हमारी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठ
विजय कुमार तिवारी
आज 27 अप्रैल को हम अपनी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं और सम्पूर्ण मानवता को बताना चाहते हैं कि परमात्मा के आशीर्वाद से,विगत सैंतीस वर्षों से चला आ रहा हमारा अटूट सम्बन्ध पूर्णतः उर्जावान और मधुर प्रेम से भरा हुआ है।आप सभी सुहृदजनों,सखा-सम्बन्धियों,गुरुजनों और दैवीय शक्तियों का आशीर्वाद, शुभ-भावनायें और सहयोग-सहकार हमारे सम्बन्ध को चिर-स्थायी,सद्भाव,विश्वास और प्रेम-पूर्ण बनाये रखने में हर प्रकार से मददगार रहा है।हृदय की गहराई और पूर्ण विनत-भाव से हम दोनो आप सभी के प्रति सादर नमन समर्पित करते हैं।
विगत सैंतीस वर्षों का लेखा-जोखा करता हूँ तो महसूस होता है कि ईश्वर हम दोनो पर सदैव परम कृपालु रहा है और जब भी कोई दुःसह परिस्थिति आयी, ईश्वर ने सम्यक् सम्बल देकर पार लगा दिया।हमारा कोई भी सुख या कोई भी दुख हमसे बड़ा नहीं होता।हम अपनी कमजोरी और नासमझी से उसे बड़ा बना देते हैं।बहुत सरल नियम है सुखी होने का।जो हमारे जीवन में उपलब्ध है उसका सन्तुष्टि के साथ खुले मन से उपभोग कीजिये और जो नहीं है उसकी प्राप्ति के लिए योजनाबद्ध तरीके से प्रयास कीजिये।अक्सर हम भविष्य के सुखों की चाह में वर्तमान को बोझिल बना देते हैं।हम भविष्य के दुखों की कल्पना करके सदैव दुखी बने रहने की जटिल स्थिति का आवरण ओढ़े रहते हैं।सच्चाई है कि उनमें से 99% घटित ही नहीं होता।हम अपनी परिस्थिति और औकात का यथार्थ मूल्यांकन किये बिना खयाली साम्राज्य खड़ा करते रहते हैं,समर-प्रांगण में कूद पड़ते हैं और दुखी होने की भरपूर व्यवस्था कर लेते हैं।यह सब हमारी गलत सोच,गलत नीतियों और गलत निर्णयों के चलते होता है।कई बार हमारी समस्या इसलिए बढ़ जाती है कि हमने समय से निर्णय नहीं लिया।दुख की स्थिति में धैर्यवान होना सबसे जरुरी है वरना हमारा छोटा सा दुख अनेक गुना बड़ा हो जाता है।
हम अक्सर अपने जीवन में लोगों की सही पहचान नहीं कर पाते।किसी गलत आदमी को जब तक हम अपने जीवन में प्रश्रय दिये रहेंगे,यकीन मानिये,हमारी हानि होती रहेगी।कई बार हम सही और शुभ-चिन्तक व्यक्ति को अपनी छोटी-छोटी उलझनों के चलते खो देते हैं और पछताते रहते हैं।कोई भी निर्णय लेने के पहले थोड़ा समय लेना चाहिए।अचानक लिया हुआ निर्णय हमें असुविधा में डाल सकता है।अपनी स्थिति-परिस्थिति के लिए केवल हम जिम्मेदार हैं और उसका सीधा प्रभाव हम पर ही पड़ता है।इसलिए दूसरों को दोषी मानना या बनाना बंद कीजिए।
जीवन में पति-पत्नी के बीच सुसम्बन्ध तभी रहेगा जब दोनो एक-दूसरे की चिन्ता करेंगे,एक-दूसरे की परिस्थिति को समझकर व्यवहार करेंगे और छोटे-छोटे मतभेद के कारणों को पूरी सजगता से,पनपने के पहले ही उखाड़ फेकेंगे।चाहे जैसी भी परिस्थिति हो,एक-दूसरे का हृदय से सम्मान करेंगे।जिस घर मे स्त्री सम्मानित होती है,उस घर की जड़े मजबूत रहती हैं।स्त्री से ही घर बनता है,परिवार चलता है और स्त्री से ही हमारे सारे रिश्ते टिकते हैं।स्त्री सुखी और मिलनसार नहीं है,उसमें सेवा-भाव नहीं है,धर्म-परायण नहीं है तो वह घर सुखी नहीं हो सकता।हर पुरुष को इसका ध्यान रखना चाहिए।अक्सर लोग कारणों को दूर करने के बजाय,एक-दूसरे को दूर करने की भयंकर गलती करते हैं और जीवन भर का दुख,कलंक ले लेते हैं।
ऐसा नहीं है कि हमारे जीवन में असुविधायें और मतभेद नहीं हुए।हमने हर बार सीखा और आत्म-सुधार किया।हमने शुरु में ही तय कर लिया कि हमारे बीच के मतभेद किसी तीसरे-चौथे तक नहीं जायेंगे।धन या साधन होगा तभी शौक की चीजें ली जायेंगी।ऋण लेकर शौक और दिखावे की वस्तुएं नहीं ली जायेंगी।घर-परिवार में कोई कमजोर है तो उसकी मदद एकमत से की जायेगी।धर्म-युक्त,सरल,सादा,पवित्र जीवन जीया जायेगा।मुझे पूर्ण सन्तोष है कि मेरी धर्म-पत्नी ने सदैव मेरा साथ दिया है।उसके चलते मुझे कभी कोई परेशानी नहीं हुई।उसमें अपूर्व धैर्य और साहस है।मेरा घर उसी से है।वह अपने शैक्षणिक जीवन में सदैव प्रथम रही।विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की कनीय शोध छात्रवृत्ति के अन्तर्गत, पटना विश्वविद्यालय में पांच वर्षो तक, संस्कृत विभाग में आचार्य दण्डीकृत दसकुमारचरित पर शोध कार्य की।पांच वर्षों तक स्नात्कोत्तर छात्र-छात्राओं को पढ़ायी और पी,एच,डी की उपाधि हासिल की।कहने,बताने लायक तो बहुत कुछ है परन्तु इतना ही कहना चाहता हूँ कि हमारे जीवन में यत्किंचित जो भी सुख-शान्ति-धर्म-ऐश्वर्य-सुविधा-सद्भाव है उसके केन्द्र में वही है,उसका श्रम,समर्पण और त्याग है।हम आपस में कम लड़े है और अपनी परिस्थितियों का मिलकर मुकाबला किया है।मानव जीवन पाकर धन्य हैं और कोशिश रही है कि हमारे जीवन की सार्थकता बनी रहे।यदि हमारे किसी भी कर्म से,किसी भी व्यवहार से किसी को भी असुविधा या कष्ट हुआ हो तो उदारमना आप कृपा करके क्षमा करेंगे और पूर्ववत अपना स्नेह,आशीर्वाद का भाव बनाये रखेंगे।
करोना की सम्पूर्ण विश्व में फैली महामारी के बीच मैं पूरी मानवता का अभिनन्दन करता हूँ और सबके लिए चेतना से स्पन्दित शुभ जीवन की कामना करता हूँ।सम्पूर्ण वनस्पतियों,जीव-जन्तुओं और समस्त दैवीय शक्तियों के प्रति अपनी श्रद्धा समर्पित करता हूँ।पूरे विश्व में कोरोना या किसी अन्य कारणों से मृत्यु को प्राप्त आत्माओं के लिए प्रार्थना करता हूँ कि ईश्वर उन्हें शान्ति प्रदान कीजिए और अपनी शरण में स्थान दीजिए।सम्पूर्ण मानवता का आह्वान करता हूँ कि भय ना करें,जीवन में उत्साह और प्रेम से रहें।किसी के बारे में बुरा ना करें और ना सोचें।परमात्मा सबको सद्बुद्धि दे और सबके जीवन में सुख-शान्ति हो.।ओम् शान्ति।