कुछ चीजें पूर्व निर्धारित होती है , जिसमें व्यक्ति का जन्म और उसकी मृत्यु विज्ञान युग युगान्तर तक चाहे जितना विकसित हो जाए,,,
किन्तु कुछ चीजों के कारण वह हार कर बैठ जाता है। कहते हैं जन्म तथा मृत्यु के समय दु़सह दुःख होता है किन्तु उसे वह स्वयं महसूस कर सकता है।
बता नहीं सकता यही उसकी व्यथा है l अचानक फोन की घंटी बजी नौकर ने फोन उठाया और सुनन्दा को आवाज दी मैडम आपका फोन है ।
सुनन्दा ने रिसीवर हाथ में लिया उधर फोन पर कलावती थी, प्रणाम दीदी बहुत दिन हो गए हम लोगों की याद नहीं आती सुनन्दा कुछ बोलती उसके पहले कलावती बोली 'तुम फिर से चाची बनने वाली हो',,,
यह सुनकर वह चहक पड़ी 'अरे सच मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है' l शाम को जब रुद्र प्रताप आए तो सुनंदा ने उनसे घर जाने की जिद की कहा
" भाभी एक और बच्चे को जन्म देने वाली हैं तो मुझे उनके पास रहना चाहिए, रुद्र ने कहा "हाँ चली जाना किन्तु ज्यादा दिनों तक रुक नहीं सकती बच्चों की परीक्षा नजदीक है"।
हाँ ठीक है कुछ दिन तो साथ रहेंगे सुनन्दा ने कहा l सुनन्दा अत्यंत खुश थी मन ही मन सोच रही थी चलो अच्छा ही हुआ,
एक बार यहाँ से जाएंगे तो बच्चे के जन्म के बाद ही आना होगा कोई ऐसे थोड़े न आने देगा l
कलावती अत्यंत दुर्बल हो चली थी दिन भर नौकरों के साथ लगी रहती रात में थक कर सो जाती, अखंड प्रताप उसका मुह निहारते हुए बोले, सो गई क्या ?
एक सोते हुए इंसान को हिला कर पूछना कि सो गई क्या, कहाँ की बुद्धिमानी है, अरे माफ करना मुझे लगा तुम जग रही हो l
बताइये कुछ काम था, सोच रहा था कल डॉक्टर को बुला कर तुम्हें दिखा दूँ, बस इतनी सी बात के लिए आपने मुझे जगा दिया काल डॉक्टर को बुला लीजिएगा l
कुछ माह सामान्य तरीके से बीत गए जैसे जैसे प्रसव का समय नजदीक आता गया उसकी समस्याएँ भी बढ़ती जाती l उधर बच्चों की वार्षिक परीक्षा समाप्त हो गई।
सुनन्दा हवेली आने की तैयारी करने लगी, रुद्र से बोली हम घर कब चलेंगे ? रुद्र ने कहा मुझे तो व्यापार के सिलसिले में बाहर जाना है ।
मैं तो नहीं जा पाऊँगा तुम बच्चों को लेकर चली जाना, अकेली चली तो जाओगी नहीं तो मदन को लेकर चली जाना, नहीं मैं मदन के साथ नहीं जाऊँगी, जब देखो तब मदन के साथ चली जाना जैसे मैं अकेले जा नहीं सकती, ठीक है।
तुम अकेली बच्चों के साथ चली जाना l तभी फोन की घंटी बजी, इतनी रात को किसका फोन है रुद्र न कहा, सुनन्दा बोली मैं देखती हूँ,।
फोन पर दूसरी ओर अखंड प्रताप थे, सुनन्दा ने आवाज पहचानते हुए कहा अरे भैया प्रणाम इतनी रात को? हाँ बात ही कुछ ऐसी थी कलावती को अस्पताल में भर्ती कराकर आया हूँ,पर क्यों ?।
सुनन्दा बोली, क्योंकि डॉक्टर ने तुरंत ऑपरेशन करने का फैसला किया है, मैं अस्पताल में हूँ, अम्मा हवेली में अकेली हैं तुम लोग सुबह जल्दी चले आना रुद्र ठीक है ?
हाँ भैया कहकर सुनन्दा ने फोन रख दिया, आकर देखा तो घड़ी में साढ़े ग्यारह बज चुके थे सारी बात उसने रुद्र को बताई और पूछा इस समय कोई ट्रेन है क्या ?
रुद्र ने कहा इस समय मिलना मुश्किल है हाँ सुबह तीन बजे उठ सको तो एक ट्रेन जाती है, मैं उठ जाऊँगी l
रुद्र ने नौकर को बुला कर टिकट और सुबह के लिए ड्राईवर की व्यवस्था की l आज रात किसी की आँखों में नींद न थी कारण सबका अलग था ।
किन्तु लग रहा था की जो बच्चा आने वाला है सब उसके इंतज़ार में पलकें बिछाए हैं l रात्रि के तीसरे पहर सन्नाटे को चीरती हुई कलावती की ज़ोर की चीख सभी डॉक्टर और नर्स दौड़े तुरंत ऑपरेशन थिएटर की ओर ले गए घबराहट के मारे अखंड प्रताप नंगे पाँव ही पीछे हो लिए एक घंटे बाद ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला अखंड प्रताप डरी हुई नजरों से डॉक्टर को देखते हुए कहते हैं,।
डॉक्टर साहब सब ठीक तो है ना, मुस्कुराते हुए डॉक्टर बोले भगवान से लड़कर आपकी बेटी आई है, ।
इस पर उनका मुख प्रसन्नता से भर गया जी तो किया कि अभी फोन करके सबको बता दें किन्तु कुछ सोंचकर रुक गए कलावती के समीप पहुंचे बेसुध वह पड़ी थी l।
नन्ही सी कोमल कली आंखे भींचकर दोनों हाथों से मुट्ठी बांधे रो रही थी, अखंड उसके समीप आकर बोले यह रो क्यों रही है ?
नर्स बोली भूखी है अभी अपनी माँ का दूध पिएगी तो चुप हो जाएगी l उधर सुनन्दा ने सारी तैयारी कर ली थी गाड़ी समय पर आई और बच्चों को लेकर गाँव की ओर निकल पड़ी l
रास्ते में बच्चों ने कहा मम्मी हम अचानक इतनी रात में क्यों जा रहे हैं, दिन की गाड़ी से भी तो जा सकते थे, सुनन्दा बोली हाँ जा सकते थे परन्तु तुम्हारी माँ अस्पताल में भर्ती है।
इसलिए चलना पड़ा l क्या हुआ माँ को ? अरुण ने पूछा, यह तो वहाँ जाकर ही पता चलेगा, ट्रेन पर थोड़ी देर बाद सब की आँख लग गई l
उधर कलावती ने आंखे खोली और अपनी संतान को देख और प्यार से माथा सहलाते हुए बोली ठाकुर साहब मेरी चाहत पूरी हुई, अखंड प्रताप ने कहा तुम्हारी चाहत तुमने कभी बताया तो नहीं हर चीज बताई नहीं जाती मैं चाहती थी।
मेरी एक पुत्री हो जो मेरी परछाईं बने किन्तु इस घर की रीतियों से डरती थी, कला तुम क्यों पुरानी बातों को ले बैठी, पुरानी बात ????
एक बेटी को सिर्फ इसलिए सजा मिली क्योंकि वह इस खानदान का हिस्सा थी, हिस्सा नही इज्जत बोलो और इन सब बातों को छोड़ो,
अखंड प्रताप ने कहा l इतनी आसानी से कैसे छोड़ सकते हैं आप इस बात को, अखंड ने कहा जैसे मैंने छोड़ा वैसे ही अब तुम अपना मुँह बंद रखो कलावती चुप तो हो गई,,,
किन्तु उसके मन में कहीं न कहीं वह यादें ताज हो गई, तभी अखंड प्रताप बोले मैं सुनन्दा और बच्चों को लेने स्टेशन जा रहा हूँ, सुनन्दा और बच्चों को लेकर अखंड प्रताप हवेली में प्रवेश करते हैं l