प्रेम का मौसम
विजय कुमार तिवारी
प्रेम का मौसम चल रहा है और बहुत से युवा,वयस्क और स्वयं को जवान मानने वाले वृद्ध खूब मस्ती में हैं।इनकी व्यस्तता देखते बनती है और इनकी दुनिया में खूब भाग-दौड़ है।प्रयास यही है कि कुछ छूट न जाय और दिल के भीतर की बातें सही ढंग से उस दिल तक पहुँच जाय।बस एक ही धुन है,एक ही लगन कि प्रेम की ज्वाला जो अभी मेरे भीतर है,वह उस ओर भी जल उठे और उनका दिल भी प्रेम की भावना से भर जाये।उनसे नजरें मिले और दिल धड़क जाये।उनकी पलकें उन्मिलित हों और यहाँ रोम-रोम रोमांचित हो जाये। उधर से चितवन तिरछी हो और इधर सीधे दिल की गहराई में उतर जाये। उधर आँखों में शरारत उभरे और इधर पूरा शरीर पिघलने लगे।सभी की मनसा यही है कि प्रेम की आग दोनो तरफ पूरे जोश से लगे।
बसन्त ने दस्तक दी है।कलियाँ खिलने लगी हैं,भौरें मंडराने लगे हैं और मस्ती की बयार बहने लगी है। शीत ऋतु के बाद का यह बदलाव बहुत ही मधूरतम रुप में प्रकट होता है।भगवान सूर्य अपनी किरणों के माध्यम से उष्मा देकर धरती के आँगन को जगाने लगते हैं।धरती की यह अँगड़ाई चारो तरफ दिखती है।बसन्त के आगमन का संकेत है और चारो ओर शरारत भरी मुस्कराहट खिल रही है।यह सब स्वाभाविक है-प्रकृति का बिहँसना,मुस्कराना और खिलखिलाना।
बसन्त और प्रेम के मौसम की उष्मा तभी सार्थक है जब हमारे सभी सम्बन्ध नयी उर्जा के साथ एक-दूसरे से जुड़ जाय और अटूट बने रहें। कहीं कोई दरार ना बने।सभी एक-दूसरे के सहयोगी और प्रेमी बने।हमारा रोम-रोम खिले और इसकी अनुभूति सभी को हो। हम वहाँ जरुर खड़ा मिलें जहाँ कोई हमे देखना चाहता हो। सभी का सुख बढ़ाने में हमारा सहयोग हो। किसी के दुख का कारण हमें नहीं बनना। इतनी भी साधना कर लें तो जन्म लेना सार्थक हो जायेगा। हमारी पुतलियों में प्यार की चमक हो और होठों पर नैसर्गिक मुस्कान।