समाज में कोई भी हो वह चर्चा का विषय तब तक बना रहता है जब तक कि वह लोगों के समीप, आसपास या फिर स्मृति में रहता है ।
किंतु कुछ समय पश्चात लोगों को कोई और ही मुद्दा मिल जाता है जिससे वह चर्चा समाप्त हो जाती है ।और दूसरी शुरू हो जाती है।
किंतु कुछ ना कुछ चर्चाएं अवश्य होती ही रहती हैं, नीलम को भी हवेली में रहते दो-तीन दिन बीत चुके थे वह अवनी के बिना उस हवेली में काफी हकेला पर महसूस कर रही थी ।
किंतु ठाकुर ठकुराइन की स्थिति को देखते हुए उसने एक-दो दिन रुकने का निर्णय किया एक-दो दिन बीत जाने के बाद वह अखंड प्रताप से कहती हैं।
कि भैया अब मैं अपने घर जाऊंगी अखंड बोले ठीक है फिर तुम आती रहना अवनी की तरह ही हमने तुम्हें भी अपनी बहन माना है।
अब अवनी तो नहीं रही किंतु तुम हम लोगों को मत भुलाना, अखंड प्रताप की बातें सुनकर नीलम की आंखें भर आती हैं और वह कहती है कि नहीं भैया मैं आप लोगों को नहीं भुला सकती l
नीलम, ठकुराइन के कमरे में जाती है उनकी स्थिति देखते हुए वह उनसे कुछ नहीं बोलती और ठाकुर साहब से कहती है कि अब मैं अपने घर जाना चाहती हूं, कुछ दिन तक तो कॉलेज भी नहीं जाऊंगी क्योंकि मेरा अकेले हॉस्टल में मन नहीं लगेगा l ठाकुर साहब ने कहा नीलम तुमसे एक बात पूछनी थी नीलम ने कहा क्या कहना ना है आपको ? ठाकुर साहब बोले जब हम लोग की हालत इतनी ज्यादा खराब है तो राजीव तो अवनी से बेहद प्रेम करता था उसकी भी स्थिति अच्छी नहीं होगी मैं चाहता हूं कि तुम मुझे उसके रहने का पता बताओ ताकि मैं उसे ढाढस बंधा सकूं आखिर वह हमारे केशव माली का ही बेटा है केशव ने हमारे परिवार के लिए बहुत कुछ किया है इसी कारण से मैं चाहता हूं कि मैं खुद उसको जाकर समझाऊं l
नीलम अपने मन में सोचती है कि ठाकुर साहब का ह्रदय कितना बड़ा और विशाल है अभी तक तो राजीव के विषय में किसी ने सोचा ही नहीं ,,,,
यह तो एक ठाकुर साहब है जिन्होंने राजीव के विषय में सोचा ही नहीं बल्कि खुद जाकर उसे ढाढस बंधाने की बात कर रहे हैं यह ठाकुर साहब का बड़प्पन नहीं तो और क्या है ?
अवनी तो व्यर्थ में परेशान थी हो सकता है वह ठाकुर साहब की शर्त पूरी कर लेती तो जैसा वह चाहती थी ठाकुर साहब वैसा ही करते लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था।
अचानक अवनी का जाना सबके लिए एक हादसे से कम नहीं है। नीलम ने तुरंत ही राजीव का एड्रेस एक कागज पर लिखकर ठाकुर साहब को दे दिया ठाकुर साहब ने कहा अरे नीलम तुमने इसमें फोन नंबर तो डाला ही नहीं नीलम ने फोन नंबर भी लिख कर दे दिया और अपना बैग लेकर अखंड प्रताप के साथ अपने घर की ओर निकल गई
ठाकुर साहब हाथ में कागज का टुकड़ा लिए राजीव के एड्रेस को दो तीन बार पढ़ते हैं और मन ही मन क्रोधित होते हुए कहते हैं।
कि आज तुम्हारे कारण मेरी बेटी इस दुनिया में नहीं है तुम्हें भी इस दुनिया में रहने का कोई हक नहीं है। मेरे मना करने के बावजूद जाने क्या तुमने उसे पाठ पढ़ाया की पहली बार उसने मेरा कहना ना मानकर तुम्हारे ही प्रेम में पागल हो गई ???
ठाकुर साहब एड्रेस को पढ़ते हैं और फोन मिला कर किसी को बताते हुए कहते हैं की ऐसे गायब करना कि किसी को कानों कान भनक भी ना लगे कि हुआ क्या था ???
पैसे की चिंता बिल्कुल मत करना जो पैसा होगा वह मैं तुम्हें जरूर दूंगा उसके बाद मुझे फोन करके कुछ दिनों के लिए तुम हवेली के आसपास भी नजर मत आना l
दूसरे फोन से आवाज आती है जैसा आप चाहते हैं वैसा ही होगा ठाकुर साहब आप मुझ पर विश्वास रखिए फिर ठाकुर साहब अवनी की यादों में डूब जाते हैं।
कलावती को तो समझ ही नहीं आता कि अचानक से ऐसा क्या हो गया ?की अवनी इस दुनिया को छोड़ कर चली गई क्या कुछ खीर में ऐसा था ?या फिर अनायास उसकी मृत्यु ही उसे खींच ले गई ?
क्योंकि वही खीर तो सब लोग खा रहे थे और फिर बाबा खुद अपने हाथों से अवनी को खीर खिला रहे थे इसका मतलब तो यही था की खीर में तो कुछ होने का प्रश्न ही नहीं उठता????
काल ही अवनी को खींच कर अपने साथ ले गया पूरे दिन कलावती कभी ठकुराइन का तो कभी अखंड और रुद्र का कभी ठाकुर साहब का ध्यान रखती उन्हें उस दुख से निकालने की पूरी कोशिश करती!
लेकिन वह दुख किसी गैर का नहीं था अपने का था गैरों के विषय में लोग सुनते हैं दुखी होते हैं फिर धीरे-धीरे भूल जाते हैं किंतु अपनों के विषय में लोगों को पहले तो सुनने पर विश्वास नहीं होता फिर वह चीजें दिमाग से ना तो उतरती है और ना ही भूलती हैं।
स्मृति में वह हमेशा एक अमिट छाप छोड़ कर ही रहती हैं रूद्र प्रताप के मन में जो बोझ था अब वह जीवन भर के लिए हो गया था ।
क्योंकि उसको उतारने के लिए उसके सामने अवनी नहीं थी वह अवनी से अब यह नहीं कह सकता था कि मेरी गलतियों के लिए मुझे माफ कर दो या फिर मैं ऐसी गलती अब कभी नहीं करूंगा।
वह तो अवनी से बात करने को भी अब जीवन भर तरस जाएगा उसके मन में हमेशा या पछतावा रहेगा कि उसने अंतिम समय में ऐसी बहुत सी बातें थी जो उसने अवनी से नहीं की ऐसी कई शिकायतें थी जो करना चाहता था ,और नहीं कर पाया सिर्फ अपने गुस्से और अहंकार के कारण उसने तो अवनी से कई दिन पहले से बातचीत ही बंद कर दी थी।
जिसका पछतावा उसे जीवन भर रहने वाला था, परिवार की ऐसी दशा देखकर गांव वाले तो यही समझ रहे थे की अवनी की मृत्यु स्वाभाविक थी।
ऐसा कोई कारण नहीं था जो उसकी मृत्यु को संदेहास्पद दिखाएं सब यही सोच रहे थे कि आज हवेली कितने दुखों से गुजर रही है किंतु असलियत क्या कोई जानता था और जान कर भी क्या कोई उसको मानने को तैयार था।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहे प्रतिउत्तर ॽॽॽ 🙏 क्रमशः।।