कभी क्या श्रमिक-अश्रु तुमने बहाया?
पौरुष कहाँ उनके जैसा दिखाया ll
बहे स्वेद पानी के जैसा धरा पर l
श्रमिक बन जले और कितना यहाँ पर l
सूरज की लाली उठे चक्षु खोले,
धरा से गगन आज कुछ भी न बोले l
उठे हाथ उनके, क्या तुमने उठाया?
कभी क्या श्रमिक-अश्रु तुमने बहाया?
पत्थर से ईंटो की, अनगिन कहानी l
तराशी गयी, स्वप्न की हर निशानी ll
उठे हाथ तो, बन गए आशियाने l
कहाँ थे पले, ये तो कोई न जाने ll
पसीने से उनका तो जीवन नहाया l
कभी क्या श्रमिक-अश्रु तुमने बहाया?
कल की न चिंता अभी का सफर है l
चलेंगे उधर को जिधर न डगर है ll
बनाएंगे हम जो कभी न बना है l
रहें न रहें विश्व फिर भी रहा है ll
बने पथ नहीं किंतु उसने बनाया l
कभी क्या श्रमिक-अश्रु तुमने बहाया?
✍️स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'
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सेक्टर -1 जिला - सीतापुर (उत्तर प्रदेश )
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