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शादी की पीड़ा

23 फरवरी 2019

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कहानी

शादी की पीड़ा

विजय कुमार तिवारी

विभा,जीवन के इस उहापोह में,सागर के इस महागर्त में आज भी मैं अकेला ही हूँ। अकेला होना ही शायद मेरी नियति है।जुड़ने का क्रम जाने कितनी बार शुरु हुआ,अंततः वहीं गया ,जहाँ से चला था।इन सम्पूर्ण चेतन-अचेतन हालातों में तुम्हारा और तुम्हारे घर वालों का ज्यादा प्रयास रहा है।तुम लोगो ने भी कम खेल नही खेला है।सच तो यही है कि सबकुछ सुनकर,वायदों को सही मानकर ही इस निष्कर्ष पर पहुँचा था कि तुमसे जुड़ लूँगा।

लोग कहते हैं-नियति को कोई टाल नहीं सकता।मैं था कि नियति को ही चुनौती मान बैठा था।कहाँ तक अच्छा किया और कहाँ तक सफल रहा,इसका निष्कर्ष मेरे सामने है।

प्रारम्भ में तुम्हारे चाचा जी मुझसे मिले थे।वे बड़े भोले,निष्कपट तथा हँसमुख लगे थे। उम्र में अन्तराल होते हुए भी हमलोग मित्रवत रहे।उन्होंने मुझे एक तस्वीर दी थी। वह तुम्हारी तस्वीर थी। देखा-तुम सुन्दर हो,भोली-भाली हो,तुम्हारी आँखें बड़ी प्रिय लग रही हैं।उन चमकती पुतलियों में झाँकने का प्रयास किया था।कैमरे के द्वारा समेटे हुए,पल भर की तुम्हारी भावनाओं को पढ़ने की कोशिश की।मैं उत्तेजित नहीं था,शान्त भी नहीं था।तस्वीर के पीछे एक नाम था, तुम्हारा नाम-विभा।

तुमने ही अपनी अंगुलियों को कष्ट देकर लिखा था।शायद वहीं कहीं मैंने स्वयं को खो दिया था।

तत्पश्चात् हमारे संरक्षकों को औपचारिकता का निर्वाहन कर लेना चाहिए था ताकि हम दोनो सदा सदा के लिए एक-दूसरे के हो जाते।लेकिन यहीं से समाज की दखलंदाजी शुरु हो जाती है।व्यक्तिगत निर्णयों को,ऐसे सन्दर्भो में समाज चुनौती मान लेता है।लम्बी राजनीति शुरु हो जाती है जिसकी भयावहता में भावनायें,प्यार,सहानुभूति सबकुछ मिटकर रह जाते हैं।उन दिनो यह सब नहीं जानता था या जानता भी था (दूसरों के सन्दर्भ में)तो यही होगा, ऐसी उम्मीद नहीं थी।

धीरे-धीरे तुम्हारे चाचा जी की बातें परस्पर विरोधी होने लगी।समझते हुए भी मैंने अन्यथा नहीं सोचा।सोचता था-अभी तुम्हारे पिताजी हैं,मेरे पिताजी हैं,अन्य लोग हैं,सारी बातें स्पष्ट हो जायेंगी। ऐसा नहीं हुआ।परिस्थितियाँ जटिल होती गयीं,गुत्थियाँ पड़ती गयीं।भले ही तुम्हे कुछ भी ज्ञात नहीं हो रहा हो पर मैं सचेष्ट था,जाग्रत था परन्तु लाचार था।

एक सत्य बताना चाहता हूँ विभा,उन दिनों मुझे कहीं और जोड़ा जा रहा था और मेरे सामने उसकी भी तस्वीर थी।पता नहीं क्यों हर किसी ने उसे ही पसन्द किया।जब कभी तस्वीरों में से चयन की बात होती थी तो हर कोई तुम्हारी तस्वीर को परे कर देता था। सच विभा,कोई नहीं था जो तुम्हारी तस्वीर को उठाता और कहता कि यह लड़की है वैभव,इसी से तुम--------जबकि मैं यही चाहता था।समझ नहीं पा रहा था--आखिर कारण क्या है तुम्हें नापसन्द करने का।कभी-कभी तुम्हारे चाचा जी को निराश होते हुए देखता था।

हमारी परिपाटी कितनी विचित्र है विभा,शादी लड़के-लड़की की होगी, उस पर बहस होगी बुजूर्गॊ के दरबार में और वह भी दान-दहेज पर।मुझे इसमें कोई रुचि नहीं है।मुझे पता था कि तुम्हारे घर वाले उतना नहीं दे पायेंगे जितना अन्यत्र से मिल रहा था।मैं इसके खिलाफ था और घर में सभी इस बात को जानते थे,फिर भी सभी की राय तुम्हारे विपरीत थी।

एक ओर विशाल नारी विकास आन्दोलन चल रहा है तो दूसरी ओर उससे भी तीव्रतर विरोध हो रहा है।नारियाँ प्रताड़ित की जा रही हैं,जलायी जा रही हैं।समाज में बहुत सी बातें हो रही हैं जिससे नारियों को दबाया जा रहा है।विभा, एक सच यह भी है कि तुम लोग भी स्वयं को उठाना नहीं चाहती।कम से कम अपने भविष्य का और अच्छे-बुरे का ध्यान तो रखना ही चाहिए।हर नारी को अपने और अपने समाज के प्रति जागरूक होना चाहिए।

उन दिनो मैं ऐसी ही बातें सोचता रहता था और चाहता था कि किसी भी नारी को दुखी,अपमानित नहीं होना पड़े।मुझे उम्मीद पिताजी से थी और उचित अवसर की प्रतीक्षा में था ताकि अपनी बातें उनके सामने रख सकूँ।

गाँव से पिताजी का पत्र आया।स्पष्ट आदेश था कि मेरी शादी उस लड़की से तय कर दी गयी है जिसकी तस्वीर सभी को पसन्द थी।उस समय तुम्हारे चाचा जी भी आये थे और परिस्थितियों से समझौता करने की सलाह देकर चले गये।पड़ोस की मीना ने भी उसे ही पसन्द किया।तुम्हारी तस्वीर छिटक कर किनारे हो गयी थी। दूर से विचित्र सी हसरत भरी निगाहों से तुम देख रही थी। भीतर-भीतर मैं टूटने लगा था परन्तु विरोध करने की हिम्मत नहीं थी मुझमें। मीना मेरी ओर देख रही थी। शायद उसने कुछ दरकता हुआ महसूस कर लिया था।वह इस बात का प्रयास कर रही थी कि मेरी नजरों से तय कर पाये।क्या यह सम्भव था?उसने कहा,"आज मैं बहुत खुश हूँ।"जबकि उसकी आँखें भर आयी थी।वह एक जीवट वाली लड़की है।उसके पास स्वयं निर्णय लेने की क्षमता है।उसने मुझसे अनेकों बार कहा है कि शादी के मामले में खुद देखेगी और तभी हाँ कहेगी जब स्थिति अनुकूल रहेगी।विभा,मैं तुमसे भी ऐसी ही उम्मीद रखता हूँ।समझौता करने के लिए पूरी जिन्दगी पड़ी है।चयन करने और पसन्द-नापसन्द करने का तुम्हारा अधिकार है।तुम्हारी ओर से कोई संकेत नहीं मिल रहा है जबकि मैं तुम्हारा अधिकार तुम्हें देना चाहता हूँ।

आज के लोकतान्त्रिक समय में बहुमत की जीत होती है।मुझे अनेक तर्क दिये गये हैं और समझाया गया है।लोगों ने तुम्हें अलग कर दिया।सच कहता हूँ-मुझे अच्छा नहीं लगा।मैं हार गया था और हारा हुआ सा चौराहे पर खड़ा था।एक दोस्त को तिलक ना लेने की सलाह दी थी।लड़की वाले भाग गये कि अवश्य ही कोई अन्दरूनी बात होगी। मुझे बहुत दुख हुआ।सत्य को लोग ऐसे झुठला रहे हैं।मुझे अपने समाज की विडम्बना पर आश्चर्य हो रहा था। मैं लज्जित था और दुखी भी।अभी भी तुम्हारी तस्वीर मुझे आकर्षित कर रही थी जबकि मेरे हाथ में किसी और की तस्वीर थी। इस तथ्य को हमारा समाज क्यों नहीं समझता?

अभी तक के निर्णय के अनुसार उसे ही मेरा होना था।हारे हुए की तरह वहाँ से चल पड़ा।अब मुझे उस नयी तस्वीर से तालमेल बिठाने के लिए स्वयं को तैयार करना था ताकि सही अर्थो में उसका हो सकूँ।

परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।एक दिन गाँव से पत्र आया कि वह तस्वीर भेज दो,वापस करनी है।ये शादी नहीं होगी।

सोचो विभा,क्या गुजरी होगी मुझपर,मेरी मानसिक स्थिति पर,मेरी भावनाओं और जज्बातों पर?दिल के हालात पर और अपनी लाचारगी पर खूब रोना रहा था।किसी को कोई मतलब नहीं और हमारा समाज मूक बनकर देख रहा था। सच विभा,मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।वैसे भी,मैंने स्वयं को बड़ी मुश्किल से तुम्हारी मायूश और खामोश निगाहों से अलग किया था।तदन्तर उस तस्वीर की रुपसि से,यह निश्चित मानकर कि रिश्ता हो ही रहा है,एक तरह की आत्मीयता बनने लगी थी।विभा,यह सच है कि मैंने उस तस्वीर की मूर्ति बनाकर,अपने मन-मन्दिर में भावी पत्नी की प्राण-प्रतिष्ठा की थी।उसमें से रह-रहकर शान्तिमयी देवी की छवि की झलक मिलती थी।

इसी बीच किसी दिन तुम्हारे चाचा जी आये और तुम्हारी तस्वीर उठा ले गये।बेमन से मैंने तुम्हें जाने दिया।लगा-तुम्हारी तस्वीर नहीं जा रही,तुम जा रही हो।अच्छा लगा कि तुमने मेरी तस्वीर नहीं लौटाई।शायद लौटा नहीं सकी या लौटाना नहीं चाहती थी।ऐसा भी हो सकता है कि तुम्हें स्वयं पर विश्वास हो।तस्वीर ले जाते समय तुम्हारे चाचा जी ने बताया था कि तुम इस पक्ष में नहीं हो कि तस्वीरें वापस ली या दी जाय।कितना मेल था-मेरे-तुम्हारे विचारों में?

अब मैं खाली था-भीतर और बाहर।किसी भी काम में मन नहीं लगता था।कुछ भी कहने-सुनने लायक नहीं था।प्रतीक्षारत था-फिर शुरु होगा कोई नाटक। कोई और तस्वीर आयेगी,कुछ दिनों बातें होंगी।पुनः उस तस्वीर को वापस करना होगा।एक बात बताना विभा,क्या इस तरह बार-बार तस्वीर देने और लौट आने से तुम लोग टूटती नहीं हो?क्या तुम्हारे अस्तित्व और सामाजिक स्थिति पर चोट नहीं लगती?मैं टूट सा गया था।समाज अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए व्यक्ति की भावनाओं को कुचल देता है।

यह सही है विभा,हम दोनो ने अभी तक एक-दूसरे को देखा नहीं है,कभी मिले नहीं हैं।हमारी तस्वीरे एक-दूसरे के पास रही हैं।पर क्या एक रिश्ता,भले ही मानसिक तौर पर ही हो,हम दोनो के बीच जुड़ नहीं गया है?

फिर किसी दिन तुम्हारे चाचा जी आये।शायद उन्हें पता चल गया था।उन्होंने पुनः प्रस्ताव रखा और शादी की बातें होने लगी।क्या तुम आशावान नहीं थी?मुझे पूरी उम्मीद थी और सोचा था कि घर वालों को समझा लूँगा।हालांकि,ऐसी कोई जरुरत ही नहीं पड़ी।तुम्हारी और मेरी शादी तय हो गयी।विभा और वैभव एक होने वाले थे।मुझे खुशी हुई कि तुम्हारी तस्वीर को दिया मेरा वचन पूर्ण होने जा रहा था।अब जबकि मेरे पास तुम्हारी कोई तस्वीर नहीं है,मुझे तुम्हारी स्मृति हो आयी।गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ और भीतर प्रेम की अनुभूति हो रही है।उम्मीद है-तुम भी प्यार की ऐसी ही भावनाओं में डूब-उतरा रही होगी?

शंका भी उभरी।शंकालु मैं स्वयं हुआ।उस दिन जब शादी तय हो रही थी,तुम्हारे पिता जी नहीं आये।उनके नहीं आने का जो भी कारण हो,यहाँ लोगों ने बातें बनायी और नाना तर्क-कुतर्क हुआ।

अब तुम उन प्रश्नों,प्रसंगों पर ध्यान देना जो बाद में शादी हो पाने का कारण बने।हम दोनो के बीच दीवार खड़ी हो गयी।यह बहुत ही मजबूत दीवार थी जिसे मेरे सारे तर्क डिगा नहीं सके।दीवार के उस पार दुल्हन सी सजी-सँवरी,सौन्दर्य की मूर्ति सा तुम्हारा अस्तित्व धूमिल सा लगने लगा।सच कहता हूँ--अब तुम्हारी प्रतीक्षा भी बेमानी लगने लगी।

जानती हो विभा,उस दीवार के निर्मण में तुम्हारे अपनो का ज्यादा हाथ है।देखते-देखते घना अंधकार छा गया है।मेरे प्रश्न मुझे चैन नहीं लेने दे रहे और शंकाये निरूत्तर बना रही हैं।इसलिए बता रहा हूँ कि तुम स्वयं को मेरी जगह पर रखकर निर्णय कर सको और मेरी मजबूरी,मेरी शंकाओं और मेरे आकर्षण को समझ सको।

मैंने यहाँ इस शहर में अपने विचार-व्यवहार से बहुत कुछ सहेजा है और अच्छे लोगों ने आदर-सम्मान दिया है।तुम्हारे चाचा जी को मेरे भावी रिश्तेदार के रुप में लोग पहचानने लगे हैं।

शादी में भी एक तरह की राजनीति होती है।उस दौड़ मे मेरी क्या बिसात?लोग चालें चलते हैं,पासा फेकते हैं।शायद इस तरह वे अपनी पहचान बनाते हैं और प्रभूत्व भी।उस दौड़ में मेरी-तुम्हारी छवि लुप्तप्राय है जैसे हम कोई गुड्डा-गुड़िया है।क्या तुम्हारा चेतन मन स्वीकार करता है?

तुम्हारे इन अपनो ने मेरी स्वतन्त्रता छिन ली है।तुम्हें अच्छा लगेगा यदि मेरे चाचा जी या कोई रिश्तेदार तुम्हारे साथ दिन भर में अनेकों बार मिले-जुलें और तुमसे बातें करें?तुम्हारे चाचा जी यही कर रहे हैं।अपने मित्रो के साथ धमकते हैं और ऐसी-ऐसी बातें करते हैं कि मेरा मन खिन्न हो उठता है।वे लोग मेरे हम उम्र नहीं हैं और दोस्त भी नहीं है।उन्होंने यह भी समझने की कोशिश नहीं की है कि मुझे क्या पसन्द है।उनसे मैं इस स्तर तक नहीं उतर सकता।

तुम्हारे बारे में,तुम्हारी शिक्षा के बारे में असत्य बताया गया है।तुम्हारी बुआ आयीं मुझसे मिलने और शादी ना करने का कारण पूछने।तुम्हारे पिता या उनके भाईयों में से कोई क्यों नहीं आया?सुना है-तुम्हारे पिता जी जहाँ जाते हैं,शादी तय नहीं हो पाती।ऐसा क्या है?यह तो बहुत जरुरी है कि पिता सन्तुष्ट हों।तुम्हारी बुआ शिक्षिका हैं और उन्होंने जो तुम्हारे स्नातक होने का प्रमाण दिखाया उसमें तुम्हारे नाम में "देवी" लिखा था।या तो तुम पहले से ही शादी-शुदा हो या यह किसी दूसरे का प्रमाण-पत्र है।तुम गाँव क्यों भेज दी गयी हो,अपने माँ-पिता से दूर,दादी के पास?तुम्हारी बुआ से मैने सीधे पूछा था।कोई तुम्हें चाहता था,यह समस्या नहीं है।समस्या यह है कि तुम क्या चाहती हो?

मैने वह पत्र पढ़ा है जो तुमने अपने चाचा जी को तस्वीर के साथ भेजा है।तुमने हमें"विचित्र" कहा है।क्या मैं जान सकता हूँ कि कौन सी विचित्रता है हम लोगों में?

मुझे पता है कि तुम्हें क्रोध रहा होगा,तुम्हारा सुन्दर गौरवर्णीय चेहरा तमतमा रहा होगा।तुमने गुस्से में मेरी तस्वीर फाड़ दिया होगा।मुझे दुख है कि तुम भी सम्मिलित रही हो इन सभी छल-प्रपंचो में।विभा,तुम्हारे लिए मेरे भीतर का स्नेह स्रोत सुख गया है।

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कविताप्यार के बहुतेरे रंगविजय कुमार तिवारीयाद करो मैंने पूछा था-तुम्हारी कुड़माई हो गयी?यह एक स्वाभाविक प्रश्न था,तुमने बुरा मान लिया, मिटा डाली जुड़ने की सारी सम्भावनायेंऔर तोड़ डाले सारे सम्बन्ध। प्यार की पनपती भावनायें वासना की ओर ही नहीं जाती,वे जाती हैं-भाईयों की सुरक्षा में,पिता के दुलार में,व

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ट्रेन यात्रा

18 दिसम्बर 2018
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कहानीट्रेन यात्राविजय कुमार तिवारी(यह कहानी उन चार लड़कियों को समर्पित है जो ट्रेन में छपरा से चली थीं और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जा रही थीं।वे वहीं की छात्रायें थीं।)"खड़े क्यों हैं,बैठ जाईये,"एक लड़की ने जगह बनाते हुए कहा।थोड़े संकोच के साथ भरत बैठ गया।"आराम से बैठिय

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स्नेह निर्झर

3 जनवरी 2019
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कवितास्नेह निर्झरविजय कुमार तिवारीऔर ठहरें,चाहता हूँ, चाँदनी रात में,नदी की रेत पर।कसमसाकर उमड़ पड़ती है नदी,उमड़ता है गगन मेरे साथ-साथ। पूर्णिमा की रात का है शुभारम्भ,हवा शीतल,सुगन्धित।निकल आया चाँद नभ में,पसर रही है चाँदनी मेरे आसपास,सिमट रही है पहलू में।धूमिल छवि ले रही आकर,सहमी,संकुचित लिये वयभा

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बूढ़ा आदमी

6 जनवरी 2019
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कविता(मौलिक)बूढ़ा आदमीविजय कुमार तिवारीथक कर हार जाता है,बेबस हो जाता है,लाचारजबकि जबान चलती रहती है,मन भागता रहता है,कटु हो उठता है वह,और जब हर पकड़ ढ़ीली पड़ जाती है,कुछ न कर पाने पर तड़पता है बूढ़ा आदमी। कितना भयानक है बूढ़ा हो जाना,बूढ़ा होने के पहले,क्या तुमने देखा है कभी-तीस साल की उम्र को बूढ

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देश बचाना

13 जनवरी 2019
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कवितादेश बचानाविजय कुमार तिवारीस्वीकार करुँ वह आमन्त्रणऔर बसा लूँ किसी की मधुर छबि,डोलता फिरुँ, गिरि-कानन,जन-जंगल, रात-रातभर जागूँ,छेडूँ विरह-तानरचूँ कुछ प्रेम-गीत,बसन्त के राग। या अपनी तरुणाई करुँ समर्पित,लगा दूँ देश-हित अपना सर्वस्व,उठा लूँ लड़ने के औजारचल पड़ूँ बचाने देश,बढ़ाने तिरंगें की शान। कु

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विम्ब का ये प्यार

15 जनवरी 2019
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गीत(09/05/1978)विम्ब का ये प्यारविजय कुमार तिवारीकौन दूर से रहा निहार?दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार, विम्ब का ये प्यार। पोखरी से फिसल चले हैं पाँव ये,जिन्दगी की कैसी है ढलाँव ये। आज हाथ केवल है हार,दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,विम्ब का ये प्यार। धड़कने सिसकाव का सहारा ले,मिट रही बढ़त यहाँ किनारा ले। अदाय

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बचपन की यादें

18 जनवरी 2019
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कहानीबचपन की यादेंविजय कुमार तिवारीये बात तब की है जब हमारे लिए चाँद-सितारों का इतना ही मतलब था कि उन्हें देखकर हम खुश होते थे।अब धरती से जुड़ने का समय आ गया था और हम खेत-खलिहान जाने लगे थे।धीरे-धीरे समझने लगे थे कि हमारी दुनिया बँटी हुई है और खेत-बगीचे सब के बहुत से मालिक हैं।यह मेरा बगीचा है,मेरी

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अन्तर्यात्रा का रहस्य

22 जनवरी 2019
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अन्तर्यात्रा का रहस्यविजय कुमार तिवारीकर सको तो प्रेम करो।यही एक मार्ग है जिससे हमारा संसार भी सुव्यवस्थित होता है और परमार्थ भी।संसार के सारे झमेले रहेंगे।हमें स्वयं उससे निकलने का तरीका खोजना होगा।किसी का दिल हम भी दुखाये होंगे और कोई हमारा।हम तब उतना सावधान नहीं होते जब हम किसी के दुखी होने का का

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गुरु और चेला

28 जनवरी 2019
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व्यंग्यगुरु और चेलाविजय कुमार तिवारीबाबा गुरुचरन दास की झोपड़ी में सदा की तरह उजाला है जबकि सारा गाँव अंधकार में डूबा रहता है।पोखरी के बगल में पे़ड के पास उनकी झोपड़ी सदा राम-नाम की गूँज से गुंजित रहती है।बाबा ने कभी इच्छा नहीं की,नहीं तो वहाँ अब तक विशाल मन्दिर बन चुका ह

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स्त्री-पुरुष

29 जनवरी 2019
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कहानीस्त्री-पुरुषविजय कुमार तिवारीइसके पीछे कुछ कहानियाँ हैं जिन्हें महिलाओं ने लिखा है और खूब प्रसिद्धी बटोर रही हैं।कहानियाँ तो अपनी जगह हैं,परन्तु उनपर आयीं टिप्पणियाँ रोचक कम, दिल जलाने लगती हैं।लगता है-यह पुरुषों के प्रति अन्याय और विद्रोह है।रहना,पलना और जीना दोनो को साथ-साथ ही है।दोनो के भीतर

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आतंक

4 फरवरी 2019
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कविता(मौलिक)आतंकविजय कुमार तिवारीचलो, मुझे उस मोड़ तक छोड़ दो,सांझ होने को है,अंधियारे जाया नहीं जायेगा। न हो तो बीच वाले मन्दिर से लौट आना,या उस मस्जिद से,जहाँ सड़क पार चर्च है।अस्पताल तक तो पहुँचा ही देनाचला जाऊँगा उससे आगे। ऐसा नहीं कि हिन्दुओं से डरता हूँ,मुसलमानों से भी नहीं डरता,सिखों या किसी

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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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पुरानी यादे

7 फरवरी 2019
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पुरानी यादेंविजय कुमार तिवारी1983 में 4 सितम्बर को लिखा-डायरी मेरे हाथ में है और कुछ लिखने का मन हो रहा है। आज का दिन लगभग अच्छा ही गुजरा है।ऐसी बहुत सी बातें हैं जो मुझे खुश भी करना चाहती हैं और कुछ त्रस्त भी।जब भी हमारी सक्रियता कम होगी,हम चौकन्ना नहीं होंगे तो निश्चित मानिये-हमारी हानि होगी।जब हम

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प्रेम का मौसम

9 फरवरी 2019
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प्रेम का मौसमविजय कुमार तिवारीप्रेम का मौसम चल रहा है और बहुत से युवा,वयस्क और स्वयं को जवान मानने वाले वृद्ध खूब मस्ती में हैं।इनकी व्यस्तता देखते बनती है और इनकी दुनिया में खूब भाग-दौड़ है।प्रयास यही है कि कुछ छूट न जाय और दिल के भीतर की बातें सही ढंग से उस दिल तक पहुँच

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चुनाव 2019

10 फरवरी 2019
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चुनाव-2019विजय कुमार तिवारीहम वोट देने वाले हैं।वोट देना हमारा अधिकार है और कर्तव्य भी।यह बहुत संयम, धैर्य और विचार का विषय है।आज से पहले शायद कभी भी हमने इस तरह नहीं सोचा।चुनाव आयोग और हमारे संविधान ने इस विषय में बहुत से दिशा-निर्देश जारी किये हैं।हम सभी सामान्य वोटर को बहुत कुछ पता भी नहीं है।कई

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आत्म-बोध

15 फरवरी 2019
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पहली मुलाक़ात

21 फरवरी 2019
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कवितापहली मुलाकातविजय कुमार तिवारीयह हठ था या जीवन का कोई विराट दर्शन,या मुकुलित मन की चंचल हलचल?रवि की सुनहरी किरणें जागी,बहा मलय का मधुर मस्त सा झोंका,हुई सुवासित डाली डाली, जागी कोई मधुर कल्पना।शशि लौट चुका थानिज चन्द्रिका-पंख समेटे। उमग रहे थे भौरे फूलों कलियों में,मधुर सुनहले आलिंगन की चाह संजो

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शादी की पीड़ा

23 फरवरी 2019
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प्यार ही डसने लगा

28 फरवरी 2019
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प्यार ही डंसने लगाविजय कुमार तिवारीतुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हो गये अपने पराये,आईना छलने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हर हवा तूफान सी,झकझोर देती जिन्दगी,धुंध में खोया रहा,पतवार भी डुबने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?चाँद तारे छुप गये हैं,दर्द के शैलाब में,ढल गया दिल का उजाला,

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बदलते हुए लोग

1 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिये

5 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिएविजय कुमार तिवारीबच्चा जैसे ही अपने आसपास को देखना शुरु करता है उसके मन में प्रश्न कुलबुलाने लगते हैं।वह जानना चाहता है,समझना चाहता है और पूछना चाहता है।जब तक बोलने नहीं सीख जाता,व्यक्त करने नहीं सीख जाता,उसके प्रश्न संकेतों में उभरते हैं।उसे यह धरती,यह आकाश,य

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विज्ञापन

22 मार्च 2019
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कविताविज्ञापनविजय कुमार तिवारीजागते ही खोजती है अखबार,झुँझलाती है-कि जल्दी क्यों नहीं दे जाता अखबार। अखबार में खोजती है-नौकरियों के विज्ञापन। पतली-पतली अंगुलियों से,एक -एक शब्द को छूती हुई,हर पंक्ति पर दृष्टि जमाये,पहुँच जाती है अंतिम शब्द तक। गहरा निःश्वांस छोड़ती है

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महत् चिंतन

4 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपाय

5 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपायविजय कुमार तिवारीसंसार में सभी सुख चाहते हैं,दुख कोई नहीं चाहता,जबकि कोई सुखी नहीं है, सभी दुखी हैं।कबीर दास जी ने कहा है कि सारा संसार दुख से भरा है।मेरा मानना है कि हमें सत्य दिखता नहीं।हम असत्य देखने के आदी हो गये हैं।हम झूठ देखते हैं और अपनी सुविधा से

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मि. ख़ का शहर

9 अप्रैल 2019
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प्रेम के भूख

5 सितम्बर 2019
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प्रेम की भूखविजय कुमार तिवारीसभी प्रेम के भूखे हैं।सभी को प्रेम चाहिए।दुखद यह है कि कोई प्रेम देना नहीं चाहता।सभी को प्रेम बिना शर्त चाहिए परन्तु प्रेम देते समय लोग नाना शर्ते लगाते हैं।प्रेम में स्वार्थ हो तो वह प्रेम नहीं है।हम सभी स्वार्थ के साथ प्रेम करते हैं।प्रेम कर

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नदी के दावेदार

28 सितम्बर 2019
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छमा करना

1 अक्टूबर 2019
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मशाल

4 अक्टूबर 2019
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करूँ-ह्रदय

11 अक्टूबर 2019
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दुःख

12 अक्टूबर 2019
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दुनिया युद्ध के महाविनाश की ओर जा रही है।यदि ऐसा हुआ तो किसी न किसी रुप में हम सभी प्रभावित होंगे।वैसे ही दुनिया में लोग अनेकानेक कारणों से दुखी हैं।हम में से बहुत लोग ऐसे हैं जिन्हे कोई न कोई दुख है।हम मिलकर उनका समाधान खोज सकते हैं और दुखों से बचाव कर सकते हैं।कम से कम हम चर्चा तो करें।कोई न कोई स

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उद्बोधन

22 नवम्बर 2019
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उद्बोधनविजय कुमार तिवारीलम्बे अन्तराल के बाद आज कुछ उद्बोधित होने की प्रेरणा जाग रही है।खिड़की से बाहर की दुनिया बड़ी मनोरम दिख रही है।आसमान नीला और शान्त है।मन भी नीरव-शान्ति की अनुभूति से ओत-प्रोत है।कौन कहता है कि हमारा जन्म दुख-भोग के लिए ही है?हमें स्वयं में डुबकी लगाने नहीं आता।हमारी सारी समस्

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ईशावास्योपनिषद के आलोक में

11 जनवरी 2020
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ईशावास्योपनिषद के आलोक मेंविजय कुमार तिवारीवेदान्त कहे जाने वाले उपनिषदों ने भारतीय जनमानस को बहुत प्रभावित किया है और हमारी चेतना जागृत की है।आज हमारे युवा पथ-भ्रमित और विध्वंसक हो रहे हैं,उन्हें अपने धर्म-ग्रन्थों विशेष रुप से वेदान्त के रुप में जाना जाने वाले उपनिषदों को पढ़ना और उनका अनुशीलन करन

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विवेकानंद के बहाने

12 जनवरी 2020
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विवेकानन्द के बहानेविजय कुमार तिवारीस्वामी विवेकानन्द जी ने उद्घोष किया था,"उठो,जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।"भारत के उन्हीं महान सपूत की आज जन्म-जयन्ती है।बहुत श्रद्धा पूर्वक याद करते हुए मैं उन्हें नमन करता हूँ।आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है और उनके चरणो में श्रद्धा-सुमन

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निर्भया के बहाने

20 मार्च 2020
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निर्भया के बहानेविजय कुमार तिवारीअन्ततः आज २० मार्च २०२० को निर्भया के दोषियों को फांसी हो ही गयी।१६ दिसम्बर २०१२ को निर्भया के साथ दरिन्दों ने जघन्य अपराध किया था।पूरा देश उबल पड़ा था और हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था पर नाना तरह के प्रश्न खड़े किये जा रहे थे।हमारा प्रशासन,हमारी न्याय व्यवस्था,हमारा राजनै

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जनता कर्फ्यू और हमारा देश

22 मार्च 2020
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जनता कर्फ्यू और हमारा देशविजय कुमार तिवारीप्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी के आह्वान पर आज २२ मार्च २०२० को पूरे देश ने अपनी एकता,अपना जोश और अपना मनोबल पूरी दुनिया को दिखा दिया।इस जज्बे को मैं हृदय से सादर नमन करता हूँ।राष्ट्रपति से लेकर आम नागरिकों तक ने ताली,थाली, घंटी,शंख और नगाड़े बजाकर अपना आभार

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कोरोना और स्त्री

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करोना और स्त्रीविजय कुमार तिवारीकल प्रधानमन्त्री ने देश मेंं कोरोना के चलते ईक्कीस दिनों के"लाॅकडाउन"की घोषणा की है।सभी को अपने-अपने घरों में रहना है।बाहर जाने का सवाल ही नहीं उठता।घर मेंं चौबिसों घण्टे पत्नी के साथ रह पाना,सोचकर ही मन भारी हो जाता है।किसी साधु-सन्त के पास इससे बचाव का उपाय नहीं है।

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महर्षि अरविंद का पूर्णयोग

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महर्षि अरविन्द का पूर्णयोगविजय कुमार तिवारीमहर्षि अरविन्द का दर्शन इस रुप में अन्य लोगोंं के चिन्तन से भिन्न है कि उन्होंने आरोहण(उर्ध्वगमन)द्वारा परमात्-प्राप्ति के उपरान्त उस विराट् सत्ता को मनुष्य में अवतरण अर्थात् उतार लाने की चर्चा की है।यह उनका एक नवीन चिन्तन है।गीता में दोनो बातें कही गयी हैं

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जिंदगी सुखद संयोगो का खेल है .

27 मार्च 2020
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कहानीजिन्दगी सुखद संयोगों का खेल है।विजय कुमार तिवारीरमणी बाबू को भगवान में बहुत श्रद्धा है।उसके मन मेंं यह बात गहरे उतर गयी है कि अच्छे दिन अवश्य आयेंगे।अक्सर वे सुहाने दिनों की कल्पना में खो जाते हैं और वर्तमान की छोटी-छोटी जरुरतों की लिस्ट बनाते रहते हैं।गाँव के लड़के स्कूल साईकिल पर जाते थे तो व

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धिक्कार है ऐसे लोगो पर

31 मार्च 2020
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धिक्कार है ऐसे लोगोंं परविजय कुमार तिवारीमन दहल उठता है।लाॅकडाउन में भी लाखों की भीड़ सड़कों पर है।भारत का प्रधानमन्त्री हाथ जोड़कर विनती करता है,आगाह करता है कि खतरा पूरी मानवजाति पर है।विकसित और सम्पन्न देश त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।विकास और ऐश्वर्य के बावजूद वे अपनी जनता को बचा नहीं पा रहे हैं।आज

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शहर प्रयोगशाला हो गया है

1 अप्रैल 2020
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कविताशहर प्रयोगशाला हो गया हैविजय कुमार तिवारीछद्मवेष में सभी बाहर निकल आये हैंं,लिख रहे हैं इतिहास में दर्ज होनेवाली कवितायें,सुननी पड़ेगी उनकी बातेंं,देखना पड़ेगा बार-बार भोला सा चेहरा।तुमने ही उसे सिंहासन दिया है,और अपने उपर राज करने का अधिकार।दिन में वह ओढ़ता-बिछाता है तुम्हारी सभ्यता-संस्कृति,उ

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मेरे आनंद की बाते

2 अप्रैल 2020
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मेरे आनन्द की बातेंविजय कुमार तिवारीकभी-कभी सोचता हूँं कि मैं क्योंं लिखता हूँ?क्योंं दुनिया को लिखकर बताना चाहता हूँ कि मुझे क्या अच्छा लगता है?मेरी समझ से जो भी गलत दिखता है या देश-समाज के लिए हानिप्रद लगता है,क्यों लोगों को उसके बारे में आगाह करना चाहता हूँ?क्यों दुनिया को सजग,सचेत करता फिरता हूँ

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हर युग में आते है भगवान

3 अप्रैल 2020
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कविताहर युग मेंं आते हैं भगवानविजय कुमार तिवारीद्रष्टा ऋषियों ने संवारा,सजाया है यह भू-खण्ड,संजोये हैं वेद की ऋचाओं में जीवन-सूत्र,उपनिषदों ने खोलें हैं परब्रह्म तक पहुँचने के द्वार,कण-कण में चेतन है वह विराट् सत्ता।सनातन खो नहीं सकता अपना ध्येय,तिरोहित नहीं होगें हमारे पुरुषोत्तम के आदर्श,महाभारत स

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5 अप्रैल 2020 ,रात 9 बजे 9 मिनट का प्रकाश-पर्व

5 अप्रैल 2020
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5 अप्रैल 2020,रात 9 बजे,9 मिनट का प्रकाश-पर्वविजय कुमार तिवारीविश्वास करें,यह कोई सामान्य घटना घटित होने नहीं जा रही है और ना ही आज का प्रकाश-पर्व एक सामान्य प्रकाश-पर्व है।ब्रह्माण्ड की ब्रह्म-शक्ति का आह्वान हम सम्पूर्ण देशवासी प्रकाश-पर्व मनाकर करने जा रहे हैं।हमारे भीतर स्थित वह दिव्य-चेतना जागृ

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विपत्ति में ही

7 अप्रैल 2020
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विपत्ति में हीविजय कुमार तिवारीप्राचीन मुहावरा है,"विपत्ति में ही अच्छे-बुरे की पहचान होती है।"मानवता के सामने सबसे भयावह और संहारक परिस्थिति खड़ी हुई है।पूरी दुनिया बेबस और लाचार है।हमारे विकास के सारे तन्त्र धरे के धरे रह गये हैं।कुछ भी काम नहीं आ रहा है।स्थिति तो यह हो गयी है कि जो जितना विकसित ह

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हमउम्र बूढ़ों का परिवार

8 अप्रैल 2020
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कविताहमउम्र बूढ़ोंं का परिवारविजय कुमार तिवारीमैंने सजा लिया है सारे हमउम्र बूढ़ों को अपने फ्रेम में,बना लिया है मित्रों का बड़ा सा समूह। रोज देखता रहता हूँ उनके आज के चेहरे,चमक उठती है पुतलियाँजीवन्त हो उठते हैं उनसे जुडे नाना प्रसंग। मुरझाये गालों और मद्धिम रोशनी लिये आँखें,आज भी कौंंध जाता है उनक

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-१

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-1विजय कुमार तिवारीसालों बाद कल रात उसने ह्वाट्सअप किया,"हाय अंकल ! कहाँ हैं आजकल?"उसने अंग्रेजी अक्षरों में "प्रणाम" लिखा और प्रणाम की मुद्रा वाली हाथ जोड़ेे तस्वीर भी भेज दी।प्रमोद को सुखद आश्चर्य हुआ और हंसी भी आयी।"कैसे याद आयी अंकल की इतने सालों बाद?"प्रमोद ने यूँ ही

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-२

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-2विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू भी इस माहौल से अछूते नहीं रहे।उनका मिलना-जुलना शुरु हो गया।कार्यालय में बहुत लोगों के काम होते जिसे बड़े ही सहृदय भाव से निबटाते और कोशिश करते कि किसी को कोई शिकायत ना हो।स्थानीय लोगों से उनकी अच्छी जान-पहचान हो गयी है।सुरक्षा बल के लोगों के

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-३

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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-3विजय कुमार तिवारी"मैं किसी से नहीं डरता,"मोहन चन्द्र पूरी बेहयायी पर उतर आये।प्रमोद बाबू ने अपने आपको रोका।सुबह की ताजी हवा में भी गर्माहट की अनुभूति हुई और दुख हुआ।हिम्मत करके उन्होंने कहा,"मोहन चन्द्र जी,दूसरों की जिन्दगी में टांग अड़ाना ठीक नहीं है।आपकी बात सही हो तब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-४

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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-4विजय कुमार तिवारी"ऐसा नहीं कहते,"प्रमोद बाबू भावुक हो उठे,"इतना ही कह सकता हूँ कि तुम अपनी उर्जा इन सब चीजों में मत लगाओ।"थोड़ा रुककर उन्होंने कहा,"दुनिया ऐसी ही है,लोग कहेंगे ही।तुम्हें तय करना है कि स्वयं को इन वाहियात चीजों में उलझाती हो और अपने को बरबाद करती हो या ब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-६

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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-6विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू दोनो महिलाओं और मोहन चन्द्र जी की भाव-भंगिमा देख दंग रह गये।सुबह दूध वाले की बातें सत्य होती प्रतीत होने लगी।उन्होंने मौन रहना ही उचित समझा।अन्दर से पत्नी भी आ गयी।मोहन चन्द्र बाबू उन दोनो महिलाओं से कुछ पूछते-बतियाते रहे।थोड़ी देर में पत्नी

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हमारी शादी की सैंतीसवी वर्षगाठ

27 अप्रैल 2020
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हमारी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठविजय कुमार तिवारीआज 27 अप्रैल को हम अपनी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं और सम्पूर्ण मानवता को बताना चाहते हैं कि परमात्मा के आशीर्वाद से,विगत सैंतीस वर्षों से चला आ रहा हमारा अटूट सम्बन्ध पूर्णतः उर्जावान और मधुर प्रेम से भरा हुआ है।आप सभी सुहृदजनों,सखा-सम्बन

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तुम्हारे प्रेम के नाम-२

1 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-2विजय कुमार तिवारीदुनिया तो वही है जो सबकी होती है परन्तु मेरे लिए जैसे बिल्कुल अजनबी हो चुकी है।जो जानी-पहचानी दुनिया थी उसे मैं बहुत पीछे छोड़ आया हूँ और यह नयी जगह,नयी दुनिया जैसे मुझे आत्मसात करने को तैयार ही नहीं है।इस दृष्टि से समूची नारी जाति के प्रति मेरा मन पूरी श

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तुम्हारे प्रेम के नाम-३

3 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-3विजय कुमार तिवारीतुमने अनेकों बार कुरेदा है मुझे,"कैसे मैं अपने को बचाता रहा और कैसे इस मतलबी दुनिया की शातिर चालों को समझ पाया।"तुमसे खुलकर कहना चाहता हूँ,सच बयान करता हूँ कि यह कोई मुश्किल काम नहीं है।हर व्यक्ति को थोड़ा सजग रहना चाहिए।थो

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वासना गद्दारो और नशेड़ियों का देश

5 मई 2020
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वासना,गद्दारों और नशेड़ियों से भरा देशविजय कुमार तिवारीवासना,गद्दारी या नशे में डूबे रहना यह सब मनुष्य के अधःपतन का द्योतक है और आज की स्थिति देखकर लगता है कि हमारे देश में बहुतायत ऐसे ही लोग हैं।मैं मानता हूँ कि हमे निराश नहीं होना चाहिए परन्तु ये परिदृश्य कोई दूसरी कहानी तो नहीं कह रहे।कल देश में

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डा नन्द किशोर नवल जी की यादें

14 मई 2020
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डा0 नन्द किशोर नवल जी की यादेंविजय कुमार तिवारीपरमादरणीय मित्र,प्रख्यात आलोचक और साहित्यकार डा.नन्द किशोर नवल जी नहीं रहे।मेरा तबादला धनबाद से पटना हुआ था।9अप्रैल 1984 की शाम में बी,एम.दास रोड स्थित मैत्री-शान्ति भवन में प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से"राहुल सांकृत्यायन-जयन्ती"का आयोजन था।भाई अरुण कमल,ड

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