जब व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए तत्पर हो जाता है तो उसके अंदर जो जुनून पैदा होता है, वही जुनूनियत उसकी जिद कब बन जाती है इसका उसे पता ही नहीं चलता,
और वही जिद उस को सफल बनाने के लिए सहायक होती है जब तक व्यक्ति के अंदर किसी चीज को पाने का जुनून नहीं होता तब तक उसके अंदर वह जिद वाला भाव भी नहीं उत्पन्न होता ।
वह जुनून चाहे किसी भी चीज का हो सकता है या फिर किसी व्यक्ति विशेष का भी आज राजीव और अवनी की स्थिति उसी जुनूनियत तक पहुंच चुकी थी।
जिसमें वह एक दूसरे को जिस हद तक चाहने लगे थे कि अब उनको अलग करना किसी के बस की बात नहीं थी और खुद से तो वह अलग होने से रहे,
जिस स्थिति में उनका प्यार पहुंचा था उसमें तो ठाकुर साहब के दांव पेंच धरे के धरे रह गए, रुद्र का मारना पीटना डराना धमकाना कुछ काम ना आया बल्कि इससे राजीव की .हिम्मत और बढ़ गई,
अब धीरे-धीरे राजीव और अवनी की यही दिनचर्या होती जा रही थी जैसे ही क्लास खत्म होती दोनों चुपचाप आते कभी किसी पेड़ के छांव के नीचे तो कभी खुले मैदान के नीचे तो कभी क्लास की सीढ़ियों के पास घंटों बैठे रहते हर किसी आने जाने वाले की नजर उन पर पड़ती,
पर उन्हें तो मानो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा हो वे दोनों एक दूसरे में इतना ज्यादा खोते रहते की और किसी की तरफ उनका ध्यान ही न जाता,
कभी अपने भविष्य के सपने बुनते तो कभी वर्तमान में लौट आते यह सिलसिला कुछ दिनों तक चलता रहा और दोनों के प्रेम में और प्रगाढ़ता आती रही फिर एक दिन ऐसा आया जिसका अंदेशा कहीं न कहीं सभी को था।
रूद्र प्रताप के कानों में उड़ती उड़ती यह बातें थोड़ी बहुत पहुंची थी लेकिन रूद्र प्रताप सोच रहे थे कि मेरे इतना मारने के बाद राजीव में तो इतनी हिम्मत होनी नहीं चाहिए??
कि वह दोबारा अवनी की तरफ आंख उठाकर भी देखें लेकिन उन्हें क्या पता था, यह तो प्रेम का पागलपन है और पागल व्यक्ति तो कुछ भी कर सकता है, तब राजीव कैसे पीछे रहता,
लेकिन कुछ चीजें समाज में छुपाए नहीं छुपती व्यक्ति कितना भी अपने प्रेम को छुपा कर रखे वह कभी न कभी किसी न किसी के सामने परिलक्षित हो ही जाता है ।
अवनी और राजीव का प्रेम तो ऐसा था ,जो धीरे-धीरे सभी को दिखाई देने लगा था, धीरे-धीरे बात रुद्र प्रताप के पास भी पहुंच जाती है गुस्से से रुद्र प्रताप दोबारा अखंड प्रताप को फोन करते हैं ।
और कहते हैं भैया उस बार तो मैंने राजीव को छोड़ दिया लेकिन अगर अबकी बार मारूंगा तो छोडूंगा नहीं अखंड प्रताप समझ जाते हैं कि बाबा की बातो का कोई असर नहीं हुआ ,
वह रूद्र को समझाते हैं कि तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे आज ही मैं बाबा से इस विषय में बात करूंगा और कोई ना कोई निर्णय पर बाबा अवश्य पहुंचेंगे ??
रूद्र प्रताप से कुछ भी करने के लिए अखंड प्रताप मना कर देते हैं रूद्र कहता हैं ठीक है ,भैया इस समस्या के निवारण के लिए हम आपको सात दिन का समय देते हैं,
उसके बाद आप हमसे मत कहिएगा कि मैंने किसी को कुछ बताया नहीं अखंड प्रताप बोले सात दिन तो बहुत है मैं तो बस चाहता हूं कि बाबा दो या तीन दिन में ही कोई निर्णय लेकर हमें बता दें
, अखंड ने कहा रुद्र तुम बिल्कुल चिंता मत करो हमें अपने बाबा को पूरा पूरा भरोसा करना चाहिए रूद्र प्रताप ने कहा ठीक है भैया और फोन रख दिया अब रूद्र प्रताप की आंखों के आगे पूरा दिन राजीव और अवनी का चेहरा घूमता रहता है।
रूद्र प्रताप गुस्से से चीखते हुए कहता है कि मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगा राजीव l शाम को ठाकुर साहब और ठकुराइन बैठक में बैठे रहते हैं, तभी अखंड प्रताप उनके बैठक में आते हैं और ठाकुर साहब की ओर देखते हुए कहते हैं।
बाबा आखिर आपने अवनी से ऐसा क्या कहा कि वह राजीव से दूर रहेगी??? ठाकुर साहब ने कहा मैंने अवनी पर भरोसा जताया कि वह मेरे भरोसे को कभी तोड़ेगी नहीं अगर वह भरोसे पर खरी नहीं उतरती तभी बीच में बात काटते हुए अखंड प्रताप बोले कि शायद आपको पता नहीं है ।
आज ही रूद्र ने फोन किया था कि अवनी और राजीव का मिलने का क्रम जारी है, इतना सुनते ही ठाकुर साहब गुस्से से आग बबूला हो जाते हैं।
अखंड प्रताप उनके गुस्से को देख कर उन्हें समझाने का प्रयत्न करते हैं और कहते हैं मैं कल ही शहर जाकर अवनी को ले आऊंगा परेशान मत होइए ।
लेकिन ठाकुर साहब कहते हैं कि अब अवनी हमारे हाथों से निकल गई है अब हम उसको अपने बस में नहीं कर सकते अखंड प्रताप बोले बाबा ऐसे क्यों कह रहे हैं ???
ठाकुर साहब ने कहा इतनी उम्र होने पर हमें भी कुछ अनुभव है और फिर अपनी औलाद के विषय में मां बाप से ज्यादा अनुभव और किसी को नहीं होता ,,,,,
इसलिए मैं जानता हूं कि अब अवनी के साथ जोर जबरदस्ती करने का कोई मतलब नहीं है। अखंड प्रताप बोले तो क्या करें?? ऐसे जाने दे बाबा यह तो आप भी जानते हैं कि ऐसा करना हम ठाकुरों की शान के खिलाफ है।
, ठकुराइन उन दोनों की आपस में हुई बात सुनकर बड़बड़ाते हुए कहती है, कौन से नक्षत्र में मैंने इस लड़की को जन्म दिया था, अरे पैदा होते ही मैंने इसको मार क्यों नहीं दिया ?
मुझे क्या पता था कि यह हमारे कुल खानदान का नाम डूबा देगी? और हमें समाज में इसकी वजह से लज्जित होना पड़ेगा, ठाकुर साहब बोले ऐसा तो मैंने भी नहीं सोचा था कि मेरे लाड़ दुलार का इतना बुरा नतीजा भुगतना पड़ेगा।
मैंने अवनी को हमेशा अखंड और रुद्र से अधिक स्नेह किया बचपन से उसकी सारी फरमाइशें पूरी की उसकी खुशी के लिए ठकुराइन मैंने आपकी भी बात नहीं मानी और उसे शहर पढ़ने के लिए भेज दिया।
फिर मेरी परवरिश में ऐसी क्या कमी रह गई जो उसने मेरे विश्वास को भी तोड़ दिया??? वह हवेली की मान मर्यादाओं तक को भूलकर हमारी ही पगड़ी उछालने पर आमादा है उसे अपने ही पिता की इज्जत की कोई चिंता नहीं यह सब कहते हुए ठाकुर साहब की आंखें भर आई,
जानने के लिए पढ़ते रहे प्रतिउत्तर ॽॽ🙏 क्रमशः।।