बाल यौन शोषण हमारे समाज की सबसे जटिल समस्याओं में से एक है।भारत में दिन पर दिन बाल यौन शोषण की समस्याएं तेज़ी से बढ़ती जा रहीं है। जिसके चलते न जाने कितने मासूम आज एक सुरक्षित समाज में साँस नहीं ले पा रहे।उनके मन में असुरक्षा का डर भर गया है।चंद लोगों के हवस के चलते न जाने कितने मासूमों को एक अजीब डर के साथ पूरी ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ती है। इस डर को महसूस करना तो दूर सोच पाना भी मुश्किल है। बाल यौन शोषण का असर न केवल पीड़ित बच्चे पर होता है बल्कि इससे पूरा समाज प्रभावित होता है। भारत में बाल यौन शोषण जैसी घटनाओं पर न तो समाज ही खुलकर कदम उठाता है न ही पीड़ित के परिजन। ऐसी घटनाओं के लिए एक सामान्य धारणा बना रखी है कि “ऐसी बातें चार दीवारी के अंदर ही रहनी चाहिए, नहीं तो समाज में परिवार की इज़्ज़त पर दाग लग जायेगा”। जिसकी वजह से बाल यौन शोषण के मामले भी दर्ज नहीं करवाए जाते और आरोपी खुले आम अपनी मनमानी करते है।क्योंकि ये जानते हैं की न इन पर कोई कार्यवाही होगी और न ही ये पकड़े जायेंगें।परिवार में सामज के प्रति डर और समाज में अपनी गरिमा बचाने के लिए साधी गई चुप्पी बाल यौन शोषण की समस्या को कहीं न कहीं बढ़ावा दे रहा है।
क्या है बाल यौन शोषण ?
बाल यौन शोषण, शोषण का एक प्रकार है जिसमें एक वयस्क अपने आनंद के लिये एक बच्चें का यौन शोषण करता है। जितना घृणित ये परिभाषा से लग रहा है, वास्तविकता में ये इससे भी ज्यादा शर्मनाक और भयानक होता है। बता दें कि भारत भी उन देशों में से एक है जहाँ बच्चों के साथ ऐसे आपराधिक घटना होती है। और जहाँ बच्चे खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करते।बाल यौन शोषण को बच्चों के साथ छेड़छाड़ के रुप में भी परिभाषित किया जाता है। बाल यौन शोषण तीन रुपों में होता है - शारीरिक, यौन, और भावात्मक।भावात्मक शोषण का बच्चे पर सबसे बुरा असर पड़ता है जिसके चलते वह ज़िंदगीभर अपने इस डर से नहीं निकल पाता। लेकिन माता-पिता और बच्चों दोनों को इस बारे में अवगत कराकर इसे रोका जा सकता है। कहीं न कहीं ये शोषण इस वजह से भी होता है कि माता-पिता अपने बच्चों को इसके बारे में खुलकर बता नहीं पाते। जिस वजह से बच्चों को अश्लील या गलत तरीके से छूने के बारे में नहीं पता होता है और फिर जब बच्चें किसी तरह की छेड़छाड़ का शिकार होते है तो इसे पहचान नहीं पाते है। इसलिए परिजनों के लिए ये बहुत आवश्यक हो जाता है कि बच्चे को खुल कर छूने के सही और गलत तरीके के बारे में बताएं ताकि बच्चे उसे समझ पाए।
अपराधी कौन ?
बता दें कि बाल यौन शोषण में अधिकतर अपराधी,पीड़ित का कोई जानकार, पीड़ित के परिवार का जानकार या फिर पीड़ित का कोई करीबी ही होता है। परिवार के करीबी होने के कारण अपराधी पर कोईं शक नहीं करता जिसका अपराधी अनुचित फायदा उठाता है क्योंकि वो जनता है कि वो किसी भी विरोध से बचने में सक्षम है। ऐसे मामलों में परिवार की चुप्पी इसे और बढ़ावा देती है। ये एक पारिवारिक विषय माना जाता है और इसके बाद अपराधी द्वारा बार-बार पीड़ित को प्रताड़ित करने का रुप ले लेता है। ऐसी घटनाएं बच्चे के मानसिक विकास पर बुरा प्रभाव डालती है।
बाल यौन उन्पीड़न से बचाव के लिए क्या करें?
यौन शोषण के प्रति बच्चों को जानकारी दें और सावधान करें।
बच्चों बैड और गुड टच के बारे में बताये ताकि वे अपने साथ हुए छेड़छड़ को समझ पाने में सक्षम रहें।
बच्चों को सुरक्षा टिप्स की जानकारी दें ताकि घटना के समय वो खुद का बचाव कर सकें।
बच्चों को बोलने के लिये कहें ताकि वे अपने साथ हुई हर घटना को बता सकें न की चुप्पी साधे रहें।
बच्चों से दोस्ती करें ताकि वे एक दोस्त की तरह अपनी हर अच्छी बुरी बात आपको बता सकें।
यौन उत्पीड़ित बच्चों को कैसे संभालें ?
बाल यौन शोषण से पीड़ित बच्चों के मन में इसका बहुत गहरा असर होता है जिसके चलते उनका मानसिक और शारीरिक विकास भी रुक सा जाता है।बच्चे फूलों की तरह कोमल होते हैं अगर उन्हें सही समय पर संभाला न जाए तो ये मासूम ज़िंदगीभर के लिए बिखर कर रह जाते हैं और ये दर उनका ज़िन्दीभर पीछा करते हैं।जिसके लिए सबसे पहले पीड़ित ले परिजनों और उसके स्कूल को उसे संभालना चाहिए और साथ ही पुलिस और मीडिया की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
परिवार की भूमिका
बच्चे को दोष क़त्तई न दें। बच्चे को सदमे और प्रताड़ना से उबरने के लिए माता-पिता का सहयोग बहुत ज़रूरी है। बच्चों को यौन अपराध से बचाने वाला क़ानून कहता है कि पुलिस थाने में एफ़आईआर दर्ज होने के 24 घंटे के भीतर बच्चे को आपात चिकित्सा सेवाएं मुहैया कराई जानी चाहिए। इस तरह की सेवा रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर और सरकारी अस्तपताल मुहैया कराते हैं। एक बार चिकित्सा जांच होने के बाद, निमहैंस या कोई अन्य प्रशिक्षित मनोविज्ञानी बच्चे को उस सदमे से उबरने और न्याय प्रक्रिया में भी मदद कर सकता है। माता-बिता को बच्चे के बयानों और उसकी दूसरी बातों की अनदेखा नहीं करना चाहिए। जब भी किसी तरह का संदेह हो तो अच्छा होगा कि विभिन्न स्रोतों से जानकारी जुटाएं और मामले का पता लगाएं।
स्कूल की भूमिका
इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए ज़रूरी है कि स्कूल ऐसी वर्कशॉप कराएं जिनमें बच्चों को उनकी निजी सुरक्षा और उससे जुड़े उपायों के बारे में बताया जाए। स्कूल को यौन हिंसा का शिकार होने वाले बच्चे के माता पिता और अन्य अभिभावकों के साथ सक्रिय सहयोग करना चाहिए और ऐसे मामलों में स्पष्ट रूख़ अपनाना चाहिए। स्कूल को इस बारे में भी सजग रहना चाहिए कि ऐसे मामले का अन्य बच्चों पर क्या असर हो सकता है और इस बारे में किसी विशेषज्ञ की सहायता ली जानी चाहिए।
बच्चे को वापस स्कूल में लाने और उसके साथ किसी तरह के भेदभाव को रोकने की तैयारी की जानी चाहिए ताकि वो फिर से बच्चों में घुलमिल सके।
पुलिस की भूमिका
अगर पुलिस में प्रशिक्षित व्यक्ति नहीं है, तो ऐसे मामले को किसी विशेषज्ञ को सौंपा जाना चाहिए और बच्चे को सदमे से उबारने के लिए फॉरेंसिक इंटरव्यू से जुड़े निर्देशों का पालन हो। पुलिस को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि इस मामले में बच्चे से बात करते समय कोई जल्दबाज़ी न दिखाई जाए क्योंकि इससे बच्चा परेशान हो सकता है और उसकी सेहत पर इसका असर पड़ सकता है। पुलिस को समझना होगा कि फॉरेंसिक सबूत जुटाने के और भी कई स्वीकार्य पुख़्ता तरीक़े हैं।
मीडिया की भूमिका
मीडिया को ऐसे मामलों में आशा जगाने का काम करना चाहिए न कि निराशा फैलानी चाहिए क्योंकि इससे बच्चे की पीड़ा और परिवार के लिए सामाजिक कलंक झेलने का डर बढ़ता है।मीडिया ये बताने में परिवार की मदद कर सकता है कि उन्हें कहां से चिकित्सा, मानसिक स्वास्थ्य और क़ानूनी मदद हासिल कर सकते हैं।
बाल यौन शोषण पर रिपोर्टिंग में उन सुविधाओं और उपचारों के बारे में जानकारी पर बल दिया जा सकता है जो सदमे से उबरने के लिए बच्चे को मिल सकती हैं।साथ ही मीडिया को पीड़ित बच्चे की पहचान और निजता की रक्षा करनी चाहिए। परिवार को चिकित्सा और अन्य क़ानूनी प्रक्रियाएं पूरी करने देनी चाहिए और बार-बार अनुचित सवाल पूछ कर उनकी पीड़ा को और नहीं बढ़ाना चाहिए।
बाल यौन शोषण के लिए बनाये गए कानून
भारतीय दंड संहिता, 1860, महिलाओं के खिलाफ होने वाले बहुत प्रकार के यौन अपराधों से निपटने के लिये प्रावधान (जैसे: धारा 376, 354 आदि) प्रदान करती है और महिला या पुरुष दोनों के खिलाफ किसी भी प्रकार के अप्राकृतिक यौन संबंध के लिये धारा 377 प्रदान करती है, लेकिन दोनों ही लिंगो के बच्चों (लड़का/लड़की) के साथ होने वाले किसी प्रकार के यौन शोषण या उत्पीड़न के लिये कोई विशेष वैधानिक प्रावधान नहीं है। इस कारण, वर्ष 2012 में संसद ने यौन (लैंगिक) अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, 2012 इस सामाजिक बुराई से दोनों लिंगों के बच्चों की रक्षा करने और अपराधियों को दंडित करने के लिए एक विशेष अधिनियम बनाया। इस अधिनियम से पहले, गोवा बाल अधिनियम, 2003 के अन्तर्गत व्यवहारिकता में कार्य लिया जाता था। इस नए अधिनियम में बच्चों के खिलाफ बेशर्मी या छेड़छाड़ के कृत्यों का अपराधीकरण किया गया है।