जब किसी से अचानक कोई चीज छिन जाती है, तो वह रिक्त स्थान भरने में बहुत समय लगता है, कभी-कभी तो भर ही नहीं पाता किन्तु कभी कभी व्यक्ति समझौता करके आगे बढ़ जाता है।
मन के किसी कोने में कहीं ना कहीं वह यादें रह जाती हैं, जो समय समय पर उसे कचोटती और रुलाती है, क्योंकि जब किसी चीज को हम जान लेते हैं कि अब वह हमें कभी प्राप्त नहीं होगी तो उसके प्रति हमारा मोह बढ़ जाता है ।
धीरे धीरे हमारे मन को जब यकीन हो जाता है कि सचमुच वह चीज हमसे बहुत दूर हो गई है तो फिर वह हमारी स्मृतियों में घर कर लेती है और हमें हमेशा हमेशा के लिए याद रह जाती है।
अवनी का यूं चले जाना राजीव के बर्दाश्त के बाहर की चीज थी अभी-अभी तो वह बेचारा अपने बापू के गम को भी नहीं भुला पाया था ।
कि तभी अवनी की मृत्यु ने उसे एकदम बेसहारा बना दिया क्योंकि बापू के बाद वह अवनी को अपना सब कुछ समझने लगा था।
दोनों घंटो बातें करते और एक दूसरे के मन को समझते अब राजीव निराश्रित सा चुपचाप बैठा रहता उसकी आंखों से आंसू लगातार बहते रहते उसे तो ना खाने की सुध ना उसकी आंखों में नींद ही थी, बावरा सा हो गया था बिखरे बाल सूजी आंखें बदहवास सा ऐसे ही पूरी रात जमीन पर पड़ा रहा,
इस बीच कई बार मयंक ने उसे जबरदस्ती पानी पिलाने की कोशिश की उसने नहीं पिया खाना तो बहुत दूर की चीज है वह अपने जगह से हिला भी नहीं ,,,,
बस एक टक दीवारों को देखता और फिर अचानक से जाने क्या याद आता कि वह फफक कर रो उठता और फिर ऊपर देखकर भगवान से पूछता आखिर ऐसा मैंने क्या अपराध किया था???
जो आपने इतनी बड़ी सजा मुझे दी इससे अच्छा होता कि आप अवनी की जगह मुझे ही उठा लेते तो मैं आपसे कोई शिकायत ना करता लेकिन आपने मुझे जीवन दे कर बहुत बड़ा अन्याय किया क्या करूं?
मैं ऐसे जीवन का जिसमें सांसे तो है पर सांसो में गति ही नहीं है और फिर रोने लगता उसकी यह हालत मयंक से देखी न जाती मयंक राजीव को बहुत मानता था ।
वह हमेशा राजीव को अवनी से दूर रखने की ही कोशिश करता था लेकिन बाद में उसकी इच्छा देखकर वह भी उसकी इस बात से सहमत हो गया था।
किंतु आज उसकी ऐसी हालत देखकर वह कहीं ना कहीं अपने आप को भी दोषी मान रहा था।
राजीव मयंक से कहता है मैं हवेली जाना चाहता हूं एक बार मैं अवनी को देखना चाहता हूं मयंक बोला राजीव पागल मत बनो तुम जाने की स्थिति में नहीं हो और फिर अब देख कर क्या करोगे ????
शायद जब तक तुम पहुंचोगे तब तक अवनी का अंतिम संस्कार हो चुका होगा राजीव मयंक से कहता है, तुम एक बार मेरी बात नीलम से करा दो नीलम के मोबाइल पर फोन करो, !!!!
मयंक कहता है , अगर तुम यहीं चाहते हो तो मैं प्रयास करता हूं यह कहकर कर नीलम के पास मयंक फोन मिलाता है, नीलम बात करने की स्थिति में तो नहीं रहती लेकिन राजीव की हालत के बारे में सोच कर वह मयंक से कहती है।
हां मयंक बोलो मयंक ने कहा राजीव अवनी के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए आना चाहता है ,क्या अंतिम संस्कार को थोड़ी देर के लिए रोका जा सकता है ???
नीलम ने कहा राजीव से कहो पागल ना बने अब कुछ नहीं हो सकता अब तो ऐ लोग अवनी के शव को लेकर निकल रहे हैं, राजीव ने मयंक के हाथ से फोन लेकर नीलम से कहा नीलम प्लीज मुझे ठाकुर साहब से बात करनी है।
नीलम ने कहा राजीव तुम समझ नहीं रहे हो ठाकुर साहब बात करने की स्थिति में नहीं है, फिर भी राजीव ने कहा नहीं मुझे ठाकुर साहब से बात करनी है।
नीलम ने ले जाकर फोन ठाकुर साहब के हाथ में दिया ठाकुर साहब ने पूछा किसका फोन है नीलम बोली राजीव का ठाकुर साहब ने रोते हुए फोन काट दिया ।
अब राजीव चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था नीलम फोन करके उससे कहती है राजीव अब कुछ नहीं हो सकता जब तक तुम आओगे तब तक तो सब कुछ खत्म हो चुका होगा अब तो बस अवनी अपनी हवेली से बाहर निकल ही चुकी है।
राजीव कि सांसे मानो अटक गई हो वह फिर उसी स्थिति में बैठ जाता है । मयंक उसके समीप बैठकर उसको समझाता है कि देखो अभी तक तुम्हारे रिश्ते की भनक गांव वालों को नहीं है,
और ठाकुर साहब ऐसा कुछ होने नहीं देना चाहते इसलिए तुम वहां जाकर करोगे भी क्या जब पहुंच आओगे तब तो अंतिम संस्कार भी हो चुका होगा तो अंवनी को तो देख भी नहीं पाओगे तो फिर वहां जाने का विचार छोड़ दो,
राजीव रोते हुए कहता है अब मैं क्या करूं? मैं तो अंतिम बेला पर अवनी से मिल भी नहीं पाया वह जाने क्या कहना चाहती थी।
मुझे मैं यह जान भी नहीं पाया अभी कल ही तो वापस मेरे पास आई थी और कह रही थी राजीव मुझे डर लग रहा है। मैंने ही तो उसे अखंड भैया के पास जाने को कहा और कहा तुम आत्मविश्वास रखो मैं तुम्हारे साथ हूं।
तो फिर मैं कहां हूं उसके साथ वह तो अकेली ही इस जीवन की यात्रा पर निकल गई मैं तो यही रह गया ऐसे ही बीच-बीच में राजीव कुछ ना कुछ बोलता और फिर अचेत हो जाता है।
इधर अवनी का अंतिम संस्कार शुरू हो जाता है लकड़ियों के गट्ठर के बीचोबीच उसके शव को रखकर अखंड प्रताप ने उसको मुखाग्नि दी ,
किस तरह उन्होंने अपने कलेजे पर पत्थर रखा होगा क्योंकि अवनी उनके कलेजे का एक टुकड़ा ही तो थी जिसकी हर गलतियों को वह नजरअंदाज कर देते थे ।
और सोचते थे कि मैं सब कुछ संभाल लूंगा उसके जीवन में सब कुछ ठीक कर दूंगा आज उन्हीं हाथों से उन्होंने उसके शरीर को संभाल कर जलाया और एक करुण चीत्कार के साथ रो पड़े ,
कहने लगे कि हमेशा यह समझता था कि मैं सब कुछ ठीक कर सकता हूं किंतु मैं ग़लत था सबकुछ तो भगवान आपके हाथ है, मैं तो सिवाय रोने के कुछ नहीं कर सकता।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए प्रतिउत्तर ॽॽॽ 🙏 क्रमशः।।।।