कभी-कभी जब व्यक्ति का मन सशंकित होता है, तो उसके मन में अलग-अलग विचार आने लगते हैं वह यह नहीं समझ पाता यह विचार उसके मन में क्यों आ रहे हैं, भगवान प्रत्येक व्यक्ति को एक आहट जरूर देते हैं, ।
कुछ व्यक्ति उसको समझ पाते हैं और कुछ नहीं समझ पाते किन्तु जो लोग समझ जाते हैं वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते भगवान की मर्जी के आगे किसी का जोर नहीं चलता।
ठाकुर साहब के बदले हुए व्यवहार को हर कोई महसूस तो कर रहा था लेकिन कोई यह नहीं समझ पा रहा था कि उनके इस बदले हुए व्यवहार के पीछे कारण क्या था?
, खुद ठाकुर साहब भी सबके सामने कुछ असहज महसूस कर रहे थे किंतु वह मुस्कुरा कर हर परिस्थिति से लड़ने को तैयार थे इसी कारण उन्होंने अपने दिमाग में एक योजना पहले ही बना रखी थी जिसकी भनक उनके परिवार के किसी भी सदस्य को नहीं थी यहां तक की ठकुराइन को भी इसकी भनक तनिक भी ना थी,
सब लोग साथ में खाना खाकर अपने-अपने कमरों में सोने के लिए चले जाते हैं, किंतु ठाकुर साहब बाहर टहलते रहते हैं बहुत रात तक जब ठाकुर साहब अपनी बैठक में नहीं आते तो ठकुराइन को चिंता होने लगती है।
कि आखिर कल पूजा की कितनी तैयारियां हो रही है जो ठाकुर साहब अभी तक कमरे में सोने नहीं आए उठकर बाहर देखती हैं तो ठाकुर साहब अकेले टहलते रहते हैं ।
उनको टहलते देख ठकुराइन उनके समीप जाती हैं ,और कहती हैं मैंने सोचा आप पूजा की तैयारियों में व्यस्त हैं? ठाकुर साहब ने कहा नहीं मैं तो बस यूं ही थोड़ा टहल रहा था ।
वैसे आप अभी तक क्यों नहीं सोई ?ठकुराइन ने कहा मैं आप ही का इंतजार कर रही थी ठाकुर साहब कहते हैं तब चलिए अंदर हम थोड़ी देर बाद आते हैं।
थोड़ी देर बाद ठाकुर साहब के पास कोई आदमी आता है ठाकुर साहब उससे बातें करते हैं और कुछ देर बाद वह चला जाता है।
उसके बाद ठाकुर साहब अपने कमरे में आते हैं और चुपचाप बैठ जाते हैं।ठकुराइन उनको इस तरह बैठे देख पूछती है कि कोई चिंता की बात है क्या ??
ठाकुर साहब बोले नहीं तो ठकुराइन कहती फिर आप इतनी रात तक क्यों जग रहे हैं? ठाकुर साहब बोले बस यूं ही अब मैं भी सोने जा रहा हूं ,और तुम भी सो जाओ थोड़ी देर बाद ठाकुर साहब सो जाते हैं।
दूसरे दिन सुबह से ही पूजा की तैयारियों में पूरा घर लग जाता है दूर-दूर तक शामियाने लगाए जाते हैं ढेर सारी कुर्सियां लाइन से लगाई जाती हैं तरह तरह के खाने की सामग्री अवनी की सारी पसंद की खाने की चीजों को ठाकुर साहब बनवाते हैं।
पंडित जी के आने पर रुद्र प्रताप अखंड प्रताप और अवनी तीनों तैयार होकर हवन के पास बैठ जाते हैं, घंटों पूजा चलती रहती है ।
विशाल यज्ञ कुंड का निर्माण कराया जाता है तीनों को पूजा करते देख ठकुराइन मन ही मन बड़ी प्रसन्न होती है पंडित मंत्रोच्चार द्वारा पूजा का समापन कराते हैं और उसके पश्चात सब लोग हवन करते हैं।
, ठाकुर साहब पंडित को भरपूर दक्षिणा और अनाज अवनी के हाथों से ही दिलवाते हैं। घर के सभी सदस्य यही समझ रहे थे कि ठाकुर साहब को ऐसा लगता है, की अवनी के ऊपर किसी काली ग्रह की छाया है ।
जो पूजा कराने के पश्चात शांत हो जाएगी और अवनी ठाकुर साहब की बातें सहर्ष स्वीकार करने लगेगी किंतु यह तो ठाकुर साहब भी जानते थे कि ऐसा कुछ नहीं है।
पूजा तो मात्र एक बहाना था अवनी को शहर से घर वापस बुलाने का ठाकुर साहब की योजना से पूरा घर अनजान था स्वयं अवनी भी नहीं समझ पा रही थी कि बाबा की बात मैंने नहीं मानी फिर भी बाबा मेरे साथ इतना अच्छा व्यवहार कैसे कर रहे हैं???
इसके लिए वह मन ही मन लज्जित हो रही थी और उसे यह महसूस हो रहा था कि उसने कहीं ना कहीं बाबा का विश्वास तोड़ कर गलती की,,,,
, बहुत दूर-दूर तक भोज का निमंत्रण दिया जाता है, इतनी ज्यादा भीड़ होती है कि संभालना मुश्किल रहता है लेकिन ठाकुर साहब की व्यवस्था इतनी अधिक होती है की भीड़ संभल जाती है।
भोजन का क्रम शुरू होता है लगातार अखंड प्रताप और रुद्र प्रताप खाना परोस परोस कर सब को खिलाते हैं धीरे-धीरे खाने वालों की संख्या कम होने लगती है सब खा खा कर अपने घर जाने लगते हैं।
और अंत में बस घर वाले ही खाने के लिए बचते हैं। ठाकुर साहब कहते हैं कि आज घर में पूजा हुई है आज मैं अपने तीनों बच्चों के साथ भोजन करूंगा?
ठकुराइन तुम भी अगर करना चाहो तो हमारे साथ भोजन कर लो ठकुराइन ने मुंह बनाते हुए कहा नहीं हम भोजन कर चुके आप लोग देर रात तक भोजन करेंगे तब तक मैं एक नींद सो लूंगी,,,
सभी ठकुराइन की बातें सुनकर हंसने लगते हैं नौकर खाना लगाना शुरु करते हैं अखंड प्रताप रूद्र प्रताप ठाकुर साहब और अवनी , नीलम पांचों खाना खाने बैठते हैं, खाना खाते समय सब कुछ न कुछ बातें करते रहते हैं ।
तभी ठाकुर साहब खीर की कटोरी अवनी के सामने करते हैं और कहते हैं अवनी तुझे खीर बहुत पसंद है लो आज अपने बाबा के हाथों से खीर खा लो ,अवनी बोलती है बाबा आप हमें दे दीजिए मैं खा लूंगी।
ठाकुर साहब ने कहा अपने हाथ से तो रोज ही खाती हो आज एक दो निवाला बाबा के हाथ से भी खा लो अवनी मुंह खोल देती है ठाकुर साहब चम्मच से उसको खीर खिलाने लगते हैं दो-तीन चम्मच खाने के बाद अचानक अवनी को कुछ अजीब सी बेचैनी महसूस हुई ।
उसके चेहरे से पसीने की बूंदे साफ स्पष्ट नजर आ रही थी ठाकुर साहब अवनी को देख कर कहते हैं क्या हुआ बेटा अवनी कुछ बोलती इसके पहले वह जमीन पर गिर पड़ती है और उसका शरीर तड़पने लगता है ।
यह देखकर अखंड प्रताप और रूद्र प्रताप दोनों तुरंत अवनी को गोद में लेकर डॉक्टर के पास भागने लगते हैं तभी अवनी के मुंह से सफेद झाग निकलने लगता है।
जानने के लिए पढ़ते रहे प्रतिउत्तर ॽॽॽ 🙏 क्रमशः