समाज में प्रत्येक वर्ग को आगे बढ़ने का अवसर मिलना चाहिए। नारी सषक्तिकरण महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। आज जहां सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु दुनियां भर में महिलाओं को दोयम दर्जा प्राप्त है। कई देषों में तो महिलाओं की स्थिति बहुत ही खराब स्थिति में है। जहां उन्हें मूलभूत अधिकारों से भी वंचित रखा जाता है। भारत में महिलाओं के विकास के लिए अनेकों ऐसे कानून बने हैं जो महिलाओं के अधिकारों के रक्षा करते हैं। वर्तमान समय में भारतवर्श में महिलाओं की स्थिति पिछले कुछ वर्शों में अत्यन्त ही तेजी से सुधरी है। आज महिलायें प्रत्येक स्थल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही हैं। फिर चाहे वह सेना हो, पुलिस हो, इंजीनियर हो या डाॅक्टर। कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां तक महिलायें न पहुंच पाई हों। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, महिलाओं के अधिकारों के लिए बने कानून जहां एक ओर इनकी भलाई करते हैं तो वहीं दूसरी और अनेकों महिलायें आज अपने अधिकारों की रक्षा के लिए बने इन्हीं कानूनों का दुरूपयोग करती आसानी से नजर आ जाती हैं। समाज में पष्चिमीकरण आज इस कदर प्रत्येक व्यक्ति के दिलो-दिमाग में हावी हो चुका है कि वह अपने स्वार्थ के इतर कहीं देख ही नहीं पाता। फिर वह चाहे स्त्री हो या पुरूश, इससे क्या फर्क पड़ता है। सभी अपनी-अपनी ढपली बजाने में लगे हुए हैं जिसको जहां अवसर मिलता है वह मौके पर चैका मारने के लिए तैयार बैठा मिलता है।
कुछ ही माह पहले किसी समाचार पत्र पर एक खबर पढ़ी थी जो यह सोचने को मजबूर करती है कि वास्तव में क्या किया जाये? खबर कुछ यूं थी जिसमें एक व्यक्ति की नई-नई षादी हुई। तो उसकी पत्नी बारहवीं पास थी और आगे पढ़ना चाहती थी। पति जो एक छोटी प्राईवेट नौकरी करता था। तो अपनी पत्नी की पढ़ाई हेतु मान गया और अपनी कम वेतन से पैसा बचाकर पत्नी की पढ़ाई करवाने लगा। तीन वर्श की गे्रजुएषन करने के बाद पत्नी सरकारी नौकरी की तैयारी करने लगी जिसमें भी उसके पति ने उसका पूरा साथ दिया। फिर एक दिन वो भी आया जब पत्नी की कहीं सरकारी नौकरी लग गई और उसने अपने कम कमाने वाले पति को छोड़ देना ठीक समझा। यह कहानी बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के मुद्दे पर अखबार में एक व्यंगात्मक तरीके से प्रस्तुत की गई थी। जो सोचने को मजबूर करती है कि कैसे स्त्रियां कभी-कभी अपने अधिकारों का गलत प्रयोग करती हैं। जिसके कारण समाज में एक गलत उदाहरण प्रस्तुत होता है जो आम जनमानस के मन को नकारात्मकता से भर देता है।
ऐसे ही मामले मुझे अन्य कुछ स्थानों पर देखने को मिले जैसा कि पंजाब, हरियाणा में हर दूसरे व्यक्ति को विदेष जाने का सपना रहता है और वहां लोग बाहर जाने के लिए तरह-तरह की जुगत लगाते रहते हैं। इसी प्रकार वहां एक व्यक्ति जिसके पास काफी जमीन-जायदाद थी, खेती-बाड़ी से अच्छा खासा कमा लेते थे। लेकिन उसके बेटे को विदेष जाने की धुन सवार थी कि किसी भी तरह एक बार विदेष जाकर सैटल होना है लेकिन कमी यह थी कि वह कम पढ़-लिखा था और अंगे्रजी भी नहीं जानता था। जिसके कारण वह बाहर जाने के नियमों में पूरा नहीं उतरता था। फिर उस व्यक्ति ने एक ऐसी लड़की को खोजा जो बहुत पढ़ी-लिखी और अच्छी अंग्रेजी जानने वाली थी। जिस लड़की को भी विदेष जाना था लेकिन आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण वह विदेष में पढ़ाई के लिए नहीं जा सकती थी। इस प्रकार दोनों परिवारों ने यह तय कर लिया कि क्यों न उन दोनों का विवाह करवा दिया जाये जिससे लड़की की पढ़ाई का पूर्ण खर्च उसके पति उठायेगा लेकिन पढ़ाई के विदेष जाने के समय लड़की के साथ पति होने के कारण वह भी विदेष जा सकेगा और कोई भी काम कर सकेगा। यह सब निष्चित होते ही दोनों की षादी हो जाती है और वह दोनों विदेष चले जाते हैं, कुछ वर्शों बाद कुछ ऐसा होता है कि लड़की की पढ़ाई वहां पूर्ण हो जाती है और उसे वहां एक अच्छी नौकरी मिल जाती है। क्योंकि विदेषों में महिलाओं के लिए भारत की अपेक्षा और अधिक अच्छे और कड़े कानून हैं तो वह महिला अपने पति पर तलाक के लिए दबाव बनाने लगती है और न मानने पर उसे घरेलू हिंसा और अन्य मामलों में फंसाने की धमकी देने लगती है। जिससे मजबूरन लड़के को उसे तलाक देना पड़ता है और वापिस अपने देष भारत की ओर लूटी और ठगी हुई अवस्था में अपने घर लौटना पड़ता है। इस प्रकार समाज में अक्सर बहुत से उदाहरण देखने को मिल जाते हैं। जो स्त्रियों के लिए नैतिकता की दृश्टि से उचित नहीं हैं।
अपने अधिकारों की रक्षा का सभी को अधिकार है। लेकिन उसका गलत उपयोग करना सदैव ही निंदनीय और गलत है।