विजय कुमार तिवारी
सभी प्रेम के भूखे हैं।सभी को प्रेम चाहिए।दुखद यह है कि कोई प्रेम देना नहीं चाहता।सभी को प्रेम बिना शर्त चाहिए परन्तु प्रेम देते समय लोग नाना शर्ते लगाते हैं।प्रेम में स्वार्थ हो तो वह प्रेम नहीं है।हम सभी स्वार्थ के साथ प्रेम करते हैं।प्रेम करते भी नहीं,उसका दिखावा करते हैं।लोग समझ भी जाते हैं और आपका दिखावा जगजाहिर हो जाता है।ऐसे में हम सभी की दुहरी हानि होती है।
प्रेम में देना होता है,वह भी बिना किसी उम्मीद के।यदि किसी के लिए कुछ करना चाहते हैं,यह आपका उसके प्रति प्रेम हो सकता है,परन्तु ज्यों ही आप उससे उम्मीद करते हैं कि वह भी आपके लिए कुछ करे तो यह लोक-व्यवहार हो सकता है,प्रेम नहीं हो सकता।
प्रेम में कहना नहीं पड़ता है।आप यदि सचमुच प्रेम करते हैं तो उसे बिना आपके बताये इसकी सच्ची अनुभूति हो जाती है और आपके मन की भावनायें स्वतः उसके दिल तक पहुँच जाती है।हिन्दी के बड़े कवि बिहारी ने प्रेम का अद्भूत वर्णन किया है।नायिका अपने प्रियतम को पत्र लिखने बैठी है।प्रेम और विरह की अनुभूति इतनी प्रगाढ़ है कि वह कुछ भी लिख नहीं पाती।उसकी आँखों से अविरल प्रेमाश्रु की धारा बह रही है और बिना लिखे पत्र को प्रेषित कर देती है।उधर उसका प्रियतम पत्र पढ़ने बैठा है और उसके हृदय की दशा ऐसी है,प्रियतमा के प्रेम की इतनी गहरी अनुभूति है कि आँखें भर आयी हैं और सारा संदेश पूर्णता से समझ लेता है।प्रेम में एक की निगाह उठती है तो दूसरे की धड़कन तेज हो जाती है।
आज प्रेम में लोग दावा करते हैं।तर्क देते हैं और अपने को सही साबित करने की कोशिश करते हैं।कहते हैं,"मैं तो ऐसा ही हूँ या मेरा प्रेम ऐसा ही है।"ऐसे में प्रेमी या प्रेमिका को कोई अनुभूति नहीं होती है।यह प्रेम नहीं है।आज लोग महंगे उपहार देते हैं,एक-दूसरे पर खर्च करते हैं और प्रेम का दावा करते हैं।यह भी प्रेम नहीं है।प्रेम तो बलिदान चाहता है,दिल देना पड़ता है और अपने को मिटा देना पड़ता है।प्रेम में दोनो एक हो जाते हैं।दो नहीं रह जाते।
आप अपने पुत्र-पुत्री,पत्नी और परिवार के लोगो को प्रेम करते हैं तो वहाँ परिवार में सुख-शान्ति रहती है।प्रेम की भावना से सभी एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं और स्वार्थ से उपर उठकर एक-दूसरे की सेवा में लगे रहते हैं।प्रेम में समर्पण होता है और क्षमा करते रहने की भावना होती है।प्रेम में कोई भी एक-दूसरे की गलती नहीं देखना चाहता वल्कि एक-दूसरे के विकास और सहयोग में लगा रहता है।प्रेम में अपना- पराया भी नहीं होता।सभी अपने होते है और सबके लिए दिल समान रुप से धड़कता है।
हमारे सारे रिश्ते माया के अधीन हैं और सभी लेन-देन के हैं।प्रेम और त्याग से हम इन्हें मजबूत और सार्थक बना सकते हैं।इसमें हमें सदैव देने के लिए तत्पर रहना पड़ता है।कुछ भी पाने के लिए मत करो वल्कि देने के लिए तत्पर रहो।प्रेम में दूसरे का गुण देखना चाहिए।दोष देखने पर प्रेम नहीं जगेगा।परमात्मा ने ऐसी व्यवस्था बनायी है कि हम चाहें तो हमारा हृदय प्रेम से भरा रहेगा। हम उसमें बैर,विरोध,ईर्ष्या,द्वेष,अहंकार भर लेते हैं।सारा सामाजिक ताना-बाना ध्वस्त हो जाता है।इसे बचाये रखना हम सभी की जिम्मेदारी है।यह तभी हो पायेगा जब हम प्रेम करना और प्रेम देना शुरु कर देंगे।चलिए अभी से हम इस मुहिम में लग जायें।प्रेम की भावना जागते ही हमारे भीतर ईश्वरीय चेतना काम करना शुरु कर देती है और हम उसका सुख और आनन्द पाने लगते हैं।प्रेम के लिए भूखे मत रहो,प्रेम करो।प्रेम हो तो हम ईश्वरतुल्य हो जाते हैं।