देवरहा बाबा के बहाने
विजय कुमार तिवारी
जब हम एकान्त में होते हैं तो हमारे सहयात्री होते हैं-आसपास के पेड़-पौधे। वे लोग बहुत भाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसी अनुभूति होती है। मेरा दुर्भाग्य रहा कि मुझे पूज्य देवरहा बाबा जी का दर्शन करने का सुअवसर नहीं मिला। साथ ही सौभाग्य है कि आज मैं उन्हें श्रद्धा भाव से याद कर रहा हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है कि उनकी कृपा मुझपर है।
जब मैं स्थानान्तरित होकर सिन्दरी आया तो बहुत निराशा हुई और मैंने अपने गुरु पूज्य सचिन बाबा से निवेदन किया कि मेरा तबादला कम से कम किसी शहरी क्षेत्र में होना चाहिए था। विभाग का भी नियम है कि यदि कोई दुर्गम और सुविधा रहित जगह में दो साल बीता कर आये तो उसकी अगली सेवा शहर या उसके मनोनुकूल स्थान पर होगी। यहाँ अर्ध-शहरी और उजड़ रहे स्थान पर भेजा जाना एक तरह से दण्ड है। पूज्य सचिन बाबा ने कहा,"चाहोगे तो बदल जायेगा।"मुझे लगा कि मुझसे गलती हो गयी। मैंने कहा,"नहीं बाबा, आपने मेरे लिए जो स्थान चुना है,वहीं जाउँगा।"
मैं ऐसा मानने लगा हूँ कि हमारे पूर्व जन्मों के कर्म ही हमारे भविष्य की दशा-दिशा तय करते हैं और हमारा जन्म-स्थान,कर्म-स्थान वहीं होता है जहाँ के हम ऋणी होते हैं। वही लोग मिलते हैं-माता-पिता,भाई-बहन,रिश्तेदार,पड़ोसी, सहकर्मी,सहयात्री,आसपास रहने वाले जीव-जन्तु,पेड़-पौधे आदि जिनसे किसी जन्म में व्यवहार हुआ रहता है। ये आत्माओं से मिलन का रहस्य है। अज्ञानता के चलते या माया के प्रभाव में वास्तविक स्थिति का ज्ञान नहीं होता और हम उलझकर दुखों के संसार में फँसे होते हैं। बहुत सरल व्याख्या है। जो मिला है-स्थान,लोग,जीव-जन्तु,पेड़-पौधे,साधन-सुविधा,सहायक या विरोधी, ये सभी अपना-अपना लेना-देना चुकता करने के लिए मिले हैं। जो होना है,वह तो होगा ही। हम दुखी इसलिए होते हैं कि सब कुछ मनोनुकूल नहीं होता और जो घटित हो रहा है उसे हम सहज स्वीकार नहीं कर पाते। इतनी ही साधना हम कर लें तो बहुत सी समस्याओं से बच जायेंगें।
यहाँ जो घर मिला,कोई बहुत अच्छा नहीं है, पुराना है। हमेशा रंग-रोगन खोजता है। बार-बार मरम्मत करवाना पड़ता है। कैम्पस बहुत बड़ा है और घासफुस से भरा हुआ है। आम के बहुतायत पेड़ हैं।
बेल,अशोक,सहिजन,पीपल,जामुन,तेजपत्ता,और कटहल के पेड़ हैं। बड़ा नीबू,अमरूद और अनार के भी पेड थे जो सुख गये और काट दिये गये।पेड़ो के चलते छाँव रहती है और गर्मी में शीतलता। पहले एक नेपाली माली- हल्द्वान सिंह जी थे जो पूरे कैम्पस को साफ-सुथरा रखते थे,गुलाब और गेंदा के फूल लगाते थे। उनकी बात सत्य हुई कि दोनो बेटियों की शादी यहीं करना। घर में काम करने वाली करुणा कहती थी कि यहाँ कृष्ण आयेगा।
एक दिन अचानक मुझे महसूस हुआ कि गेंदा के एक पौधे के सभी खिले हुए फूल मेरी ओर देख रहे हैं। उनमें उत्साह और खुशी है मानो छोटे-छोटे बच्चे किलकारी मार रहे हों। मेरे लिए यह अचरज भरी अनुभूति थी। मन रोमांचित हो उठा और शरीर में विचित्र सिहरन हुई। मैने कुर्सी मँगवायी और वहीं बैठ गया। प्यार से फूलों को छुआ और सहलाया। उस अनुभव का बयान नहीं कर सकता। लगा-कोई सुन्दर वच्चा मेरी गोद में बैठ गया है और खूब प्रसन्न होकर खेल रहा है। मैंने तदन्तर यह भी महसूस किया कि सभी फूलों के पौधे मेरी ओर देख रहे हैं। वनस्पति-जगत के साथ ऐसी अनुभूति पहले कभी भी नहीं हुई थी। मेरे लिए यह एक नया आयाम था जिसका लाभ यह हुआ कि मैंने मनुष्य,कुत्ते-बिल्लियों और पक्षियों के साथ-साथ पेड़-पौधों से भी लगाव अनुभव करना सीख लिया। शायद यह अनुभव मुझे अध्यात्म की ओर जाने में बहुत सहायक हुआ।मैंने यह समझ लिया कि कण-कण में भगवान हैं और जैसे मेरी आत्मा है वैसे ही सब में आत्मा है। यह भी समझ में आ गया है-आत्मायें एक-दूसरे को पहचान लेती हैं चाहे वे किसी भी योनि में हों।
2017 के फरवरी में किसी सुबह मैं अपने कैम्पस के एक कोने में बैठा कोई पुस्तक पढ़ रहा था। मौसम में ना ठंडक थी ना गर्मी। अचानक लगा-कुछ लोग मेरे आसपास आ खड़े हुए हैं। अनुभूति बहुत तीव्रतर थी। गेट के बजने की कोई आवाज नहीं हुई,कोई शोर नहीं उभरा। पुस्तक से ध्यान हटा,मैंने सिर उठाया। वहाँ कोई नहीं था। फिर मैंने पुस्तक खोला और पढ़ने लगा। पुनः ऐसा ही हुआ और स्पष्टतः उनकी हँसी भी सुनायी पड़ी। देखने में कोई नहीं था, लेकिन महसूस हुआ कि वहाँ अनेक लोग खड़े हैं,हँस रहे हैं और बताने का प्रयास कर रहे हैं कि वे सभी कैम्पस के अन्दर स्थित पेड़ो की आत्मायें हैं। विचित्र सुखद अनुभूति हुई।
देवरिया जिले में सरयू नदी के तट पर मचान वाली कुटिया में देवरहा बाबा जी विराजमान थे। तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी के आने की तैयारी चल रही थी। प्रशासन के लोगों ने कुछ बबूल के पेड़ो को काटने की योजना बनायी। बाबा ने कहा," कोई पेड़ नहीं कटेगा। ये सभी मेरे साथ रहते हैं,बातें करते हैं। अभी-अभी ये मेरे पास गुहार लगा कर गये हैं।" प्रशासन के अधिकारियों ने अपने तर्क बताये। बाबा ने कहा," अच्छा थोड़ा रुक जाओ।"
थोड़ी देर में सूचना आयी कि प्रधानमन्त्री का कार्यक्रम स्थगित हो गया।
जब यह प्रसंग मुझे कहीं पढ़ने को मिला तो मैं रोमांचित हो उठा। मेरे कैम्पस के पेड़ भी मेरे साथ आत्मीय भाव से हैं और खुशी से मेरा साथ देते हैं। मैंने अपनी तरफ से उन्हें हानि पहुँचाने की कभी कोशिश नहीं की है। जो विशेष मैंने महसूस किया है, वह है- यहाँ पूरे कैम्पस में एक अद्भूत आलोक फैला रहता है। जंगल जैसी घासें होने के बावजूद यहाँ शान्ति और अध्यात्मिक आभा छायी रहती है। भय नहीं लगता।
बाबा सभी जीवों के प्रति सच्ची अहिंसा चाहते थे और कहा करते थे,"यदि तुम मनसा,वाचा,कर्मणा अहिंसक हो तो पशु भी उसका अनुभव करेंगें और तुम्हें हानि नहीं पहुँचायेंगें। प्रत्येक शरीर में से हिंसा और अहिंसा के लक्षण प्रकट होते हैं,जिन्हें जानवर भी समझ सकते हैं।"मेरा अनुभव भी कुछ ऐसा ही है। पेड़-पौधे,आसपास रहने वाले सभी जानवर हमारी हिंसा-अहिंसा की स्थिति को समझकर,उसी के अनुसार व्यवहार करते हैं। अहिंसक बनो।