को अपने-अपने घरों में रहना है।बाहर जाने का सवाल ही नहीं उठता।घर मेंं चौबिसों घण्टे पत्नी के साथ रह पाना,सोचकर ही मन भारी हो जाता है।किसी साधु-सन्त के पास इससे बचाव का उपाय नहीं है।

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महर्षि अरविंद का पूर्णयोग

26 मार्च 2020
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महर्षि अरविन्द का पूर्णयोगविजय कुमार तिवारीमहर्षि अरविन्द का दर्शन इस रुप में अन्य लोगोंं के चिन्तन से भिन्न है कि उन्होंने आरोहण(उर्ध्वगमन)द्वारा परमात्-प्राप्ति के उपरान्त उस विराट् सत्ता को मनुष्य में अवतरण अर्थात् उतार लाने की चर्चा की है।यह उनका एक नवीन चिन्तन है।गीता में दोनो बातें कही गयी हैं

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जिंदगी सुखद संयोगो का खेल है .

27 मार्च 2020
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कहानीजिन्दगी सुखद संयोगों का खेल है।विजय कुमार तिवारीरमणी बाबू को भगवान में बहुत श्रद्धा है।उसके मन मेंं यह बात गहरे उतर गयी है कि अच्छे दिन अवश्य आयेंगे।अक्सर वे सुहाने दिनों की कल्पना में खो जाते हैं और वर्तमान की छोटी-छोटी जरुरतों की लिस्ट बनाते रहते हैं।गाँव के लड़के स्कूल साईकिल पर जाते थे तो व

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धिक्कार है ऐसे लोगो पर

31 मार्च 2020
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धिक्कार है ऐसे लोगोंं परविजय कुमार तिवारीमन दहल उठता है।लाॅकडाउन में भी लाखों की भीड़ सड़कों पर है।भारत का प्रधानमन्त्री हाथ जोड़कर विनती करता है,आगाह करता है कि खतरा पूरी मानवजाति पर है।विकसित और सम्पन्न देश त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।विकास और ऐश्वर्य के बावजूद वे अपनी जनता को बचा नहीं पा रहे हैं।आज

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शहर प्रयोगशाला हो गया है

1 अप्रैल 2020
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कविताशहर प्रयोगशाला हो गया हैविजय कुमार तिवारीछद्मवेष में सभी बाहर निकल आये हैंं,लिख रहे हैं इतिहास में दर्ज होनेवाली कवितायें,सुननी पड़ेगी उनकी बातेंं,देखना पड़ेगा बार-बार भोला सा चेहरा।तुमने ही उसे सिंहासन दिया है,और अपने उपर राज करने का अधिकार।दिन में वह ओढ़ता-बिछाता है तुम्हारी सभ्यता-संस्कृति,उ

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मेरे आनंद की बाते

2 अप्रैल 2020
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मेरे आनन्द की बातेंविजय कुमार तिवारीकभी-कभी सोचता हूँं कि मैं क्योंं लिखता हूँ?क्योंं दुनिया को लिखकर बताना चाहता हूँ कि मुझे क्या अच्छा लगता है?मेरी समझ से जो भी गलत दिखता है या देश-समाज के लिए हानिप्रद लगता है,क्यों लोगों को उसके बारे में आगाह करना चाहता हूँ?क्यों दुनिया को सजग,सचेत करता फिरता हूँ

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हर युग में आते है भगवान

3 अप्रैल 2020
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कविताहर युग मेंं आते हैं भगवानविजय कुमार तिवारीद्रष्टा ऋषियों ने संवारा,सजाया है यह भू-खण्ड,संजोये हैं वेद की ऋचाओं में जीवन-सूत्र,उपनिषदों ने खोलें हैं परब्रह्म तक पहुँचने के द्वार,कण-कण में चेतन है वह विराट् सत्ता।सनातन खो नहीं सकता अपना ध्येय,तिरोहित नहीं होगें हमारे पुरुषोत्तम के आदर्श,महाभारत स

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5 अप्रैल 2020 ,रात 9 बजे 9 मिनट का प्रकाश-पर्व

5 अप्रैल 2020
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5 अप्रैल 2020,रात 9 बजे,9 मिनट का प्रकाश-पर्वविजय कुमार तिवारीविश्वास करें,यह कोई सामान्य घटना घटित होने नहीं जा रही है और ना ही आज का प्रकाश-पर्व एक सामान्य प्रकाश-पर्व है।ब्रह्माण्ड की ब्रह्म-शक्ति का आह्वान हम सम्पूर्ण देशवासी प्रकाश-पर्व मनाकर करने जा रहे हैं।हमारे भीतर स्थित वह दिव्य-चेतना जागृ

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विपत्ति में ही

7 अप्रैल 2020
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विपत्ति में हीविजय कुमार तिवारीप्राचीन मुहावरा है,"विपत्ति में ही अच्छे-बुरे की पहचान होती है।"मानवता के सामने सबसे भयावह और संहारक परिस्थिति खड़ी हुई है।पूरी दुनिया बेबस और लाचार है।हमारे विकास के सारे तन्त्र धरे के धरे रह गये हैं।कुछ भी काम नहीं आ रहा है।स्थिति तो यह हो गयी है कि जो जितना विकसित ह

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हमउम्र बूढ़ों का परिवार

8 अप्रैल 2020
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कविताहमउम्र बूढ़ोंं का परिवारविजय कुमार तिवारीमैंने सजा लिया है सारे हमउम्र बूढ़ों को अपने फ्रेम में,बना लिया है मित्रों का बड़ा सा समूह। रोज देखता रहता हूँ उनके आज के चेहरे,चमक उठती है पुतलियाँजीवन्त हो उठते हैं उनसे जुडे नाना प्रसंग। मुरझाये गालों और मद्धिम रोशनी लिये आँखें,आज भी कौंंध जाता है उनक

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-१

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-1विजय कुमार तिवारीसालों बाद कल रात उसने ह्वाट्सअप किया,"हाय अंकल ! कहाँ हैं आजकल?"उसने अंग्रेजी अक्षरों में "प्रणाम" लिखा और प्रणाम की मुद्रा वाली हाथ जोड़ेे तस्वीर भी भेज दी।प्रमोद को सुखद आश्चर्य हुआ और हंसी भी आयी।"कैसे याद आयी अंकल की इतने सालों बाद?"प्रमोद ने यूँ ही

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-२

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-2विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू भी इस माहौल से अछूते नहीं रहे।उनका मिलना-जुलना शुरु हो गया।कार्यालय में बहुत लोगों के काम होते जिसे बड़े ही सहृदय भाव से निबटाते और कोशिश करते कि किसी को कोई शिकायत ना हो।स्थानीय लोगों से उनकी अच्छी जान-पहचान हो गयी है।सुरक्षा बल के लोगों के

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-३

13 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-3विजय कुमार तिवारी"मैं किसी से नहीं डरता,"मोहन चन्द्र पूरी बेहयायी पर उतर आये।प्रमोद बाबू ने अपने आपको रोका।सुबह की ताजी हवा में भी गर्माहट की अनुभूति हुई और दुख हुआ।हिम्मत करके उन्होंने कहा,"मोहन चन्द्र जी,दूसरों की जिन्दगी में टांग अड़ाना ठीक नहीं है।आपकी बात सही हो तब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-४

14 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-4विजय कुमार तिवारी"ऐसा नहीं कहते,"प्रमोद बाबू भावुक हो उठे,"इतना ही कह सकता हूँ कि तुम अपनी उर्जा इन सब चीजों में मत लगाओ।"थोड़ा रुककर उन्होंने कहा,"दुनिया ऐसी ही है,लोग कहेंगे ही।तुम्हें तय करना है कि स्वयं को इन वाहियात चीजों में उलझाती हो और अपने को बरबाद करती हो या ब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-६

15 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-6विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू दोनो महिलाओं और मोहन चन्द्र जी की भाव-भंगिमा देख दंग रह गये।सुबह दूध वाले की बातें सत्य होती प्रतीत होने लगी।उन्होंने मौन रहना ही उचित समझा।अन्दर से पत्नी भी आ गयी।मोहन चन्द्र बाबू उन दोनो महिलाओं से कुछ पूछते-बतियाते रहे।थोड़ी देर में पत्नी

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हमारी शादी की सैंतीसवी वर्षगाठ

27 अप्रैल 2020
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हमारी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठविजय कुमार तिवारीआज 27 अप्रैल को हम अपनी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं और सम्पूर्ण मानवता को बताना चाहते हैं कि परमात्मा के आशीर्वाद से,विगत सैंतीस वर्षों से चला आ रहा हमारा अटूट सम्बन्ध पूर्णतः उर्जावान और मधुर प्रेम से भरा हुआ है।आप सभी सुहृदजनों,सखा-सम्बन

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तुम्हारे प्रेम के नाम-२

1 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-2विजय कुमार तिवारीदुनिया तो वही है जो सबकी होती है परन्तु मेरे लिए जैसे बिल्कुल अजनबी हो चुकी है।जो जानी-पहचानी दुनिया थी उसे मैं बहुत पीछे छोड़ आया हूँ और यह नयी जगह,नयी दुनिया जैसे मुझे आत्मसात करने को तैयार ही नहीं है।इस दृष्टि से समूची नारी जाति के प्रति मेरा मन पूरी श

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तुम्हारे प्रेम के नाम-३

3 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-3विजय कुमार तिवारीतुमने अनेकों बार कुरेदा है मुझे,"कैसे मैं अपने को बचाता रहा और कैसे इस मतलबी दुनिया की शातिर चालों को समझ पाया।"तुमसे खुलकर कहना चाहता हूँ,सच बयान करता हूँ कि यह कोई मुश्किल काम नहीं है।हर व्यक्ति को थोड़ा सजग रहना चाहिए।थो

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वासना गद्दारो और नशेड़ियों का देश

5 मई 2020
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वासना,गद्दारों और नशेड़ियों से भरा देशविजय कुमार तिवारीवासना,गद्दारी या नशे में डूबे रहना यह सब मनुष्य के अधःपतन का द्योतक है और आज की स्थिति देखकर लगता है कि हमारे देश में बहुतायत ऐसे ही लोग हैं।मैं मानता हूँ कि हमे निराश नहीं होना चाहिए परन्तु ये परिदृश्य कोई दूसरी कहानी तो नहीं कह रहे।कल देश में

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डा नन्द किशोर नवल जी की यादें

14 मई 2020
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डा0 नन्द किशोर नवल जी की यादेंविजय कुमार तिवारीपरमादरणीय मित्र,प्रख्यात आलोचक और साहित्यकार डा.नन्द किशोर नवल जी नहीं रहे।मेरा तबादला धनबाद से पटना हुआ था।9अप्रैल 1984 की शाम में बी,एम.दास रोड स्थित मैत्री-शान्ति भवन में प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से"राहुल सांकृत्यायन-जयन्ती"का आयोजन था।भाई अरुण कमल,ड

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