यह धारावाहिक प्यार की अनोखी दास्तान है,,, इस में जीवन के सभी रंग दिखाने का प्रयत्न कर रही हूं,,, इस धारावाहिक की पूरी कहानी मेरी मौलिक रचना है,,,किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से इस कहानी का कोई लेना देना नहीं,,, इस कहानी के प्रकाशन संबंधी सभी अधिकार मेरे हैं इसके साथ छेड़छाड़ करने का प्रयत्न न किया जाए,,,।
और हां साथियों जैसा की आपको मालूम है कि मुझे पुराने फिल्मी गानों का बहुत शौक़ है मेरे धारावाहिक में जगह-जगह आपको गानों की कुछ पंक्तियां अवश्य दिखाई देंगी जिसके लिए मैं गायक और राइटर्स का आभार व्यक्त करती हूं,,, मेरी शेरो शायरी भी आपको बीच-बीच में अवश्य देखने को मिलेगी,,, प्लीज अपना साथ बनाए रखें आपकी समीक्षाएं मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं धन्यवाद दोस्तों,,,,
हमें मिलना ही था,,,,,,,ऐपीसोड-1
चारों तरफ घटा घिरी हुई थी ठंडी ठंडी हवा का झोंका मन को लुभा रहा था,,, ऊपर से पड़ती रिमझिम बारिश,, रह रह के आसमान में चमकती बिजली दिल में एक अजीब सी बेचैनी पैदा कर रही थी,,, ।
मिट्टी से उठती हुई सोंधी खुशबू,, दिल को लुभा रही थी नूरी पगडंडी पर दौड़ते हुए बारिश का मज़ा ले रही थी,,,, बीच-बीच में भेड़ों के झुंड में घुसकर उनके साथ अठखेलियां भी कर रही थी,,,,, ।
कभी छोटे से भेड़ या बकरी के बच्चे को गोद में उठाकर ख़ुशी से घूमने लगती,,, कभी उनके पीछे-पीछे भागी चली जाती,,, पास में पड़ी हुई पतली सी डंडी हाथ में उठाए,,, कभी इस भेड़ के मार देती तो कभी किसी बकरी के मार कर उनको दौड़ा देती,,,।
ऐसा लग रहा था,,, जैसे भेड़ बकरियां चराना उसका पुश्तैनी काम हो,,,, उनके साथ खेलते हुए वह एक छोटा बच्चा बन गई है,,, ।
बारिश की हल्की हल्की बूंदे अब तेज़ हो गई थीं,, मगर नूरी को इसकी ज़रा भी फिक्र नहीं थी वह तो बस बारिश में भीग भीग कर गोल गोल घूम रही थी,,, ।
जब भी तेज हवा का झोंका आता उसके बालों को चेहरे पर बिखरा देता,,, और वह उनको समेटते हुए,, कसमसा कर बोलती यह बारिश भी ना,,, क्या रंग लाने वाली है,,,।
वह पूरी तरह से बारिश में तरबतर हो चुकी थी हल्की हल्की ठंडक भी उसको महसूस दे रही थी,,,,,।
और वह मस्त मगन मौसम का मज़ा लेते हुए जोर-जोर से गा रही थी ,,, किसी की भी परवाह किए बिना वैसे भी हरियाली पेड़ पौधों,, और भेड़ बकरियों के सिवा सड़क पर दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था,,, नूरी अपनी सुरीली आवाज में बेफिक्र हो कर गाती गुनगुनाती भागी चली जा रही थी,,,
सुन री पवन,, पवन पुरवैया
मै हूँ अकेली अलबेली तू सहेली मेरी
बन जा सथिया,,,,।
सुन री पवन पवन पुरवैया,,,
मै हूँ अकेली अलबेली,,,,
तू सहेली मेरी बन जा साथिया,,,।
और भागते भागते अपने गीले दुपट्टे का पानी निचोड़ ने के लिए एक पेड़ के नीचे रूकती है,,, तभी उसकी नज़र सामने बैठे हुए सनी पर पड़ती है,,,,,, जो लगातार उस पर ही नजर जमाए हुए था,,, ।
नूरी,,, हाय अल्लाह तू यहां भी आ गया ,,,,, तूने कहीं मेरा गाना तो नहीं सुन लिया,,, सनी उसके पास आते हुए कहता है,,, ना ना पगली मैंने तो आपने कान बंद कर रखे हैं बस आंखें खुली हैं जो सिर्फ़ तुझे और बस तुझे ही देख रही हैं,,, ।
इनको भी बंद कर लेता तो अच्छा था,,, कहकर नूरी ज़ोर ज़ोर से हंसने लगती है,,, मगर सनी अभी भी उसकी तरफ़ देखे जा रहा था,,,, और पास आते हुए बोला यह कॉलेज नहीं है जहां तू मेरी शिकायत सर से लगा देती है,,, और वह मुझे डांट पिलाते हैं लंबी चौड़ी,,,।
ठीक है ठीक है कल कॉलेज में देखना तेरी कैसी ख़बर लेती हूं,,, दोस्तों के साथ तुझे जमकर ना पिटवाया तो देखना,,,,, पहले तो कॉलेज में ही मेरा रास्ता रोकता था और अब यहां भी आ गया,,,, तेरा कल कुछ इलाज करना ही पड़ेगा,,,।
सनी,,,अरे कल की कल देखी जाएगी आ थोड़ी देर मेरे पास तो बैठ,,, मरीज ए इश्क हूं,,,, कब से तेरी राह देख रहा हूं,,, कितना प्यार करता हूं मैं तुझे,,, और तू है कि हर वक़्त मुझसे झगड़ती ही रहती है,,,,।
देख कितना अच्छा मौसम है आज,,, दोनों मिलकर मस्ती करते हैं,,, बारिश में भीगना मुझे भी बहुत पसंद है और वह नूरी का हाथ पकड़कर बीच सड़क पर ले आता है,,,।
नूरी,,,,,अरे अरे क्या कर रहा है तू मेरा हाथ तो छोड़,,, तभी सारा की आवाज़ आती है,,, कब तक पड़ी सोती रहेगी कॉलेज नहीं जाना है क्या,,,?
रोज़ देर में उठती है और मुझे भी देर करवाती है इससे पहले अम्मी जान दनदनाती हुई आ जाए,,,, जल्दी से उठ कर खड़ी हो जा,,,, ।
नूरी तुझे भी अभी आना था कमबख़्त कहीं की,,,, सारा मज़ा ख़राब कर दिया,,, इतना अच्छा ख़्वाब देख रही थी बीच में ही आकर जगा दिया,,, ।
सारा शुक्र मना कि मैं जगाने आ गई,,,, वरना अम्मी जान आ रही थीं बेलन लेकर ,,,, अम्मी जान का नाम सुनते ही नूरी एकदम से बिस्तर छोड़ कर खड़ी हो गई ,,, अरे अम्मी जान किसी हिटलर से कम नहीं है ,,,सुबह-सुबह उठाकर खड़ा कर देती हैं,,, ।
तभी अम्मीजान की आवाज़ आती है,,, कहां मर गई दोनों जल्दी से नाश्ता करो कॉलेज की बस आने वाली है,,, सारा और नूरी दोनो जल्दी-जल्दी नाश्ता करती हैं और अपना अपना बैग लेकर गाड़ी की तरफ़ दौड़ती हैं,,,।
सनी भी उसी गाड़ी से कॉलेज जाता है,,, वह नूरी को देखता है तो उसी के ख़्यालों में हमेशा की तरहां गुम हो जाता है,,, और नूरी को रात वाली ख़्वाब याद आ जाती है,,,।
आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिए धारावाहिक,, ,,, हमें मिलना ही था
मौलिक रचना सय्यदा खा़तून✍️
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