मेरे आनन्द की बातें
विजय कुमार तिवारी
कभी-कभी सोचता हूँं कि मैं क्योंं लिखता हूँ?क्योंं दुनिया को लिखकर बताना चाहता हूँ कि मुझे क्या अच्छा लगता है?मेरी समझ से जो भी गलत दिखता है या देश-समाज के लिए हानिप्रद लगता है,क्यों लोगों को उसके बारे में आगाह करना चाहता हूँ?क्यों दुनिया को सजग,सचेत करता फिरता हूँ?लोग देखते भी हैं या नहीं?कोई पढ़़ता भी है या नहीं?मैं यह सब क्यों सोचने लगा?मैं तो स्वान्तःसुखाय लिखता हूँ और बहुत खुश होता हूँ।कोई एक व्यक्ति भी मेरे साथ सुखी और आनन्दित होता है तो वही मेरा आनन्द है।
चिड़ियों का कलरव,भौंरों की गूँज,रंग-बिरंगी तितलियों की मनोहारी उड़ान,मन्द-मन्द प्रवाहित शीतल बयार,फूलों की खुशबू,नित्य-नयी विकासशील कोपलें और न जाने प्रकृति के कितने नूतन संदेश हम में से विरले ही सुन पाते हैं,या देख पाते हैं।भीतर ताजगी आयेगी कहाँ से?हमने तो अपनी आदतें ही बदल ली हैं।चलो,हम अपनी कुछ आदतें फिर से बदलें,फिर से प्रकृति के पास जायें और उसके साथ आनन्द मनायें।
नदी के तीर पर बैठें और उसका संदेश सुनें।उसका कलकल निनाद हमारे भीतर संगीत भरता है और उसका लयबद्ध प्रवाह गतिशील होने की चेतना जगाता है।नदी के उपरी सतह को स्पर्श करती हवा हमारे फेफड़़ोंं में प्राणवायु भर देती है।सामने फैला सम्पूर्ण परिदृश्य हमारी चेतना में सौन्दर्यानुभूति का संचरण करता है और ईश्वरानुभूति की अलौकिक आभा का विस्तार होता है।
नदी ना हो तो गाँव के जलाशय के किनारे अपनी शामें बितायें।जहाँं जल है,वहीं जीवन है।अपने पूजा के स्थलों पर कुछ समय व्यतीत करना भी जीने के लिए उसी तरह आवश्यक है जैसे भोजन और पानी।अकेले ना जायें,हो सके तो पूरे परिवार के साथ जायें।
आसाम में कामाख्या मन्दिर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोधूलीबाजार नामक स्थान पर रहने का सुअवसर अपने विद्यार्थी जीवन में मिला।उन दिनों की यादेंं आज भी मुझमें अद्भूत चेतना का संचार करती रहती हैं।प्रकृति का सौन्दर्य बिखरा पड़ा था चारो ओर,और लोग उत्साहित,निश्छल,अद्भूत प्रेम से भरे थे।सड़क एक ओर गौहाटी को जाती थी और दूसरी ओर एयरपोर्ट को।इसके दोनों तरफ बने घरों का विन्यास कम आकर्षक नहीं था।कटहल,केला,आम,सुपारी और अन्य बहुतायत सघन हरे-भरे पेड़ों की छाया और आसपास खिले हुए फूलों ने पूरी दृश्यावली को मनोरम बना दिया था।शाम होते ही युवक-युवतियाँं,बालक-वृद्ध सभी अपने समवयस्क झुण्डों में घर से बाहर निकल पड़ते थे।विशेष परिधान मेखला से सुसज्जित बहुएं और लड़कियाँ मृदुल मुस्कान से पूरे वातावरण में अद्भूत जोश भरती थीं।बहुतेरी औरतें सुपारी और पान खाते-खिलाते हुए अपने देवालयों अथवा झील की ओर निकल जाती थीं।जिस घर में रहता था,वहाँ की बहू की दिनचर्या देखकर मुझे प्रसन्नता के साथ आश्चर्य भी होता था।उसकी गोद में नन्हा सा बच्चा था।गाय के लिए चारा काटना,खिलाना,दूध निकालना,करघे पर कपड़ा बुनना,सबके लिए चाय,नाश्ता और भोजन बनाना,अपने बच्चे को सम्हालना सबकुछ करती रहती थी।मैंने कभी उसे उदास या थका हुआ नहीं देखा।मुझे भी कई बार उन लोगों के साथ झील पर जाने का अवसर मिला।उनके सौन्दर्य और पवित्र भावों को देखकर लगा कि इन्होंने प्रकृति से आवश्यक गुणोंं को सीखा और आत्मसात किया है।
कहीं किसी विदेशी डाक्टर के बारे में पढ़ा हुआ एक प्रसंग याद आ रहा है।उसके पास बहुत समय से एक सम्भ्रान्त रोगी आया करता था।उसने पहले भी बहुत से डाक्टरों से अपना उपचार करवाया था और बहुत सी दवाईयाँ खायी थीं।कोई लाभ नहीं हो रहा था।बीमारी के सारे लक्षणों के अनुसार इस डाक्टर ने भी उपचार किया।निराशा ही हाथ लगी।एक दिन अपने रोगी के बारे में सोचता हुआ डाक्टर हँस पड़ा।आसपास के लोगोंं ने आश्चर्य से उसे देखा।उसने अपनी गाड़ी निकाली और रोगी के घर पहुँच गया।
वह रोगी अपने आलीशान भवन में उदास सोया हुआ था।अचानक डाक्टर को आया देखकर उसे सुखद आश्चर्य हुआ।उसने महसूस किया कि जो डाक्टर उससे बात करते हुए हमेशा चिंतित रहता था,आज खुश दिख रहा है और चलकर मेरे पास आया है।स्मित प्रसन्नता उसे भी हुई और उसने उत्साह से स्वागत किया।डाक्टर ने आनन्द में कहा,"आज से आपकी सारी दवाईयाँ बन्द।अब आपको कोई दवा लेने की जरुरत नहीं है।"
रोगी ने उसकी ओर चिन्तातुर होकर देखा।
"आप मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दीजिए,"डाक्टर ने कहा।
रोगी पूरी सजगता के साथ उठ बैठा।
"नहीं,कोई कठिन प्रश्न नहींं है,"डाक्टर ने उल्लास और सहृदयता से कहा,"आप कभी किसी बगीचे में गये हैं?फूलों की क्यारियों को देखा है?बगीचे में उड़ते,फुदकते,चोंच से चोंच मिलाते पक्षियों को देखा है?"
उसने बताया कि उसका अपना विस्तृत फार्महाउस है,बड़े-बड़े बाग-बगीचे हैं परन्तु उसे याद नहीं कि कभी गया है।
"तो,अब जाईये।चिड़ियों को देखिये।उन्हें दूर से देखिये।उनका उड़ना देखिये,उनका फुदकना देखिये और देखिये कैसे घण्टों वे एक ही धून में रहते हैं।उनका दाना चुगना देखिये और यह भी देखिये कि वे कैसे अपना भोजन,कीट-पतंगों को खोज निकालते हैं।उनका एक-दूसरे से प्रेम-सहकार देखिये और भौंरों को देखिये।फूलों पर मडराती मधुमख्खियों को देखिये।फूलों की पंखुडी को देखिये।खिल रही कलियों को देखिये।उनके पास पूरी श्रद्धा से बैठकर उनके हर क्षण के विकास और बदलाव को महसूस कीजिये।घर में पलंग पर पड़े रहने के बजाय जितना समय अपने बाग-बगीचे में बितायेगें,उतना ही आप स्वास्थ्य-लाभ करेगें।
ऐसा ही हुआ।उसने अपने को बदला।नित्य बगीचे में जाने लगा।बहुत से पक्षियों को पहचानना शुरु कर दिया।अनाज के दाने बिखेरा।उनके संगीत से प्रेम करने लगा,उनके प्रेम-सहयोग को देखा और महसूस किया,इनका प्रेम अद्भूत है।
उसने फूलों के पौधे लगाये,सिचाई-गुड़ाई की,खाद-पानी दिया।मौसम के साईकिल-चक्र को समझा।हवा में शीतलता,उमस,नमी और उष्मा के अन्तर को समझा।तालाब में पाली हुई रंग-बिरंगी मछलियों को बैठकर घण्टों निहाराऔर आनन्दित हुआ।रोगी नहीं,प्रकृति-प्रेमी बन गया।उसके मन में उत्साह था और उसने ईश्वर को,उनके प्रकाश को चतुर्दिक महसूस किया।