सदियों से इंसान इसी असमंजस में डूबा रहता हैं की में इतना कर्म करता हूँ किन्तु मेरा भाग्य मेरा मेरा साथ नही देता ईश्वर मेरे ऊपर अत्याचार कर रहा हैं और पता नही किस कर्म की सजा मुझे मिल रही है न जाने ऐसे कितने सवाल हैं जो इंसान के मन और मस्तीषक में घूमते रहते है लेकिन फिर भी अगर इन बातों पर प्रकाश डाला जावे तो प्रकृति के नियमनुसार इन्सान को जो कुछ भी मिलता हैं वही से उसके भाग्य का भी निर्माण हो जाता हैं दो चीजें हैं जो प्रक्रति के नियम से जुड़ी हुई हैं एक तो हैं उत्तरार्द्ध और दूसरा हैं पूर्वार्ध अर्थात उतरार्ध जो अभी चल रहा हैं और पूर्वार्ध जो बीत चुका हैं इसलिये इन्सान के कर्म और भाग्य पूर्वार्ध में किये गये कर्मो के अनुसार ही इश्वर यह तय करता हैं की किस इंसान को कितना धन और ऐश्वर्या व मान सम्मान इस धरती पर कहां और किस स्वरूप में मिलना हैं इसी को हम प्रकर्ति का नियम भी कहते हैं
प्रक्रति ही क्षमा और दण्ड दोनो का ही निर्धारण करती हैं इंसान द्वारा किये गये कर्मो का व उसी के अनुसार इंसान क्षमा व दंड पाता है इस धरती पर |