कविता
पहली मुलाकात
विजय कुमार तिवारी
यह हठ था
या जीवन का कोई विराट दर्शन,
या मुकुलित मन की चंचल हलचल?
रवि की सुनहरी किरणें जागी,
बहा मलय का मधुर मस्त सा झोंका,
हुई सुवासित डाली डाली,
जागी कोई मधुर कल्पना।
शशि लौट चुका था
निज चन्द्रिका-पंख समेटे।
उमग रहे थे भौरे फूलों कलियों में,
मधुर सुनहले आलिंगन की चाह संजोये,
तन की सुधि-बुधि खोये,सुन्दर राग पिरोये।
तू भी तो जैसे खिली-खिली सी,
सिमटी सी,भोली कोई छुईमुई सी।
संकुचित तन और मन तरंगित
जैसे कोई कली उमगी हो।
मन के कोने में भींगा पड़ा है
हमारी पहली मुलाकात पर
प्रकृति का वह श्रृंगार,हमारा प्यार।