प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसे क्षण अवष्य आते हैं जब उसे लगता कि उसे उस समय वह कार्य नहीं करना चाहिए था और व्यक्ति का मन एक दुःख और निराषा से भर उठता है। इसी प्रकार की एक घटना याद आती है जब एक व्यक्ति इस प्रकार की स्थिति से गुजरता है, तब उसका मन किस प्रकार व्यथित हो उठता है। ऐसा बहुत से लोगों का मानना है कि जीवन में हम बहुत सी वस्तुएं धन से खरीद सकते हैं किन्तु फिर भी कई ऐसी चीजें भी हैं जो धन से खरीदी नहीं जा सकती और न ही उन्हें किसी प्रकार से उत्पन्न किया जा सकता है और वह है जीवन। जीवन अमूल्य है, इसकी कीमत हम उसी से पूछ सकते हैं जो व्यक्ति मृत्युषय्या पर पड़ा अपने जीवन की अन्तिम सांसे गिन रहा हो। कुछ वर्शों पहले एक परिचित मुकेष जो समृद्ध परिवार से था। बचपन से ही किसी वस्तु की कमी न होने कारण बड़ी आसानी से जीवन चल रहा था। पढ़ाई-लिखाई अच्छे प्राईवेट इंगलिष स्कूल से हुई थी, जिसके पष्चात अच्छे वेतन की नौकरी भी मिल गई। धन, परिवार, पढ़ाई, नौकरी, सेहतमंद षरीर यह सब कुछ होने पर कई लोगों को अहंकार आ ही जाता है। जिसमें मुकेष भी कुछ हद तक आ चुका था। अच्छे से जीवन बीत रहे थे, अचानक उन्हें फोन आता है कि उसकी मौसी जो किसी दूसरे षहर में थी, अचानक किसी बीमारी से ग्रसित हो गई थी, जिसके कारण उनका आपरेषन किया जाना था। यह सुनते ही उसकी माता-पिताजी और वह व्यक्ति तुरन्त मौसी को देखने रवाना हो गये। मुकेष का बिल्कुल भी कहीं बाहर अस्पताल जैसी जगह जाने का बिल्कुल भी मन न था लेकिन मजबूरन उसे भी जाना पड़ा क्योंकि माता-पिताजी कार से जा रहे थे जिसमें मुकेष को ही कार ड्राईव करनी थी। ऊपर से मां का अपनी बहन के प्रति प्रेम के कारण वह भी उस पर दबाव डाल रही थी कि लोग क्या कहेंगे, तुम्हें भी चलना होगा। इन सब बातों के कारण मन मसोज कर मुकेष भी चला गया।
अस्पताल पहुंचते ही वहां पता चला की उसकी मौसी की हालत कुछ अधिक ही खराब थी, उनका एक बेटा रोहन जो नौकरी के लिए ऑस्ट्रेलिया गया हुआ था, वो जल्दी छुट्टी न मिलने कारण उस समय मौजूद नहीं था लेकिन कुछ दिन बाद वह भी भारत आ रहा था। मौसा जी जो ब्लड षुगर के मरीज थे, उनकी हालत अपनी पत्नी को देखकर बिगड़ी सी मालूम होती थी। ऐसे में डॉक्टर्स ने कहा कि उनकी मौसी को सर्जरी के दौरान खून की आवष्यकता हो सकती है। इसलिए आप सभी तैयार रहिए क्योंकि उनका जो ब्लड गु्रप था, वह आसानी से उपलब्ध नहीं था। मुकेष समझ गया कि अब उसे अपना खून ही देना पड़ेगा क्योंकि उसका ब्लड गु्रप वही था, जो उसकी मौसी का था। मौसा जी षुगर के मरीज के कारण खून नहीं दे सकते थे और उनका ब्लड गु्रप भी अलग था। उसकी मां पहले से ही खून की कमी से जूझ रही थी और पिता जी का खून भी मैच नहीं हो रहा था। जिसके कारण मुकेष अब फंस गया था। इतना पता चलते ही मुकेष कमजोरी के कारण चक्कर आने का बहाना करते हुए बेहोष हो गया। जिसके कारण सभी घबरा गये कि ऐसे समय में इसे क्या हो गया। बड़ी भागदौड़ करने के बाद किसी ब्लड बैंक से उस ग्रुप का खून मिल गया और उसकी मौसी का ऑपरेषन सफलतापूर्वक हो गया। सभी खुष थे कि मौसी भी सही हो गयी और मुकेष की हालत भी अब सही है। यहां सभी यह सोच रहे थे कि मौसी की चिंता में मुकेष कुछ न खाने पीने के कारण बेहोष हुआ है लेकिन सच्चाई तो मुकेष ही जानता था।
ऐसे ही समय बीतता गया, 20 वर्श कैसे बीत गये पता ही न चला। अब मुकेष की एक बेटी थी जो कॉलेज में पढ़ रही थी। मुकेष भी नौकरी छोड़कर अपना एक व्यापार चला रहा था जो बहुत ही अच्छा चल रहा था। वो कहते हैं न कि व्यक्ति के किए गये कर्म कभी-कभी सामने आ ही जाते हैं। एक दिन अचानक उसकी मां जो बहुत बूढ़ी हो चुकी थी, अचानक तेज दर्द से कराहने लगी। आनन-फानन में षहर के सबसे बड़े अस्पताल में ले जाया गया तो पता चला कि उनके गुर्दे में पथरी है, जिसका ऑपरेषन करना होगा और उन्हें खून की आवष्यकता पड़ेगी। क्योंकि मुकेष की मां, मौसी और उसका खून एक ही गु्रप का था। मौसी का देहावसान कुछ ही समय पूर्व हो चुका था। मुकेष, डॉक्टर के पास गया और अपना खून मां को देने के लिए कहने लगा। लेकिन डॉक्टर ने उसका खून लेने से इंकार कर दिया क्योंकि मुकेष काफी से बहुत अधिक षराब के सेवन के कारण लीवर की किसी परेषानी से जूझ रहा था, जिस कारण वह अपनी मां को खून नहीं दे सकता था। ऐसी स्थिति में उसने षहर के सभी बड़े ब्लड बैंक छान मारे लेकिन उस गु्रप का खून न मिला। उसकी मां की बीमारी की खबर सभी जगह फैल चुकी थी। रिष्तेदारों का आना षुरू हो गया था लेकिन खून देने के मामले में सभी पीछे हट रहे थे। मुकेष बहुत परेषान था कि अब क्या होगा। क्या उसकी मां बिना खून के कारण मर जायेगी। ऐसी बातें उसका कलेजा फाड़ देने के लिए काफी थी। तभी उसके कंधे में हाथ रखते हुए उसकी मौसी का लड़का रोहन बोला, भाई तू चिन्ता न कर। मेरा ब्लड गु्रप और मौसी का ब्लड गु्रप एक ही है और वह सिर्फ तेरी ही नहीं मेरी भी तो मां है। तूने, हमारे बुरे समय में हमारी कितनी मदद की है, वह मैं कभी नहीं भूल सकता। जब मैं बाहर विदेष में था तब तुम ही लोगों ने मेरी मां की देखभाल की, तब यही खून की समस्या आई तब तुम लोगों ने कैसे वह समस्या सुलझाई। आज मेरा समय है और जितना खून चाहिए मैं दूंगा, यह कहकर वह डॉक्टर के पास गया और रक्त दान करने को कहने लगा, खून का सैम्पल ठीक आने पर रोहन का खून, मुकेष की मां को चढ़ाया गया। ऑपरेषन की सही हो गया। मुकेष अपनी मां को अस्पताल के बैड पर लेटा देख रहा था जिन्हें खून की बूंदे टिप-टिप करके उनके षरीर में जा रही थी और मुकेष की आंखों से पछतावें के आंसू उन्हीं खून की बूंदों के माफिक बह रहे थे।