अवनी की मृत्यु का गुनाहगार कौन ॽ यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ था हर किसी के लिए, क्योंकि मनुष्य एक विचारशील प्राणी है उसके मन में एक ही व्यक्ति के लिए कई प्रकार के विचार आते जाते रहते हैं ,
इसी कारण से कुछ लोग दबी जुबान में कुछ और ही बात कर रहे थे ,तो कुछ लोग और ही खुलकर कोई भी कुछ भी बोलने के लिए तैयार ना था ।
लेकिन कुछ ना कुछ बातें हर जगह हो रही थी क्या कोई व्यक्ति समाज का मुंह बंद कर सकता है ।
वह कुछ भी करें लेकिन समाज का , मुंह बंद नहीं कर सकता, ठाकुर साहब ने अवनी की खीर में जहर तो मिला दिया लेकिन उस जहर से क्या वह अवनी के पीछे होने वाली बातों को दबा पाए?
क्या उसके आत्मिक प्रेम को उन्होंने खत्म कर दिया जो वह राजीव से करती थी,
लेकिन ठाकुर साहब तो अपने मन में कुछ और ही सोच रहे थे जाने कैसे उनका मन परम संतोष प्राप्त कर चुका था।
और वह मन ही मन कह रहे थे मैंने जो किया अच्छे के लिए किया मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता था कि कोई मेरी बेटी पर लांछन लगाए मैं अवनी को सबसे ज्यादा स्नेह करता हूं।
और उसके चरित्र पर उठी उंगली मुझसे बर्दाश्त ना होती इसी कारण से मैंने अपनी बेटी को सदा सदा के लिए चिर निद्रा में सुला दिया।
ताकि कोई उसके विषय में किसी प्रकार की उंगली ना उठा सके, क्योंकि मुझे अच्छी तरह पता था की मेरे सामने तो किसी के कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं थी पीठ पीछे लोग अवनी के विषय में जाने क्या क्या कहते ??
वह सब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता इसलिए मैंने अपनी अच्छी बेटी को हमेशा मेरे लिए एक अच्छी बेटी बना दी अब वह हमेशा अच्छी बेटी बनकर रहेगी,
ऐसा नहीं था कि मैंने उसे मौका नहीं दिया था इसी कारण मैंने उसके सामने यह शर्त रखी थी कुछ दिन उसने पालन भी किया लेकिन मैं जानता हूं कि उसके अंदर जिद और जुनून ठाकुरों वाला था।
इसी कारण मुझे अच्छे से पता चल गया कि मैं उसको रोकने में असमर्थ हो गया तभी मुझे कुछ ऐसा कदम उठाना पड़ा भले ही नैतिकता और मानवीयता की कसौटी पर यह कृत्य अच्छा न हो ।
किंतु हवेली की मान मर्यादा और उसकी प्रतिष्ठा के लिए यह कदम जरूरी था यह बात अब मेरे सीने से निकल कर और किसी के सामने नहीं आएगी ऐसा ठाकुर साहब अपने मन में निश्चय करते हैं।
राजीव जब यह खबर सुनी तो उसके हाथ से फोन गिर कर छूट जाता है वह चुपचाप बिस्तर पर ऐसे बैठ जाता है मानो उसके शरीर से प्राण निकल गए हो ।
उसका शरीर जैसे उसके बस में ही नहीं है बस सांसे चल रही है वह बेजान सा पड़ा रहता है तभी मयंक क्लास करके वापस आता है राजीव को इस तरह देख कर पूछता है क्या हुआ??
राजीव तुम्हारी तबीयत तो ठीक है किसी कंधा और सहारे को देखकर जिस तरह से व्यक्ति का व्याकुल मन उसे पकड़ने को आतुर हो जाता है उसी तरह से राजीव मयंक को देखते ही तुरंत उठ कर खड़ा हो जाता है।
और मयंक के गले लग कर जोर जोर से रोने लगता है राजीव को इस तरह रोता देख मयंक किसी भयानक आशंका से डरकर पूछता है क्या हुआ ??
राजीव किसी ने कुछ कहा क्या? राजीव बोलना तो बहुत कुछ चाह रहा था लेकिन उसके रूंधे हुए और रोते गले से सिर्फ एक आवाज आई अवनी॥॥॥
मयंक बोला हां हां क्या हुआ अवनी को ?कुछ बोलो तो राजीव उसी रोते हुए हालत में कहता है अवनी हमे छोड़ कर चली गई मयंक ने कहा कोई बात नहीं कुछ दिन के लिए गई होगी हॉस्टल वापस आ जाएगी ।
राजीव मयंक के दोनों कंधों को कस कर पकड़ कर बोला अवनी अब इस दुनिया में नहीं है। यह सुनकर तो मयंक भी एकदम स्तब्ध रह गया उससे तो कुछ कहा ही नहीं जा रहा था।
कैसे वो राजीव को समझाएं कैसे उसको सांत्वना दें जबकि खुद मयंक इस स्थिति से नहीं उबर पा रहा था मानो उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा कुछ हुआ है??
फिर भी रोते हुए राजीव को उसने दोनों हाथों से पकड़ा और उसके कंधे पर हाथ डालकर उसके बगल में बैठा धीरे से पूछा क्या हुआ था उनको?
राजीव रोते रोते सिर हिलाता है और कहता है पता नहीं कुछ नहीं मयंक ने कहा मतलब तुझे नहीं पता राजीव बोला मुझे तो नीलम ने बस इतना ही कहा उसके बाद ना तो मेरी कुछ पूछने की हिम्मत पड़ी और ना नीलम ने मुझे आगे कुछ बताया !!!
मयंक राजीव को सांत्वना देता रहा राजीव रोता रहा रोते-रोते कितनी बार तो उसने अपना सर दीवार पर पटक लिया मयंक राजीव को रोकते हुए कहता है।
राजीव ऐसा मत करो प्लीज ऐसा कुछ मत करो जिससे अवनी की आत्मा को शांति ना मिले अवनी तुमसे बेहद प्यार करती थी तुम्हारी यह स्थिति तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगी तो उसकी आत्मा कैसे शांत होगी???
यह कह कर मयंक भी राजीव के बगल बैठकर रोने लगता है। इधर अवनी की अर्थी उठने का समय हो जाता है ठकुराइन ने जितने शौक से अवनी के लिए कपड़े जेवर इत्यादि खरीदे थे आज बैठकर अपने हाथों से उसे पहना रही थी ।
पहनाकर देखती और फिर खुश होकर कहती कितनी सुंदर लग रही है मेरी बेटी सारे जेवर पहनाकर एक लाल चुनर अवनी के सिर से उड़ा कर ठकुराइन कहती हैं, ठाकुर साहब विदा करिए,,,,
अपनी बेटी को आज हमने उसकी विदाई कर दी ठाकुर साहब बोले हां शायद हवेली से आज अवनी की अंतिम विदाई है यह कहकर दोनों बदहवास होकर रोने लगते हैं ।
अखंड, रुद्र भी अपने आप को रोक नहीं पाते वह भी ठाकुर साहब और ठकुराइन को संभालने के बजाय खुद ही दहाड़ मार मार कर रोने लगते हैं ।
यह दृश्य लोगों के मनों में यह निश्चिंता पैदा कर रहा था की अवनी की मृत्यु एक स्वाभाविक आकस्मिक मृत्यु ही है बाकी कुछ नहीं, और कोई कारण तो हो ही नहीं सकता क्योंकि सभी की दुलारी और सब कुछ जिसके पास हो उसके लिए ऐसा कुछ करना तो संभव ही नहीं था।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहे प्रतिउत्तर ॽॽ🙏 क्रमशः