पश्चाताप एक ऐसा शब्द है ,जो व्यक्ति के मन में बोझ बनकर रहता है, ।व्यक्ति चाह कर भी उसे सामने वाले से व्यक्त नहीं कर सकता,
क्योंकि यह वह ताप है ,जो बाद में व्यक्ति को धीरे धीरे तपाता रहता है ।इसलिए तो इसे पश्चाताप कहते हैं, ।
अवनी के मन में अब राजीव के प्रति कोई भी ऐसी भावना नहीं थी जिससे वह गलत साबित हो, वह यह सोच कर परेशान होती है ।
कि राजीव तो हमेशा मेरी मदद ही करता रहा, मैं ही हमेशा उसको गलत समझती रहीं, नीलम सही कह रही थी ।मैं ही अपने स्वार्थ में अंधी हो गई थी
,अगर कोई परीक्षा प्रथम श्रेणी प्राप्त करता है । तो वह उसकी प्रतिभा है। अवनी का मन अंदर ही अंदर कचोट रहा था ,और उसकी आंखों के सामने बार-बार राजीव का सीधा -साधा, भोला भाला चेहरा घूम रहा था।
उसे अपनी कही गई बातों से ज्यादा उसने उसको जो धक्का दिया था ।उसे धक्का देने के लिए पछतावा था । वह यह सोचकर परेशान हो रही थी कि उसने ऐसी हरकत कर कैसे डाली ??
इन सबके बावजूद राजीव एकदम शांत खड़ा था ।वह चाहता तो उसी समय तेज आवाज में यह बता देता कि यहां उसे उसकी मां ने भेजा है ,
अवनी बोली अगर वह ऐसा करता तो, मैं उसके साथ ऐसा सुलूक ना करती उसने तो बताया ही नहीं कि वह अपने से नहीं आया है,,
तभी नीलम वहां आती है, और अवनी की ओर देखते हुए कहती है, मैडम किस सोच में पड़ गई, अवनी ने बात छुपाते हुए कहा कुछ नहीं नीलम कहती है ,कुछ तो??
अवनी ने फिर वही कहा कुछ नहीं। उधर राजीव हवेली से आने के बाद चुपचाप लेट जाता है। जाने क्यों उसे आज अपनी मां की बहुत याद आ रही थी,,
तभी राजीव की मां (सौतेली मा) आती है ।और थैला देखकर राजीव से कहती है ।अरे राजीव!! तुमने बताया ही नहीं कि कब हवेली से वापस आए ,,
राजीव बोला अभी थोड़ी देर पहले ही वापस आया हूं ,ठकुराइन ने हम लोगों कि त्योहारी भिजवा दी कि नहीं? राजीव बोला अरे हां !!मैं तो बताना भूल ही गया, यह कहकर राजीव पीछे की तरफ घुमा और एक थैले की तरफ इशारा करते हुए बोला मां इसमें तुम्हारे और बापू के लिए नए कपड़े हैं।
जो ठकुराइन ने भेजे हैं ।ठकुराइन कह रही थी ,कि बापू ने पूरा जीवन उनकी सेवा में बिता दिया वह बोली अब हमारा भी उसके प्रति कुछ कर्तव्य है।
राजीव की मां बोली भला हो ठाकुर साहब का और ठकुराइन का किसी भी त्योहार पर कभी कोई कमी नहीं होने देते भगवान उन्हें स्वस्थ रखें,
राजीव बोला मैं भी यही कह रहा था, तभी राजीव की मां ने राजीव से पूछा तुम्हारा कपड़ा कहां है? राजीव ने एक और थैला पकड़ाते हुए कहा यह रहा मेरा कपड़ा,
मां ने खोलकर देखा और कहा अरे !तुम्हारे ऊपर तो यह नीला रंग बहुत ही खिलेगा क्योंकि गोरे रंग पर ही ये सब रंग अच्छे लगते है।
आज शाम को जब हवेली जाना तो यही पहन कर जाना बहुत सारे लोग आएंगे राजीव कुछ नहीं बोला चुपचाप लेटा रहा फिर उसकी मां बोली तेरी तबीयत तो ठीक है ना
?राजीव की तबीयत की बात सुनकर केशव वहीं से लेटे लेटे बोला क्या हुआ? राजीव को राजीव बोला कुछ नहीं बापू बस थोड़ा सा थक गया हूं,
राजीव को अवनी का इस तरह धक्का देना बहुत अखर रहा था, वह लेटा रहता है, और अपने कपड़े की तरफ नहीं निहारता भी नहीं तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया केशव बोला देखो तो दरवाजे पर कौन है ?
केशव और केशव की पत्नी हवेली से आया हुआ खाना खा रहे थे राजीव ही उठकर दरवाजा खोलता है। देखा तो सामने हवेली का नौकर गोपाल खड़ा रहता है ।
राजीव गोपाल की तरफ देखता है। गोपाल राजीव को देखकर कहता है राजू भैया ठकुराइन ने शाम को हवेली पर आपको बुलाया है।
राजीव ने पूछा किस लिए गोपाल बोला मैं ज्यादा तो नहीं जानता पर हां नीलम दीदी को कुछ फूल चाहिए था। राजीव ने कहा ठीक है।
तुम चलो मैं शाम को आता हूं तभी केशव और उसकी पत्नी पूछते हैं हवेली क्यों बुलाया ठकुराइन ने राजीव बोला थोड़े फूल और चाहिए इसीलिए गोपाल को भेजा था बुलाने के लिए,,,
केशव बोला जा लखन चाचा से फूल ले ले वरना वह सारे फूल बेच देगा ,राजीव ने कहा कि लखन चाचा से लेने की जरूरत नहीं है।
वहां हवेली पहुंचने पर पता चलेगा कि किस चीज के लिए फूल चाहिए? और किस रंग के चाहिए बहुत ज्यादा फूलों की जरूरत नहीं है।
यह कहकर राजीव फिर लेट जाता है। उसका मन दुविधा में रहता है, कि क्या करें हवेली जाए, कि ना जाए अगर जाता हैं तो अंदर से उसका मन पता नहीं क्यों नहीं कर रहा है जाने का और अगर ना गया तो ठकुराइन को बुरा लगेगा
, कि मैंने बुलाया और राजीव आया नहीं क्या करूं? मेरा दिमाग नहीं काम कर रहा है कभी-कभी दिमाग दिल पर हावी हो जाता है। और कभी-कभी दिल दिमाग पर हावी हो जाता है ।दोनों ही कंडीशन में व्यक्ति निर्णय नहीं ले पाता,
क्योंकि आज जो राजीव के साथ हुआ उसका दिमाग कह रहा था, कि चला जाए किंतु दिल इसकी गवाही नहीं दे रहा था । हालांकि अवनी की बातें उसे चुभी जरूर थी ,
, लेकिन इसका पूरा दोष पता नहीं क्यों वह अवनी को नहीं दे पा रहा था। शाम को हवेली की रौनक देखते ही बन रही थी बड़ी बड़ी टंकियों में ठंडाई भरी रखी थी।
एक किनारे होली के कई पकवान सुंदर और करीने से सजे हुए रखे थे ,तभी फगुआ गाने वालों की टोली आती है । ठाकुर साहब उन्हें तखत की ओर इशारा करते हैं ।
तखत पर सफेद रंग की चादर बिछी हुई थी टोली के सभी सदस्य सफेद कुर्ता पजामा और रंग बिरंगी टोपिया लगाए थे। ठाकुर साहब एकदम सामने सिल्क का कुर्ता धोती पहने हुए थे।
ठाकुर साहब सिल्क की सिर पर पगड़ी भी बाधे थे, एक बड़े से तखत पर दो मसलन के बीच में ठाकुर साहब बैठे हुए थे, आने जाने वालों के लिए बड़े-बड़े तखत पर सुंदर-सुंदर चादर बिछी हुई थी ।
अखंड और रुद्र प्रताप भी कुर्ता पजामा के साथ सिर पर साफा बांधे हुए दरवाजे पर आए मेहमानों का स्वागत करते हैं। इस समय सबको पता है कि कोई रंग किसी के ऊपर नहीं डालेगा इसीलिए सब नए और साफ कपड़े पहने हुए थे ।
ज्यादातर ने तो सफेद कपड़े पहन रखे थे अवनी ने अपनी नई ड्रेस पहनी नीले रंग के सलवार कुर्ते में उसका यौवन निखर कर सामने नजर आ रहा था।
उसने अपने बाल खुले छोड़ रखे थे तभी ठकुराइन कहती हैं बाल बांध ले नहीं तो खाने पीने की चीजों में बाल गिर जाएंगे तो कोई खाएगा नहीं यह सुनकर अवनी थोड़ा मुंह बना कर अपने बालों में एक लंबी चोटी बना लेती है।
और ठकुराइन से कहती है मां रुद्र भैया की पसंद कितनी अच्छी है नीलम भी ठकुराइन का दिया हुआ नया कपड़ा पहनती है
।ठकुराइन ने तो सुर्ख लाल साड़ी उस पर खूब बड़ा सा जुड़ा बनाकर उसमें अपने पल्लू को टिका दिया था और खुद बाहर आकर ठाकुर साहब के बगल वाले सोफे पर बैठ जाती हैं।
अखंड प्रताप की पत्नी कलावती तो नई नवेली दुल्हन ही थी तैयार होकर वह अपने कमरे में ही रहती है। बीच-बीच में अखंड प्रताप उसको जाकर झांक आते हैं
।और फिर बाहर आकर लोगों के स्वागत में लग जाते हैं ।कलावती भी आज बहुत सुंदर लग रही थी लोगों के आने का सिलसिला लगातार चलता रहता है
।कुछ कुछ ने तो खाना भी खाया कुछ नाश्ते तक ही सीमित रहें कुछ ने तो सिर्फ एक लौंग लेकर ही अपनी उपस्थिति दर्ज कराई ,अवनी नीलम से कहती है मां ने राजीव को बुलया था।
किंतु वह आया नहीं कहीं वह मेरी बात का बुरा तो नहीं मान गया? मैं मानती हूं कि मुझसे गलती हुई है ,किंतु अगर वह बोल देता तो मैं ऐसा क्यों करती ?
नीलम बोली नहीं ठाकुरों से कहां गलतियां कहा होती हैं ।गलतियां तो जनसाधारण से होती हैं। अवनी लज्जित होती हुई बोली बोल तो रही हूं गलती हो गई,
बहुत कशमकश के बाद राजीव उठकर तैयार होता है। और मन ही मन यह तय करता है ,की वह अवनी से दूर -दूर हीं रहेगा क्योंकि उसके आसपास रहने से अवनी को दिक्कत होती है।
और उसकी ओर तो नजर उठा कर नहीं देखेगा क्योंकि वह अवनी के चेहरे पर दुख नहीं देख सकता था ।अपनी वजह से तो बिल्कुल भी नहीं।
इसी कारण राजीव बहुत देर तक तैयार होकर बैठा था ।फिर केशव ने पूछा क्या हुआ बेटा तबीयत ठीक ना ,हो तो ना जाओ
राजीव बोला बाबू तबीयत ठीक है। जाऊंगा लेकिन थोड़ी देर से जाऊंगा , अभी तो हवेली में बहुत भीड़ भाड़ होगी, केशव बोला इसी समय तो जाना चाहिए था ?
तमाम बड़े-बड़े रईस लोग आएंगे तुम उन सबको माला पहना देते, तो सब तुझे बक्शीश देकर जाते कितने पैसे इकट्ठे हो जाते।
राजीव बोला लखन काका से मैंने आज सुबह ही बोल दिया था, अब तक तो वह माला लेकर हवेली माला पहनाने पहुंच भी गए होंगे??
केशव बिगड़ कर कहता है। लखन को क्यों भेज दिया? तुम्हें सब को माला पहनाने में शर्म लग रही थी, राजीव कहता है ,बापू वह बात नहीं है थकान के कारण मेरे जाने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी ।
केशव बोला तो अब बाद में हवेली क्या लेने जाएगा? राजीव चुप रहता है राजीव की मां बोली तेरे बापू ठीक ही तो कह रहे हैं। ठकुराइन के बुलाने पर जाना तो था ही अगर पहले चला जाता तो चार पैसे की आमदनी भी हो जाती ।
त्यौहार ही तो हम लोगों की आमदनी का साधन है। राजीव कुछ बोलता नहीं और चुपचाप हवेली की ओर निकल पड़ता है। हवेली पहुंचने पर आधे से अधिक मेहमान जा चुके थे।
,सामने उसे अखंड प्रताप खड़े दिखे उसने जाकर उनके पांव छुए अखंड प्रताप उसे गले लगाते हुए अंदर जाने का इशारा करते हैं। राजीव भीतर घुसता है ।
।भीतर का दृश्य तो उसके लिए अकल्पनीय था जो शानो शौकत थी ,उसकी उसने कभी कल्पना ही नहीं की थी, बहुत बचपन में वह बापू के साथ एक आध बार ही आया था फिर उसके बाद अपनी पढ़ाई लिखाई में व्यस्त रहने के कारण वह कभी नहीं आया।
ज्यादातर केशव ही आकर हवेली में सवेरे से रात तक फूल और फूलों से संबंधित सारा प्रबंधन करते थे, राजीव के लिए यह दृश्य एक ख्वाब जैसा लग रहा था।
ठाकुर साहब ने राजीव को देखा तो कहा अरे भाई राजीव तुम भी कुछ खा लो राजीव ने हां में सिर हिलाया तभी ठकुराइन बोली नीलम उधर कमरे में है.
उससे जाकर उसकी पूजा के फूल पूछ लो नहीं तो वह गांव की अन्य लड़कियों के साथ इधर उधर कहीं चली जाएगी ।राजीव ने जी ठकुराइन कहकर अंदर की ओर प्रवेश किया राजीव के सामने फिर वही समस्या पैदा हुई कि वह किस ओर जाए,, एक तो वह हवेली का रास्ता ज्यादा जानता नहीं था,।
दूसरी अवनी से वह मन ही मन थोड़ा डरा हुआ था ।वह समझ नहीं पा रहा था कि किस ओर जाए तभी उसे अखंड प्रताप की पत्नी कलावती दिखाई दी,
।राजीव उनके निकट जाकर पूछता है ।भाभी नीलम का कमरा किधर है? कलावती राजीव को पहचानती नहीं थी, उसने पूछा आप कौन हैं?
राजीव ने कहा हम सुबह माता के लिए माला लेकर आए थे केशव माली के लड़के राजीव हैं ।कलावती को अचानक उसका चेहरा याद आ गया और बोली ओह हां सुबह मैंने आपको देखा था ।
।आप यही रुकिए मैं नीलम को आवाज देती हूं, राजीव वहीं रुक गया कलावती नीलम नीलम पुकारने लगी किंतु कोई उत्तर नहीं आया तब कलावती कहती है ।।
गोपाल भैया जाइए नीलम दीदी को कमरे से बुला लाइए कह दीजिए माली आया है, राजीव बोला भाभी आप कह दीजिए राजीव आया है ।तो भी वह समझ जाएगी ,,,
क्योंकि मैं और नीलम एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं। कलावती बोली गोपाल भैया कह दीजिए राजीव आया है। और अपने कमरे में चली जाती है।
गोपाल जाता है नीलम और अवनी कमरे में बैठकर टीवी देख रही थी ।तभी गोपाल दरवाजा खटखटा ता है ,अवनी उठकर दरवाजा खोलती है और पूछती है क्या है?
गोपाल बोला नीलम दीदी आपसे मिलने राजीव भैया आए हैं नीलम उठती है अवनी भी उसके साथ आती है किंतु नीलम कहती है तू यहीं बैठ मैं आती हूं वैसे भी वह मुझसे मिलने आया है तो मैं ही जाऊंगी।
अवनी चिढ़ जाती है। और कहती है जा मुझे जाना भी नहीं है। नीलम तेज कदमों से राजीव जहां खड़ा रहता है वहां आती है राजीव को देखते ही कहती है अच्छा हुआ राजीव तुम आ गए ।
कल मेरा उपवास है ,और मैं शंकर जी को सफेद फूल ही चढ़ाती हूं इसलिए हो सके तो सुबह-सुबह जल्दी सफेद फूल लेकर चले आना एक दो फूल मिलेगा तो भी कोई बात नहीं मैं चढ़ा दूंगी,,,
राजीव बोला अगर रात में तोड़ लूं बासी फूल चलेंगे क्या? इस पर नीलम हंसने लगती है ,और कहती हैं अगर बासी फूल ही चढ़ाने होते तो फिर तुम्हें क्यों बुलवाती
आज जो तुम फूल लेकर आए थे उसी में से एक दो फूल रख लेती, राजीव ने कहा तुम चिंता मत करो मैं सुबह तड़के ही तुम्हारे लिए फूल लेकर आ जाऊंगा
फिर राजीव धीरे से नीलम से कहता है एक बात पूछनी थी, नीलम बोली पूछो राजीव कहता है क्या अवनी मुझसे नाराज है इस पर नीलम उसके भोले चेहरे को देखती है,और हंसते हुए कहती है ।
तुमने किया क्या जो कोई तुमसे नाराज होगा राजीव बोला वह उस समय में::: नीलम बीच में ही बात काट कर बोली तुम्हारी कोई गलती नहीं थी।
तुमसे जहां जाने को कहा जाएगा तुम वहां तो जाओगे ही ना फिर इसमें तुम्हारी क्या गलती,गलती तो अवनी की थी जिसने बिना सोचे समझे तुम्हें गलत समझा,,,
राजीव बोला उसमें उनकी कोई गलती नहीं अगर मैं उसी समय बता देता तो वह ऐसा क्यों कहती नीलम बोली मैंने बहुत प्यार करने वाले देखे लेकिन तुम्हारे जैसा नहीं यह सुनकर राजीव की नजरें नीचे हो जाती हैं।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए प्रतिउत्तर ॽ 🙏क्रमशः