कहानी
खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-2
विजय कुमार तिवारी
प्रमोद बाबू भी इस माहौल से अछूते नहीं रहे।उनका मिलना-जुलना शुरु हो गया।कार्यालय में बहुत लोगों के काम होते जिसे बड़े ही सहृदय भाव से निबटाते और कोशिश करते कि किसी को कोई शिकायत ना हो।स्थानीय लोगों से उनकी अच्छी जान-पहचान हो गयी है।सुरक्षा बल के लोगों के कामों को प्राथमिकता के तौर पर पूरा करते।लोग उनकी तारीफ भी करते।घरेलू स्तर पर भी अनेक लोगों से परिचय हुआ।
प्रमोद बाबू धार्मिक भाव-विचार रखते थे और उनकी ईश्वर पर अटूट श्रद्धा थी।सामने सड़क के उस पार वाले सुसज्जित बंगले में रहने आये नये पदाधिकारी ने पड़ोसी-धर्म निभाते हुए उन्हें आमन्त्रित किया।पूरा परिवार बहुत आदर-भाव से मिला,विशेष रुप से उनकी धर्म-पत्नी।
मौसम में गर्मी थी।आम के पेड़ों में मंजरी से दाने निकलने लगे थे और वातावरण में सुगन्ध फैल रही थी।कोयल की कूक और चिड़ियों का गायन रोमांचित कर रहा था।
"प्रमोद बाबू, ऐसा सुन्दर वातावरण पहले कभी नहीं मिला,"उनकी पत्नी ने चाय का कप रखते हुए अपनी भावनायें व्यक्त कीं।
प्रमोद बाबू ने सहमति जतायी और समवयस्क होने के नाते उस दिन देर तक बातें होती रही।दूसरी बार फिर चाय बनी और परिचय थोड़ा प्रगाढ़ हुआ।शाम होते-होते मौसम भी अनुकूल हुआ।शीतल बयार बहने लगी।प्रमोद बाबू बहुत खुश होकर घर लौटे।
सप्ताह भर बाद,उनकी दायी ने आकर कहा,"आपको भैया और भाभी ने बुलाया है।"
"कोई विशेष बात है क्या?"
"पता नहीं,आप शीघ्र आ जाईये।"
गेट तक पहुँचते ही,उधर से जोरदार आवाज आयी,"आईये,आईये प्रमोद बाबू!"
"क्या बात है--बहुत खुश लग रहे हैं?" कुर्सी पर बैठते हुए प्रमोद बाबू ने मुस्कराकर पूछा।जल्दी ही चाय भी आ गयी और साथ में ही भीतर से हाथ जोड़े निकल आये उनके बड़े भाई।मझोले,सामान्य कदकाठी के भाई की आवाज खनकदार थी,मूंछें करीने से कटी हुई और बनावटी रोबवाली मुखाकृति।प्रमोद बाबू ने उनके चेहरे को गौर से देखा।दंग रह गये।आँखों में कुटिलता वाली चमक थी और चेहरे पर गैरजरूरी मुस्कान।उन्होंने नाम बताया-मोहन चन्द्र।बाद में पता चला कि उनकी शादी भी नहीं हुई है।किंचित सशंक भाव से प्रमोद बाबू वापस आये।
कुछ महीने ऐसे ही बीते।आम के फलों से पेड़ लदे पड़े थे।मोहन चन्द्र जी अक्सर अपनी पुरानी गाथायें लेकर बैठ जाते।प्रमोद बाबू धैर्य से उनकी बातें सुनते और विश्वास दिलाते कि चिन्ता करने की कोई जरुरत नहीं है।मामला कभी -कभी बिगड़ने लगता जब मोहन चन्द्र जी किन्हीं अतिवादी भावनाओं को पकड़कर बैठ जाते।
"सारी दुनिया तो गलत नहीं होती,"प्रमोद बाबू की इस बात को वे सिरे से नकारने की कोशिश करते।कभी-कभी झुंझला उठते और आसपास के लोगों पर अंगुली उठाने लगते।प्रमोद बाबू को अनुभव हुआ कि शादी न होना इनकी दुखती रग है।
उस दिन कार्यालय में प्रमोद बाबू अकेले थे।भीड़ थोड़ी ज्यादे थी और उमस का मौसम था।पंखा की रफ्तार धीमी थी फिर भी काम हो ही रहा था।
"देखिये,आप लोग धैर्य रखिये,सबका काम होगा।क्रमवार आते जाईये।"प्रमोद बाबू ने उत्साह और आग्रहपूर्वक कहा।जब भीड़ थोड़ी कम हुई तो उन्होंने देखा कि सामने वाले सोफे पर मोहन चन्द्र जी बैठे हैं और बगल में कोई महिला और एक लड़की है।
"जी बताईये,क्या काम है आपका?"प्रमोद बाबू महिला की ओर मुखातिब हुए।उसने मोहन चन्द्र जी की ओर देखा मानो कह रही हो कि पहले इनका काम कर दीजिए।
"नहीं,नहीं,आप बताइये।उनका कोई काम नहीं है।वे मेरे पड़ोसी हैं,कभी-कभी यहाँ भी आ जाते हैं।"
"पड़ोसी तो हम भी हैं आपके,"उसने मुस्करा कर कहा,"सामने जो सड़क जाती है उसके अंतिम मोड़ से पहले वाला घर हमारा है।यह मेरी बेटी मध्यमा है।इसके पापा सुरक्षा बल में सब-इन्स्पेक्टर हैं।उनसे आपकी भेंट हुई है।उन्होंने ही आपसे मिलने को कहा है।"
प्रमोद बाबू उत्साहित हो उठे।बोले," मोहन चन्द्र जी उस सड़क के पहले वाले बंगले में रहते हैं,ठीक मेरे सामने।"
हाँ,पहचानती हूँ।इनके घर भी गयी हूँ,"मध्यमा की मम्मी ने कहा,"इनके भैया-भाभी से मिलना हुआ है।"
"वो मेरा छोटा भाई है,"मोहन चन्द्र ने मध्यमा की ओर देखते हुए कहा।
प्रमोद बाबू ने अपने कर्मचारी से कहा,"हम लोगों को पानी और चाय पिलाने की व्यवस्था करो।"किंचित रुककर उन्होंने कहा,"बहुत काम हुआ आज,अब घर चला जाये।"
अगली सुबह मोहन चन्द्र जी कुछ जल्दी ही आ गये।प्रमोद बाबू अलसाये से थे।बोले,"जरा ब्रश कर लूँ।आप बैठिये।"उन्होंने कल का अखबार उनके सामने रखा और ब्रश करने चले गये।लौटे तो उनके हाथ में ट्रे थी जिसमें कुछ विस्कुट,चाय से भरे दो कप,दो खाली गिलास और दूसरे हाथ में पानी से भरा तांबे का जग था।
"उन्होंने कहा," इसबार आम की चोरी खूब हो रही है।बस्ती से लड़के-लड़कियाँ रात भर घूमते हैं।लगभग एक बजे रात में खटका हुआ,बाहर निकला।टार्च जलाया तो आपके कैम्पस से ही निकल भागे।"
"अच्छा,"प्रमोद बाबू आश्चर्यचकित हो उठे।
"यहाँ एक खेल और हो रहा है,"उन्होंने धीमी आवाज में कहा।
प्रमोद बाबू ने गहरी दृष्टि से उन्हें देखा।
"आजकल बहुत से अपरिचित चेहरे घूम रहे हैं,"बोलते हुए उनकी आँखों में चमक और चेहरे पर कुटिल मुस्कान उभर आयी।
"यहाँ खुली जगह है,लोग सुबह-शाम की सैर करते होंगे,"प्रमोद बाबू ने पूरी संजिदगी से कहा।
"आप भी,"उनके चेहरे पर विद्रुपता की लकीर उभर आयी और लगभग खिझते हुए बोले,"ये वो लोग नहीं है प्रमोद बाबू !ये जवान लड़के हैं और उनकी प्रेमिकायें।माँ-बाप को उल्लू बनाती यह पीढ़ी पता नहीं कहाँ जा रही है?" किंचित गहरी सांस लेकर उन्होंने कहा,"कल आपके कार्यालय में जो लड़की मिली थी,वह भी है।कोई दूसरी लड़की स्कूटी से आकर उसे लिवा ले जाती है।कुछ दूर मोटरसाईकिल पर दो लड़के
मिलते हैं। भगवान जाने कौन सा ट्यूशन करते हैं।मैंने उसकी मम्मी को भी सचेत होने को कहा है।'
"नहीं,ऐसा नहीं हो सकता,"प्रमोद बाबू अचम्भित होते हुए बोले।उनको भय हुआ कि ऐसा आरोप सुनकर मध्यमा और उनके परिजनों पर क्या गुजरेगा।पता नहीं,सच है या झूथ?मोहन चन्द्र जी का इस तरह व्यवहार करना किसी भी तरह उचित नहीं है।