लोहड़ी का त्यौहार मुख्यतः पंजाबी व सिख धर्म के त्योहारों में से एक है जिसमें शाम के समय लकड़ीयों से बने एक टीलेनुमा में विभिन्न प्रकार की सामग्रियों की आहुति डाली जाती है और शाम के ही समय वही पर बैठकर के विभिन्न प्रकार के रंगारंग कार्यक्रम पेश किये जाते है जो इस त्यौहार में चार चांद लगा देते है जिस प्रकार होली के त्यौहार में होलिका दहन का आयोजन किया जाता है शाम के समय और उसकी पूजा पाठ कर उसमे तमाम सामग्री की आहुति दी जाती है ठीक उसी प्रकार लोहड़ी में भी शाम के समय पूजा पाठ कर वहां रंगारंग कार्यकर्मों का आयोजन किया जाता है अब बात करे हम भारत देश में होने वाले जितने भी त्यौहार साल में आते जाते है जो हमे किसी ना किसी चीज का सन्देश देते है की हमे इन त्योहारों से क्या सीखना चाहिये और क्या करना चाहिये किन्तु क्या हम ऐसा करते है जवाब है नही वो
इसलिये की आज इस कलयुग में इंसान के भगवान और त्यौहार दोनों पैसा बन चुका है जिसे इसके अलावा इसे ना तो कुछ दिखायी देता है और ना ही सुनाई देता है और यही कारण है की आज हर त्योहार,रिश्ता,परिवार,समाज,राजनीति माता- पिता,घर इत्यादि सब कुछ पैसों से तोला जा रहा है शायद यही इस कलयुग का प्रभाव भी है |