कविता
सच्चा प्रेमी
विजय कुमार तिवारी
तुमने तोड़ डाले सारे रिश्ते
और फेंक दिया लावारिश राहों में।
तुमने मुझे दोषी कहा,धोखेबाज
और ना जाने क्या-क्या?
तुम्हारे मधुर शब्द कितने खोखले निकले,
दूर तक चलने की कसमें कितनी बेमतलब
और तुम्हारी कोशिशें किसी मायाजाल सी।
मुझे कुछ भी नहीं कहना,
कोई शिकवा नहीं,कोई शिकायत नहीं,
बस दुआ है-खुश रहो,जहाँ भी रहो।
जानता हूँ-जब कभी,किसी मोड़पर मुड़कर देखोगी,
भारी और भरोसेमन्द दिखेगा मेरा प्यार।
शायद पछताओगी, याद करोगी और खोजना चाहोगी,
समय बीत चुका होगा,
मुझे पागल मान चुकी होगी दुनिया।
तुम्हारी आँखे भर आयेंगीं,
शर्म से कह भी नहीं पाओगी- प्रेम करती थी इससे।
लेकिन तुम्हारा दिल चिख-चिखकर कहेगा-
अच्छा और सच्चा प्रेमी यही था।