प्रेम में कुछ कर गुजरने की इच्छा बढ़ती जाती है, व्यक्ति जब तक सोचने समझने की स्थिति तक पहुंचता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ।चीजें उसके हाथ से निकल चुकी होती है ,और हाथ मलने के सिवा उसके पास और कोई चारा नहीं रह जाता , इसीलिए तो कहा जाता है, की प्रेम अंधा होता है, अंधा इसलिए क्योंकि वह सही गलत का निर्णय लेने में असमर्थ होता है, हम यह नहीं कहते कि प्रेम करना गलत है किंतु समाज के दृष्टिकोण से प्रेम की कुछ मर्यादा होती है जो तब भी मान्य थी आज भी मान्य है कितना भी मॉडर्न समाज हो कितना भी बदल जाए किंतु प्रेम की परिकल्पना के विषय में कुछ चीजों के लिए परिस्थितियां आज भी वही है।
नीलम और अवनी अपने रूम में आ जाती हैं नीलम अवनी को बहुत सी ऊंच-नीच वाली बातें समझाती है, परिवार खानदान का उलाहना भी देती है ।किंतु अवनी के सिर पर तो मानो प्रेम का भूत ही सवार हो गया हो उसे हर पल हर् क्षण बस राजीव ही नजर आने लगा ,सारी अच्छाइयां उसे राजीव में ही नजर आने लगी उसे राजीव में कोई दोष दिखता ही नहीं, हर समय अवनी उसी की बातें करने लगी,
नीलम क्योंकि बचपन से ही हवेली आती जाती थी, इसलिए हवेली के तौर तरीकों से वह अच्छी तरह वाकिफ थी, ऐसा नहीं था, कि अवनी को नहीं पता था, अवनी भी सारे तौर तरीके जानती और समझती थी ,किंतु पता नहीं कैसे अब वह सारे तौर-तरीकों और मर्यादाओं को अपने तर्क से काट देती थी, हर एक बात का उसके पास तार्किक उत्तर मौजूद रहता था, ऐसा लगता कि अवनी प्रेम करके बहुत अधिक तार्किक हो गई थी,
इधर राजीव तो पहले से ही अपने व्यवहार के विपरीत आचरण करने लगा था, मयंक उसके इस बदले हुए व्यवहार से काफी चिंतित था ,एक अच्छे और सच्चे दोस्त होने के नाते मयंक उसको इस स्थिति से उबारने की बहुत कोशिश करता था, किंतु यह इश्क का नशा है साहब, जो उतारे नहीं उतरता अच्छे अच्छों को बर्बाद कर देता है।
हम यूं ही कह सकते हैं कि बर्बाद ही हमेशा नहीं करता,,कभी किसी के संदर्भ में यह सही फल भी दे जाता है ,इसी इश्क के चक्कर में बहुत लोग बर्बाद जाते हैं कुछ आबाद भी तो होते हैं ,किंतु उसके लिए उन्हें चोट खाना जरूरी होता है, उसके पहले उनका अंधा प्रेम उन्हें एक निर्णायक मोड़ पर जाने ही नहीं देता अब बाबा तुलसीदास को ही ले लीजिए जो अपनी पत्नी रत्नावली से बहुत प्रेम करते थे, इसी प्रेम की परिणति में उन्होंने रामचरितमानस जैसे महान ग्रंथ की रचना कर डाली बहुत उदाहरण प्रेम में कुछ कर गुजरने के है जिससे इतिहास भरे पड़े हैं।
दूसरे दिन अवनी की नींद अपने आप बहुत जल्दी खुल जाती है ,और वह कॉलेज जाने की तैयारियां करने लगती है यूं तो वह हमेशा सिंपल सलवार सूट पहन कर चली जाती थी, पर अब उसके सिर पर राजीव का नशा छा जाने के बाद अवनी घंटों शीशे के सामने खड़ी होकर अपने रूप को निहारती है। पहले सीधी मांग निकालकर कंघी करती है, फिर उसको बिगाड़ती है ,मन में सोचती यह नहीं अच्छी लग रही इसे तो मैं हमेशा करती हूं फिर टेढीं मांग निकालती है, ,फिर सोचती इसमें तो मैं बहुत अजीब सी लग रही हूं, पूरे बाल पलट के पीछे करके एक चोटी करती है इसी तरह आईने के सामने घंटों खड़ी रहती है।
उधर राजीव जिसको पढ़ाई के अलावा कोई भी शौक न था उसका यही सपना था ,कि मैं पढ़ लिख कर बहुत बड़ा ऑफिसर बनूं अपने बाबा का और अपने गांव का नाम रोशन करु, उसको तो मानो पढ़ाई से अरुचि ही हो गई थी , किताबें खोलता तो किताबों में उसे अवनी का चेहरा नजर आता चाह कर भी वह पढ़ नहीं सकता था, क्योंकि उसे हर जगह अवनी ही नजर आती वह तो यह सोचने और समझने की शक्ति भी खो चुका था, कि कितना महंगा पड़ेगा उसको अवनी से प्यार करना, किंतु इस सबसे बेखबर वह अवनी के प्रेम में आगे बढ़ता चला जा रहा था, अब उसकी हद दीवानगी तक पहुंच गई थी, मयंक के समझाने का उसके दिलो-दिमाग पर कोई असर नहीं था मयंक की बातें वह सुनता जरूर था, उसका प्रतिरोध भी नहीं करता था ,किंतु उसका दिल और दिमाग उसकी बातें मानने को तैयार ना था, शायद प्रेम ऐसा ही होता है, जो व्यक्ति को अंधा बना देता है, जिसमें उसे यह भी नहीं दिखाई देता कि इसका परिणाम उसके लिए कितना घातक होगा ॽराजीव भी कॉलेज जाने के लिए तैयार हो जाता है और तैयार होने के बाद आईने के सामने खड़े होकर अपने आप को देखते हुए कहता है स्मार्ट तो लग रहा हूं, मयंक राजीव कि यह सब हरकतें चुपचाप देखता रहता है ,और मन में सोचता है कि व्यक्ति के जब बुरे दिन आते हैं तो वह ऐसे ही अपने लक्ष्य से भटक जाता है ।उसे तो अवनी के ऊपर बहुत तेज गुस्सा आती है बढ़बढ़ाते हुए कहता है ,खुद तो बड़े घर की है बेचारे गरीब लड़के को ले डूबी और बेमन से राजीव के साथ कॉलेज के लिए निकल पड़ता है ,उधर अवनी नीलम से कहती है आज तू बहुत लेट कर रही है नीलम उसको घड़ी दिखाते हुए कहती है मैडम जी हम रोज इसी टाइम पर कॉलेज जाते हैं तो आज ऐसी कौन सी जल्दी है,।
आज तो किसी सर कि एस्टा क्लास भी नहीं है ।तो फिर ऐसी आफत क्यों, आराम से चलते हैं अवनी बोली नहीं नहीं मैं जा रही हूं, नीलम ने चुहल लेते हुए कहा हां हां तेरे इंतजार में तो कोई बैठा है इसीलिए तुझसे रहा नहीं जा रहा है. और जल्दी से अपना बैग उठाती है और कहती है। चलो नीलम और अवनी कॉलेज पहुंच जाती हैं अवनी देखती है राजीव क्लास के बाहर टहलता रहता है ।मानो अवनी की प्रतीक्षा कर रहा हो राजीव को टहलते देख अवनी अपने बालों पर थोड़ा सा हाथ फेरती है, और हल्की सी होंठ पर मुस्कुराहट लाते हुए राजीव के बगल से निकलती है। नीलम ने कहा तो यह चक्कर था ,यार तुम लोगों को पता कैसे चल जाता है दोनों एक दूसरे का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि न राजीव तुम को फोन करता है ना तुम राजीव को फोन करती हो राजीव नीलम की यह बात सुनकर नीलम से कहता है, तो फोन नंबर दे दीजिए नीलम हंसते हुए कहती है, मेरा फोन नंबर लेकर क्या करेंगे राजीव जी ,जिसे देना है, वह तो अंदर क्लास में चली गई राजीव कहता है अवनी जी का नंबर आपके पास तो होगा आप ही दे दीजिए, नीलम बोली आप ही अवनी जी से मांग लीजिए यह कहकर नीलम भी क्लास के अंदर चली जाती है राजीव भी पीछे-पीछे क्लास में चला जाता है।, आगे जानने केे लिए पढ़ें प्रतिउत्तर ॽॽॽप्लीज लाइक कमेंट और शेयर जरूर करें 🙏 क्रमशः