बसंत ऋतु आने पर सम्पूर्ण प्रकृति नवीनता से भर जाती है वृक्षों पर वृक्षोंकोमल नवागंतुकों के स्वागत में सम्पूर्ण कायनात जिस प्रकार जुट जाती है।
अखण्ड प्रताप की हवेली में आज वही दिखाई दे रहा था l एक ओर प्रकृति की मनोहर छटा दूसरी ओर हवेली में हर्षोल्लास पूर्वक उत्सव की तैयारियाँ सभी विद्वानों तथा पुरोहितों का आगमन,
उन्होने बालक के मुख मण्डल को देखकर कहा ठाकुर साहब इस बालक का चंद्रमा कमजोर है, ठाकुर साहब ने कहा चंद्रमा कमजोर होने से क्या होता है?
पुरोहित बोले बालक बीमार रहेगा तथा माता पर भारी भी रहेगा l अखण्ड प्रताप बोले कोई उपाय तो होगा, उपाय तो है किन्तु 12 वर्ष के पश्चात ही है l खुशी तो बहुत थी किन्तु कहीं न कहीं मन भयाक्रांत हो उठा कि कहीं मेरी कला या इस बालक को कुछ होगा तो नहीं?
पंडितों ने अपने हिसाब से कुछ उपाय तथा पूजा इत्यादि बताया l अखण्ड प्रताप ने समस्त पूजा तथा सभी उपायों को पूर्ण किया l
आज बूढ़ी माँ भी बहुत प्रसन्न थी आज उसकी वर्षों की साधना पूर्ण हुई, सुबह से कई बार उसने बड़े ठाकुर को याद किया और कई बार रोई, मन में बुदबुदाते हुए बोली भगवान एक वर्ष रुक जाते तो आप भी अपने दोनों पोतों को देख लेते,,,,,
जबकि दिखाई न देने के कारण वह बेचारी स्वयं भी न देख पाई थी, "होनी को कौन टाल सकता है" l धीरे धीरे दोनों बालक बड़े होने लगे एक अत्यंत आकर्षक तथा सबका मन नोह लेने वाला,,,
दूसरा किसी की गोद में न जाने वाला, उसको न जाने क्या दुख था कोई उसे चुप न करा पाता समय के साथ दोनों बालकों की रुचि तथा कार्य विपरीत थे किन्तु दोनों की आपस में कभी लड़ाई न होती और न प्रतिस्पर्धा थी, लड़ाई वहाँ होती है जहाँ प्रतिस्पर्धा होती है ।
जब प्रतिस्पर्धा नहीं तो लड़ाई का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि ये प्रतिस्पर्धाएँ ही हैं जो व्यक्ति की उन्नति तथा अवनति में सहायक होती हैं ।
l यूँ तो गाँव में कई विद्यालय थे किन्तु एक विद्यालय अँग्रेजी माध्यम का भी था, अखण्ड प्रताप ने दोनों बालकों को ले जाकर उसी विद्यालय में दाखिला दिला दिया lमास्टर जी बोले ठाकुर साहब मुझे बुला लिया होता इस पर वह हँस कर बोले कि प्यासा कुएं के पास जाता है कुआँ नहीं, मास्टर साहब ने कहा यह तो आपका बड़प्पन है l
दोनों बालक विद्यालय जाने लगे किन्तु जो जिस माहौल में रहता है उसका असर उसके मन मस्तिष्क पर भी पड़ता है l रुद्र प्रताप को यह बात खटकी कि मैं व्यापार के सिलसिले में विदेशों में जाता हूँ बड़े बड़े लोगों में उठाना बैठना है बड़ी बड़ी पार्टियों में सम्मिलित होता हूँ
और हमारे घर के बच्चे गाँव के स्कूल में पढ़ें, अँग्रेजी माध्यम है तो क्या हुआ है तो गाँव का ही स्कूल l एक दिन बाहर से आने के बाद रूद्र प्रताप ने कहा भैया आप लोग अब यहाँ नहीं रहेंगे हम सब शहर जाकर रहेंगे l
यहाँ क्या बुराई है ? अखण्ड प्रताप ने कहा l भैया यहाँ पढ़ाई के लिए विद्यालय नहीं हैं, आश्चर्य से कलवाती बोली आप भी तो इसी विद्यालय से पढे थे,,,
, भाभी हमारी बात और थी अब शिक्षा का स्तर बहुत ही उच्च हो गया है यह सुनकर बूढ़ी माँ बोली अच्छा तो क्या हवेली में ताला बंद रहेगा मेरे जीते जी तो ऐसा नहीं होगा,
तुम सबको जाना है तो जाओ मैं अकेली ही अपनी हवेली की देखरेख कर लूँगी l रुद्र प्रताप ने कहा अम्मा तुम समझती क्यों नहीं?
इस हवेली के चक्कर में हम सब यहीं रहे, बच्चों का भविष्य खराब होने दें l अम्मा बोली हाँ मैंने तुम लोगों का भविष्य खराब कर दिया तुम्हें गाँव के स्कूल में पढाकर l
अम्मा हमारी बात और थी अब जमाना बदल गया है, अम्मा बोली जमाना नहीं तू बदल गया है तुझे जहाँ जाना है जा अखण्ड कहीं नहीं जाएगा ,,,
lकुछ देर के लिए सन्नाटा पसरा रहा , फिर रुद्र प्रताप ने कहा भैया आप क्या कहते हैं। मैं क्या कहूं, तुम सुनंदा और अरुण को लेकर जाओ , हमलोग यही रहेंगे केवल अरुण कोॽ
बात तो दोनों बच्चों के भविष्य की है। फिर अरुण अकेले क्यों ॽ अखण्ड प्रताप ने कलावती की ओर देखा फिर कहा अरुण एवं अंश दोनों बच्चों को लेते जाओ मैं और तुम्हारी भाभी अम्मा के पास रहेंगे,
वह किसी की सुनेंगी नहीं वैसे ही इस हवेली में पिता जी की यादें हैं अम्मा जाने के लिए मानेंगी नहीं, रुद्र प्रताप को यह फैसला उचित ही लगा कम से कम बच्चे प्रतिस्पर्धा के इस युग में पिछड़े तो नहीं रहेंगे l
सुनन्दा की ओर देखते हुए अम्मा बोली जा जाने की तैयारी कर ले वह बहुत जिद्दी है मानेगा नहीं, दोनों बच्चों को समान स्नेह देना,,
lदूसरे रोज सवेरे ही सब को शहर जाना था अब अखण्ड एवं कलावती का हृदय बरबस व्याकुल हो रहा था ऐसा नहीं था कि उनको सुनन्दा की परवरिश पर संदेह था किन्तु बड़ी मन्नतों एवं चाहतों के बाद पाई हुई संतान उन्हें अपने प्राणों से प्रिय थी
अतः उसके भविष्य के लिए उसे भेजने को तैयार हो गए l अखण्ड ने कहा कला तुम चिंता मत करो बच्चे हर हफ्ते आते रहेंगे l किन्तु सच तो यह है कि वह स्वयं अपने आप को दिलासा देने की कोशिश कर रहे थे l
अगली सुबह जल्दी जल्दी तैयार होकर सभी बैठक में एकत्र हुए अम्मा की तो अभी अभी आँख लगी थी, अचानक उठी बोली जाने का समय हो गया क्या ?
बच्चे दौड़कर अम्मा से चिपक गए और सभी को प्रणाम कर रुद्र प्रताप और सुनन्दा के साथ चल दिये किसी के मुख से एक शब्द भी नहीं फूटा अखण्ड प्रताप गाँव के बाहर तक छोडने भी गए पर मौन ही रहे l
जब घर लौटे तो फूट फूट कर रोती अपनी पत्नी को समझने लगे, देखो हम भी जा सकते थे किन्तु बूढ़ी माँ का कौन ख्याल रखता तुम तो जानती हो कि वह जिद पर अड़ी थी l
उधर बच्चे ट्रेन में बैठ कर खुश थे उन्हे शायद भविष्य का बोध नहीं था सुनन्दा अपने परिवार वालों की यादों में कहीं खो जाती है, रुद्र प्रताप शहर में तुम्हें इस प्रकार का पहनावा छोड़ना पड़ेगा इतने भारी गहने जेवर नहीं चलेंगे यह सुनकर सुनन्दा की तंद्रा टूटी और हाँ में सिर हिला दिया lक्रमश:,,,,