ऐसा नहीं था , कि सुनंदा शहरी वातावरण से अछूती रही हो किन्तु स्वयं इस माहौल में उसकी पहली शुरुआत थी
"।एक अजीब" सी उमंग और उत्साह लिए ट्रेन से उतरती है। उतरते ही,
,,,एक बहुत बड़ी गाड़ी उन्हें पिकअप करने आयी बच्चे शहर की ऊंची इमारतें, भीड़ भाड़,चहल पहल देखकर कुछ असहज महसूस कर रहे थे,,
किन्तु यह नयापन उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था। यह उनके लिए किसी मेले से कम न था,।
इधर कलावती ने अखण्ड प्रताप से कहा कि जरा रुद्र को फोन करके पूछिये अब तक तो वो लोग पहुँच ही गए होंगे, अखण्ड प्रताप बोले अभी रुको रास्ते में होंगे या थके हारे आराम कर रहे होंगे।
, शाम को बात करता हूँ ,किन्तु एक माँ का हृदय अपने बच्चों के लिए व्याकुल था, उसने कहा अभी करिए रास्ते में हों या आराम कर रहे हों फोन उठाकर हाल तो बता ही देंगे
l अखण्ड प्रताप ने रुद्र को फोन मिलाया रुद्र ने कहा भैया प्रणाम हम घर जा रहे हैं पहुँच कर बात करते हैं l कुछ देर पश्चात गाड़ी एक बंगले के दरवाजे पर रुकती है l
ड्राईवर तुरंत गाड़ी का दरवाजा खोलता है, सभी बाहर आते हैं हरी भरी बहुत ही बड़ी सुंदर लॉन जो कि करीने से सजी संवरी प्रतीत होती है ।
उसके चारों ओर रंग बिरंगे फूल जगह-जगह लाइटों से सजे फव्वारे चारों तरफ एक वैभव प्रदर्शित करता आलीशान बँगला l क्या देख रही हो?
? रुद्र से सुनन्दा से पूछा l सुनन्दा को लगा जैसे किसी सपने से उठ गई हो, कहा यह हमारा है ?
हाँ भाई तुम्हारा ही है यह सब कुछ और मैं भी, वह सकुचाई l सभी घर के अंदर प्रवेश करते हैं, ड्राइंग रूम के एक आलीशान सोफे पर बैठ जाते हैं।
सभी नौकर नौकरानियाँ दौड़कर आते हैं तथा अपनी मालकिन को प्रणाम करते हैं।
, कोई सामान गाड़ी से बाहर निकालने लगता है, कोई जलपान के प्रबंध में लग जाता है कुछ चापलूस नौकर सुनन्दा को अपना परिचय देते हैं ।
और उसके आदेश के पालन के लिए खड़े रहते हैं l सुनन्दा पूछती है बाथरूम किधर है ? मैं नहा धोकर फ्रेश होकर आती हूँ l
रुद्र प्रताप फोन पर व्यस्त हो गए ऐसा नहीं था कि सुनन्दा बड़ी हवेली में न रही हो किन्तु यह सब उसके लिए अद्भुत ही था l नाश्ते की टेबल सजी थी बच्चे तथा सुनन्दा नहा धोकर आते हैं।
सुनन्दा बच्चों को खाने का तरीका बताते हुए कहती है ऐसे चम्मच एवं कांटे को पकड़ कर तुम दोनों भाई खाओ l रुद्र प्रताप बहुत ही जल्दी में थे उनकी कोई व्यापारिक मीटिंग थी जल्दी ही उन्होने नाश्ता किया और चले गए l
अब सुनन्दा पूरे घर में घूम कर कमरे, हाल, बालकनी, बरामदे आदि को देखती हुई ऊपर कमरे में आती है, मदन इस घर का सबसे पुराना नौकर था उसके साथ पूरा बँगला घूम कर देख लिया और मन ही मन यह निश्चय कर रही कि किस कमरे में बच्चे रहेंगे।
और किसमे वह स्वयं रहेगी l बच्चों का कमरा उसने अपने समीप ही रखा, उधर बच्चे जिमख़ाना पहुँच गए बच्चों ने स्पोर्ट्स के इतने सामान पहले कभी नहीं देखे थे बड़ी उत्सुकता से जिमखाने का एक एक सामान देखने लगे बड़ी बड़ी आधुनिक कसरत की मशीनें इत्यादि l
आज सुनन्दा को अपनी किस्मत पर कुछ घमण्ड सा होने लगा किन्तु प्रकृति अपना संतुलन बनाए रखती है l अब जब वह रुद्र प्रताप के इतने समीप थी, फिर भी उनकी व्यस्तता के कारण उनके बीच दूरी बनी हुई थी।
वह भी चाहती थी कि रुद्र मेरे और बच्चों के पास रहें, किन्तु व्यस्तता के कारण यह संभव न हो पाता l किसी किसी दिन देर रात रुद्र प्रताप आते और सूरज की पौ फटने के पूर्व ही चले जाते
, सब कुछ मिलने के बाद भी यहीं उसका मन कचोट कर रह जाता और वह सोंचती रुद्र जब गाँव आते थे तो कम से कम महीने में दो तीन दिन का समय मेरे और परिवार वालों के साथ ही बिताते अपने व्यापार एवं दोस्तों की बातें बताते जिसके कारण एक जुड़ाव महसूस होता,
व्यक्ति शारीरिक सम्बन्धों से नहीं जुडता क्योंकि वह तो क्षणिक सुख प्रदान करते हैं वह मानसिक तथा आत्मिक तृप्ति की चाहत रखती है जो चिर स्थायी होते हैं l ऐसा नहीं था कि रुद्र प्रताप समय बिलकुल न देते थे किन्तु अब उसका स्वरूप और मानक बदल गया था l
अब वह सुनन्दा और बच्चों को लेकर बिजनेस पार्टियों में जाते क्लबों में सुनन्दा के साथ यदा कदा जाया करते किन्तु पास बैठकर बातें करने का उनके पास समय न होता चाह कर भी वो ऐसा नहीं कर पाते l
बच्चों का एडमीशन एक बहुत ही प्रतिष्ठित विद्यालय में हो गया अरुणिम एवं अंश में डेढ़ साल का अंतर था, इसलिए दोनों की कक्षाएं भी अलग-अलग थी l
अंश स्कूल कम ही जा पाता अक्सर उसकी तबीयत खराब हो जाती कभी कभी अचानक तेज सांस चलने लगती तो कभी बुखार आ जाता इस कारण उसका शरीर भी कमजोर ही था l
साँवला सा दुबला पतला बच्चा उसकी तुलना में अरुण गोरा चिट्टा हृष्ट पुष्ट शरीर सुंदर एवं आकर्षक l आस पड़ोस के बच्चों से दोनों भाइयों ने मित्रवत संबंध बना लिए उनके साथ शाम को खेलना उनकी दिनचर्या थी,
वो बात अलग थी कि कुछ आस पास की जासूसी प्रवृत्ति की महिलाओं ने जाने कैसे जान लिया था कि अंश इनका नहीं इनके भाई का बेटा है l
वे उसकी दुर्बल काया पर बेचारगी जताने में पीछे नहीं हटती कहती अपने माँ बाप के पास होता तो क्या तब भी इतना कमजोर होता ?
अपना, अपना ही होता है जरा देखो तो दोनों के शरीर में कितना अंतर है, हाथी के दाँत दिखाने के और तथा खाने के और होते हैं।
पर सुनन्दा के सामने किसी की कुछ कहने की हिम्मत न पड़ती l छोटा तथा बीमार रहने के कारण सुनन्दा अंश को स्नेह भी अधिक करती थी ।
तो भी इन जासूस महिलाओं को चैन न आता कहती देखो उसको आत्मनिर्भर और मजबूत तो बनने ही नहीं दे रही है l कुछ ही समय पश्चात दोनों बालक अपनी कक्षाओं में अव्वल दर्जे के विद्यार्थी बन गए l रुद्र तथा सुनन्दा को दोनों बालक मम्मी पापा कहकर पुकारते थे l