कहानी
खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-4
विजय कुमार तिवारी
"ऐसा नहीं कहते,"प्रमोद बाबू भावुक हो उठे,"इतना ही कह सकता हूँ कि तुम अपनी उर्जा इन सब चीजों में मत लगाओ।"थोड़ा रुककर उन्होंने कहा,"दुनिया ऐसी ही है,लोग कहेंगे ही।तुम्हें तय करना है कि स्वयं को इन वाहियात चीजों में उलझाती हो और अपने को बरबाद करती हो या बचकर निकलती हो और अपनी जिन्दगी संवारती हो।"
"मैं क्या करुँ अंकल?"मध्यमा चित्कार कर उठी।
"कुछ नहीं,पहले रोना-धोना बन्द करो,मुस्कराओ और अपनी सेल्फी भेज दो,"एक सांस में प्रमोद बाबू ने अपना आदेश सुना डाला।
"ओ के सर,"उसने लिखा।
मध्यमा किंचित मुस्करायी होगी,प्रमोद बाबू ने अनुमान लगाया।उन्होंने मन ही मन उसके लिए प्रार्थना की।
मध्यमा को नींद नहीं आयी।उसने देखा कि प्रमोद अंकल कोई उत्तर नहीं दे रहे हैं। उसे खिझ सी हुई,"सो गये होंगे?"पुनः उसकी कातरता और बेचारगी उभर आयी,
"कहने को सब हैं।कोई अपना नही है।"
मोहन चन्द्र जी न जाने किस धुन में तेजी से चले आ रहे हैं।चेहरे पर मृदु मुस्कान है और आँखों में चमक।दूर से ही उनकी भाव-भंगिमा और रंगत को पह्चाना जा सकता है।आसमान में बादल छाये हुए हैं।लगता है,कभी भी बरसात हो सकती है।प्रमोद बाबू ने आसमान की ओर देखा और मन ही मन बोले,"बहुत गर्मी है,उमस भी।कुछ तो राहत मिलेगी।"
" मैंने इस पूरी सड़क का नक्शा खोज निकाला है प्रमोद बाबू ! और सबकी कुण्डली भी,"मोहन चन्द्र जी ने हाथ से अपने घर के सामने वाली सड़क की तरफ संकेत करते हुए कहा।संकेत करती उनकी बांयी बांह,जिस तरह सीधी और कठोर थी,प्रमोद बाबू को समझते देर नहीं लगी कि कोई नया बखेड़ा खड़ा होनेवाला है।वे उठकर सीधे भीतर गये और जग में पानी भर लाये।पुनः भीतर गये और गिलास उठा लाये।तिसरी बार अन्दर जाने ही वाले थे कि मोहन चन्द्र ने रोकना चाहा,"आप बैठिये,मुझे किसी चीज की जरुरत नहीं है।"प्रमोद बाबू ने अनसुना किया और रसोई घर में से सुबह का बना हुआ चार-पांच पुआ निकाल लाये।
जब से उनके भाई का तबादला हुआ है,वे लोग चले गये हैं तब से इनके भोजन की व्यवस्था का भार उसी दायी पर है।प्रमोद बाबू को भी इनके लिये चाय-पानी की चिन्ता लगी रहती है।उनके नानुकुर करने के बाद भी कोशिश रहती है कि जब भी आयें,कुछ खा-पीकर जायें।प्रमोद बाबू ने इस तरह उनकी बेसिर-पैर की बातों को सुनने के लिए अपने को मानसिक तौर पर तैयार कर लिया।चाय लेकर पत्नी आयी तो उन्होंने कहा,"कुछ नमकीन भी ला दीजिये भाभी जी।मीठा पुआ के बाद बिना नमकीन खाये चाय का स्वाद फीका हो जायेगा।"
प्रमोद बाबू बोले,"बिल्कुल आपने सही फरमाया।"दोनों हंस पड़े।
चाय का कप उठाते हुए मोहन चन्द्र ने एक गहरी निगाह प्रमोद बाबू पर डाली,"आप को तो पता भी नहीं होगा कि इस सड़क के साथ लगे बंगलों में कौन-कौन रहता है?"
प्रमोद बाबू ने नकार की मुद्रा में सिर हिलाया।"कम से कम अपने आसपास देखना चाहिए कि हम किन लोगों के साथ रह रहे हैं?"किंचित व्यंगात्मक मुस्कान के साथ उन्होने जोड़ा।
"आपकी इस बात से मैं सहमत हूँ।"
"आपको तो मेरी हर बात से सहमत होना चाहिए,"उनका जोरदार ठहाका दूर तक सुनाई पड़ा।प्रमोद बाबू भी हंस पड़े।
सहसा गम्भीर होते हुए उन्होंने कहा,"प्रमोद बाबू ! यदि आपको मेरी बात पर विश्वास हो,तो इस सड़क से जुड़े अधिकांश घरों में----"देखिये बहुत जिम्मेदारी से कह रहा हूँ, "महिलायें अच्छी नहीं हैं।"
प्रमोद बाबू को कुछ ऐसी ही उम्मीद उनसे थी।शुक्र है कि भाषा की मर्यादा का उन्होंने अधिक उलंघन नहीं किया।"हाँ,आपके आने के पहले किसी रात पुलिस ने किसी घर में दबिस डाला था।बहुत शोर-शराबा हुआ,"प्रमोद बाबू ने कुछ याद करते हुए कहा।किंचित हंसते हुए बोले,"मैं घोड़ा बेचकर सोया था,नींद ही नहीं खुली।सुबह दूध वाले ने सारी बातें बतायी।" थोड़ा रुककर बोले,"शायद किसी गिरोह का कोई आदमी इधर छिपता फिरता था।"
"नहीं,उसकी प्रेमिका रहती है।अकेले नहीं है,तीन-चार औरतें हैं।सबके अपने-अपने जाल हैं,"मोहन चन्द्र बाबू की आँखों की चमक तेजी से बढ़ी और धूमिल हो गयी,"आपसे क्या छिपाऊँ,मुझे धमकी मिली है।एक रात मुझे रोककर कहा गया कि दूसरों की ज्यादे पहरेदारी करने की जरुरत नहीं है।"
प्रमोद बाबू को सचमुच चिन्ता हुई,"ऐसा है क्या?"
"जो नहीं दिख रहा किसी को,वह यह है कि यहाँ आसपास की सारी जवान होती लड़कियाँ खतरे में हैं।कोई घर ऐसा नहीं है,जिसमें इन महिलाओं का आना-जाना नहीं है।ये उन घरों में ज्यादा जाती हैं जहाँ लड़कियाँ और बहुएं हैं।उसके घर में भी, उस दिन जो आपके आफिस में मिली थी।इनका एक ही काम है,किसी भी तरह घरों में कामुकता और वासना फैलाना,"मोहन चन्द्र जी सहसा चुप हो गये।
प्रमोद बाबू को गहरी चिन्ता हुई,"यदि ऐसा है तो हम सभी खतरे में हैं।"
"मोहन चन्द्र जी,प्रमोद बाबू को चिन्तित देखकर मुस्कराये,"नहीं,चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है।जरुरत है इसके खिलाफ ठोस कदम उठाने की।ऐसा कुछ किया जाय कि सबकी सुरक्षा हो और कोइ बखेड़ा भी न हो।"
"वह कैसे?"प्रमोद बाबू ने बेहिचक पूछ लिया।
"मुझे जो समझ में आ रहा है,वही चर्चा कर रहा हूँ।यह मेरा विचार मात्र है।दूसरे भी उपाय होंगे जिन्हें खोजना और लागू करना है।"थोड़ा संयम बरतते हुए उन्होंने कहना शुरु किया,"मैंने देखा है कि उस लड़की की मां का करीब-करीब सभी घरों में आना-जाना है,वह वाचाल भी है,थोड़ी मुँहफट भी।सबसे अधिक उसी से इन लोगों का सम्बन्ध है।खतरा भी उसपर या उसकी बेटी पर ज्यादा है।यदि वह वस्तुस्थिति को यथार्थतः समझ ले तो सबका कल्याण हो सकता है।परन्तु-----"
"परन्तु क्या मोहन चन्द्र जी?"प्रमोद बाबू की उत्सुकता जाग उठी।
"वह चरित्रहीन है,ऐसा तो मैं नहीं कहूँगा परन्तु अधिक समय तक पति से दूर-दूर रहने के कारण उसमें रसिक-वृत्ति का उदय हुआ है,शृंगार,संगीत,बतरस और हंसी-मजाक का आनन्द लेते हुए वह भूल गयी है कि उसकी बेटी सयानी हो गयी है।इस मार्ग में भटक जाना सरल है परन्तु वापस लौट आना अत्यन्त कठिन।बेटी के खतरे का अहसास होने पर वह हालात को समझ सकती है और महिलाओं में चेतना जगा सकती है।"