वासना,गद्दारों और नशेड़ियों से भरा देश
विजय कुमार तिवारी
वासना,गद्दारी या नशे में डूबे रहना यह सब मनुष्य के अधःपतन का द्योतक है और आज की स्थिति देखकर लगता है कि हमारे देश में बहुतायत ऐसे ही लोग हैं।मैं मानता हूँ कि हमे निराश नहीं होना चाहिए परन्तु ये परिदृश्य कोई दूसरी कहानी तो नहीं कह रहे।कल देश में राज्य सरकारों ने शराब बेचने पर लगी पाबन्दी हटा ली और कुछ नियमों का पालन करते हुए शराब खरीदने की छूट दे दी।हम सबने देखा कि किस तरह लोग टूट पड़े,भीड़ एकत्र हुई और लोगों ने नियमों की धज्जियाँ उड़ाकर रख दी।कोरोना के संक्रमण काल में कोई भी मृत्यु से भयभीत होता नहीं दिखा।नशे की लत ने इनकी चेतना को नष्ट कर दिया है और ऐसे लोग धरती पर भार-स्वरूप हैं।दुर्भाग्य है कि हमारा देश ऐसे लोगों के बोझ तले दबा हुआ है जो किसी भी योजना के उद्देश्य को पूरा होने नहीं देते।
ये वे लोग हैं जो सभ्यता-संस्कृति के विकास की किसी भी गतिविधि में शामिल होना नहीं चाहते।इनकी खुद की चेतना जागती नहीं और कोई जगाने आये,उसकी सुनते नहीं।अब तो ऐसे भी दृश्य देखने को मिल रहे हैं कि ये लोग उन्हीं लोगों पर आक्रमण कर रहे हैं जो इनकी सेवा में लगे हैं,जो इनके प्राणों की रक्षा करना चाहते हैं और जो इनके जीवन को बदलना चाहते हैं।इनके कृत्य घिनौने और हानिकारक हैं,इनकी सोच गलत दिखती है।समझ में नहीं आता कि ये क्या चाहते हैं?
वासना में आकंठ डूबे लोग न अपना भला करते हैं,न समाज का और न देश का।वासना की अति कुकर्म की ओर ले जाती है।आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने लिखा है,"कुकर्मी से बढ़कर अभागा कोई नहीं,क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं रहता।" श्रीकृष्ण कहते हैं,"जिसकी वासना हट गयी,जिसका काम हट गया,उसमें मैं वीर्य हूँ,उसमें मैं बल हूँ,उसका मैं बल हूँ।"वासना मनुष्य को अंधा बना देती है,उसके ज्ञान का लोप हो जाता है और वह किसी हद तक पतित होने को तैयार हो जाता है।वासना में मदान्ध व्यक्ति अपना विवेक खो देता है।
अपने देश में गद्दारी की लम्बी परम्परा रही है।बहुत से नाम लोगों की जबान पर हैं।आज उनकी बाढ़ सी आयी हुई है और गद्दारी करने से ये लोग जरा भी नहीं हिचकते।भाई,भाई से,पति, पत्नी से,या ऐसे कहिये कि आज के सारे सम्बन्ध इस की चपेट में हैं।जिसको देखिये वही इसमें शामिल है और एक-दूसरे को गिराने में लगा हुआ है।राष्ट्र से गद्दारी बहुतों का फैशन हो गया है।इसमें उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है।देश के विरूद्ध इन गद्दारों की सामूहिक व्यवस्था चल रही है।सुखद यही है कि अब इनकी पहचान हो रही है।बीमारी की पहचान हो जाने पर उसका ईलाज सम्भव है।दुखद यह भी है कि बहुत लोग जानते,समझते हुए भी मौन हैं।ऐसे मौन लोग ज्यादा खतरनाक होते हैं।ये अचानक जागते हैं और तात्कालिक प्रलोभनों से प्रभावित होकर गलत निर्णय कर देते हैं जिसका प्रतिफल देश को लम्बे समय तक भुगतना पड़ता है।ऐसे लोग पछताते भी हैं परन्तु हानि उठा लेने के बाद।इन लोगों का ना तो कोई स्वाभिमान है और ना ही देश-भक्ति।स्वार्थ में इतने अंधे कि किसी हद तक गिरने को तैयार।
कल जिस तरह सुबह से ही शराब के लिए लोगों की भीड़ एकत्र हुई,देखकर लगा कि हमारा पूरा देश नशेड़ी है।देश का कोई कोना नहीं था जहाँ का दृश्य सुकून देने वाला हो।ऐसी अफरा-तफरी थी मानो यही चीज है जिससे उनके प्राणों की रक्षा होनेवाली है।सबको पता है-शराब जानलेवा है,आयु कम कर देता है,घर को आर्थिक तंगहाली की ओर ढकेलता है और घर के विकास तथा प्रगति को बाधित करता है।उन लोगों के लिए तो यह आत्म-हत्या ही है जिनकी आय कम है और सम्पूर्ण परिवार बेमौत मारा जाता है।
कल के हालात देखकर लगा कि हमें उन लोगों की पहचान नये सिरे से करनी होगी।आखिर ये कौन लोग हैं जिन्हें शराब इतनी जरुरी है?अभी तो पूरी दुनिया करोना की महामारी से लड़ रही है।हमें मानकर चलना चाहिए कि समाज के सम्भ्रान्त लोग ऐसी भीड़ में शराब लेने कभी नहीं निकलेंगे।वे लोग शराब को शौक से पीते हैं,उन्हें ज्ञान रहता है कि कितनी मात्रा में पीना चाहिए,उन्हें पीने का अंदाज पता होता है और वे लोग पीकर बहकते नहीं।वैसे मैं उनका कोई पक्षधर नहीं हूँ और ना ही समर्थक।अपने जीवन की एक घटना का उल्लेख,सम्बन्धित व्यक्तियों से क्षमा-याचना के साथ करना प्रासंगिक समझता हूँ।मेरी शाखा का निरीक्षण चल रहा था।शाम में होटल में निरीक्षक महोदय से मिलने हमारे सहायक महाप्रबधक आने वाले थे। औपचारिकता बस अतिथियों के साथ मैं भी था।सहायक महाप्रबधक के पूछने पर निरीक्षक महोदय ने कहा,"मैं नहीं पीता।"उन्होंने मेरी तरफ देखकर कहा,"मैं तो पीता हूँ।"मेरे लिए धर्मसंकट का क्षण था।हठात् मेरी चेतना जागी।मैंने कहा,"मैं न पीता हूँ और न पिलाता हूँ।"इसका सुफल हुआ कि मेरी अगली पदोन्नति में सात साल लगे जबकि हर वर्ष लिखित परीक्षा उत्तीर्ण होता था और साक्षात्कार देता था।मैं तो कहता हूँ की जिन्दगी खुद एक नशा है।परमात्मा की प्राप्ति में लग जाईये,इससे बड़ा आनन्ददायक दूसरा कोई नशा नहीं है।आजमाकर देखिये।हमारा ईहलोक और परलोक सब सुधर जायेगा।
देश में लोगों को वासना,गद्दारी और नशा की दुनिया में ले जानेवाली प्रेरक शक्तियाँ सक्रिय हैं।शुरु-शुरु में ये हम सबकी हितैषी लगती हैं और कोई भी इनकी वास्तविकता समझ नहीं पाता।इनका जाल बिछा हुआ है और सीधे-सादे लोगों को ये फांसते रहते हैं।गरीबी,अशिक्षा और अज्ञानता के चलते लोग इनके बहकावे में आ जाते हैं।इन्हें हमारी प्रगति और विकास से कोई मतलब नहीं है।लम्बे समय की गुलामी ने हमारी चेतना को बहुत प्रभावित किया है।अपने देश की भूमि और अपने धर्म से बड़ी कोई चीज नहीं है।जितनी स्वतन्त्रता और छूट यहाँ है, दुनिया में अन्यत्र कहीं नहीं है।अपना विवेक जागृत करो,अपनी चेतना जगाओ और सावधान हो जाओ।आज भारत जाग रहा है और मजबूती से खड़ा हो रहा है।अपनी श्रद्धा,भक्ति, प्रेम और करुण भावनाओं के साथ हम सभी भागीदार बने।ऐसा कुछ भी मत करो कि तुम्हारी आत्मा तुम्हें धिक्कारती रहे।याद रखो कि देश है तभी हम हैं।जय हिन्द