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बदलते हुए लोग

1 मार्च 2019

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श्री रमेश नीलकमल द्वारा सम्पादित"एक और आसमान" में संकलित कहानी

बदलते हुए लोग

विजय कुमार तिवारी

स्थितियाँ धीरे-धीरे बदलती हैं तो रिश्ते-नाते भी नयी-नयी शक्ल लेने लगते हैं।दीना पांडे के घर का माहौल भी कुछ इसी दिशा में जा रहा है परन्तु वे मानने को तैयार नहीं हैं।उनकी एक ही रट है कि बाप,बाप होता है और बेटा,बेटा।

रतन ने अपने तई सामंजस्य कर लिया है।अब वह नहीं बोलता,बाप से जिरह-बहस नहीं करता,बस चुपचाप अपना काम करता रहता है।काम का अपना सुख है।जीवन का आनन्द इसी में है।गाँव की हवा-पानी में रहकर भी वह ऐसा नहीं है।बीड़ी,गांजा,भांग से मीलों दूर रहकर अपने काम से मतलब रखने वाला शायद ही आज के गाँवों में टिक सके।पर,रतन टिका हुआ है और टिका रहेगा।

श्रम की जो परम्परा उसके परिवार में चली रही है उसे आज उसने अपने कंधों पर उठा लिया है। पूरी तरह लगा हुआ है रतन।

दीना पांडे का बड़ा लड़का सपरिवार गाँव आने वाला है।पूरा परिवार बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है।तीन साल पहले बहू भी चली गयी थी।जबसे बहू गयी है,रुपये-पैसे तो दूर,चिठ्ठियाँ भी आनी बंद है।पहले हर माह पाँचवी,सातवीं तारीख तक डाकखाना से दीना पांडे एक रकम ले आते थे।बहू के जाने से खर्च बढ़ गया होगा,यही सोचकर अब संतोष कर लेते हैं।कभी-कभार छ्ठे-छमासे चिठ्ठी गयी तो नाती-पोतों का समाचार मिल जाता है।इस पर रतन की माँ कभी-कभी चिढ़ती है।दीना पांडे समझा देते हैं,"बाल-बच्चों का भविष्य देखना ही है।अब यहाँ दादी की गोदी में पढ़ाई-लिखाई तो होगी नहीं।पढ़ाने के लिए वहाँ रहना जरुरी है।मैने उसे पढ़ाया।अब वह अपने बच्चों पर ध्यान दे तो अच्छा ही है।"

रतन की माँ प्रतिवाद करना चाहती है।दीना पांडे चुप करा देते हैं,कहते हैं,"यही क्या कम महत्व की बात है कि मेरा लड़का बाहर कमाता है।"

चिठ्ठी पाकर दीना पांडे उतावले हो उठे।उन्होंने जोर से कहा,"अरे रतन की माँ,देखो बड़का घर रहा है,बाल-बच्चे भी रहे हैं।"

इस खुशी,उत्साह और प्रतीक्षा में रतन भी है।उसने खांची उठायी और सरेह की ओर चल पड़ा।ठिगना कद,छोटी-छोटी मुंछें,पिचके हुए गाल,हल्की सी बेतरतीब उगी दाढ़ी,बिल्कुल बाप पर गया है।

लहलहाती हुई खेती देखकर उसका मन खिल उठा।खेतों में बालियाँ निकल आयीं हैं।हवा के संस्पर्श से पौधे हिल-डुल रहे हैं।दूर तक फैली हुई फसल कभी इधर झुकती है,कभी उधर तो एक तरह का संगीत फुटता है।रतन अनुभव करता है-धरती,आकाश,हवा,पानी और उसके श्रम से निर्मित संसार का संगीत है यह। दूर-दूर तक फैले हुए,खुले-खुले से खेतों का सौन्दर्य उसके अथक श्रम का उपहार है।

सरेह जाने के पहले उसने बैलों को नाद पर चढ़ाकर सानी-पानी डाल दिया था।यह रोज का नियम है।जल्दी-जल्दी उसने चारा समेटा और घर की ओर चल पड़ा।अब दिन गर्म होने लगे हैं अन्यथा माघ की ठंड में हाथ-पाँव ठिठुर जाते थे।शरीर पर पर्याप्त कपड़े भी नहीं रहते कि भीषण ठंड की मार से बचा सके।इस तरह ठिठुर-ठिठुर कर उसने पूरी शीत झेली है।

रतन ने दूर से ही देखा कि बैल मुँह उठाये इधर-उधर देख रहे हैं।उसे खीझ सी हुई-दुआर पर बैठे-बैठे गप्पबाजी होती रहेगी,चिलम का धुँआ निकलता रहेगा परन्तु किसी से यह नहीं होगा कि एक खांची लेहन नाद में गोत दे।उसे खेतों की तरह अपने जानवरों से भी प्यार है।उनके वशीभूत रहता है।खा-पीकर जब वे टन्न हो जाते हैं तो रतन उनकी पीठ पर हाथ फेरता है,उनकी पुष्ट मांसपेशियाँ देखता है और गद्गद होता है।हमेशा वह इस कोशिश में रहता है कि कभी भी उनकी रोहानी में कमी नहीं आये।

माथे का बोझ उसने पलानी में पटका और जल्दी-जल्दी लेहन गोतने लगा।जब फिर से बैलों ने नाद में मुँह डाल लिया तो वह गाय दुहने में लग गया।जब सारा काम हो गया तब उसने दतुअन उठायी।

उधर घर के भीतर शोर मचा हुआ था।माँ गालियाँ दे रही थी।उसने जल्दी-जल्दी कुल्ला किया और भीतर पहुँच गया।स्थिति उसकी समझ में नहीं आयी।तब उसने माँ से ही पूछा,"काहें हल्ला हो रहा है?"

"जो,मेहरी से पूछ,हमसे काहें पूछता है?"

उसने माँ की ओर देखा।माँ का रौद्र रुप देखकर वह डर गया।यही तो होता रहा है हमेशा से।डरता और सहमता रहा है वह।कभी माँ से तो कभी बाप से।वह दुखी हो उठा।

"अच्छा चुप रहो,"बाप ने समझाना चाहा।

"का चुप रहीं?घर नहीं रह गया है अब।महामाया का नाज-नखरा बरदाश्त नहीं होता।अब ले जाये रतना,जहाँ मन आवे।बिला जाये दोनो,"माँ रोने लगी।उस रुदन में आलाप-प्रलाप अधिक था,रोना कम।

आखिर कहाँ जाये वह?पढ़ाई-लिखाई तो हुई नहीं।अब तो पढ़े-लिखे लोगों को भी दर-दर भटकना पड़ता है।भला मुझ बेपढ़ा को कौन पूछेगा?जब पढ़ने की उम्र थी तो बाप ने ही बँटवारा कर दिया था,बड़ा बेटा बाहर कमायेगा,छोटका खेती-बारी देखेगा। तब से वह लगातार देख ही रहा है।खेतों का उत्पादन बढ़ा ही है।घर का सारा खर्च इसी खेती पर है।कमाकर कितना भेजता है भैया,क्या मालूम नहीं है?नहीं होता रतन तब मालूम पड़ता।

"तुम तो बीमार हो,"रतन ने कमली के माथे पर हाथ रखा और सिहर उठा,"शरीर में ताप है और मुझे बताया नहीं।"

"आते ही कहाँ हैं आप?"कराहते हुए कमली ने धीरे से कहा।

तड़प कर रह गया वह।कैसे आये?दिन भर खेतों में काम,सुबह-शाम दुआर पर गोरु-बैलों के साथ,बाजार-हाट जाना,पल भर को भी आराम कहाँ?यहाँ तो दम लेने तक की फुर्सत नहीं।रतन मन ही मन डर उठा,कहीं कोई भयंकर बीमारी तो नहीं।

धीरे-धीरे उस पर एक तरह का क्रोध हावी होने लगा।ऐसी हालत हो चली और किसी ने ध्यान तक नहीं दिया।मुझे बताया तक नहीं।दिन-रात जांगर खटा रही है बेचारी।उस पर विपत्ति आयी है तो कोई आगे-पीछे तक नहीं।सबसे अधिक गुस्सा उसे अपनी माँ पर रहा था।बाहर बैठे-बैठे गालियाँ दे रही है।यह नहीं होता कि हालात मालूम करे।आवेश में उसने माँ को पुकारा,"देख रही हो,क्या हुआ है इसे?"

बिना कुछ बोले माँ वापस चली गयी।उसे अच्छा नहीं लगा।उसने बाप से पूछा।कोई जवाब नहीं मिला।गाँव में कोई डाक्टर नहीं,कोई बैद्य नहीं।बाहर जाने के लिए पैसा नहीं।

पुरवा हवा चलने लगी।उसका पोर-पोर दुखने लगा।मन पहले से ही दुखी था।शरीर की हालत ठीक नहीं थी।रतन बाहर निकल आया।

माँ किसी औरत से अपना दुखड़ा रो रही थी।बहू कुलच्छनी है।उसका पउरा ठीक नहीं है।जब से आयी है,परिवार में अशान्ति फैल गयी है।रतना उसी की सुनता है।कई सालों के बाद पाँव भारी हुआ है तो नखरा पसार रही है।अरे यह क्या वही जनेगी बच्चा?हमने भी जना है।

रतन ने जैसे अनसुना कर दिया।चुपचाप दुआर पर चला गया।लेहन को भरकने के लिए खोलकर पसार दिया।हवा लगने से ताजगी बनी रहती है,नहीं तो,औंसाकर महकने लगता है।गोरु-बैल नाद में मुँह तक नहीं लगाते।

लोहार के यहाँ से कल ही सान धराकर गड़ाँसी लाया था।धार तेज थी।सोचा,कुट्टी ही काट ले।सरेह जाने का मन नहीं किया।रतन कुट्टी काटने लगा।उसे बाप पर गुस्सा रहा था कि बार-बार आग्रह के बावजूद अभी तक चारा-मशीन नहीं खरीदी गयी।गाँव में अदना से अदना आदमी के घर चम्पाकल लग गया है पानी के लिए और कुट्टी काटने के लिए चारा-मशीन।यहाँ तो सब काम के लिए रतना है ही,क्या जरुरत?

रतन कुट्टी काट रहा था और ध्यान कहीं और था।मन की पीड़ा उसे बार-बार कुरेद रही थी।ऐसे में अचानक गड़ाँसी का एक भरपूर वार उसके हाथ पर लगा।अँगूठा के बगल से मांस का लोथड़ा बाहर निकल आया।खून की धारा बह चली।उसने बहुतेरा कोशिश की कि खून का बहना बन्द हो जाय। गमछे से बाँध लिया,फिर भी रिसाव बन्द नहीं हुआ तो यों ही छोड़कर खाट पर पड़ गया।

छोटन ने देख लिया।हल्ला मचाया कि भैया का हाथ कट गया।खून बह रहा है।उसने पड़ोसन चाची से मलहम माँगा।दीना पांडे हल्ला सुनकर बाहर निकले।उड़ती निगाहों से उन्होंने रतन को देखा।मन ही मन गुस्सा हुए,"ससुरा अन्धा हो गया है।काट लिया हाथ,दो-चार दिनों तक काम करने से जान जो बचेगी।"

रतन हाथ कटने से जितना दुखी नहीं था,इन स्थितियों से कहीं अधिक दुखी हुआ।घर में दूसरों की पीड़ा के प्रति लोगों के दिलों में जगह नहीं।ओह ऐसी शुष्कता,ऐसी हृदय-शून्यता?

कमली की दशा निरन्तर खराब होती जा रही है।शादी के कई सालों बाद भगवान की दया हुई है।रतन खुश है,कमली खुश है कि घर में बच्चा होगा,दोनो का अपना बच्चा।दोनो माँ-बाप बनेंगे।

हाथ कटने की बात सुनकर कमली के चेहरे पर पीड़ा उभर आयी।परन्तु लाचार थी,दुआर तक जा नहीं सकती थी।उसने छोटन से कहा कि भैया को भीतर बुला लाये।

धीरे-धीरे जब खून का रिसना बन्द हुआ तो रतन ने घर जाने के लिए उठना चाहा।चक्कर सा गया।आँखों के सामने अंधेरा छा गया।दीवार का सहारा लिया।खड़ा हो गया।वहीं बछड़ा बँधा था।उसने रतन के दूसरे हाथ को चाटना शुरु कर दिया।रतन का मन भर आया।बछड़े को थपथपाकर,विह्वल होता हुआ वह घर की ओर चल पड़ा।

"कहा था कि मत जाईये,"व्यथित हुई कमली उठ बैठी,"कुछ खाकर भी नहीं गये थे।"

"कहाँ कटा है?"भीतर आते हुए माँ ने पूछा।

कमली झट से खड़ी हो गयी।रतन ने अपना कटा हाथ बढ़ा दिया।इधर-उधर देखकर जैसे वह आश्वस्त हो गयी,चिन्ता की कोई बात नहीं।देर तक खड़ी रहने लायक स्थिति कमली की नहीं थी।शरीर से लाचार थी।कमर और पाँव में बहुत दर्द था।आखिर बैठ गयी।

"लाज और शरम भी नहीं है इस घर में,"माँ बुदबुदाती हुई बाहर चली गयी।

कमली दहशत से भर गयी।अब घण्टों माँ का रामायण जारी रहेगा।दुनिया भर की गालियाँ उसके हिस्से आयेंगी।अचानक जाने क्या हुआ,उसके पेट में मरोड़ होने लगी।खून का एक रेला निकला और बिस्तर पर पसर गया।कमली बेहोश हो गयी।घर में कुहराम मच गया।चमईन बुलायी गयी।गाँव की समझदार और अनुभवी औरतों को भी बुलाया गया।किसी की अक्ल काम नहीं कर रही थी।कमली पीड़ा से छटपटा रही थी।रतन असहाय खड़ा था।अंततः चार माह का गर्भ नष्ट हो गया।फफक कर रो पड़ी कमली।रतन उदास देखता रह गया।उसे हाथ की पीड़ा नहीं थी।दुख था तो बस यही कि कमली को डाक्टर से नहीं दिखा पाया।ईलाज होता तो शायद ऐसा नहीं होता। वे दोनो माँ-बाप बनते ही।यह सब इसीलिए हुआ कि उसके पास पैसा नहीं है।इतना श्रम करके भी वह मुँहताज है।बात आयी-गयी हो गयी परन्तु उसके मन में नासूर की तरह बैठ गयी।

दीना पांडे गाँव वालों से फसल की चर्चा कर रहे थे।लोगों ने कहा कि रतना के परिश्रम से इस साल फसल काफी अच्छी हुई है।खा-पीकर पाँच हजार से उपर का अनाज बिकेगा।घर में माँ से औरतें कह रही थीं कि बहू के चलते आराम ही आराम है।बेचारी दिन भर काम में लगी रहती है।उपर से तुम्हारा तेल-फुलेल भी कर देती है।

बड़का महीना भर की छुट्टी पर गाँव गया।गाँव की आबोहवा बदली बदली सी लगी। बच्चे गाँव आकर बहुत खुश हुए।अक्सर अपने छोटन चाचा के साथ सरेह में निकल जाते।बेटे ने माँ और कमली के लिए साड़ी,बाप के लिए धोती-कुर्ता और रतन,छोटन के लिए कपड़े-लत्ते खरीदे थे।बहू ने एक मुठ्ठी पाँच सौ रुपया माँ की हथेली में रख दिया।

कमली की हालत देखकर बड़ी बहू ने कहा,"डाक्टर से दिखाना चाहिए,जल्दी ठीक हो जायेगी।"

माँ ने कहा,"नहीं बहू,यह क्या ठीक होगी?जब से आयी है,ऐसी ही है।उसकी चिन्ता छोड़ो।थकान होगी।जा,थोड़ा आराम कर ले।"

बड़ी बहू ने मुस्कराकर पति की ओर देखा।रास्ते की थकान के चलते हल्का सा बुखार हो गया।माँ चिन्तित हो उठी।यह दवा,वह ईलाज,दौड़-धूप तेज हो गयी।दीना पांडे ने कहा,"देखना,बहू को कोई कष्ट हो।दो-चार दिनों के लिए आयी है बेचारी।"

कमली और रतन चुपचाप माँ-बाप को देख रहे थे।जीवन-समीकरण के कुछ सूत्र उनकी समझ में आने लगे।

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कविताप्यार के बहुतेरे रंगविजय कुमार तिवारीयाद करो मैंने पूछा था-तुम्हारी कुड़माई हो गयी?यह एक स्वाभाविक प्रश्न था,तुमने बुरा मान लिया, मिटा डाली जुड़ने की सारी सम्भावनायेंऔर तोड़ डाले सारे सम्बन्ध। प्यार की पनपती भावनायें वासना की ओर ही नहीं जाती,वे जाती हैं-भाईयों की सुरक्षा में,पिता के दुलार में,व

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ट्रेन यात्रा

18 दिसम्बर 2018
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कहानीट्रेन यात्राविजय कुमार तिवारी(यह कहानी उन चार लड़कियों को समर्पित है जो ट्रेन में छपरा से चली थीं और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जा रही थीं।वे वहीं की छात्रायें थीं।)"खड़े क्यों हैं,बैठ जाईये,"एक लड़की ने जगह बनाते हुए कहा।थोड़े संकोच के साथ भरत बैठ गया।"आराम से बैठिय

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स्नेह निर्झर

3 जनवरी 2019
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कवितास्नेह निर्झरविजय कुमार तिवारीऔर ठहरें,चाहता हूँ, चाँदनी रात में,नदी की रेत पर।कसमसाकर उमड़ पड़ती है नदी,उमड़ता है गगन मेरे साथ-साथ। पूर्णिमा की रात का है शुभारम्भ,हवा शीतल,सुगन्धित।निकल आया चाँद नभ में,पसर रही है चाँदनी मेरे आसपास,सिमट रही है पहलू में।धूमिल छवि ले रही आकर,सहमी,संकुचित लिये वयभा

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बूढ़ा आदमी

6 जनवरी 2019
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कविता(मौलिक)बूढ़ा आदमीविजय कुमार तिवारीथक कर हार जाता है,बेबस हो जाता है,लाचारजबकि जबान चलती रहती है,मन भागता रहता है,कटु हो उठता है वह,और जब हर पकड़ ढ़ीली पड़ जाती है,कुछ न कर पाने पर तड़पता है बूढ़ा आदमी। कितना भयानक है बूढ़ा हो जाना,बूढ़ा होने के पहले,क्या तुमने देखा है कभी-तीस साल की उम्र को बूढ

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देश बचाना

13 जनवरी 2019
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कवितादेश बचानाविजय कुमार तिवारीस्वीकार करुँ वह आमन्त्रणऔर बसा लूँ किसी की मधुर छबि,डोलता फिरुँ, गिरि-कानन,जन-जंगल, रात-रातभर जागूँ,छेडूँ विरह-तानरचूँ कुछ प्रेम-गीत,बसन्त के राग। या अपनी तरुणाई करुँ समर्पित,लगा दूँ देश-हित अपना सर्वस्व,उठा लूँ लड़ने के औजारचल पड़ूँ बचाने देश,बढ़ाने तिरंगें की शान। कु

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विम्ब का ये प्यार

15 जनवरी 2019
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गीत(09/05/1978)विम्ब का ये प्यारविजय कुमार तिवारीकौन दूर से रहा निहार?दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार, विम्ब का ये प्यार। पोखरी से फिसल चले हैं पाँव ये,जिन्दगी की कैसी है ढलाँव ये। आज हाथ केवल है हार,दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,विम्ब का ये प्यार। धड़कने सिसकाव का सहारा ले,मिट रही बढ़त यहाँ किनारा ले। अदाय

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बचपन की यादें

18 जनवरी 2019
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कहानीबचपन की यादेंविजय कुमार तिवारीये बात तब की है जब हमारे लिए चाँद-सितारों का इतना ही मतलब था कि उन्हें देखकर हम खुश होते थे।अब धरती से जुड़ने का समय आ गया था और हम खेत-खलिहान जाने लगे थे।धीरे-धीरे समझने लगे थे कि हमारी दुनिया बँटी हुई है और खेत-बगीचे सब के बहुत से मालिक हैं।यह मेरा बगीचा है,मेरी

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अन्तर्यात्रा का रहस्य

22 जनवरी 2019
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अन्तर्यात्रा का रहस्यविजय कुमार तिवारीकर सको तो प्रेम करो।यही एक मार्ग है जिससे हमारा संसार भी सुव्यवस्थित होता है और परमार्थ भी।संसार के सारे झमेले रहेंगे।हमें स्वयं उससे निकलने का तरीका खोजना होगा।किसी का दिल हम भी दुखाये होंगे और कोई हमारा।हम तब उतना सावधान नहीं होते जब हम किसी के दुखी होने का का

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गुरु और चेला

28 जनवरी 2019
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व्यंग्यगुरु और चेलाविजय कुमार तिवारीबाबा गुरुचरन दास की झोपड़ी में सदा की तरह उजाला है जबकि सारा गाँव अंधकार में डूबा रहता है।पोखरी के बगल में पे़ड के पास उनकी झोपड़ी सदा राम-नाम की गूँज से गुंजित रहती है।बाबा ने कभी इच्छा नहीं की,नहीं तो वहाँ अब तक विशाल मन्दिर बन चुका ह

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स्त्री-पुरुष

29 जनवरी 2019
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कहानीस्त्री-पुरुषविजय कुमार तिवारीइसके पीछे कुछ कहानियाँ हैं जिन्हें महिलाओं ने लिखा है और खूब प्रसिद्धी बटोर रही हैं।कहानियाँ तो अपनी जगह हैं,परन्तु उनपर आयीं टिप्पणियाँ रोचक कम, दिल जलाने लगती हैं।लगता है-यह पुरुषों के प्रति अन्याय और विद्रोह है।रहना,पलना और जीना दोनो को साथ-साथ ही है।दोनो के भीतर

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आतंक

4 फरवरी 2019
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कविता(मौलिक)आतंकविजय कुमार तिवारीचलो, मुझे उस मोड़ तक छोड़ दो,सांझ होने को है,अंधियारे जाया नहीं जायेगा। न हो तो बीच वाले मन्दिर से लौट आना,या उस मस्जिद से,जहाँ सड़क पार चर्च है।अस्पताल तक तो पहुँचा ही देनाचला जाऊँगा उससे आगे। ऐसा नहीं कि हिन्दुओं से डरता हूँ,मुसलमानों से भी नहीं डरता,सिखों या किसी

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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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पुरानी यादे

7 फरवरी 2019
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पुरानी यादेंविजय कुमार तिवारी1983 में 4 सितम्बर को लिखा-डायरी मेरे हाथ में है और कुछ लिखने का मन हो रहा है। आज का दिन लगभग अच्छा ही गुजरा है।ऐसी बहुत सी बातें हैं जो मुझे खुश भी करना चाहती हैं और कुछ त्रस्त भी।जब भी हमारी सक्रियता कम होगी,हम चौकन्ना नहीं होंगे तो निश्चित मानिये-हमारी हानि होगी।जब हम

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प्रेम का मौसम

9 फरवरी 2019
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प्रेम का मौसमविजय कुमार तिवारीप्रेम का मौसम चल रहा है और बहुत से युवा,वयस्क और स्वयं को जवान मानने वाले वृद्ध खूब मस्ती में हैं।इनकी व्यस्तता देखते बनती है और इनकी दुनिया में खूब भाग-दौड़ है।प्रयास यही है कि कुछ छूट न जाय और दिल के भीतर की बातें सही ढंग से उस दिल तक पहुँच

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चुनाव 2019

10 फरवरी 2019
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चुनाव-2019विजय कुमार तिवारीहम वोट देने वाले हैं।वोट देना हमारा अधिकार है और कर्तव्य भी।यह बहुत संयम, धैर्य और विचार का विषय है।आज से पहले शायद कभी भी हमने इस तरह नहीं सोचा।चुनाव आयोग और हमारे संविधान ने इस विषय में बहुत से दिशा-निर्देश जारी किये हैं।हम सभी सामान्य वोटर को बहुत कुछ पता भी नहीं है।कई

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आत्म-बोध

15 फरवरी 2019
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पहली मुलाक़ात

21 फरवरी 2019
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कवितापहली मुलाकातविजय कुमार तिवारीयह हठ था या जीवन का कोई विराट दर्शन,या मुकुलित मन की चंचल हलचल?रवि की सुनहरी किरणें जागी,बहा मलय का मधुर मस्त सा झोंका,हुई सुवासित डाली डाली, जागी कोई मधुर कल्पना।शशि लौट चुका थानिज चन्द्रिका-पंख समेटे। उमग रहे थे भौरे फूलों कलियों में,मधुर सुनहले आलिंगन की चाह संजो

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शादी की पीड़ा

23 फरवरी 2019
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प्यार ही डसने लगा

28 फरवरी 2019
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प्यार ही डंसने लगाविजय कुमार तिवारीतुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हो गये अपने पराये,आईना छलने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हर हवा तूफान सी,झकझोर देती जिन्दगी,धुंध में खोया रहा,पतवार भी डुबने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?चाँद तारे छुप गये हैं,दर्द के शैलाब में,ढल गया दिल का उजाला,

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बदलते हुए लोग

1 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिये

5 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिएविजय कुमार तिवारीबच्चा जैसे ही अपने आसपास को देखना शुरु करता है उसके मन में प्रश्न कुलबुलाने लगते हैं।वह जानना चाहता है,समझना चाहता है और पूछना चाहता है।जब तक बोलने नहीं सीख जाता,व्यक्त करने नहीं सीख जाता,उसके प्रश्न संकेतों में उभरते हैं।उसे यह धरती,यह आकाश,य

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विज्ञापन

22 मार्च 2019
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कविताविज्ञापनविजय कुमार तिवारीजागते ही खोजती है अखबार,झुँझलाती है-कि जल्दी क्यों नहीं दे जाता अखबार। अखबार में खोजती है-नौकरियों के विज्ञापन। पतली-पतली अंगुलियों से,एक -एक शब्द को छूती हुई,हर पंक्ति पर दृष्टि जमाये,पहुँच जाती है अंतिम शब्द तक। गहरा निःश्वांस छोड़ती है

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महत् चिंतन

4 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपाय

5 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपायविजय कुमार तिवारीसंसार में सभी सुख चाहते हैं,दुख कोई नहीं चाहता,जबकि कोई सुखी नहीं है, सभी दुखी हैं।कबीर दास जी ने कहा है कि सारा संसार दुख से भरा है।मेरा मानना है कि हमें सत्य दिखता नहीं।हम असत्य देखने के आदी हो गये हैं।हम झूठ देखते हैं और अपनी सुविधा से

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मि. ख़ का शहर

9 अप्रैल 2019
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प्रेम के भूख

5 सितम्बर 2019
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प्रेम की भूखविजय कुमार तिवारीसभी प्रेम के भूखे हैं।सभी को प्रेम चाहिए।दुखद यह है कि कोई प्रेम देना नहीं चाहता।सभी को प्रेम बिना शर्त चाहिए परन्तु प्रेम देते समय लोग नाना शर्ते लगाते हैं।प्रेम में स्वार्थ हो तो वह प्रेम नहीं है।हम सभी स्वार्थ के साथ प्रेम करते हैं।प्रेम कर

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नदी के दावेदार

28 सितम्बर 2019
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छमा करना

1 अक्टूबर 2019
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मशाल

4 अक्टूबर 2019
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करूँ-ह्रदय

11 अक्टूबर 2019
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दुःख

12 अक्टूबर 2019
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दुनिया युद्ध के महाविनाश की ओर जा रही है।यदि ऐसा हुआ तो किसी न किसी रुप में हम सभी प्रभावित होंगे।वैसे ही दुनिया में लोग अनेकानेक कारणों से दुखी हैं।हम में से बहुत लोग ऐसे हैं जिन्हे कोई न कोई दुख है।हम मिलकर उनका समाधान खोज सकते हैं और दुखों से बचाव कर सकते हैं।कम से कम हम चर्चा तो करें।कोई न कोई स

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उद्बोधन

22 नवम्बर 2019
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उद्बोधनविजय कुमार तिवारीलम्बे अन्तराल के बाद आज कुछ उद्बोधित होने की प्रेरणा जाग रही है।खिड़की से बाहर की दुनिया बड़ी मनोरम दिख रही है।आसमान नीला और शान्त है।मन भी नीरव-शान्ति की अनुभूति से ओत-प्रोत है।कौन कहता है कि हमारा जन्म दुख-भोग के लिए ही है?हमें स्वयं में डुबकी लगाने नहीं आता।हमारी सारी समस्

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ईशावास्योपनिषद के आलोक में

11 जनवरी 2020
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ईशावास्योपनिषद के आलोक मेंविजय कुमार तिवारीवेदान्त कहे जाने वाले उपनिषदों ने भारतीय जनमानस को बहुत प्रभावित किया है और हमारी चेतना जागृत की है।आज हमारे युवा पथ-भ्रमित और विध्वंसक हो रहे हैं,उन्हें अपने धर्म-ग्रन्थों विशेष रुप से वेदान्त के रुप में जाना जाने वाले उपनिषदों को पढ़ना और उनका अनुशीलन करन

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विवेकानंद के बहाने

12 जनवरी 2020
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विवेकानन्द के बहानेविजय कुमार तिवारीस्वामी विवेकानन्द जी ने उद्घोष किया था,"उठो,जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।"भारत के उन्हीं महान सपूत की आज जन्म-जयन्ती है।बहुत श्रद्धा पूर्वक याद करते हुए मैं उन्हें नमन करता हूँ।आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है और उनके चरणो में श्रद्धा-सुमन

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निर्भया के बहाने

20 मार्च 2020
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निर्भया के बहानेविजय कुमार तिवारीअन्ततः आज २० मार्च २०२० को निर्भया के दोषियों को फांसी हो ही गयी।१६ दिसम्बर २०१२ को निर्भया के साथ दरिन्दों ने जघन्य अपराध किया था।पूरा देश उबल पड़ा था और हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था पर नाना तरह के प्रश्न खड़े किये जा रहे थे।हमारा प्रशासन,हमारी न्याय व्यवस्था,हमारा राजनै

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जनता कर्फ्यू और हमारा देश

22 मार्च 2020
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जनता कर्फ्यू और हमारा देशविजय कुमार तिवारीप्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी के आह्वान पर आज २२ मार्च २०२० को पूरे देश ने अपनी एकता,अपना जोश और अपना मनोबल पूरी दुनिया को दिखा दिया।इस जज्बे को मैं हृदय से सादर नमन करता हूँ।राष्ट्रपति से लेकर आम नागरिकों तक ने ताली,थाली, घंटी,शंख और नगाड़े बजाकर अपना आभार

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कोरोना और स्त्री

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करोना और स्त्रीविजय कुमार तिवारीकल प्रधानमन्त्री ने देश मेंं कोरोना के चलते ईक्कीस दिनों के"लाॅकडाउन"की घोषणा की है।सभी को अपने-अपने घरों में रहना है।बाहर जाने का सवाल ही नहीं उठता।घर मेंं चौबिसों घण्टे पत्नी के साथ रह पाना,सोचकर ही मन भारी हो जाता है।किसी साधु-सन्त के पास इससे बचाव का उपाय नहीं है।

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महर्षि अरविंद का पूर्णयोग

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महर्षि अरविन्द का पूर्णयोगविजय कुमार तिवारीमहर्षि अरविन्द का दर्शन इस रुप में अन्य लोगोंं के चिन्तन से भिन्न है कि उन्होंने आरोहण(उर्ध्वगमन)द्वारा परमात्-प्राप्ति के उपरान्त उस विराट् सत्ता को मनुष्य में अवतरण अर्थात् उतार लाने की चर्चा की है।यह उनका एक नवीन चिन्तन है।गीता में दोनो बातें कही गयी हैं

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जिंदगी सुखद संयोगो का खेल है .

27 मार्च 2020
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कहानीजिन्दगी सुखद संयोगों का खेल है।विजय कुमार तिवारीरमणी बाबू को भगवान में बहुत श्रद्धा है।उसके मन मेंं यह बात गहरे उतर गयी है कि अच्छे दिन अवश्य आयेंगे।अक्सर वे सुहाने दिनों की कल्पना में खो जाते हैं और वर्तमान की छोटी-छोटी जरुरतों की लिस्ट बनाते रहते हैं।गाँव के लड़के स्कूल साईकिल पर जाते थे तो व

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धिक्कार है ऐसे लोगो पर

31 मार्च 2020
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धिक्कार है ऐसे लोगोंं परविजय कुमार तिवारीमन दहल उठता है।लाॅकडाउन में भी लाखों की भीड़ सड़कों पर है।भारत का प्रधानमन्त्री हाथ जोड़कर विनती करता है,आगाह करता है कि खतरा पूरी मानवजाति पर है।विकसित और सम्पन्न देश त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।विकास और ऐश्वर्य के बावजूद वे अपनी जनता को बचा नहीं पा रहे हैं।आज

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शहर प्रयोगशाला हो गया है

1 अप्रैल 2020
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कविताशहर प्रयोगशाला हो गया हैविजय कुमार तिवारीछद्मवेष में सभी बाहर निकल आये हैंं,लिख रहे हैं इतिहास में दर्ज होनेवाली कवितायें,सुननी पड़ेगी उनकी बातेंं,देखना पड़ेगा बार-बार भोला सा चेहरा।तुमने ही उसे सिंहासन दिया है,और अपने उपर राज करने का अधिकार।दिन में वह ओढ़ता-बिछाता है तुम्हारी सभ्यता-संस्कृति,उ

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मेरे आनंद की बाते

2 अप्रैल 2020
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मेरे आनन्द की बातेंविजय कुमार तिवारीकभी-कभी सोचता हूँं कि मैं क्योंं लिखता हूँ?क्योंं दुनिया को लिखकर बताना चाहता हूँ कि मुझे क्या अच्छा लगता है?मेरी समझ से जो भी गलत दिखता है या देश-समाज के लिए हानिप्रद लगता है,क्यों लोगों को उसके बारे में आगाह करना चाहता हूँ?क्यों दुनिया को सजग,सचेत करता फिरता हूँ

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हर युग में आते है भगवान

3 अप्रैल 2020
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कविताहर युग मेंं आते हैं भगवानविजय कुमार तिवारीद्रष्टा ऋषियों ने संवारा,सजाया है यह भू-खण्ड,संजोये हैं वेद की ऋचाओं में जीवन-सूत्र,उपनिषदों ने खोलें हैं परब्रह्म तक पहुँचने के द्वार,कण-कण में चेतन है वह विराट् सत्ता।सनातन खो नहीं सकता अपना ध्येय,तिरोहित नहीं होगें हमारे पुरुषोत्तम के आदर्श,महाभारत स

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5 अप्रैल 2020 ,रात 9 बजे 9 मिनट का प्रकाश-पर्व

5 अप्रैल 2020
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5 अप्रैल 2020,रात 9 बजे,9 मिनट का प्रकाश-पर्वविजय कुमार तिवारीविश्वास करें,यह कोई सामान्य घटना घटित होने नहीं जा रही है और ना ही आज का प्रकाश-पर्व एक सामान्य प्रकाश-पर्व है।ब्रह्माण्ड की ब्रह्म-शक्ति का आह्वान हम सम्पूर्ण देशवासी प्रकाश-पर्व मनाकर करने जा रहे हैं।हमारे भीतर स्थित वह दिव्य-चेतना जागृ

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विपत्ति में ही

7 अप्रैल 2020
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विपत्ति में हीविजय कुमार तिवारीप्राचीन मुहावरा है,"विपत्ति में ही अच्छे-बुरे की पहचान होती है।"मानवता के सामने सबसे भयावह और संहारक परिस्थिति खड़ी हुई है।पूरी दुनिया बेबस और लाचार है।हमारे विकास के सारे तन्त्र धरे के धरे रह गये हैं।कुछ भी काम नहीं आ रहा है।स्थिति तो यह हो गयी है कि जो जितना विकसित ह

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हमउम्र बूढ़ों का परिवार

8 अप्रैल 2020
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कविताहमउम्र बूढ़ोंं का परिवारविजय कुमार तिवारीमैंने सजा लिया है सारे हमउम्र बूढ़ों को अपने फ्रेम में,बना लिया है मित्रों का बड़ा सा समूह। रोज देखता रहता हूँ उनके आज के चेहरे,चमक उठती है पुतलियाँजीवन्त हो उठते हैं उनसे जुडे नाना प्रसंग। मुरझाये गालों और मद्धिम रोशनी लिये आँखें,आज भी कौंंध जाता है उनक

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-१

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-1विजय कुमार तिवारीसालों बाद कल रात उसने ह्वाट्सअप किया,"हाय अंकल ! कहाँ हैं आजकल?"उसने अंग्रेजी अक्षरों में "प्रणाम" लिखा और प्रणाम की मुद्रा वाली हाथ जोड़ेे तस्वीर भी भेज दी।प्रमोद को सुखद आश्चर्य हुआ और हंसी भी आयी।"कैसे याद आयी अंकल की इतने सालों बाद?"प्रमोद ने यूँ ही

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-२

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-2विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू भी इस माहौल से अछूते नहीं रहे।उनका मिलना-जुलना शुरु हो गया।कार्यालय में बहुत लोगों के काम होते जिसे बड़े ही सहृदय भाव से निबटाते और कोशिश करते कि किसी को कोई शिकायत ना हो।स्थानीय लोगों से उनकी अच्छी जान-पहचान हो गयी है।सुरक्षा बल के लोगों के

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-३

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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-3विजय कुमार तिवारी"मैं किसी से नहीं डरता,"मोहन चन्द्र पूरी बेहयायी पर उतर आये।प्रमोद बाबू ने अपने आपको रोका।सुबह की ताजी हवा में भी गर्माहट की अनुभूति हुई और दुख हुआ।हिम्मत करके उन्होंने कहा,"मोहन चन्द्र जी,दूसरों की जिन्दगी में टांग अड़ाना ठीक नहीं है।आपकी बात सही हो तब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-४

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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-4विजय कुमार तिवारी"ऐसा नहीं कहते,"प्रमोद बाबू भावुक हो उठे,"इतना ही कह सकता हूँ कि तुम अपनी उर्जा इन सब चीजों में मत लगाओ।"थोड़ा रुककर उन्होंने कहा,"दुनिया ऐसी ही है,लोग कहेंगे ही।तुम्हें तय करना है कि स्वयं को इन वाहियात चीजों में उलझाती हो और अपने को बरबाद करती हो या ब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-६

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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-6विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू दोनो महिलाओं और मोहन चन्द्र जी की भाव-भंगिमा देख दंग रह गये।सुबह दूध वाले की बातें सत्य होती प्रतीत होने लगी।उन्होंने मौन रहना ही उचित समझा।अन्दर से पत्नी भी आ गयी।मोहन चन्द्र बाबू उन दोनो महिलाओं से कुछ पूछते-बतियाते रहे।थोड़ी देर में पत्नी

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हमारी शादी की सैंतीसवी वर्षगाठ

27 अप्रैल 2020
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हमारी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठविजय कुमार तिवारीआज 27 अप्रैल को हम अपनी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं और सम्पूर्ण मानवता को बताना चाहते हैं कि परमात्मा के आशीर्वाद से,विगत सैंतीस वर्षों से चला आ रहा हमारा अटूट सम्बन्ध पूर्णतः उर्जावान और मधुर प्रेम से भरा हुआ है।आप सभी सुहृदजनों,सखा-सम्बन

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तुम्हारे प्रेम के नाम-२

1 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-2विजय कुमार तिवारीदुनिया तो वही है जो सबकी होती है परन्तु मेरे लिए जैसे बिल्कुल अजनबी हो चुकी है।जो जानी-पहचानी दुनिया थी उसे मैं बहुत पीछे छोड़ आया हूँ और यह नयी जगह,नयी दुनिया जैसे मुझे आत्मसात करने को तैयार ही नहीं है।इस दृष्टि से समूची नारी जाति के प्रति मेरा मन पूरी श

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तुम्हारे प्रेम के नाम-३

3 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-3विजय कुमार तिवारीतुमने अनेकों बार कुरेदा है मुझे,"कैसे मैं अपने को बचाता रहा और कैसे इस मतलबी दुनिया की शातिर चालों को समझ पाया।"तुमसे खुलकर कहना चाहता हूँ,सच बयान करता हूँ कि यह कोई मुश्किल काम नहीं है।हर व्यक्ति को थोड़ा सजग रहना चाहिए।थो

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वासना गद्दारो और नशेड़ियों का देश

5 मई 2020
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वासना,गद्दारों और नशेड़ियों से भरा देशविजय कुमार तिवारीवासना,गद्दारी या नशे में डूबे रहना यह सब मनुष्य के अधःपतन का द्योतक है और आज की स्थिति देखकर लगता है कि हमारे देश में बहुतायत ऐसे ही लोग हैं।मैं मानता हूँ कि हमे निराश नहीं होना चाहिए परन्तु ये परिदृश्य कोई दूसरी कहानी तो नहीं कह रहे।कल देश में

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डा नन्द किशोर नवल जी की यादें

14 मई 2020
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डा0 नन्द किशोर नवल जी की यादेंविजय कुमार तिवारीपरमादरणीय मित्र,प्रख्यात आलोचक और साहित्यकार डा.नन्द किशोर नवल जी नहीं रहे।मेरा तबादला धनबाद से पटना हुआ था।9अप्रैल 1984 की शाम में बी,एम.दास रोड स्थित मैत्री-शान्ति भवन में प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से"राहुल सांकृत्यायन-जयन्ती"का आयोजन था।भाई अरुण कमल,ड

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