जीवन में नवीनता लाने के लिए त्योहारों का उतना ही महत्व होता है जितना कि भोजन और वस्त्र का प्रतिदिन की मशीन की तरह वाली, हां रोज की वहीं दिनचर्या व्यतीत करते करते व्यक्ति ऊब जाता है।
इस उबाऊ जिंदगी से छुटकारा पाने के लिए मानव ने अपने जीवन में त्योहारों को विशेष रूप से सजाया और संवारा है ।कभी वह रोशनी में नहाता है, तो कभी रंगों से सराबोर होता है।
, कभी पूजा कभी इबादत कभी प्रार्थना प्रेयर किसी न किसी रूप से वह अपने मनोरंजन का साधन त्योहारों के रूप में एकत्र कर ही लेता है।
कल होली का त्यौहार है ।आज ही से हवेली में चारों तरफ खुशियों भरा माहौल प्रत्येक व्यक्ति उमंग से भरा हुआ दिखाई दे रहा है।
तरह-तरह के पकवानों से हवेली सराबोर हो रही है ।हो भी क्यों ना क्योंकि व्यक्ति जब खुश होता है , तो वह अच्छा खाता है। अच्छा पहनता है , खुशियों को बांटने के लिए अपनों का साथ होना भी बहुत जरूरी होता है।
।इसलिए हम त्यौहारों को अपनों के साथ मिलकर ही मनाने की कोशिश करते हैं। ठकुराइन को तो मानो इस दिन का बेसब्री से इंतजार था,
क्योंकि उनके तीनों बच्चे उनके पास हवेली में थे हवेली में तो होली का माहौल ही अलग होता था, एक गांव के नहीं बल्कि कई गांव के लोग ठाकुर साहब के दरवाजे पर आते होली खेलते भांग ठंडाई भी चलती गुजिया पापड़ तो इतनी ज्यादा मात्रा में की जो जितना खा सके खाता रहे
, ठाकुर साहब की हवेली में हमेशा दो दिन होली होती , पहले दिन पुरुष और महिलाएं सभी उसमें शामिल होते वह , रात -रात भर फगुआ गाते (गांव में ही जो अच्छा गाना वगैरा गाते थे, वही लोग मिलकर फगुआ गाते)
उसके बाद घंटों की बैठक होती और फिर सुबह के टाइम जब होली जल जाती उसकी राखी का तिलक लगाकर ही अपने घर जाते किंतु दूसरे दिन महिलाएं इसमें शामिल ना होती उन्हें घर के कार्य में व्यस्तता अधिक रहती,
इसी कारण , दूसरे दिन सिर्फ गांव के लड़के और पुरुष एवं छोटे बच्चे ही होली खेलते , किंतु अवनी इन सबसे अलग थी , वह तो दोनों दिन ही होली खेलती और खूब खेलती,,
फिर चाहे कोई अपना हो या पराया वह किसी को नहीं छोड़ती ठकुराइन गुस्सा हो या फिर प्यार से समझाएं उसे कोई फर्क नहीं पड़ता
"अल्हड़ ', जैसी पूरे घर में भागी भागी फिरती आज सुबह से नीलम अवनी के घर आ गई ठकुराइन बोली तेरी कमी थी अब क्या अब तो दोनों को पंख ही लग जाएंगे,
इस पर नीलम कहती है। चाची साल भर का तो त्यौहार है !उस पर भी तुम मनाने नहीं देती ठकुराइन कहती हैं ,मैंने मनाने से कब मना किया लेकिन अब अपनी उम्र का भी लिहाज करो
अवनी बोली अम्मा आज तो तुम अपना लेक्चर बंद ही कर दो ठकुराइन बोली ,हां हां मेरी बातें तो तुम लोगों को लेक्चर लगती हैं।
कुछ ऊंच-नीच हो जाए तो कोई मुझसे नहीं कहेगा ठाकुर साहब कहते हैं , किस ऊंच-नीच की बातें कर रही हो ठाकुराइन, बच्चियां हैं खेलने कूदने की उम्र है, अब ना खेलेंगी तो कब खेलेगी?
यही कह कर तो आपने सर पर चढ़ा रखा है। ठाकुर साहब हंसने लगते हैं , नीलम और अवनी को इशारा करते हैं। वे उनके पीछे से चुपचाप हंसती हुई भाग निकलती हैं,
दोनों अवनी के कमरे में जाती हैं ।और बैठकर बातें करने लगती है। नीलम अवनी से कहती हैं। यार तुझे कुछ खबर है ।तेरे गम में तेरा आशिक पागल बना घूम रहा है।
अवनी नीलम का मुंह बंद करते हुए कहती है। श..श...श... यह हवेली है, यहां कुछ बोलने से पहले अपनी निगाहों को चारों ओर दौड़ा लिया जाता है।
और कम से कम दस बार सोचना चाहिए नीलम बोली हां मैं तुझे बता रही हूं अवनी ने कहा मुझे क्यों बता रही है ?कौन मेरा आशिक ?नीलम कहती है ,
अब ज्यादा बन मत जैसे तुझे कुछ पता ही नहीं, अवनी बोली पता रखने से भी क्या होगा जबकि मैं जानती हूं, इस हवेली में ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। नीलम कहती है तुझे कैसे नहीं दिखता राजीव की आंखों में अपने लिए प्यार ,,,
अवनी दरअसल जिसे तू प्यार समझ रही है।वह प्यार नहीं है उसके ऊपर मेरे घर वालों ने इतने उपकार किए हैं , कि वह सिर्फ मेरा भला चाहता है, इसके सिवा कुछ नहीं और इसी को तुम प्यार के रूप में देख रही है ,
मुझे तो कहीं से उसकी आंखों में कोई प्यार नजर नहीं आता और फिर तुमने मेरा टेस्ट इतना गिरा हुआ समझ लिया है,
मैं "अवनी सिंह" ठाकुर हूं ठाकुरों का तो टेस्ट ही अलग होता है। तभी कलावती आती है, नीलम और अवनी की बातों के बीच में बोल पड़ी अब बातें बाद में करिएगा पहले आप दोनों कुछ खाइए देखिए मैं कितनी ढेर सारी चीज आपके लिए लाई हू,
नीलम तपाक से बोली अरे वाह !भाभी इतनी सारी चीजें अब तो मजा ही आ जाएगा, कलावती खाने का सामान रख कर चली जाती है। अवनी नीलम को डांटने लगती है अभी तो तूने सब गुड गोबर कर दिया था, अगर भाभी सुन लेती तो ,नीलम बोली सुन लेती तो सुन लेती सच्चाई का पता चल जाता। अवनी थोड़ा चिढ़कर (कहती है ,कि उस राजीव ने तुझसे कुछ कहा क्या)
जो तू उसकी इतनी वकालत करे पड़ी है। नीलम बोली ऐसा नहीं है यार मैं तेरी दोस्त हूं , मैं उसकी वकालत क्यों करूंगी लेकिन तुम मेरी बात का विस्वास मानो मैंने उसकी आंखों में तेरे लिए कुछ तो देखा है । अवनी कहती है ।छोड़ यार उसको चल बता कल होली हम किस तरह खेलेंगे?
नीलम बोली मैं तो गुलाल वाली खेलूंगी अवनी ने कहा इतनी शराफत क्यों रंग से क्यों परहेज है, मेरा बस चले तो मैं तुझे टंकी में डालकर पूरे रंगों से सराबोर कर दू नीलम ने कहा तेरा बस तुझ पर ही नहीं चलता तभी तो तुझे राजीव का प्यार नजर नहीं आ रहा है बहुत पछताएगी सच्चा प्यार करने वाले अपनी मंजिल पाकर ही रहते हैं।
फिर वह चाहे जिस तरह मिले अरे ओ राजीव की वकील अब तो चुप हो जा जब से आई है उसी के गुण गाए जा रही है। मुझे तो लगता है तुझे ही उससे प्यार हो गया है ? और अवनी हंसने लगती है।
नीलम कहती है तुझे क्या पता तू उसकी तरफ देख तो तुझे पता चलेगा कि कितना प्यार है, तेरे लिए उसकी आंखों में,।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए प्रतिउतर 🙏 क्रमशः