कभी-कभी हमारी विचारधाराएं हमारी परंपराओं पर भारी पड़ जाती है। जैसे विचार हमारे मन में आते हैं, वह कहीं ना कहीं हमारी परंपराओं से अछूते नहीं रहते व्यक्ति जिस परिवेश में रहता है, उसी तरह की सोच उसके व्यवहार में दिखाई पड़ने लगती है।
ना चाहते हुए भी वह उसका एक हिस्सा बन जाता है । हालांकि अवनी चाहती तो नहीं थी राजीव को इस तरह तिरस्कृत करना ,लेकिन उसका परिवेश उसके मन के भय ने उसके दिमाग को संकीर्ण कर दिया
, और ना चाहते हुए भी उसने यह कदम उठाया राजीव के जाने के बाद नीलम अवनी पर गुस्से से बिफर पड़ी, नीलम कहती है, तूने उसको बोलने तक का मौका नहीं दिया अगर किसी काम से आया हो तो ,इस पर अवनी कहती है
।अगर काम से आया होता तो वह बताता चुपचाप यू खड़ा थोड़ी ना रहता नीलम बोली जैसे तूने बताने का मौका उसको दिया ही था,
अवनी ने कहा मैंने उसे कई बार बताया कि मुझसे दूर रहें , लेकिन उसको कुछ समझ नहीं आता, अवनी थोड़ा चिढ़कर बोली अच्छा रंग लगाने की बात को तो मैं मान लेती हूं ,कि उसने ठंडाई पी रखी थी उसमें भाग पड़ी थी।
और , वह नशे में था ।लेकिन यह क्या हरकत हुई कि मेरे कमरे तक आ गया नीलम बोली हो सकता है, उसको कोई काम रहा हो
। काम- काम अब बार-बार काम के बहाने तू उसकी तरफदारी मत कर, इतना ही जरूरी काम था तो घर में इतने सारे नौकर है । किसी से कह देता उसको यहां तक दौड़े आने की क्या जरूरत थी।
मैं किसी की तरफदारी नहीं कर रही हूं , लेकिन मैं यह देख रही हूं कि तू अपने स्वार्थ में कितनी अंधी होती जा रही है ।अभी तक तो मुझे यह लगता था की हवेली की मान मर्यादाओं के कारण तू ऐसा कह रही है,
किंतु मुझे अब समझ में आया कि तेरी मंशा कुछ और ही थी, तू राजीव से कभी आगे ना निकल पाई इस कारण तेरे मन में कहीं ना कहीं उसके प्रति ईर्ष्या की भावना थी,
जो स्पष्ट रूप से सबको दिखाई देती थी। उस भले मानस ने तो तेरी कितनी बार मदद की लेकिन तुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, "क्योंकि 'तू तो "अवनी सिंह ठाकुर है'।
अवनी बोली बड़ी चिंता हो रही है तुझे ?मुझे चाहे जितना बुरा भला कह लो लेकिन मुझे जो सही लगा वही मैंने किया, क्या तुझे हवेली के नियम कानून नहीं पता?
मुझे सब पता है नीलम बोली। मुझे मत बता तेरी हवेली के नियम कानून उस रात कहां गए थे, जब राजीव तुझे नशे की हालत में कंधे पर उठाकर अपने कमरे में ले गया था।
अवनी कहती है ,वह तो मैं होश में नहीं थी, और मैंने उससे नहीं कहा था ऐसा करने के लिए चल ठीक है तू ने नहीं कहा था, मैंने तो कहा था, हा तो तूने कहा था तो मुझे इन सब में क्यों घसीट रही है ?
लेकिन मदद तो उसने तुम्हारी की थी, तुम उस मदद के बदले ऐसे व्यवहार कर रही हो अवनी बोली मैंने यह थोड़ी ना कहा था तुम हवेली में मेरे सिर पर नाचते फिरो,
अभी अगर अखंड भैया या रुद्र भैया ने देख लिया होता तब पता चल जाता, नीलम कहती है ।क्या पता चल जाता वे दोनों तेरी तरह नहीं है ।।
बल्कि अखंड भैया तो उसको कई बार राजीव को अपने साथ घर तक ले आए तुझे तो उसके साथ आना भी नहीं पसंद था, अवनी बोली हां मैं इतना जानती हूं ,कि इन लोगों को जितना मुंह लगाओगे उतनी तुम्हारे लिए परेशानी पैदा होगी,
नीलम कहती इन लोगों से तुम्हारा मतलब क्या है ? अवनी कहती है, कुछ नहीं मुझे तुझसे बहस ही नहीं करनी है, नीलम बोली तू बहस कर भी नहीं सकती क्योंकि तूने गलती की है,।।
चाहे तू इस गलती को माने चाहे ना माने, और राजीव तो फूल मालाओं को लेकर तेरी हवेली में आया था न कि तेरे पीछे पीछे आया था ,
अवनी बोली कुछ भी हो वह मेरे कमरे की तरफ आया ही क्यों ?नीलम बोली तुझसे बहस करना बेकार है। उधर राजीव वहां से चुपचाप चला तो जाता है।
किंतु उसके दिल में एक अजीब सा दर्द होता रहता है । वह समझ नहीं पाता कि ऐसा क्यों हो रहा है ,उसके आत्मसम्मान को अत्यधिक ठेस पहुंचती है।
।वह सोचता है की अवनी ने यह बात कितनी आसानी से कह दी, कि मैं उसके आसपास मंडराता रहता हूं ,मैंने तो कभी ऐसा नहीं किया अवनी ही नहीं पूरे गांव की कोई भी लड़की यह नहीं कह सकती कि मैंने उसके साथ ऐसा कुछ व्यवहार किया है।
फिर अवनी का तो मैं बहुत ही सम्मान करता हूं, कितनी बार उसने मुझे खुद से नीचा दिखाने की कोशिश की किंतु मैंने कभी भी उसकी बात का बुरा नहीं माना उसे क्या लगता है ।
मैं उसके साथ ऐसी छिछोरी हरकत कर सकता हूं, मुझे तो यह सोच कर भी शर्म महसूस हो रही है कि वह मेरे बारे में ऐसा सोचती है ।
वह बात अलग है कि मैं उसे पसंद करता हूं उसको चाहता हूं, किंतु मेरी चाहत एक समर्पण है एक पूजा है मेरी चाहत उसकी खुशी है, उसका सम्मान है ,उसकी इज्जत है ,
मैं कभी नहीं चाहूंगा कि मेरे कारण उसे किसी के सामने शर्मिंदगी महसूस हो अवनी की बातें जाने क्यों राजीव के दिमाग में बार बार घूम रही थी ।जो कि राजीव के हृदय में शूल की तरह चुभ रही थी।
किंतु फिर भी राजीव उसको गलत नहीं मान पा रहा था। वह तो अपने को ही दोष दे रहा था ,की क्या जरूरत थी बिना किसी नौकर को लिए अवनी के कमरे में जाने की सही ही तो कह रही थी ।।
कि मुझे ही अपनी औकात याद नहीं है ।यह सब सोचते सोचते उसकी आंखें भर आई और आज वह अपने आप को अवनी की आंखों से गिरा हुआ महसूस कर रहा था।
इधर नीलम और अवनी में बहस चल ही रही थी, नीलम को इस बार पता नहीं क्यों राजीव के लिए बहुत ही बुरा लग रहा था। तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी अवनी नीलम से बोली नीलम देखो तो दरवाजे पर कौन है।
नीलम ने दरवाजा खोला तो सामने ठकुराइन खड़ी थी उनके हाथ में एक बड़ा सा थैला था नीलम बोली आंटी कुछ काम था ।हम लोगों को बुला लिया होता।
तभी अवनी ने पूछा मां थैले में क्या है? ठकुराइन बोली शहर से तुम लोगों के लिए होली पर पहनने की ड्रेस मैंने रुद्र से मंगाई थी, देख लो जो पसंद हो वह रख लो, और जो ना पसंद हो उसको वापस कर देना मैं उसे ठाकुर साहब से कह कर गांव की और लड़कियों में बटवा दूंगी,
नीलम और अवनी दोनों ठकुराइन के पास आती हैं। और अपना अपना थैला ले लेती हैं अवनी थैला खोल कर देखती है और खुश होकर कहती है मां बहुत सुंदर है ,मुझे तो यह बहुत पसंद है ।
रूद्र भैया की पसंद वैसे भी बहुत अच्छी है। नीलम थैला खोल कर देखती है और कहती है वाह आंटी मेरी ड्रेस भी बहुत अच्छी है।
ठकुराइन कहती हैं शाम को दोनों लोग पहन लेना दरवाजे पर बहुत लोग आएंगे दोनों एक साथ बोलती हैं ठीक है, ठकुराइन ने और ढेर सारे थैले भी ले रखे थे
, नीलम पूछती है आंटी यह सब किसके हैं? ठकुराइन कहती हैं यह सब हमारी हवेली में काम करने वाले जितने वर्कर हैं ,उनके कपड़े हैं और यह दूसरा थैला उनके बच्चों की मिठाई और गुझिया इत्यादि के हैं।
यह कहकर ठकुराइन जाने लगती हैं। फिर पलट कर आती हैं ,और पूछती हैं । मैंने राजीव को नीलम तुम्हारे पास भेजा था ,वह आया होगा तुमने उससे अपनी पूजा के लिए फूल लाने के लिए कह दिया,
नीलम अवनी की ओर घूरती हुई कहती है। आंटी नहीं चाहिए फूल ठकुराइन क्यों? तुमने ही तो कहा था, कि कल बहुत सुबह ही तुम्हें शिवजी की पूजा के लिए सफेद फूल चाहिए?
इसी कारण से मैंने राजीव को तुम्हारे पास भेजा भी था , कि तुम समय बता दो तो वह निश्चित समय पर फूल लेकर आ जाए वरना तुमको खामखा देर होगी।
ठकुराइन बोली क्या राजीव यहां पूछने नहीं आया था,? नीलम बोली आंटी राजीव तो आया था किंतु (अवनी की ओर मुंह कर करके) इन मैडम ने उसे भगा दिया।
ठकुराइन अवनी की तरफ देखकर भगा दिया क्यों? नीलम बोली मैडम की शान में गुस्ताखी हो गई थी ठकुराइन ने कहा कैसे गुस्ताखी ?
नीलम बोली इन्हें लगा कि वह बिना किसी काम के इनकी कमरे की ओर आने की उसकी हिम्मत कैसे हुई, ठकुराइन अवनी की ओर देखती हुई कहती हैं।
बेटा यह गलत बात है , कल को तुम ब्याह कर किसी बड़ी हवेली में जाओगी तो तुम्हें सब के साथ अच्छा व्यवहार करना आना चाहिए बताओ जबरजस्ती तुमने उसे डांट कर भगा दिया
जबकि मैंने उसे नीलम के पास फूल और समय पूछने के लिए भेजा था , वह अपने से थोड़ी ना आया था। अवनी कुछ नहीं बोलती ठकुराइन बोली नीलम तुम चिंता मत करो मैं किसी नौकर को भेज कर राजीव को फूलों के लिए कहलवा देती हूं,
,वह मन का साफ और अच्छा लड़का है ।वह फूल लेकर जरूर आएगा, ठकुराइन के कमरे से बाहर जाने के बाद नीलम अवनी की ओर देखती है और कहती है देख वह तेरे पीछे नहीं आया था।
, जाने क्या तू आजकल अपने आप को समझती है ।सोचती है सारी दुनिया तेरी पीछे घूम रही है वह अपने काम से आया था और तूने उसे डांट कर भगा दिया ,
वह भी मन में सोच रहा होगा कि तूने उसे क्या कहा अवनी अपने किए पर शर्मिंदा थी , उसे बार-बार यह लग रहा था कि राजीव उसके बारे में क्या सोच रहा होगा ,वह चाह कर भी अब अपनी सफाई नहीं दे सकती थी ।।
क्योंकि उसने जो कुछ कहा वह सब राजीव के मुंह पर साफ-साफ कहा कहने से ज्यादा उसे इस बात का पछतावा था कि उसने राजीव को कुछ हल्का सा धक्का देते हुए बाहर जाने को कहा।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए प्रतिउत्तर ॽॽॽ 🙏 क्रमशः