कभी-कभी परिस्थितियां स्पष्ट रूप से हमें जैसी दिखाई देती है वैसे नहीं रहती उनमें बहुत अंतर रहता है किंतु वह हमें ज्यादातर उसी रूप में दिखाई देती है ।
जिस रूप में हम उन्हें देखना चाहते हैं। राजीव को अवनी आज भी प्रत्यक्ष अपने समीप दिखाई देती है, यह अवनी के प्रति उसका प्रेम और दिलों दिमाग में अवनी की छाई हुई छवि का असर था,
जो उसे उसकी यादों से बाहर ही नहीं आने दे रहा था, या तो यूं कहिए वह बाहर आना ही नहीं चाह रहा था उसे उन्हीं यादों में ही खो जाना था।
राजीव को तो किसी चीज का होश ही नहीं था ना उसे खाने की सुध रहती न ही वह कमरे के बाहर निकलता उसी कमरे में दिन रात चुपचाप राजीव लेटा रहता।
उसको देख कर कोई भी कह सकता था जैसे वह बहुत दिनों से बीमार हो उसकी हालत मयंक से बिल्कुल ना देखी जाती वह राजीव को बहुत समझाने की कोशिश करता किंतु राजीव के दिलो-दिमाग में से अवनी की छवि हटती ही ना,
इसलिए कि अब वह कुछ भी सुनने समझने की स्थिति में नहीं था, उसे तो यह लगता कि मैं भी अवनी की तरह इस संसार को छोड़कर चला जाऊं अब मेरे जीने का कोई उद्देश्य नहीं बचा,,,,,
एक अवनी ही तो थी जिसके कारण मुझ में जीने की एक आस बंधी थी अब वह भी टूट गई तो मेरे जीवित रहने का क्या फायदा, ???
इधर हवेली में अवनी का पूरा परिवार शोक में डूबा रहता है कोई भी उससे बाहर आने की स्थिति में नहीं रहता ठकुराइन ने तो मानो बिस्तर ही पकड़ लिया था ।
उन्हें किसी चीज का होश नहीं रहता उठती और कुछ देर के बाद अवनी अवनी पुकार कर फिर बेहोश हो जाती यही स्थिति कुछ ठाकुर साहब की भी थी।
उनके मन में तो गुनाह का बोझ तो होना चाहिए था, किंतु जाने क्यों उनके मन में वह बोझ नहीं था वह अपने आप को गुनाहगार ना मानकर एक न्याय प्रिय पिता के रूप में यही बार-बार अपने मन को समझा रहे थे।
कि मैंने अपनी बेटी के साथ न्याय किया उसे एक कलंक से बचा लिया भले वह जीवित नहीं है किंतु उसके कलंक पूर्ण जीवन से तो मर जाना ही अच्छा है।
यह सब सोचकर ठाकुर साहब अपने मन में एक अजीब से दुख" पूर्णआनंद "की अनुभूति भी कर रहे थे उनकी मन ही स्थिति ऐसी ही थी जैसे किसी से कोई प्रिय चीन छिन जाने के बाद वह दुबारा मिलने की आस हो कुछ ऐसा ही ठाकुर साहब महसूस कर रहे थे।
आज अवनी को मरे हुए दो दिन हो गए ठाकुर साहब अपनी बैठक में बैठे रहते हैं। वही आदमी जो अवनी की मृत्यु के समय ठाकुर साहब के कान में कुछ कहता है ।
ठाकुर साहब की बैठक में आकर ठाकुर साहब के पैर छूकर एक किनारे खड़ा हो जाता है ठाकुर साहब उससे कुछ पूछते हैं तो वह नहीं में सिर हिला कर ठाकुर साहब के करीब आकर कहता है ।
मैंने बहुत कोशिश की किंतु मैं उसका रूम ढूंढ नहीं सका ठाकुर साहब ने कहा कोई बात नहीं कल मैं नीलम से पूछ कर तुम्हें बता दूंगा ?
अब तुमको यहां हवेली में बार बार आने की जरूरत नहीं है तुम्हारे पैसे तुम्हारे घर पहुंच जाएंगे आदमी ठाकुर साहब के पैर छूता है और चला जाता है
ठकुराइन उसी कमरे में लेटी रहती हैं लेकिन वह ठाकुर साहब और उस आदमी की बातें नहीं सुन पाती पर पता नहीं क्यों उस आदमी को देखकर ठकुराइन के मन में जैसे कोई आशंका हो वह सोचने लगती हैं ।
कि इससे पहले मैंने इस आदमी को कहां देखा था बहुत देर तक उस आदमी की सूरत देखकर वह सोचती रहती हैं कुछ देर के पश्चात, जब वह आदमी चला जाता है। ।।।
तो ठाकुर साहब से कहती हैं पता नहीं क्यों इस आदमी का चेहरा जाना पहचाना लग रहा है ?ठाकुर साहब ने कहा यह हमारा आदमी थोड़ी ना है जो आपको इसका चेहरा जाना पहचाना लग रहा है,
आप मेरी बातों का विश्वास करें या ना करें मैंने इसी शख्स को इधर दो-तीन दिनों में अपनी हवेली के आसपास कई बार देखा ठाकुर साहब कहते हैं,
हो सकता है ठकुराइन तुमने देखा हो लेकिन आज तो वह हमारे काम से आया था ठकुराइन ने पूछा कौन सा काम, ठाकुर साहब ने निगाह नीची करते हुए कहा था कोई काम जिसे आप नहीं जानती,
तभी ठाकुर साहब उसी आदमी को फोन करते हैं और बात करते हुए बैठक से बाहर आ जाते हैं तथा कहते हैं कि अब वह जीवित ना बचे किसी भी कीमत पर,,,
उधर से आवाज आती है कि आप चिंता मत करिए जैसा आप कहेंगे वैसा ही होगा, ठाकुर साहब एक समस्या है वह कुछ बातें फोन पर कहता है।
ठाकुर साहब कहते हैं जैसा तुम को ठीक लगे वैसा ही करना किंतु करने के पश्चात मुझे जरूर बता देना वह ठाकुर साहब से बोला आप निश्चिंत रहिए समझिए आपका काम हो गया,
इधर राजीव सोचता है कि मुझे एक बार गांव जाकर ठाकुर साहब, ठकुराइन और अखंड भैया लोगों से जरूर मिलना चाहिए आखिर यह संकट उन पर भी तो है और संकट की घड़ी में मुझे उनके साथ खड़े होना चाहिए,,,,
, लेकिन फिर उसके मन में यह भी विचार आता है कि अगर मैं हवेली गया तो मैं वहां नीलम का सामना कैसे कर पाऊंगा, शायद वह खुद मेरा सामना करने से कतराए,
राजीव अपना सिर पकड़ कर बैठ जाता है ,और कहता है यह आपने कैसी संकट की घड़ी में डाल दिया? हे भगवान मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है ?और कुछ समझ नहीं आ रहा है?
अब तो बस आप ही कुछ कर सकते हैं किंतु अब आप ही क्या कर सकते हैं ?इसी सब दिमागी उहापोह में राजीव चुपचाप अपने बिस्तर पर लेट जाता है ,थोड़ी देर बाद किसी के दरवाजा खटखटाने की आहट होती है ।
आवाज सुनकर राजीव अंदर के कमरे से बाहर निकल आता है और तेज आवाज में पूछता है कौन है कोई उत्तर न सुनकर राजीव चुपचाप बिस्तर पर बैठ जाता है, थोड़ी देर बाद फिर दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए प्रतिउत्तर ॽॽॽ 🙏 क्रमशः।।