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नदी के दावेदार

28 सितम्बर 2019

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कहानी

नदी के दावेदार

विजय कुमार तिवारी

सुशीला बिलख उठी थी,मन में उठी शंका ने भयभीत कर दिया था तथा रो पड़ी थी वह।पहली बार उसे ज्ञात हुआ था कि दुनिया में शक्ति का बंटवारा किस तरह हुआ है।नहीं तो क्या कभी भी,किसी भी समय उसे झुकना पड़ा था?क्या झुका सका है किसी ने उसके परिवार को?अब तो झुकने और टूटने का जैसे सिलसिला ही शुरु हो गया है।डाक्टर मयंक भी घर में नहीं थे।हास्पिटल से आये नहीं थे।इस तरह अकेले में उसे अपनी पीड़ा कई गुनी अधिक लग रही थी।लग रहा था--जैसे विपत्तियों के हजारो-हजार पहाड़ एक साथ टूट पड़े हैं और उसके अस्तित्व को ही समाप्त कर देना चाहते हैं।

दोनो बच्चे सहमी-सहमी दृष्टियों से मम्मी को रोते हुए देख रहे थे।उनकी समझ में नहीं रहा था कि मम्मी को हो क्या गया है।मम्मी तो कभी रोती नहीं,हमेशा हँसती,खिलखिलाती रहती है,हँसाती रहती है।बच्चों के मन में छोटे-छोटे नाना प्रकार के प्रश्न तैर रहे थे,पर डर के मारे चुप थे।

"पापा अभी तक आये क्यों नहीं?"सोनू मन ही मन कसमसा रहा था।दीप उसकी मनोभावनाओं को नहीं समझ पा रही थी।अतः उदास-उदास देख रही थी।आज दोनो ने उधम-चौकड़ी मचानी बंद कर दी थी तथा मम्मी के आसपास ही मंडरा रहे थे।

"हमें चलना होगा,"सिसकियों के बीच सुशीला डाक्टर मयंक को फोन पर समझाने का प्रयास करने लगी।

"कहाँ?"

"मेरे मायके।तुमने कुछ सुना नहीं क्या?"

"क्या सुनाना है--तुम्हीं सुना दो,"मयंक ने हँस कर कहा।

"हे भगवान,तुम तो हर बात को मजाक में उड़ा देते हो।कुछ सुनते नहीं,कुछ समझते नहीं,"सुशीला की आवाज में घबड़ाहट और बेचैनी थी।

"आखिर हुआ क्या है सुशीला...घर में सब ठीक तो है ?तुम रो क्यों रही हो?

"अभी जाओ मयंक,अभी इसी वक्त।मुझे सबसे अधिक तुम्हारी ही जरुरत है।आह कैसे समझाऊँ..कितनी ब्यथित हूँ मैं।"

"मैं ठीक हूँ सुशीला,चिंता की कोई बात नहीं है। अभी आया...."उसने फोन रखा।

सड़क पर भयंकर शोरगुल था तथा भीड़ का रेला एक ओर से दूसरी ओर -जा रहा था।सभी जैसे जल्दी में थे।मयंक के मन में भी नाना किस्म की शंकायें उठ रही थीं।ऐसा तो कभी नहीं हुआ।सुशीला ने कभी भी इस तरह फोन नहीं किया।उसका रोना अतिशय रुप से शंकित कर रहा था।

दिसम्बर का प्रथम सप्ताह शुरु हो गया है,पर अभी भी दिन गर्म ही रहते हैं।अब तक तो भयंकर ठंड पड़नी चाहिए।यद्यपि हवा में शीतलता है और राते ठंडी हो जाती हैं,पर अभी भी उसमें हाड़ कंपाने वाली तासीर नहीं है।उन्होंने लपक कर दरवाजा खोला और भीतर चले आये।यद्यपि सुशीला का रुदन बंद हो चुका था पर चेहरे पर विषाद और आतंक की जो दहशतपूर्ण स्थिति थी,देखकर ही समझ गये कि मामला अपेक्षाकृत गम्भीर है।दीप दौड़कर आयी और उनसे लिपट गयी।सोनू भी आकर चुपचाप उनके बगल मे खड़ा हो गया।

डाक्टर मयंक ने आश्वस्त हो सांस लिया कि पत्नी और बच्चे ठीक हैं।उन्होंने आसपास टेबुल आदि पर देखना चाहा कि कहीं कोई चिठ्ठी-पत्री तो नहीं है।हारकर उन्होंने पूछा,"क्या बात है सुशीला--कुछ बोलो भी..."

सुशीला चुप थी।उसे लग रहा था-"इतनी बड़ी खबर है कि अब तक पूरी दुनिया के लोग जान गये होंगे।आपस मे चर्चाये हो रही होंगी।एक ये है...पूछ रहे हैं जैसे कुछ मालूम ही नहीं।"

"चलोगे भी या नहीं?"उसने लगभग खीझते हुए पूछा।

"मायके ही ?"फोन पर हुई बातों को याद करते हुए मयंक ने पूछा,"वहाँ कुशल तो है ना?"

सुशीला का अन्तःकरण रो पड़ा।सिसकने लगी थी वह।रोते-रोते उसने कहा,"पापा को पुलिस पकड़कर ले गयी है।उन्हें जेल में बंद कर दिया गया है।"

"धत् तेरी की...इतनी छोटी सी बात पर तुमने आसमान उठा रखा है।मैं तो डर ही गया था कि क्या हो गया मेरे ससुराल में...?बड़े आदमी हैं तुम्हारे पापा जी।बड़ी और छोटी हर तरह की समस्याओं से जुझना पड़ता है उनको।हो गयी होगी कोई गलतफहमी पुलिस से...आज पकड़ कर ले गयी है..कल बाईज्जत घर पहुँचा जायेगी।कोई गम्भीर मसला हुआ तो दो-चार दिन और लग जायेंगे।"

"ऐसा होगा क्या?"सुशीला सशंकित सी पूछ रही थी।

"तो तुम क्या समझती हो?जेल जाना वैसे साधारण बात नहीं है,पर बड़े लोगों के साथ बात दूसरी होती है,मुद्दा दूसरा होता है और उनका दृष्टिकोण दूसरा होता है।कभी-कभी जनकल्याण के लिए भी जेल जाना पड़ता है।"

"कुछ भी हो,मुझे डर लग रहा है।हम लोगों को चलना चाहिए।"

पर मयंक मन से तैयार नहीं हो सके।शंका तो उनके मन में भी हुई और आश्चर्य भी। दरअसल गंगाधर जी उस पूरे दियारा क्षेत्र के बेताज बादशाह हैं।विशाल कोठी,बड़ी सी जागीर और एक खास तरह का दबदबा।नेता,सरगना तथा हर महकमे के कर्मचारी साहबानो की यथोचित कद्र होती है उनके यहाँ।प्रभाव इतना कि कहीं कोई विरोध नहीं।विरोध भी कैसे हो?कोई करने वाला बचे तब ...।निकलने के पहले ही काट दिये जाते हैं लोगो के पर।आदमी तड़पता,कराहता उनके आतंक में जीता है,उनकी मर्जी के मुताबिक।

मन की भी विचित्र दशा है।कभी दूर-दराज का अपरिचित आदमी प्राणो से प्यारा हो जाता है और कभी अपना से अपना भी अप्रिय।रिश्ते तो निभाने पड़ते हैं।डाक्टर मयंक की कार तेजी से बढ़ रही थी।मन की गति और भी तीव्र थी।पुल पर पहुँचते-पहुँचते शाम हो गयी।उस पार उनका भी घर है।आज पुल बन गया है नदी पर।आसानी से लोग अपने गन्तव्य स्थान तक पहुँच जाते हैं।पर आज से दस साल पहले कितना कठिन था नदी पार करना।

क्या पुल के बन जाने से ही लोगों की सभी समस्यायें सुलझ गयी हैं?अब भी तो घाटों का उपयोग होता है जब लोग नावों का सहारा लेते हैं।तब नौकायें चलती थीं यहाँ,आठ-आठ,दस-दस नौकायें।मल्लाहों,मछुआरों का कुनबा बस गया है नदी-कूल पर।एक आबादी बिकसित होती गयी है।मछली मारना,नावें चलाना यही धंधा है उन लोगों का।तब भी था और आज भी है।अब भी मछुआरे नदी में जाल फैलाये परिवार के लिए रोटी के जुगाड़ में लगे रहते हैं।नावें चलाना अधिक सुविधाजनक है।इस पार से उस पार जानेवालो की कमी नहीं होती।पार उतराई बहुत कम है फिर भी किसी तरह गुजारा चलता ही है।नदी के दोनो किनारों पर भीड़ के चलते रौनक रहती है। मछुआरिने संगीत सुनाकर अपना मनोरंजन करती हैं।चाय-पानी की दूकाने खुली रहती हैं।

बाढ़ के दिनों में दूसरा ही मंजर सामने होता था।लोग डरे,सहमे नौकाओं में चढ़ते,देवी-देवताओं को गोहराते और राम-राम करते पार होते थे।नदी जब अपना बिकराल रुप दिखलाती है और तीर,कगार सब अपने में समाहित करने लगती है तब त्राहि-त्राहि करने के अलावा कोई उपाय नहीं दिखता।मल्लाहों का जीवन हर तरह से असुरक्षित हो जाता है और भीषण बाढ़ के चलते हर साल तबाही होती है।उनकी झोपड़ियाँ पानी से घिर जाती हैं और उनका सम्पर्क पूरी दुनिया से टूट जाता है।ऐसे में उन लोगों की दशा के बारे में सोचा जा सकता है जिन्हें रोज कमाना है और रोज खाना है। बड़ी-बड़ी हिलोरों और तरंगों पर अपनी नौकाओं को खेते-सम्हालते मछुआरे जीवन-मृत्यु से संघर्ष कर रहे होते हैं।तब जाकर दो मुठ्ठी अनाज पेट मे जा पाता है।अंधकार तो उनके जीवन में है ही,जमीन भी नहीं है उनके पास कि कुछ खेती-बारी कर सकें।उपर से गंगाधर जी का आतंक...पूरे जवार के लोगों को उनसे डरना और जी-हुजूरी करना पड़ता है।नहीं तो,उनके आदमी उपद्रव मचा दें,तहस-नहस कर दें।

पूंजीवादी-व्यवस्था में लाभ प्राप्ति के लिए लोगों के जीवन की बहुत सारी जरुरतों को भुला दिया जाता है या छोड़ दिया जाता है।उसमें किसी के पुश्तैनी कारोबार को भी महत्व नहीं दिया जाता,वल्कि उनपर कुठाराघात ही किया जाता है।घाटों की बन्दोबस्ती भी कुछ-कुछ इसी तरह की योजना है।यह कभी नहीं देखा जाता है कि यह काम उन लोगों को मिले जो पुश्त-दर-पुश्त इन्हीं लहरों पर जन्म लेते और मर-मिटते हैं।एक तरफ आम आदमी-हरिजन,चमार,दुसाध,मल्लाह-मछुआरे के उत्थान की बातें होती हैं,दूसरी तरफ उनकी बुनियादी जरुरतों,अधिकारों पर कुठाराघात होता है।

पुल के उस पार अभी भी काफी भीड़ थी।लोगों ने पहचान लिया था-डाक्टर मयंक को,सुशीला को। चिल्ला उठी थी पूरी भीड़--हत्यारे की बेटी,हत्यारे का दामाद..।रो पड़ी थी सुशीला।

"हुआ क्या है? कैसे हुआ यह सब?"मयंक ने अपने परिचित रमई को बुलाकर पूछा।

"कुछ मत पूछिये भाई...जो भी हुआ,बहुत बुरा हुआ...विषाद और क्रोधयुक्त हो उसन्रे कहा।

"कुछ बताओ भी...."

रमई का गला भरा हुआ था।आवाज लड़खड़ा रही थी।उसने अपनी बात जारी रखी,"आप तो जानते ही हैं कि नदी किसी एक की बपौती नहीं होती।उसका दावेदार कौन है,तय करना मुश्किल है।नदी,पहाड़,रोशनी,हवा,पानी को अपने अधिकार में बाँधने का प्रयास ही गलत होता है।यही हुआ है यहाँ।जो पैरों तले नहीं आता उसे हाथी के पैरों से कुचलवा दिया जाता है।जो आँखों की तरेर से नहीं डरता उसे बंदूक की गोलियों से छलनी कर दिया जाता है।जो गुर्राहटों से नहीं सम्हलता उसे गूंगा और अपंग बना दिया जाता है।यही दशा है इस क्षेत्र की,इस राज्य की,इस देश की और मिट्टी की।"

एक मनहूसियत सी छायी थी चारो ओर।सुशीला का रोना जारी था।मयंक ने उसे समझाने का प्रयास किया,पर,सब बेकार।भीड़ चिल्ला रही थी,नारे लगा रही थी--अरे जाकर उन घरों को देखो जिनके लोगों को मार डाला है तुम्हारे बाप ने...हत्यारा कहीं का।

रमई ने बताना जारी रखा,"आप तो जानते ही होंंगे कि यहाँ की अधिकांश नदियों के घाटों की बन्दोबस्ती सरकार खुली नीलामी के तहत करती है।पैसे और बाहुबल के आधार पर यहाँ का ठीका गंगाधर जी ले लेते हैं और उनके आदमी सारी व्यवस्था देखते हैं।धीरे-धीरे नौकाओं की जगह स्टीमर ने ले लिया।उसमें लाभ अधिक है।प्रति व्यक्ति पार उतराई का भाड़ा दो रुपया है जबकि अभी भी नाव वाले पचास पैसे में पार ले जाते हैं।स्टीमर में एक साथ सैकड़ो की तादात में यात्री पार होते हैं।"

"गड़बड़ी वहीं हो गयी।शुरु-शुरु में ऐसा हुआ तो बहुत बवाल मचा था,"मयंक ने मन ही मन याद किया और सोचा कि तभी से एक तरह की टकराहट शुरु हुई होगी।

रमई ने बताया,"मछुआरों,मल्लाहों का यही आश्रय-स्थल है।पहले उन लोगों ने एक समिति गठित की और प्रयास में थे कि इस घाट का जिम्मा उन्हें ही मिले।पर सरकारी कानून और गंगाधर जी के धन,बुद्धि और प्रभाव के चलते संभव नहीं हो सका।हारकर मल्लाहों ने उनके पैर पकड़े,रोये,गिड़गिड़ाये।

कुछ और भी समस्याये थीं।मसलन जब लोग नदी किनारे अपने बच्चों का बाल-मुण्डन संस्कार करते हैं तो मूँज की रस्सी का तनावा इस पार से उस पार तक तानते हैं।साडी,धोती,रुपया-पैसा और भोजन मल्लाहों को दिया जाता है।इस काम में स्टीमर का उपयोग नहीं हो सकता।इसके लिए छोटी नौका या डोंगी ही पर्याप्त होती है।कभी-कभी जब स्टीमर खुलने में देर होती है और लोगों को जल्दबाजी में पार जाना होता है तो वे स्टीमर का टिकट लेकर नौकाओं से पार हो जाते हैं।यह सोचकर गंगाधर जी ने अलग से रसीद की व्यवस्था कर दी और मछुआरों को छूट मिल गयी।दस रुपया प्रति नौका प्रति फेरा गंगाधर जी को देना पड़ता था।

सुशीला चुप होकर रमई की बातों को बहुत ध्यान से सुन रही थी।उसका रोना बंद हो गया था।शाम ढलने लगी और चारो ओर अंधेरा फैलने लगा था।

"तब दिन का एक बज रहा था,"रमई ने घटना का वर्णन करना शुरु किया,"स्टीमर खुलने में बहुत देर थी।सूरज माथे पर चमक रहा था और वातावरण में गर्मी थी।पार जाने वाले कुछ लोग एक नौका में सवार हो गये।लगभग सोलह-अठारह आदमी होगें।लहरों को काटती,तैरती हुई नौका उस पार जा रही थी।खुशी और उल्लास था लोगों में कि जल्दी पार पहुँच जायेंगे।

गंगाधर जी के लोगों को यह बहुत नागवार गुजरा,"यह तो सरासर अवहेलना है।इन्हें सबक सिखाना ही होगा।आये दिन ये नाव वाले एक-आध फेरा लगा ही देते हैं।"

समवेत स्वर उभरा,"हाँ,सबक सिखाना ही पड़ेगा।"

नौका के पीछे स्टीमर खोल दिया गया।तब उनके चेहरे खौफनाक थे और इरादे खतरनाक।मल्लाहों को स्थिति की नाजूकता समझ में गयी थी।उन्होंने तेजी से पतवार चलाना शुरु कर दिया।दूसरी तरफ मशीनी ताकत थी।हाड़-मांस का आदमी भला क्या मुकाबला कर सकता था?नौका के बीच मँझधार में पहुँचते-पहुँचते स्टीमर ने धर दबोचा।

हवा खामोश हो गयी मानो दम साधे प्रकृति-नटी अथाह जल-राशि के उपर मानव द्वारा मानव के बिनाश की लीला को देख सके।स्टीमर के उद्वेलन से ऊँची-ऊँची लहरें उथने लगी।नाव डगमगाने लगी।

यात्री त्राहि-त्राहि कर उठे।'बचाओ-बचाओ" का आर्तनाद गूँज उठा।पर,उस करूण-क्रंदन को सुनने वाला कोई नहीं था।उन दरिंदों पर आसुरी शक्ति हावी हो गयी थी।उनकी आँखों में रक्त-पिपासा की ज्वाला धधक रही थी और उनके चेहरे दहशत पैदा कर रहे थे।

सुशीला दम साधे उस अमानवीय घटना की कथा सुन रही थी।मयंक की आँखों में एक तरह का कारूणिक दृश्य उभर रहा था।सुशीला आतंकित हो उठी थी।

रमई ने बताया," स्टीमर से एक आदमी रस्सा लेकर नौका में कूद पड़ा और नाव को बाँध दिया।फिर शुरु हो गया जीवन-मृत्यु का संघर्ष वाला खेल।क्या जान-बुझकर ऐसी अवहेलना की थी उन मल्लाहों ने?कई दिनों से भरपेट भोजन नही मिला था उनके परिवारों को।वे कहाँ से दस रुपया लाते और रसीद लेते।वे रोये और गिड़गिड़ाये थे और आश्वासन भी देना चाहे थे कि इस खेप में कमाकर दस रुपया चुका देंगे।"

नदी के दोनो तीरों पर बेतहाशा भीड़ एकत्र होती जा रही थी।लोग जोर-जोर से चिल्ला रहे थे,शोर मचा रहे थे,गालियाँ दे रहे थे और हो रहे इस कुकृत्य पर मुठ्ठी भिंचे,लाचार हो देख रहे थे।बीच धारा में स्टीमर की गति कभी तेज होती और कभी धीमी।बँधी हुई नाव उलटने-उलटने को होती।जल-तरगों पर उथल-पुथल मची हुई थी।ऊँची-ऊँची तरंगों से छपाक-छपाक पानी नाव में भरने लगा।यात्रियों के होशोहवाश गायब थे।उनकी करुण चित्कार दोनों किनारों तक सुनाई पड़ रही थी।लग रहा था कोई भयानक घड़ियाल जल-जीवों को रौंद रहा है या कोई विशाल हाथी किसी सुन्दर लता-कुंज को तहस-नहस कर रहा है।

आखिर आदमी की हार हो गयी।मृत्यु जीत गयी और उसके मशीनी जबड़े तले आदमी का अस्तित्व चूर-चूर हो गया।नौका नदी की अथाह जल-राशि में विलीन हो गयी।डूब गये सारे लोग।

"हे, भगवान," सुशीला ने कहा और रो पड़ी।रमई भी रोने लगा।मयंक की आँखो में भी जल की बूंदें झलकने लगीं।

पुलिस ने वह महत्वपूर्ण काम किया जो पहले कभी नहीं की थी।गंगाधर जी का पकड़ा जाना सबसे बड़ी घटना थी।मसला यह नहीं कि कितने मरे और कितने बचे।बात आतंकवादी उन कृतघ्न कुकृत्यों की है जहाँ चंद रुपयों के लिए लोगों के जीवन को ही समाप्त कर देने की साजिश की जाती है।क्या इस नृशंस हत्याकांड के जिम्मेदार हत्यारे दण्डित हो पायेंगे?क्या इस जलक्षेत्र में नदी के झूठे दावेदारों के आतंक से मुक्त हो पायेगी जनता?

सुशीला के मन-मस्तिष्क में आँधियाँ चल रही थीं।वह हतप्रभ थी और उसका जार-जार रोना जारी था।

"यह रोना किस काम का सुशीला?जरुरत तो अब उन परिवारों के लिए कुछ करने की है जिनके आदमी डूबाकर मार डाले गये हैं।चलो सुशीला, उनके आँसू पोंछने हैं और कुछ करना है उनके लिए," मयंक ने कहा।

कार एक झटके से आगे बढ़ गयी।

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देवरहा बाबा के बहाने

1 दिसम्बर 2018
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देवरहा बाबा के बहानेविजय कुमार तिवारीजब हम एकान्त में होते हैं तो हमारे सहयात्री होते हैं-आसपास के पेड़-पौधे। वे लोग बहुत भाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसी अनुभूति होती है। मेरा दुर्भाग्य रहा कि मुझे पूज्य देवरहा बाबा जी का दर्शन करने का सुअवसर नहीं मिला। साथ ही सौभाग्य है कि आज मैं उन्हें श्रद्धा भाव से या

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कौन सा पतझड़ मिले

2 दिसम्बर 2018
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गीत कौन सा पतझड़ मिले? विजय कुमार तिवारी और गा लूँ जिन्दगी की धून पर, कल न जाने प्रीति को मंजिल मिले? दर्द में उत्साह लेकर बढ़ रहा था रात-दिन, आह में संगीत संचय कर रहा था रात-दिन। आज सावन कह रहा है बार-बार, क्यों लिया बंधन स्व-मन से रात-दिन? सोचता हूँ चुम लूँ वह पंखुड़ी, कल न जाने कौन सी बेकल खिल

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एक प्यार ऐसा भी

11 दिसम्बर 2018
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उसका चाँद

12 दिसम्बर 2018
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कहानीउसका चाँदविजय कुमार तिवारीबचपन में चाँद देखकर खुश होता था और अपलक निहारा करता था। चाँद को भी पता था कि धरती का कोई प्राणी उसे प्यार करता है। दादी ने जगा दिया था प्रेम उसके दिल में, चाँद के लिए। बड़ी बेबसी से रातें गुजरतीं जब आसमान में चाँद नहीं होता। वैसे तो दादी नित्य ही चाँद को दूध-भात के कटो

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अन्तर्मन की व्यथा

15 दिसम्बर 2018
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कहानीअन्तर्मन की व्यथाविजय कुमार तिवारी"है ना विचित्र बात?"आनन्द मन ही मन मुस्कराया," अब भला क्या तुक है इस तरह जीवन के बिगत गुजरे सालों में झाँकने का और सोयी पड़ी भावनाओं को कुरेदने का?अब तो जो होना था, हो चुका,जैसे जीना था,जी चुका। ऐसा भी तो नही हैं कि उसका बिगत जीवन बह

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माँ-बेटी

16 दिसम्बर 2018
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कहानीमाँ-बेटीविजय कुमार तिवारीउम्र ढल रही है और अभी तक मेरी शादी नहीं हुई है।शादी नहीं होने का दुख मुझे नहीं है।अम्मा की उदासी मेरा दुख बढ़ा देती है।कभी-कभी लगता है कि उसके सारे दुखों का कारण मैं ही हूँ।भीतर बहुत दर्द उभरता है।तब दर्द और बढ़ जाता है जब अम्मा कहीं दूर से म

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प्यार के बहुतेरे रंग

17 दिसम्बर 2018
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कविताप्यार के बहुतेरे रंगविजय कुमार तिवारीयाद करो मैंने पूछा था-तुम्हारी कुड़माई हो गयी?यह एक स्वाभाविक प्रश्न था,तुमने बुरा मान लिया, मिटा डाली जुड़ने की सारी सम्भावनायेंऔर तोड़ डाले सारे सम्बन्ध। प्यार की पनपती भावनायें वासना की ओर ही नहीं जाती,वे जाती हैं-भाईयों की सुरक्षा में,पिता के दुलार में,व

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ट्रेन यात्रा

18 दिसम्बर 2018
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कहानीट्रेन यात्राविजय कुमार तिवारी(यह कहानी उन चार लड़कियों को समर्पित है जो ट्रेन में छपरा से चली थीं और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जा रही थीं।वे वहीं की छात्रायें थीं।)"खड़े क्यों हैं,बैठ जाईये,"एक लड़की ने जगह बनाते हुए कहा।थोड़े संकोच के साथ भरत बैठ गया।"आराम से बैठिय

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स्नेह निर्झर

3 जनवरी 2019
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कवितास्नेह निर्झरविजय कुमार तिवारीऔर ठहरें,चाहता हूँ, चाँदनी रात में,नदी की रेत पर।कसमसाकर उमड़ पड़ती है नदी,उमड़ता है गगन मेरे साथ-साथ। पूर्णिमा की रात का है शुभारम्भ,हवा शीतल,सुगन्धित।निकल आया चाँद नभ में,पसर रही है चाँदनी मेरे आसपास,सिमट रही है पहलू में।धूमिल छवि ले रही आकर,सहमी,संकुचित लिये वयभा

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बूढ़ा आदमी

6 जनवरी 2019
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कविता(मौलिक)बूढ़ा आदमीविजय कुमार तिवारीथक कर हार जाता है,बेबस हो जाता है,लाचारजबकि जबान चलती रहती है,मन भागता रहता है,कटु हो उठता है वह,और जब हर पकड़ ढ़ीली पड़ जाती है,कुछ न कर पाने पर तड़पता है बूढ़ा आदमी। कितना भयानक है बूढ़ा हो जाना,बूढ़ा होने के पहले,क्या तुमने देखा है कभी-तीस साल की उम्र को बूढ

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देश बचाना

13 जनवरी 2019
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कवितादेश बचानाविजय कुमार तिवारीस्वीकार करुँ वह आमन्त्रणऔर बसा लूँ किसी की मधुर छबि,डोलता फिरुँ, गिरि-कानन,जन-जंगल, रात-रातभर जागूँ,छेडूँ विरह-तानरचूँ कुछ प्रेम-गीत,बसन्त के राग। या अपनी तरुणाई करुँ समर्पित,लगा दूँ देश-हित अपना सर्वस्व,उठा लूँ लड़ने के औजारचल पड़ूँ बचाने देश,बढ़ाने तिरंगें की शान। कु

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विम्ब का ये प्यार

15 जनवरी 2019
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गीत(09/05/1978)विम्ब का ये प्यारविजय कुमार तिवारीकौन दूर से रहा निहार?दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार, विम्ब का ये प्यार। पोखरी से फिसल चले हैं पाँव ये,जिन्दगी की कैसी है ढलाँव ये। आज हाथ केवल है हार,दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,विम्ब का ये प्यार। धड़कने सिसकाव का सहारा ले,मिट रही बढ़त यहाँ किनारा ले। अदाय

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बचपन की यादें

18 जनवरी 2019
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कहानीबचपन की यादेंविजय कुमार तिवारीये बात तब की है जब हमारे लिए चाँद-सितारों का इतना ही मतलब था कि उन्हें देखकर हम खुश होते थे।अब धरती से जुड़ने का समय आ गया था और हम खेत-खलिहान जाने लगे थे।धीरे-धीरे समझने लगे थे कि हमारी दुनिया बँटी हुई है और खेत-बगीचे सब के बहुत से मालिक हैं।यह मेरा बगीचा है,मेरी

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अन्तर्यात्रा का रहस्य

22 जनवरी 2019
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अन्तर्यात्रा का रहस्यविजय कुमार तिवारीकर सको तो प्रेम करो।यही एक मार्ग है जिससे हमारा संसार भी सुव्यवस्थित होता है और परमार्थ भी।संसार के सारे झमेले रहेंगे।हमें स्वयं उससे निकलने का तरीका खोजना होगा।किसी का दिल हम भी दुखाये होंगे और कोई हमारा।हम तब उतना सावधान नहीं होते जब हम किसी के दुखी होने का का

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गुरु और चेला

28 जनवरी 2019
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व्यंग्यगुरु और चेलाविजय कुमार तिवारीबाबा गुरुचरन दास की झोपड़ी में सदा की तरह उजाला है जबकि सारा गाँव अंधकार में डूबा रहता है।पोखरी के बगल में पे़ड के पास उनकी झोपड़ी सदा राम-नाम की गूँज से गुंजित रहती है।बाबा ने कभी इच्छा नहीं की,नहीं तो वहाँ अब तक विशाल मन्दिर बन चुका ह

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स्त्री-पुरुष

29 जनवरी 2019
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कहानीस्त्री-पुरुषविजय कुमार तिवारीइसके पीछे कुछ कहानियाँ हैं जिन्हें महिलाओं ने लिखा है और खूब प्रसिद्धी बटोर रही हैं।कहानियाँ तो अपनी जगह हैं,परन्तु उनपर आयीं टिप्पणियाँ रोचक कम, दिल जलाने लगती हैं।लगता है-यह पुरुषों के प्रति अन्याय और विद्रोह है।रहना,पलना और जीना दोनो को साथ-साथ ही है।दोनो के भीतर

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आतंक

4 फरवरी 2019
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कविता(मौलिक)आतंकविजय कुमार तिवारीचलो, मुझे उस मोड़ तक छोड़ दो,सांझ होने को है,अंधियारे जाया नहीं जायेगा। न हो तो बीच वाले मन्दिर से लौट आना,या उस मस्जिद से,जहाँ सड़क पार चर्च है।अस्पताल तक तो पहुँचा ही देनाचला जाऊँगा उससे आगे। ऐसा नहीं कि हिन्दुओं से डरता हूँ,मुसलमानों से भी नहीं डरता,सिखों या किसी

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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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पुरानी यादे

7 फरवरी 2019
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पुरानी यादेंविजय कुमार तिवारी1983 में 4 सितम्बर को लिखा-डायरी मेरे हाथ में है और कुछ लिखने का मन हो रहा है। आज का दिन लगभग अच्छा ही गुजरा है।ऐसी बहुत सी बातें हैं जो मुझे खुश भी करना चाहती हैं और कुछ त्रस्त भी।जब भी हमारी सक्रियता कम होगी,हम चौकन्ना नहीं होंगे तो निश्चित मानिये-हमारी हानि होगी।जब हम

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प्रेम का मौसम

9 फरवरी 2019
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प्रेम का मौसमविजय कुमार तिवारीप्रेम का मौसम चल रहा है और बहुत से युवा,वयस्क और स्वयं को जवान मानने वाले वृद्ध खूब मस्ती में हैं।इनकी व्यस्तता देखते बनती है और इनकी दुनिया में खूब भाग-दौड़ है।प्रयास यही है कि कुछ छूट न जाय और दिल के भीतर की बातें सही ढंग से उस दिल तक पहुँच

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चुनाव 2019

10 फरवरी 2019
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चुनाव-2019विजय कुमार तिवारीहम वोट देने वाले हैं।वोट देना हमारा अधिकार है और कर्तव्य भी।यह बहुत संयम, धैर्य और विचार का विषय है।आज से पहले शायद कभी भी हमने इस तरह नहीं सोचा।चुनाव आयोग और हमारे संविधान ने इस विषय में बहुत से दिशा-निर्देश जारी किये हैं।हम सभी सामान्य वोटर को बहुत कुछ पता भी नहीं है।कई

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आत्म-बोध

15 फरवरी 2019
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पहली मुलाक़ात

21 फरवरी 2019
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कवितापहली मुलाकातविजय कुमार तिवारीयह हठ था या जीवन का कोई विराट दर्शन,या मुकुलित मन की चंचल हलचल?रवि की सुनहरी किरणें जागी,बहा मलय का मधुर मस्त सा झोंका,हुई सुवासित डाली डाली, जागी कोई मधुर कल्पना।शशि लौट चुका थानिज चन्द्रिका-पंख समेटे। उमग रहे थे भौरे फूलों कलियों में,मधुर सुनहले आलिंगन की चाह संजो

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शादी की पीड़ा

23 फरवरी 2019
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प्यार ही डसने लगा

28 फरवरी 2019
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प्यार ही डंसने लगाविजय कुमार तिवारीतुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हो गये अपने पराये,आईना छलने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हर हवा तूफान सी,झकझोर देती जिन्दगी,धुंध में खोया रहा,पतवार भी डुबने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?चाँद तारे छुप गये हैं,दर्द के शैलाब में,ढल गया दिल का उजाला,

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बदलते हुए लोग

1 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिये

5 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिएविजय कुमार तिवारीबच्चा जैसे ही अपने आसपास को देखना शुरु करता है उसके मन में प्रश्न कुलबुलाने लगते हैं।वह जानना चाहता है,समझना चाहता है और पूछना चाहता है।जब तक बोलने नहीं सीख जाता,व्यक्त करने नहीं सीख जाता,उसके प्रश्न संकेतों में उभरते हैं।उसे यह धरती,यह आकाश,य

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विज्ञापन

22 मार्च 2019
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कविताविज्ञापनविजय कुमार तिवारीजागते ही खोजती है अखबार,झुँझलाती है-कि जल्दी क्यों नहीं दे जाता अखबार। अखबार में खोजती है-नौकरियों के विज्ञापन। पतली-पतली अंगुलियों से,एक -एक शब्द को छूती हुई,हर पंक्ति पर दृष्टि जमाये,पहुँच जाती है अंतिम शब्द तक। गहरा निःश्वांस छोड़ती है

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महत् चिंतन

4 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपाय

5 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपायविजय कुमार तिवारीसंसार में सभी सुख चाहते हैं,दुख कोई नहीं चाहता,जबकि कोई सुखी नहीं है, सभी दुखी हैं।कबीर दास जी ने कहा है कि सारा संसार दुख से भरा है।मेरा मानना है कि हमें सत्य दिखता नहीं।हम असत्य देखने के आदी हो गये हैं।हम झूठ देखते हैं और अपनी सुविधा से

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मि. ख़ का शहर

9 अप्रैल 2019
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प्रेम के भूख

5 सितम्बर 2019
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प्रेम की भूखविजय कुमार तिवारीसभी प्रेम के भूखे हैं।सभी को प्रेम चाहिए।दुखद यह है कि कोई प्रेम देना नहीं चाहता।सभी को प्रेम बिना शर्त चाहिए परन्तु प्रेम देते समय लोग नाना शर्ते लगाते हैं।प्रेम में स्वार्थ हो तो वह प्रेम नहीं है।हम सभी स्वार्थ के साथ प्रेम करते हैं।प्रेम कर

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नदी के दावेदार

28 सितम्बर 2019
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छमा करना

1 अक्टूबर 2019
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मशाल

4 अक्टूबर 2019
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करूँ-ह्रदय

11 अक्टूबर 2019
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दुःख

12 अक्टूबर 2019
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दुनिया युद्ध के महाविनाश की ओर जा रही है।यदि ऐसा हुआ तो किसी न किसी रुप में हम सभी प्रभावित होंगे।वैसे ही दुनिया में लोग अनेकानेक कारणों से दुखी हैं।हम में से बहुत लोग ऐसे हैं जिन्हे कोई न कोई दुख है।हम मिलकर उनका समाधान खोज सकते हैं और दुखों से बचाव कर सकते हैं।कम से कम हम चर्चा तो करें।कोई न कोई स

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उद्बोधन

22 नवम्बर 2019
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उद्बोधनविजय कुमार तिवारीलम्बे अन्तराल के बाद आज कुछ उद्बोधित होने की प्रेरणा जाग रही है।खिड़की से बाहर की दुनिया बड़ी मनोरम दिख रही है।आसमान नीला और शान्त है।मन भी नीरव-शान्ति की अनुभूति से ओत-प्रोत है।कौन कहता है कि हमारा जन्म दुख-भोग के लिए ही है?हमें स्वयं में डुबकी लगाने नहीं आता।हमारी सारी समस्

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ईशावास्योपनिषद के आलोक में

11 जनवरी 2020
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ईशावास्योपनिषद के आलोक मेंविजय कुमार तिवारीवेदान्त कहे जाने वाले उपनिषदों ने भारतीय जनमानस को बहुत प्रभावित किया है और हमारी चेतना जागृत की है।आज हमारे युवा पथ-भ्रमित और विध्वंसक हो रहे हैं,उन्हें अपने धर्म-ग्रन्थों विशेष रुप से वेदान्त के रुप में जाना जाने वाले उपनिषदों को पढ़ना और उनका अनुशीलन करन

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विवेकानंद के बहाने

12 जनवरी 2020
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विवेकानन्द के बहानेविजय कुमार तिवारीस्वामी विवेकानन्द जी ने उद्घोष किया था,"उठो,जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।"भारत के उन्हीं महान सपूत की आज जन्म-जयन्ती है।बहुत श्रद्धा पूर्वक याद करते हुए मैं उन्हें नमन करता हूँ।आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है और उनके चरणो में श्रद्धा-सुमन

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निर्भया के बहाने

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निर्भया के बहानेविजय कुमार तिवारीअन्ततः आज २० मार्च २०२० को निर्भया के दोषियों को फांसी हो ही गयी।१६ दिसम्बर २०१२ को निर्भया के साथ दरिन्दों ने जघन्य अपराध किया था।पूरा देश उबल पड़ा था और हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था पर नाना तरह के प्रश्न खड़े किये जा रहे थे।हमारा प्रशासन,हमारी न्याय व्यवस्था,हमारा राजनै

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जनता कर्फ्यू और हमारा देश

22 मार्च 2020
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जनता कर्फ्यू और हमारा देशविजय कुमार तिवारीप्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी के आह्वान पर आज २२ मार्च २०२० को पूरे देश ने अपनी एकता,अपना जोश और अपना मनोबल पूरी दुनिया को दिखा दिया।इस जज्बे को मैं हृदय से सादर नमन करता हूँ।राष्ट्रपति से लेकर आम नागरिकों तक ने ताली,थाली, घंटी,शंख और नगाड़े बजाकर अपना आभार

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कोरोना और स्त्री

25 मार्च 2020
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करोना और स्त्रीविजय कुमार तिवारीकल प्रधानमन्त्री ने देश मेंं कोरोना के चलते ईक्कीस दिनों के"लाॅकडाउन"की घोषणा की है।सभी को अपने-अपने घरों में रहना है।बाहर जाने का सवाल ही नहीं उठता।घर मेंं चौबिसों घण्टे पत्नी के साथ रह पाना,सोचकर ही मन भारी हो जाता है।किसी साधु-सन्त के पास इससे बचाव का उपाय नहीं है।

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महर्षि अरविंद का पूर्णयोग

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महर्षि अरविन्द का पूर्णयोगविजय कुमार तिवारीमहर्षि अरविन्द का दर्शन इस रुप में अन्य लोगोंं के चिन्तन से भिन्न है कि उन्होंने आरोहण(उर्ध्वगमन)द्वारा परमात्-प्राप्ति के उपरान्त उस विराट् सत्ता को मनुष्य में अवतरण अर्थात् उतार लाने की चर्चा की है।यह उनका एक नवीन चिन्तन है।गीता में दोनो बातें कही गयी हैं

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जिंदगी सुखद संयोगो का खेल है .

27 मार्च 2020
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कहानीजिन्दगी सुखद संयोगों का खेल है।विजय कुमार तिवारीरमणी बाबू को भगवान में बहुत श्रद्धा है।उसके मन मेंं यह बात गहरे उतर गयी है कि अच्छे दिन अवश्य आयेंगे।अक्सर वे सुहाने दिनों की कल्पना में खो जाते हैं और वर्तमान की छोटी-छोटी जरुरतों की लिस्ट बनाते रहते हैं।गाँव के लड़के स्कूल साईकिल पर जाते थे तो व

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धिक्कार है ऐसे लोगो पर

31 मार्च 2020
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धिक्कार है ऐसे लोगोंं परविजय कुमार तिवारीमन दहल उठता है।लाॅकडाउन में भी लाखों की भीड़ सड़कों पर है।भारत का प्रधानमन्त्री हाथ जोड़कर विनती करता है,आगाह करता है कि खतरा पूरी मानवजाति पर है।विकसित और सम्पन्न देश त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।विकास और ऐश्वर्य के बावजूद वे अपनी जनता को बचा नहीं पा रहे हैं।आज

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शहर प्रयोगशाला हो गया है

1 अप्रैल 2020
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कविताशहर प्रयोगशाला हो गया हैविजय कुमार तिवारीछद्मवेष में सभी बाहर निकल आये हैंं,लिख रहे हैं इतिहास में दर्ज होनेवाली कवितायें,सुननी पड़ेगी उनकी बातेंं,देखना पड़ेगा बार-बार भोला सा चेहरा।तुमने ही उसे सिंहासन दिया है,और अपने उपर राज करने का अधिकार।दिन में वह ओढ़ता-बिछाता है तुम्हारी सभ्यता-संस्कृति,उ

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मेरे आनंद की बाते

2 अप्रैल 2020
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मेरे आनन्द की बातेंविजय कुमार तिवारीकभी-कभी सोचता हूँं कि मैं क्योंं लिखता हूँ?क्योंं दुनिया को लिखकर बताना चाहता हूँ कि मुझे क्या अच्छा लगता है?मेरी समझ से जो भी गलत दिखता है या देश-समाज के लिए हानिप्रद लगता है,क्यों लोगों को उसके बारे में आगाह करना चाहता हूँ?क्यों दुनिया को सजग,सचेत करता फिरता हूँ

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हर युग में आते है भगवान

3 अप्रैल 2020
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कविताहर युग मेंं आते हैं भगवानविजय कुमार तिवारीद्रष्टा ऋषियों ने संवारा,सजाया है यह भू-खण्ड,संजोये हैं वेद की ऋचाओं में जीवन-सूत्र,उपनिषदों ने खोलें हैं परब्रह्म तक पहुँचने के द्वार,कण-कण में चेतन है वह विराट् सत्ता।सनातन खो नहीं सकता अपना ध्येय,तिरोहित नहीं होगें हमारे पुरुषोत्तम के आदर्श,महाभारत स

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5 अप्रैल 2020 ,रात 9 बजे 9 मिनट का प्रकाश-पर्व

5 अप्रैल 2020
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5 अप्रैल 2020,रात 9 बजे,9 मिनट का प्रकाश-पर्वविजय कुमार तिवारीविश्वास करें,यह कोई सामान्य घटना घटित होने नहीं जा रही है और ना ही आज का प्रकाश-पर्व एक सामान्य प्रकाश-पर्व है।ब्रह्माण्ड की ब्रह्म-शक्ति का आह्वान हम सम्पूर्ण देशवासी प्रकाश-पर्व मनाकर करने जा रहे हैं।हमारे भीतर स्थित वह दिव्य-चेतना जागृ

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विपत्ति में ही

7 अप्रैल 2020
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विपत्ति में हीविजय कुमार तिवारीप्राचीन मुहावरा है,"विपत्ति में ही अच्छे-बुरे की पहचान होती है।"मानवता के सामने सबसे भयावह और संहारक परिस्थिति खड़ी हुई है।पूरी दुनिया बेबस और लाचार है।हमारे विकास के सारे तन्त्र धरे के धरे रह गये हैं।कुछ भी काम नहीं आ रहा है।स्थिति तो यह हो गयी है कि जो जितना विकसित ह

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हमउम्र बूढ़ों का परिवार

8 अप्रैल 2020
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कविताहमउम्र बूढ़ोंं का परिवारविजय कुमार तिवारीमैंने सजा लिया है सारे हमउम्र बूढ़ों को अपने फ्रेम में,बना लिया है मित्रों का बड़ा सा समूह। रोज देखता रहता हूँ उनके आज के चेहरे,चमक उठती है पुतलियाँजीवन्त हो उठते हैं उनसे जुडे नाना प्रसंग। मुरझाये गालों और मद्धिम रोशनी लिये आँखें,आज भी कौंंध जाता है उनक

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-१

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-1विजय कुमार तिवारीसालों बाद कल रात उसने ह्वाट्सअप किया,"हाय अंकल ! कहाँ हैं आजकल?"उसने अंग्रेजी अक्षरों में "प्रणाम" लिखा और प्रणाम की मुद्रा वाली हाथ जोड़ेे तस्वीर भी भेज दी।प्रमोद को सुखद आश्चर्य हुआ और हंसी भी आयी।"कैसे याद आयी अंकल की इतने सालों बाद?"प्रमोद ने यूँ ही

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-२

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-2विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू भी इस माहौल से अछूते नहीं रहे।उनका मिलना-जुलना शुरु हो गया।कार्यालय में बहुत लोगों के काम होते जिसे बड़े ही सहृदय भाव से निबटाते और कोशिश करते कि किसी को कोई शिकायत ना हो।स्थानीय लोगों से उनकी अच्छी जान-पहचान हो गयी है।सुरक्षा बल के लोगों के

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-३

13 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-3विजय कुमार तिवारी"मैं किसी से नहीं डरता,"मोहन चन्द्र पूरी बेहयायी पर उतर आये।प्रमोद बाबू ने अपने आपको रोका।सुबह की ताजी हवा में भी गर्माहट की अनुभूति हुई और दुख हुआ।हिम्मत करके उन्होंने कहा,"मोहन चन्द्र जी,दूसरों की जिन्दगी में टांग अड़ाना ठीक नहीं है।आपकी बात सही हो तब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-४

14 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-4विजय कुमार तिवारी"ऐसा नहीं कहते,"प्रमोद बाबू भावुक हो उठे,"इतना ही कह सकता हूँ कि तुम अपनी उर्जा इन सब चीजों में मत लगाओ।"थोड़ा रुककर उन्होंने कहा,"दुनिया ऐसी ही है,लोग कहेंगे ही।तुम्हें तय करना है कि स्वयं को इन वाहियात चीजों में उलझाती हो और अपने को बरबाद करती हो या ब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-६

15 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-6विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू दोनो महिलाओं और मोहन चन्द्र जी की भाव-भंगिमा देख दंग रह गये।सुबह दूध वाले की बातें सत्य होती प्रतीत होने लगी।उन्होंने मौन रहना ही उचित समझा।अन्दर से पत्नी भी आ गयी।मोहन चन्द्र बाबू उन दोनो महिलाओं से कुछ पूछते-बतियाते रहे।थोड़ी देर में पत्नी

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हमारी शादी की सैंतीसवी वर्षगाठ

27 अप्रैल 2020
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हमारी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठविजय कुमार तिवारीआज 27 अप्रैल को हम अपनी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं और सम्पूर्ण मानवता को बताना चाहते हैं कि परमात्मा के आशीर्वाद से,विगत सैंतीस वर्षों से चला आ रहा हमारा अटूट सम्बन्ध पूर्णतः उर्जावान और मधुर प्रेम से भरा हुआ है।आप सभी सुहृदजनों,सखा-सम्बन

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तुम्हारे प्रेम के नाम-२

1 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-2विजय कुमार तिवारीदुनिया तो वही है जो सबकी होती है परन्तु मेरे लिए जैसे बिल्कुल अजनबी हो चुकी है।जो जानी-पहचानी दुनिया थी उसे मैं बहुत पीछे छोड़ आया हूँ और यह नयी जगह,नयी दुनिया जैसे मुझे आत्मसात करने को तैयार ही नहीं है।इस दृष्टि से समूची नारी जाति के प्रति मेरा मन पूरी श

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तुम्हारे प्रेम के नाम-३

3 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-3विजय कुमार तिवारीतुमने अनेकों बार कुरेदा है मुझे,"कैसे मैं अपने को बचाता रहा और कैसे इस मतलबी दुनिया की शातिर चालों को समझ पाया।"तुमसे खुलकर कहना चाहता हूँ,सच बयान करता हूँ कि यह कोई मुश्किल काम नहीं है।हर व्यक्ति को थोड़ा सजग रहना चाहिए।थो

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वासना गद्दारो और नशेड़ियों का देश

5 मई 2020
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वासना,गद्दारों और नशेड़ियों से भरा देशविजय कुमार तिवारीवासना,गद्दारी या नशे में डूबे रहना यह सब मनुष्य के अधःपतन का द्योतक है और आज की स्थिति देखकर लगता है कि हमारे देश में बहुतायत ऐसे ही लोग हैं।मैं मानता हूँ कि हमे निराश नहीं होना चाहिए परन्तु ये परिदृश्य कोई दूसरी कहानी तो नहीं कह रहे।कल देश में

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डा नन्द किशोर नवल जी की यादें

14 मई 2020
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डा0 नन्द किशोर नवल जी की यादेंविजय कुमार तिवारीपरमादरणीय मित्र,प्रख्यात आलोचक और साहित्यकार डा.नन्द किशोर नवल जी नहीं रहे।मेरा तबादला धनबाद से पटना हुआ था।9अप्रैल 1984 की शाम में बी,एम.दास रोड स्थित मैत्री-शान्ति भवन में प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से"राहुल सांकृत्यायन-जयन्ती"का आयोजन था।भाई अरुण कमल,ड

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