क्या मान मर्यादाए एवं सामाजिक प्रतिष्ठा एक दिमागी सोच का नतीजा होती है? जो पीढ़ी दर पीढ़ी इस विरासत को आगे ले जाती है या फिर सचमुच यह व्यक्ति के आत्मसम्मान को बढ़ाती हैं, ?एक ऐसा आत्मसम्मान जिसमें सामाजिक खोखला पन रहता है, कभी कभी तो दो अलग विचारो वाले व्यक्तियों को इन्हीं सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते एक साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताने को मजबूर कर देते हैं।
तो क्या उनके विचार बदल जाते हैं ?या फिर इसी प्रतिष्ठा का हवाला देकर वो समझौता कर लेते हैं,? और अपनी मान मर्यादाओं को बचा लेते हैं,
किन्तु समझौते के बोझ तले दब जाते हैं और जो इन सब से अलग होते हैं वह कहानी या इतिहास बन कर रह जाते हैं, क्या राजीव और अवनी की प्रेम कथा किसी इतिहास या फिर कहानी का रूप लेगी या फिर उनके साथ न्याय होगा आपकी अपनी क्या राय है, ॽॽ
क्योंकि इस संदर्भ में अधिकतर जुबानें मौन हो जाती हैं, और जो खुलकर सामने आती है उन्हें भी लोग शक के घेरे में देखते हैं,
ठाकुर साहब भरी हुई आंखों से अखंड प्रताप की ओर देखते हैं अखंड प्रताप अपनी नजरें नीचे कर लेते हैं, और पूछते हैं बाबा करना क्या है ?
ठाकुर साहब की आंखों से आंसू बह जाते हैं और वह चुपचाप अपने बिस्तर पर बैठ जाते हैं ठकुराइन उनके समीप आकर उनके कंधे पर हाथ रखकर उनको दिलासा देने लगती हैं।
उनकी दिलासा पाकर ठाकुर साहब एक छोटे बच्चे की तरह रोने लगते हैं, क्या यही आधुनिकता है, जिसे लोग कहते हैं कि किस युग में जी रहे हो जमाने के साथ अपनी सोच बदलो??
अपनी सन्तान के लिए सब कुछ करना हर मां बाप का फर्ज होता है , किन्तु एक सन्तान का अपने माता पिता के प्रति कोई फ़र्ज़ होता है कि नहीं,???
अच्छा लालन पालन अच्छी शिक्षा अच्छे संस्कार के बावजूद क्या वह जीवन साथी का चुनाव गलत करेंगे क्या इस अधिकार से माता पिता को वंचित कर देना चाहिए??
आप अपनी राय भी हमें बताएं, ठाकुर साहब खुद को संभालने की कोशिश करते रहते हैं अखंड प्रताप की भी आंखें भर आती हैं बैठक में एकदम सन्नाटा पसर जाता है ।
कोई किसी से कुछ कहने की स्थिति में नहीं रहता अखंड प्रताप चुपचाप बैठक से बाहर चले जाते हैं ठाकुर साहब निढाल होकर बिस्तर पर गिर जाते हैं। और ठकुराइन ठाकुर साहब को सांत्वना देती हैं।
इधर राजीव और अवनी को तो एक दूसरे का ऐसा नशा सवार होने लगता है कि अब वो साथ जीने मरने की कसमें खाने लगते हैं,
अवनी तो राजीव के प्यार में एकदम बावरी बनी जाती है उसे तो कभी कभार अपनी सुध भी न रहती जब हम किसी से इस हद तक प्रेम करते हैं तो हमारे दिल के तार अपने आप उसके साथ जुड़ जाते हैं,
वही हमारी तड़प और हमारे दर्द को एक दूसरे से जोड़ देते है। इसीलिए व्यक्ति एक दूसरे के दर्द को महसूस करने लगता है एक दूसरे की तड़प को समझने लगता है ।
इसी को प्यार का नशा कहते हैं प्रेम सीमा और मर्यादाओं को तोड़ने को आतुर होता है, क्योंकि सबसे पहले वह लोक लाज को छोड़ देता है।
, उसके पास हर एक चीज का जवाब होता है और उसकी तर्कशक्ति इतनी तेज होती है किसी से भी तर्क करके करने में जीत सकता है, रूद्र प्रताप ठाकुर साहब और अखंड प्रताप के जवाब का इंतजार करते रहते हैं।
, दिन भर ठाकुर साहब अपने कमरे में चुपचाप पड़े रहते हैं ना कुछ खाते हैं ना पीते हैं, नौकर दो बार खाना ला कर वापस ले जाते हैं आज तो ठकुराइन ने भी कुछ नहीं खाया उन दोनों के साथ अखंड के गले से निवाला नीचे नहीं उतरा कलावती इस विषय में ज्यादा कुछ नहीं जानती थी।
इसलिए उसके मन में भी यह व्याकुलता थी कि आखिर क्या बात है ?जो कोई मुझे बता नहीं रहा है, कुछ तो हुआ है,? शाम के समय अखंड प्रताप मां और बाबा के लिए कुछ खाने की चीजें लेकर जाते हैं बैठक में एक दम अंधेरा छाया रहता है।
सारी लाइट बंद रहती है ठाकुर साहब बिस्तर पर लेटे रहते हैं ठकुराइन भी उनके सिर के पास बैठी रहती हैं अखंड प्रताप आते ही कमरे की लाइट ऑन करते हैं और ठाकुर साहब से कहते हैं, ।
बाबा लीजिए कुछ खा लीजिए आपने सुबह से कुछ भी नहीं खाया है और मैंने भी कुछ नहीं खाया ठाकुर साहब बोले मुझे भूख नहीं है ।
अखंड प्रताप ठाकुर साहब के समीप आए और उन्हें हाथों का सहारा देकर बिस्तर से उठाया कुछ खाने की जिद करने लगे बहुत जिद करने के बाद ठाकुर साहब ने बिस्किट का एक टुकड़ा उठाया और अपने मुंह में डाल लिया और ऐसे ही पानी गट गट करके पी गए,,,,
फिर अखंड ने कहां मां तुम भी कुछ खा लो और जबरदस्ती उन्हें भी खिलाकर पानी पिलाया अखंड बोले बाबा आप परेशान ना हो मैं और रुद्र मिलकर अवनी और राजीव को समझाएंगे वह हमारी बात जरूर समझेंगे ?
ठाकुर साहब अखंड की बात सुनकर मुस्कुराने लगे उन्हें मुस्कुराता देख अखंड बोले क्या हुआ बाबा ?ठाकुर साहब ने कहा कि भले ही तुम अपनी बहन के विषय में अधिक कुछ न जानते हो लेकिन मैं अपनी बेटी को जानता हूं।
वह बहुत जिद्दी है वह तुम्हारी एक बात ना सुनेगी और जिस राजीव की बात तुम कर रहे हो अब वह राजीव पहले वाला राजीव नहीं रहा उसके ऊपर प्रेम का भूत सवार है।
जो ऐसे समझाने पर नहीं उतरेगा उसके लिए तो कोई दूसरा ही तरीका अपनाना पड़ेगा जो तुम लोगों के बस का नहीं है बात ज्यादा फैले इसके पहले मुझे ही कोई ना कोई ठोस कदम उठाना पड़ेगा।
और मैं इसके लिए तैयार हूं ,अखंड प्रताप ठाकुर साहब की बातें चुपचाप सुनते रहते हैं और अपने मन में सोचते हैं कि अगर दोनों को समझाया नहीं जा सकता तो फिर बाबा कैसे दोनों को राजी करेंगे??
क्या दोनों का बाबा विवाह करेंगे किंतु हवेली की मर्यादा के हिसाब से यह उचित तो नहीं है फिर बाबा ऐसा क्यों करेंगे?? लेकिन अखंड प्रताप की ठाकुर साहब से आगे कुछ पूछने की हिम्मत नहीं पड़ती और वह ठाकुर साहब के बोलने का इंतजार करते हैं।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए प्रतिउत्तर ॽॽॽ 🙏 क्रमशः।।।